"अहह धन्य लछिमन बड़भागी": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
('{{सूचना बक्सा पुस्तक |चित्र=Sri-ramcharitmanas.jpg |चित्र का नाम=रा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
No edit summary
 
पंक्ति 39: पंक्ति 39:
{{poemclose}}
{{poemclose}}
;भावार्थ
;भावार्थ
अहा हा! [[लक्ष्मण]] बड़े धन्य एवं बड़भागी हैं, जो श्री रामचंद्रजी के चरणारविन्द के प्रेमी हैं (अर्थात्‌ उनसे अलग नहीं हुए)। मुझे तो प्रभु ने कपटी और कुटिल पहचान लिया, इसी से नाथ ने मुझे साथ नहीं लिया॥2॥  
अहा हा! [[लक्ष्मण]] बड़े धन्य एवं बड़भागी हैं, जो [[राम|श्री रामचंद्रजी]] के चरणारविन्द के प्रेमी हैं (अर्थात्‌ उनसे अलग नहीं हुए)। मुझे तो प्रभु ने कपटी और कुटिल पहचान लिया, इसी से नाथ ने मुझे साथ नहीं लिया॥2॥  


{{लेख क्रम4| पिछला=रहेउ एक दिन अवधि अधारा |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला=जौं करनी समुझै प्रभु मोरी}}
{{लेख क्रम4| पिछला=रहेउ एक दिन अवधि अधारा |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला=जौं करनी समुझै प्रभु मोरी}}

07:17, 2 जून 2016 के समय का अवतरण

अहह धन्य लछिमन बड़भागी
रामचरितमानस
रामचरितमानस
कवि गोस्वामी तुलसीदास
मूल शीर्षक रामचरितमानस
मुख्य पात्र राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि
प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर
शैली सोरठा, चौपाई, छन्द और दोहा
संबंधित लेख दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा
काण्ड उत्तरकाण्ड
चौपाई

अहह धन्य लछिमन बड़भागी। राम पदारबिंदु अनुरागी॥
कपटी कुटिल मोहि प्रभु चीन्हा। ताते नाथ संग नहिं लीन्हा॥2॥

भावार्थ

अहा हा! लक्ष्मण बड़े धन्य एवं बड़भागी हैं, जो श्री रामचंद्रजी के चरणारविन्द के प्रेमी हैं (अर्थात्‌ उनसे अलग नहीं हुए)। मुझे तो प्रभु ने कपटी और कुटिल पहचान लिया, इसी से नाथ ने मुझे साथ नहीं लिया॥2॥


पीछे जाएँ
पीछे जाएँ
अहह धन्य लछिमन बड़भागी
आगे जाएँ
आगे जाएँ

चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख