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आयातक और निर्यातक के बीच होने वाले मतभेद के वक्त क्या किया जायेगा? मध्यस्थता के लिए किस संस्थान की सहायता लि जाएगी। इस सम्बन्ध में एक्सपोर्ट प्रोमोशन काउंसिल, इण्डियन मर्चेन्ट चैम्बर वगैरह की सहायता ली जा सकती है। | आयातक और निर्यातक के बीच होने वाले मतभेद के वक्त क्या किया जायेगा? मध्यस्थता के लिए किस संस्थान की सहायता लि जाएगी। इस सम्बन्ध में एक्सपोर्ट प्रोमोशन काउंसिल, इण्डियन मर्चेन्ट चैम्बर वगैरह की सहायता ली जा सकती है। | ||
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#[[खनिज]], ईधन और लुब्रिकेन्ट्स। | |||
भारत ने धीरे-धीरे स्वतंत्रता पूर्व मुख्य रूप से प्राथमिक उत्पाद निर्यात करने वाले देश से वर्तमान में निर्मित उत्पादों के निर्यातक के रूप में स्वयं को परिवर्तित किया है। अर्थव्यवस्था में हुए विकास को प्रतिबिम्बित करते हुए, निर्यात की जाने वाली मदों में परम्परागत से गैर-परम्परागत मदों की ओर परिवर्तन हुआ। | |||
06:05, 27 जनवरी 2017 का अवतरण
निर्यात (अंग्रेज़ी: Export), सीमा शुल्क अधिनियम-1962 के अनुसार निर्यात का अर्थ "भारत से किसी दूसरे स्थान, जो भारत के बहार हो, तक ले जाना है।" इस हिसाब से निर्यातित वस्तु का अर्थ "कोई वस्तु या फिर सामान जो भारत के बाहर ले जाया गया हो", और निर्यातक का अर्थ ऐसे व्यक्ति से है जो उस वस्तु का उसके निर्यात शुरू होने और उसके निर्यातित हो जाने तक उसका मालिक हो या फिर जो उसे रखता हो।
नमूना भेजना
निर्यात के व्यापार में माल या वस्तु का नमूना भेजा जाना आम बात है। भेजे जाने वाले नमूने की क़ीमत, भेजे जाने के माध्यम (हवाई जहाज़, पानी जहाज़, डाक, कोरियर), आकार (लम्बाई, चौड़ाई), वजन, प्रकार (तरल, ठोस, गैस, ज्वलनशील) आदि पर राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय नियम, क़ानून अलग अलग होते हैं।
अनुबंध
निर्यात अनुबंध पर हस्ताक्षर करने से पहले यह देख लेना चाहिए कि उसमें सभी जरूरी बातों पर चर्चा की गई है या नहीं, जैसे-
- माल के आकार, प्रकार, वजन आदि का पूरा विवरण।
- निर्यात होने से पहले माल का निरक्षण कौन करेगा? ग्राहक द्वारा या किसी निरक्षण संस्था द्वारा?
- माल की पैकिंग और उसका लेबल किस प्रकार का होगा?
- माल कि सुपुर्दिगी कहाँ होगी? इसे ले जाने, भेजने का माध्यम क्या होगा? याने इसे पानी जहाज़, हवाई जहाज़, डाक, रेल या ट्रक वगैरह से भेजा जायेगा?
- छूट (डिसकाउंट), कमीशन वगैरह कितना होगा? निर्यात के मूल्य का स्वरूप क्या होगा? इसकी मुद्रा क्या होगी?
- क़ीमत का भुगतान कैसे होगा?
मध्यस्थता की शर्तें
आयातक और निर्यातक के बीच होने वाले मतभेद के वक्त क्या किया जायेगा? मध्यस्थता के लिए किस संस्थान की सहायता लि जाएगी। इस सम्बन्ध में एक्सपोर्ट प्रोमोशन काउंसिल, इण्डियन मर्चेन्ट चैम्बर वगैरह की सहायता ली जा सकती है।
वर्गीकरण
भारत के निर्यात मोटे तौर पर चार वगों में विभक्त किये जाते हैं-
- कृषि और सम्बंधित उत्पाद जिसमें कॉफी, चाय, खल[1], तम्बाकू, काजू, गरम मसाले, चीनी, कच्ची रुई, चावल, मछली और मछली से बनी वस्तुएं, गोश्त और गोश्त से बनी वस्तुएं, वनस्पति तेल, फल, सब्जियाँ और दालें।
- अयस्कों और खनिजों में मैंगनीज अयस्क, अभ्रक और कच्चा लोहा शामिल किए जाते हैं।
- निर्मित वस्तुओं में सूती वस्त्र और सिले-सिलाए कपड़े, पटसन की बनी वस्तुएं, चमड़ा और जूट, हैंडीक्राफ्ट्स, हैण्डलूम, कुटीर एवं क्राफ्ट वस्तुएं, मोटी और बहुमूल्य पत्थर, रसायन, इंजीनियरिंग वस्तुएं तथा लौह एवं इस्पात शामिल किए जाते हैं।
- खनिज, ईधन और लुब्रिकेन्ट्स।
भारत ने धीरे-धीरे स्वतंत्रता पूर्व मुख्य रूप से प्राथमिक उत्पाद निर्यात करने वाले देश से वर्तमान में निर्मित उत्पादों के निर्यातक के रूप में स्वयं को परिवर्तित किया है। अर्थव्यवस्था में हुए विकास को प्रतिबिम्बित करते हुए, निर्यात की जाने वाली मदों में परम्परागत से गैर-परम्परागत मदों की ओर परिवर्तन हुआ।
इन्हें भी देखें: भारत का विदेशी व्यापार
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ oil Cakes