"जनम मरन सब दुख सुख भोगा": अवतरणों में अंतर
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जनम मरन सब | जनम मरन सब दु:ख सुख भोगा। हानि लाभु प्रिय मिलन बियोगा॥ | ||
काल करम बस होहिं गोसाईं। बरबस राति दिवस की नाईं॥3॥</poem> | काल करम बस होहिं गोसाईं। बरबस राति दिवस की नाईं॥3॥</poem> | ||
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जन्म-मरण, सुख-दुःख के भोग, हानि-लाभ, प्यारों का मिलना-बिछुड़ना, ये सब हे स्वामी! काल और कर्म के अधीन रात और दिन की तरह बरबस होते रहते हैं॥3॥ | जन्म-मरण, सुख-दुःख के भोग, हानि-लाभ, प्यारों का मिलना-बिछुड़ना, ये सब हे स्वामी! काल और कर्म के अधीन रात और दिन की तरह बरबस होते रहते हैं॥3॥ | ||
{{लेख क्रम4| पिछला= सचिव धीर धरि कह मृदु बानी |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला= सुख हरषहिं जड़ | {{लेख क्रम4| पिछला= सचिव धीर धरि कह मृदु बानी |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला= सुख हरषहिं जड़ दु:ख बिलखाहीं}} | ||
14:01, 2 जून 2017 का अवतरण
जनम मरन सब दुख सुख भोगा
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | चौपाई, सोरठा, छन्द और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | अयोध्या काण्ड |
सभी (7) काण्ड क्रमश: | बालकाण्ड, अयोध्या काण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किंधा काण्ड, सुंदरकाण्ड, लंकाकाण्ड, उत्तरकाण्ड |
जनम मरन सब दु:ख सुख भोगा। हानि लाभु प्रिय मिलन बियोगा॥ |
- भावार्थ
जन्म-मरण, सुख-दुःख के भोग, हानि-लाभ, प्यारों का मिलना-बिछुड़ना, ये सब हे स्वामी! काल और कर्म के अधीन रात और दिन की तरह बरबस होते रहते हैं॥3॥
जनम मरन सब दुख सुख भोगा |
चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
पुस्तक- श्रीरामचरितमानस (अयोध्याकाण्ड) |प्रकाशक- गीताप्रेस, गोरखपुर |संकलन- भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|पृष्ठ संख्या-242
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