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04:49, 4 जून 2016 के समय का अवतरण
सखिन्ह सिखावनु दीन्ह
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | चौपाई, सोरठा, छन्द और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | अयोध्या काण्ड |
सखिन्ह सिखावनु दीन्ह सुनत मधुर परिनाम हित। |
- भावार्थ
इस प्रकार सखियों ने ऐसी सीख दी जो सुनने में मीठी और परिणाम में हितकारी थी। पर कुटिला कुबरी की सिखाई-पढ़ाई हुई कैकेयी ने इस पर जरा भी कान नहीं दिया॥50॥
सखिन्ह सिखावनु दीन्ह |
सोरठा- सोरठा मात्रिक छंद है और यह 'दोहा' का ठीक उल्टा होता है। इसके विषम चरणों (प्रथम और तृतीय) में 11-11 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 13-13 मात्राएँ होती हैं। विषम चरणों के अंत में एक गुरु और एक लघु मात्रा का होना आवश्यक होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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