"पहेली 30 जून 2016": अवतरणों में अंतर
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||[[चित्र:Bhadant Anand Kausalyayan.JPG|right|150px|भदन्त आनन्द कौसल्यायन]]'भदन्त आनन्द कौसल्यायन' प्रसिद्ध [[बौद्ध]] विद्वान, समाज सुधारक, लेखक तथा [[पालि भाषा]] के मूर्धन्य विद्वान थे। ये पूरे जीवन घूम-घूमकर राष्ट्रभाषा [[हिन्दी]] का प्रचार-प्रसार करते रहे। [[भदन्त आनन्द कौसल्यायन]] बीसवीं शती में [[बौद्ध धर्म]] के सर्वश्रेष्ठ क्रियाशील व्यक्तियों में गिने जाते थे। ये दस वर्षों तक 'राष्ट्रभाषा प्रचार समिति', वर्धा के प्रधानमंत्री रहे थे। ये देशवासियों की समता के समर्थक थे। भदन्त आनन्द जी ने [[हिन्दी साहित्य]] के संवर्धन के लिए बहुत काम किया। बौद्ध जातक कथाओं को हिन्दी में उपलब्ध कराने का श्रेय उनको ही है। उनकी कुछ अन्य कृतियां भी प्रसिद्ध हैं, जैसे- 'जो भूल न सका', 'जो लिखना पड़ा', 'रेल का टिकट', 'दर्शन-वेद से मार्क्स तक' तथा '''राम कहानी राम की जबानी''' आदि।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[भदन्त आनन्द कौसल्यायन]] | ||[[चित्र:Bhadant Anand Kausalyayan.JPG|border|right|150px|भदन्त आनन्द कौसल्यायन]]'भदन्त आनन्द कौसल्यायन' प्रसिद्ध [[बौद्ध]] विद्वान, समाज सुधारक, लेखक तथा [[पालि भाषा]] के मूर्धन्य विद्वान थे। ये पूरे जीवन घूम-घूमकर राष्ट्रभाषा [[हिन्दी]] का प्रचार-प्रसार करते रहे। [[भदन्त आनन्द कौसल्यायन]] बीसवीं शती में [[बौद्ध धर्म]] के सर्वश्रेष्ठ क्रियाशील व्यक्तियों में गिने जाते थे। ये दस वर्षों तक 'राष्ट्रभाषा प्रचार समिति', वर्धा के प्रधानमंत्री रहे थे। ये देशवासियों की समता के समर्थक थे। भदन्त आनन्द जी ने [[हिन्दी साहित्य]] के संवर्धन के लिए बहुत काम किया। बौद्ध जातक कथाओं को हिन्दी में उपलब्ध कराने का श्रेय उनको ही है। उनकी कुछ अन्य कृतियां भी प्रसिद्ध हैं, जैसे- 'जो भूल न सका', 'जो लिखना पड़ा', 'रेल का टिकट', 'दर्शन-वेद से मार्क्स तक' तथा '''राम कहानी राम की जबानी''' आदि।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[भदन्त आनन्द कौसल्यायन]] | ||
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