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'''प्रतापचंद्र मजूमदार''' (जन्म- 1840 ई. [[हुगली ज़िला]], [[बंगाल]]; मृत्यु-  [[24 मई]], [[1905]] ) [[ब्रह्मसमाज]] के प्रसिद्ध नेता थे। प्रतापचंद्र मजूमदार उदार और प्रगतिशील विचारों के व्यक्ति थे| ये एक रचनाकार भी थे जि न्होंने कई ग्रंथों की रचनाएं भी की थी।इन पर [[देवेन्द्र नाथ टैगोर]] और [[केशव चंद्र सेन]] के विचारों का गहरा प्रभाव था। [[बंकिम चंद्र चटर्जी]] और [[सुरेन्द्र नाथ बनर्जी]] इनके निकट के सहयोगी थे।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन=भारतकोश पुस्तकालय |संपादन=|पृष्ठ संख्या=485|url=}}</ref>
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==परिचय==
==परिचय==
प्रतापचंद्र मजूमदार का जन्म [[बंगाल]] के [[हुगली ज़िला|हुगली ज़िले]] में 1840 ई. में हुआ था। इन्होंने प्रेसिडेंसी कॉलेज [[कोलकाता]] से शिक्षा प्राप्त की।  
प्रतापचंद्र मजूमदार का जन्म [[बंगाल]] के [[हुगली ज़िला|हुगली ज़िले]] में 1840 ई. में हुआ था। इन्होंने प्रेसिडेंसी कॉलेज [[कोलकाता]] से शिक्षा प्राप्त की।  
==ब्रह्मसमाज संगठन==
==ब्रह्मसमाज के विचारक ==
प्रतापचंद्र मजूमदार [[1859]] में विधिवत् [[ब्रह्मसमाज]] मे सम्मिलित हो गए थे। परंतु संगठन में मतभेद हो जाने के कारण जब ये  [[केशव चंद्र सेन]] से मिले जिन्होंने [[1865]] में 'नव विधान समाज' नाम का अलग संगठन बनाया था, से जुड़ गये। प्रतापचंद्र मजूमदार ने ब्रह्मसमाज की विचारधाराओं के प्रचार लिए [[भारत]] के सभी प्रमुख नगरों की यात्राएँ कीं और भाषण दिए।  
प्रतापचंद्र मजूमदार [[1859]] में विधिवत् [[ब्रह्मसमाज]] मे सम्मिलित हो गए थे। परंतु संगठन में मतभेद हो जाने के कारण जब ये  [[केशव चंद्र सेन]] से मिले जिन्होंने [[1865]] में 'नव विधान समाज' नाम का अलग संगठन बनाया था, से जुड़ गये। प्रतापचंद्र मजूमदार ने ब्रह्मसमाज की विचारधाराओं के प्रचार लिए [[भारत]] के सभी प्रमुख नगरों की यात्राएँ कीं और भाषण दिए।  
;इंगलैंड में भाषण   
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प्रतापचंद्र मजूमदार [[1874]] और [[1883]] में [[ब्रह्मसमाज]] की विचारधाराओं के प्रचार करने के लिये इंगलैंड गए और भाषण दिये। [[1893]] से [[1894]] के [[शिकागो]] के धार्मिक सम्मेलन में भी इन्होंने [[भारतीय दर्शन]] पर भाषण दिये। [[अमेरिका]] में ये तीन महीने रहे और अनेक भाषण दिये। अमेरिका में इनके भाषणों का इतना प्रभाव पड़ा, कि इनकी सहायता करने के लिये लोगों ने वहाँ 'मजूमदार मिशन फंड' के नाम से धन संग्रह करना शुरु कर दिया था। अपने विचारों के प्रचार के लिए [[1900]] ई. में ये एक बार फिर [[अमेरिका]] गए।
प्रतापचंद्र मजूमदार [[1874]] और [[1883]] में [[ब्रह्मसमाज]] की विचारधाराओं के प्रचार करने के लिये इंगलैंड गए और भाषण दिये। [[1893]] से [[1894]] के [[शिकागो]] के धार्मिक सम्मेलन में भी इन्होंने [[भारतीय दर्शन]] पर भाषण दिये। [[अमेरिका]] में ये तीन महीने रहे और अनेक भाषण दिये। अमेरिका में इनके भाषणों का इतना प्रभाव पड़ा, कि इनकी सहायता करने के लिये लोगों ने वहाँ 'मजूमदार मिशन फंड' के नाम से धन संग्रह करना शुरु कर दिया था। अपने विचारों के प्रचार के लिए [[1900]] ई. में प्रतापचंद्र मजूमदार  एक बार फिर [[अमेरिका]] गए।
==सामाजिक भेदभाव==
==उदार और प्रगतिशील विचारों के व्यक्ति ==
प्रतापचंद्र मजूमदार उदार और प्रगतिशील विचारों के व्यक्ति थे। ये [[समाज]] में [[जाति]], [[धर्म]], [[भाषा]] आदि के आधार पर किसी प्रकार का भेदभाव नहीं मानते थे। इन्होंने युवाओं को प्रशिक्षित करने के लिए एक संस्था की स्थापना की थी जो बाद में [[कोलकाता]] विश्वविद्यालय का हिस्सा बन गई। इन्होंने कई ग्रंथों की रचनाएं भी की थी।
प्रतापचंद्र मजूमदार उदार और प्रगतिशील विचारों के व्यक्ति थे। ये [[समाज]] में [[जाति]], [[धर्म]], [[भाषा]] आदि के आधार पर किसी प्रकार का भेदभाव नहीं मानते थे। इन्होंने युवाओं को प्रशिक्षित करने के लिए एक संस्था की स्थापना की थी जो बाद में [[कोलकाता विश्वविद्यालय]] का हिस्सा बन गई। इन्होंने कई ग्रंथों की रचनाएं भी की थी।
==मृत्यु==
==मृत्यु==
प्रतापचंद्र मजूमदार का [[24 मई]], [[1905]] को निधन हो गया था।
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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'''प्रफुल्लचंद्र घोष''' (जन्म - [[1891]] ई., [[ढाका]] ज़िला:  मृत्यु- [[1983]] [[कोलकाता]] ) [[पश्चिम बंगाल]] के पहले [[मुख्यमंत्री]] थे। ये बहुपठित व्यक्ति थे । [[पुराण]], [[उपनिषद्]] और [[गीता]] इनके प्रिय ग्रंथ थे। [[1921]] के [[असहयोग आंदोलन]] में भाग लेने के कारण ये जेल भी गये थे। प्रफुल्लचंद्र घोष जाति प्रथा और छुआछूत के विरोधी थे और मानते थे कि बालक की शिक्षा ही उसकी मातृभाषा में होनी चाहिए। प्रफुल्लचंद्र घोष ने अनेक पुस्तकों की रचनाएं भी की थी। [[स्वामी विवेकानंद]], [[अरविन्द घोष]], [[गांधी जी]] और [[रविन्द्रनाथ टैगोर]] के विचारों का इन पर गहरा प्रभाव था।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन=भारतकोश पुस्तकालय |संपादन=|पृष्ठ संख्या=487|url=}}</ref>
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==परिचय==  
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[[पश्चिम बंगाल]] के प्रथम [[मुख्यमंत्री]] डॉ. प्रफुल्लचंद्र घोष का जन्म [[ढाका]] ज़िले में [[1891]] ई. में हुआ था। कॉलेज से एम.एस-सी. करने के बाद इन्होंने [[कोलकाता]] विश्वविद्यालय से [[1919]] में पी-एच.डी.की उपाधि ली। ये बहुपठित व्यक्ति थे। [[पुराण]], [[उपनिषद्]] और [[गीता]] प्रफुल्लचंद्र घोष के प्रिय ग्रंथ थे। पश्चिमी देशों के [[स्वतंत्रता संग्राम]] के [[इतिहास]] का भी इन्होंने अध्ययन किया।  
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==क्रांतिकारी जीवन==
==क्रांतिकारी जीवन==
विद्यार्थी जीवन से ही डॉ. प्रफुल्लचंद्र घोष क्रांतिकारी आंदोलन की ओर आकर्षित हुए और अनुशीलन समिति के प्रभाव में आ गए, पर [[1911]] में [[कोलकाता]] [[कांग्रेस]] में भाग लेने के बाद इनके विचार बदल गए।  
विद्यार्थी जीवन से ही डॉ. प्रफुल्लचंद्र घोष क्रांतिकारी आंदोलन की ओर आकर्षित हुए और अनुशीलन समिति के प्रभाव में आ गए, पर [[1911]] में कोलकाता कांग्रेस में भाग लेने के बाद इनके विचार बदल गए।  
==गांधी जी से भेंट==
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डॉ. प्रफुल्लचंद्र घोष की जब [[गांधी जी]] से भेंट हुई तो ये इनके विचारों से प्रभावित होकर [[असहयोग आंदोलन]] से जुड़ गये। जिस कारण इन्हें जेल भी जाना पड़ा। रचनात्मक कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के लिए ढाका में प्रफुल्लचंद्र घोष ने 'अभय आश्रम' की स्थापना की। [[1929]] की [[लाहौर]] [[कांग्रेस]] में भाग लेने के बाद प्रफुल्लचंद्र घोष [[1930]] और [[1931]] में दो बार फिर गिरफ्तार हुए। प्रफुल्लचंद्र घोष ने [[1939]] की त्रिपुरी [[कांग्रेस]] के समय सुभाष बाबू के विरोध में [[पट्टाभि सीतारमैया]] का समर्थन किया था। उसके बाद ही ये [[कांग्रेस]] कार्य समिति के सदस्य बनाए गए। [[1940]] और [[1942]] में प्रफुल्लचंद्र घोष फिर गिरफ्तार हुए और [[1944]] में ही जेल से बाहर आ सके।
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==रचनाएं==
==रचनाएं==
प्रफुल्लचंद्र घोष ने अनेक पुस्तकों की रचनाएं की। इनमें प्रमुख हैं - प्राचीन भारतीय साहित्य का इतिहास, गीता बोध (गांधी जी की गुजराती पुस्तक का अनुवाद), इंडियन नेशनल कांग्रेस, [[महात्मा गांधी]] आदि।  
प्रफुल्लचंद्र घोष ने अनेक पुस्तकों की रचनाएं की। इनमें प्रमुख हैं - प्राचीन भारतीय साहित्य का इतिहास, गीता बोध (गांधी जी की गुजराती पुस्तक का अनुवाद), इंडियन नेशनल कांग्रेस, महात्मा गांधी आदि।  
==मृत्यु==
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डॉ. प्रफुल्लचंद्र घोष की मृत्यु [[1983]] [[कोलकाता]] में हो गई।
डॉ. प्रफुल्लचंद्र घोष की मृत्यु [[1983]] [[कोलकाता]] में हो गई।


 
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04:16, 15 अक्टूबर 2016 का अवतरण

प्रतापचंद्र मजूमदार (अंग्रेज़ी: Pratap Chandra Mazumdar, जन्म- 1840 ई. हुगली ज़िला, बंगाल; मृत्यु- 24 मई, 1905 ) ब्रह्मसमाज के प्रसिद्ध नेता थे। प्रतापचंद्र मजूमदार उदार और प्रगतिशील विचारों के व्यक्ति थे| ये एक रचनाकार भी थे जिन्होंने कई ग्रंथों की रचनाएं भी की थी। इन पर देवेन्द्र नाथ टैगोर और केशव चंद्र सेन के विचारों का गहरा प्रभाव था। बंकिम चंद्र चटर्जी और सुरेन्द्र नाथ बनर्जी इनके निकट के सहयोगी थे।[1]

परिचय

प्रतापचंद्र मजूमदार का जन्म बंगाल के हुगली ज़िले में 1840 ई. में हुआ था। इन्होंने प्रेसिडेंसी कॉलेज कोलकाता से शिक्षा प्राप्त की।

ब्रह्मसमाज के विचारक

प्रतापचंद्र मजूमदार 1859 में विधिवत् ब्रह्मसमाज मे सम्मिलित हो गए थे। परंतु संगठन में मतभेद हो जाने के कारण जब ये केशव चंद्र सेन से मिले जिन्होंने 1865 में 'नव विधान समाज' नाम का अलग संगठन बनाया था, से जुड़ गये। प्रतापचंद्र मजूमदार ने ब्रह्मसमाज की विचारधाराओं के प्रचार लिए भारत के सभी प्रमुख नगरों की यात्राएँ कीं और भाषण दिए।

इंगलैंड में भाषण

प्रतापचंद्र मजूमदार 1874 और 1883 में ब्रह्मसमाज की विचारधाराओं के प्रचार करने के लिये इंगलैंड गए और भाषण दिये। 1893 से 1894 के शिकागो के धार्मिक सम्मेलन में भी इन्होंने भारतीय दर्शन पर भाषण दिये। अमेरिका में ये तीन महीने रहे और अनेक भाषण दिये। अमेरिका में इनके भाषणों का इतना प्रभाव पड़ा, कि इनकी सहायता करने के लिये लोगों ने वहाँ 'मजूमदार मिशन फंड' के नाम से धन संग्रह करना शुरु कर दिया था। अपने विचारों के प्रचार के लिए 1900 ई. में प्रतापचंद्र मजूमदार एक बार फिर अमेरिका गए।

उदार और प्रगतिशील विचारों के व्यक्ति

प्रतापचंद्र मजूमदार उदार और प्रगतिशील विचारों के व्यक्ति थे। ये समाज में जाति, धर्म, भाषा आदि के आधार पर किसी प्रकार का भेदभाव नहीं मानते थे। इन्होंने युवाओं को प्रशिक्षित करने के लिए एक संस्था की स्थापना की थी जो बाद में कोलकाता विश्वविद्यालय का हिस्सा बन गई। इन्होंने कई ग्रंथों की रचनाएं भी की थी।

मृत्यु

प्रतापचंद्र मजूमदार का 24 मई, 1905 को निधन हो गया था।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 485 |


प्रफुल्लचंद्र घोष(अग्रेज़ी: Prafulla Chandra Ghosh, जन्म- 1891 ई., ढाका ज़िला; मृत्यु- 1983 कोलकाता ) पश्चिम बंगाल के पहले मुख्यमंत्री थे। ये बहुपठित व्यक्ति थे । पुराण, उपनिषद् और गीता इनके प्रिय ग्रंथ थे। 1921 के असहयोग आंदोलन में भाग लेने के कारण ये जेल भी गये थे। प्रफुल्लचंद्र घोष जाति प्रथा और छुआछूत के विरोधी थे और मानते थे कि बालक की शिक्षा ही उसकी मातृभाषा में होनी चाहिए। प्रफुल्लचंद्र घोष ने अनेक पुस्तकों की रचनाएं भी की थी। स्वामी विवेकानंद, अरविन्द घोष, गांधी जी और रविन्द्रनाथ टैगोर के विचारों का इन पर गहरा प्रभाव था।[1]

परिचय

पश्चिम बंगाल के प्रथम मुख्यमंत्री डॉ. प्रफुल्लचंद्र घोष का जन्म ढाका ज़िले में 1891 ई. में हुआ था। कॉलेज से एम.एस-सी. करने के बाद इन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय से 1919 में पी-एच.डी.की उपाधि ली। ये बहुपठित व्यक्ति थे। पुराण, उपनिषद् और गीता प्रफुल्लचंद्र घोष के प्रिय ग्रंथ थे। पश्चिमी देशों के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास का भी इन्होंने अध्ययन किया।

क्रांतिकारी जीवन

विद्यार्थी जीवन से ही डॉ. प्रफुल्लचंद्र घोष क्रांतिकारी आंदोलन की ओर आकर्षित हुए और अनुशीलन समिति के प्रभाव में आ गए, पर 1911 में कोलकाता कांग्रेस में भाग लेने के बाद इनके विचार बदल गए।

गांधी जी से भेंट

डॉ. प्रफुल्लचंद्र घोष की जब गांधी जी से भेंट हुई तो ये इनके विचारों से प्रभावित होकर असहयोग आंदोलन से जुड़ गये। जिस कारण इन्हें जेल भी जाना पड़ा। रचनात्मक कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के लिए ढाका में प्रफुल्लचंद्र घोष ने 'अभय आश्रम' की स्थापना की। 1929 की लाहौर कांग्रेस में भाग लेने के बाद प्रफुल्लचंद्र घोष 1930 और 1931 में दो बार फिर गिरफ्तार हुए। प्रफुल्लचंद्र घोष ने 1939 की त्रिपुर कांग्रेस के समय सुभाष बाबू के विरोध में पट्टाभि सीतारमैया का समर्थन किया था। उसके बाद ही ये कांग्रेस कार्य समिति के सदस्य बनाए गए। 1940 और 1942 में प्रफुल्लचंद्र घोष फिर गिरफ्तार हुए और 1944 में ही जेल से बाहर आ सके।

राजनीतिक जीवन

1947 में स्वतंत्रता के साथ साथ देश का विभाजन हो गया और प्रफुल्लचंद्र घोष पश्चिम बंगाल के पहले मुख्यमंत्री बनाये गये, परंतु कांग्रेस दल द्वारा अविश्वास प्रकट करने पर इन्हें 1948 में इस पद से हट जाना पड़ा। बाद में प्रफुल्लचंद्र घोष ने 'कृषक मजदूर पार्टी' बनाई जो आगे जाकर सोशलिस्ट पार्टी में मिल गई। 1967 में पश्चिम बंगाल की प्रथम संयुक्त मोर्चा सरकार में इन्होंने खाद्य मंत्री का पद संभाला। बाद में जब यह सरकार गिर गई तो विधान सभा में कांग्रेस के सहयोग से नई सरकार बनी और प्रफुल्लचंद्र घोष फिर एक बार मुख्यमंत्री बन गए। लेकिन 1969 के निर्वाचन में पराजित हो जाने के बाद ये राजनीति से अलग हो गए और अपना शेष जीवन सामाजिक कार्यों में लगाया। प्रफुल्लचंद्र घोष जाति प्रथा और छुआछूत के विरोधी थे और मानते थे कि बालक की शिक्षा उसकी मातृभाषा में होनी चाहिए।

रचनाएं

प्रफुल्लचंद्र घोष ने अनेक पुस्तकों की रचनाएं की। इनमें प्रमुख हैं - प्राचीन भारतीय साहित्य का इतिहास, गीता बोध (गांधी जी की गुजराती पुस्तक का अनुवाद), इंडियन नेशनल कांग्रेस, महात्मा गांधी आदि।

मृत्यु

डॉ. प्रफुल्लचंद्र घोष की मृत्यु 1983 कोलकाता में हो गई।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 487 |

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