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{{सूचना बक्सा राजनीतिज्ञ
'''जे.सी. कुमारप्पा''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''J. C. Kumarappa'', जन्म: [[4 जनवरी]], [[1892]], [[मद्रास]]; मृत्यु: [[30 जनवरी]], [[1960]]) [[भारत]] के एक अर्थशास्त्री थे। उनका मूल नाम 'जोसेफ चेल्लादुरई कॉर्नेलिअस' (Joseph Chelladurai Cornelius) था। ये [[महात्मा गांधी]] के निकट सहयोगी रहे थे।। ये ग्राम-विकास सम्बन्धी आर्थिक सिद्धान्तों के अग्रदूत थे।  जे.सी. कुमारप्पा ने गांधीवाद पर आधारित आर्थिक सिद्धान्तों का विकास किया।
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|चित्र का नाम=शेख़ मोहम्मद अब्दुल्ला
जे सी कुमारप्पा को भारत में गाँधीवादी अर्थशास्त्र का प्रथम गुरु माना जाता है। अपने जीवनकाल में कुमारप्पा ने गाँधीवादी अर्थशास्त्र से जुड़े विषयों पर न केवल विशद लेखन किया बल्कि एक पूर्णकालिक कार्यकर्ता के रूप में भारत के दूरस्थ स्थानों में अनेक आर्थिक सर्वेक्षण करके ग्रामीण अर्थव्यवस्था के कायाकल्प के लिए सार्थक कार्यनीति का प्रतिपादन भी किया। कुमारप्पा का अर्थशास्त्र स्वतंत्र भारत के हर व्यक्ति के लिए आर्थिक स्वायत्तता एवं सर्वांगीण विकास के अवसर देने के उसूल पर आधारित था। भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था और इसके प्राकृतिक स्वरूप को उन्नत करने के हिमायती कुमारप्पा ऐसे बिरले अर्थशास्त्री थे जो पर्यावरण संरक्षण को औद्योगिक-वाणिज्यिक उन्नति से कहीं अधिक लाभप्रद मानते थे। गाँधी के आर्थिक दर्शन से कांग्रेस पार्टी में उनके अपने सहयोगी भी पूर्णतः सहमत नहीं थे। इसीलिए स्वतंत्र भारत की आर्थिक नीतियों और गाँधीवादी आर्थिक नीतियों के बीच कोई समानता नहीं रही। परिणास्वरूप स्वतंत्र भारत ने पाश्चात्य अर्थव्यस्था के नमूने के अंधानुकरण की होड़ में कुमारप्पा को जल्दी ही विस्मृत कर दिया।
|पूरा नाम=शेख़ मोहम्मद अब्दुल्ला
 
|अन्य नाम=कश्मीर का शेर
|जन्म=[[5 दिसंबर]], [[1905]]
|जन्म भूमि=सौरा, [[श्रीनगर]]
|मृत्यु=[[7 नवम्बर]], [[1982]]
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|संतान=तीन पुत्री और दो पुत्र
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|नागरिकता=भारतीय
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|पद=[[मुख्यमंत्री]]
|कार्य काल=
|शिक्षा=स्नात्तकोत्तर
|भाषा=[[भौतिक विज्ञान]]
|विद्यालय=[[अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय|अलीगढ़ विश्वविद्यालय]]
|जेल यात्रा=
|पुरस्कार-उपाधि=
|विशेष योगदान=
|संबंधित लेख=[[महात्मा गांधी]], [[जवाहर लाल नेहरू]],
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|पाठ 2=
|अन्य जानकारी=शेख़ मोहम्मद अब्दुल्ला ने [[जम्मू और कश्मीर]] का भारत राज्य में विलय का समर्थन किया। सन [[1949]] में ये राज्य के प्रधानमंत्री नियुक्त किए गए।
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|अद्यतन=
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'''शेख़ मोहम्मद अब्दुल्ला''' ([[अंग्रेज़ी]]:''Sheikh Abdullah'' ; जन्म: [[5 दिसंबर]], [[1905]], सौरा [[श्रीनगर]]; मृत्यु: [[7 नवम्बर]], [[1982]]) [[जम्मू और कश्मीर|जम्मू और श्रीनगर]] के क्रांतिकारी नेता थे, जो बाद में इस राज्य के प्रधानमंत्री तथा [[मुख्यमंत्री]] बने। ये मुस्लिम कवि इक़बाल की इस्लामिक शिक्षा तथा [[गांधीजी]], [[अब्दुल कलाम|मौलाना अब्दुल कलाम]] एवं [[जवाहर लाल नेहरु]] के विचारों से अत्यंत प्रभावित थे। शेख़ मोहम्मद अब्दुल्ला एक उदार व्यक्तित्व के धनी थे तथा ''इन्हें कश्मीर का शेर कहकर पुकारा जाता था।''<ref>{{cite web |url=http://www.kranti1857.org/jammu%20kashmir%20krantikari.php|title=शेख़ मोहम्मद अब्दुल्ला  |accessmonthday=14 फ़रवरी |accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=
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==परिचय==
==परिचय==
शेख़ मोहम्मद अब्दुल्ला का जन्म 5 दिसंबर, 1905 को श्रीनगर के एक उपनगर सौरा में हुआ था। इनका जन्म इनके पिता शेख़ मोहम्मद इब्राहिम के मौत के ग्यारह दिनों के बाद हुआ था। इनका [[परिवार]] पश्मीना तथा शाल का व्यापार किया करता था। इन्होंने श्रीनगर, जम्मू तथा [[अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय|अलीगढ़ विश्वविद्यालय]] से शिक्षा प्राप्त की। जहाँ इन्होंने [[1930]] में [[भौतिक विज्ञान|भौतिकी विषय]] से (एम.एस.सी. की) स्नात्तकोत्तर की परीक्षा उत्तीर्ण की। इन्होंने सन [[1932]] में अकबर बहान नामक महिला से निकाह किया। इनकी दो पुत्रियाँ तथा तीन पुत्र थे।
जे.सी. कुमारप्पा मद्रास में थानजीवर नामक स्थान पर 4 जनवरी, 1892 में पैदा हुए थे। ये [[मदुरई]] के मध्यमवर्गीय परम्परागत इक़साई [[परिवार]] से थे। इनके बचपन का नाम जोसफ़ चेल्लादुरै कॉर्नेलियस था। इन्होंने मद्रास से अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की तथा उसके बाद [[लंदन]] जाकर लेखा-विधि (एकाउंटेंसी) में प्रशिक्षण प्राप्त किया और फिर वहीं लंदन में एकाउंटेंट के रूप में कुछ वर्षों तक काम भी किया। प्रथम विश्वयुद्ध की समाप्ति पर और अपनी माता के बुलाने पर ये [[भारत]] लौट आये और [[बम्बई]] में कुछ समय तक एक ब्रिटिश कम्पनी में काम किया। उसके बाद [[1924]] में इन्होंने अपना व्यवसाय शुरू किया।
==राजनैतिक जीवन==
==शिक्षा==
शेख़ मोहम्मद अब्दुल्ला ने एक सरकारी अध्यापक के रूप में अपने कैरियर की शुरुआत की किंतु राजनैतिक गतिविधियों में सक्रिय होने के कारण उन्हें इस पद से बर्खास्त कर दिया गया। [[1932]] में ये मुस्लिम सभा के सदस्य चुने गए। [[1939]] में यह संगठन राष्ट्रीय सभा में बदल गया। इन्होंने [[मई]], [[1946]] को [[कश्मीर]] के महाराजा को शासन समाप्त करने के लिए उनके अधिकार को चुनौती दी और जेल चले गए। [[1947]] में ये जेल से रिहा कर दिए गए। इन्होंने घोषणा की कि कश्मीर के लोग स्वयं अपने भाग्य का निर्णय लेंगे। [[पाकिस्तान]] ने कश्मीर का विलय करने के लिए एक जनजाति हमला किया। शेख़ अब्दुल्ला ने लोकप्रिय प्रतिरोध को संचालित किया। इन्होंने जम्मू और कश्मीर का भारत राज्य में विलय का समर्थन किया। सन [[1949]] में ये राज्य के प्रधानमंत्री नियुक्त किए गए तथा [[भारतीय संविधान|भारत के संविधान]] के हस्ताक्षरकर्ता बने।
[[1927]] में ये फिर उच्च अध्ययन के लिए [[अमेरिका]] गये और सायराक्रुज़ विश्वविद्यालय से वाणिज्य एवं व्यापार प्रबंधन में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। इसके बाद इन्होंने कोलम्बिया विश्वविद्यालय में सार्वजनिक वित्त का अध्ययन करके अपने समय के प्रख्यात अर्थशास्त्री एडविन सेलिग्मन के मार्गदर्शन में 'सार्वजनिकवित्त एवं भारत की निर्धनता' पर शोध पत्र लिखा जिसमें भारत की आर्थिक दुर्दशा में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन की नीतियों से हुए नुकसान का अध्ययन किया गया था। इस अध्ययन के दौरान ही कुमारप्पा ने पाया कि भारत की दयनीय आर्थिक स्थिति का मुख्य कारण ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन की अनैतिक और शोषक नीतियाँ हैं। इसी बीच उन्होंने अपने मूल पारिवारिक नाम कुमारप्पा को अपने नाम के साथ जोड़ने का फ़ैसला किया।
==मुख्यमंत्री==
==कार्य==
[[भारत सरकार]] एवं शेख़ अब्दुल्ला के मध्य बढ़ते अविश्वास की परिवति [[9 अगस्त]], [[1953]] में हुई। इन्होंने [[भारत]] के प्रधान मंत्री एवं [[पाकिस्तान]] के प्रधान मंत्री अयुब खां के साथ बैठकों की एक श्रृंखला की। [[26 मई]], [[1964]] में [[जवाहर लाल नेहरू|नेहरूजी]] की मृत्युपरांत बातचीत की प्रक्रिया अवरुद्ध हो गई। सन [[1971]] में शेख़ अब्दुल्ला देश से निष्कासित कर दिए गए। बाद में इनका प्रधान मंत्री [[इंदिरा गांधी]] के साथ सामंजस्य होने के कारण एक बार फिर इनको [[जम्मू काश्मीर]] के [[मुख्यमंत्री]] के रूप में प्रतिष्ठित कर दिया गया।। इनके पुत्र [[फ़ारूक़ अब्दुल्ला, डॉ. |फ़ारूख अब्दुल्ला]] उनके उत्तराधिकारी के रूप में आये। शेख़ अब्दुल्ला एक उदार व्यक्तित्व के धनी थे तथा उन्हें कश्मीर का शेर कहकर पुकारा जाता है।
जे.सी. कुमारप्पा [[1929]] में भारत वापिस लौट आए। उन्होंने स्वयं गांधीजी के साथ मिलकर [[गुजरात]] के ग्रामीण सर्वेक्षण संचालित किया तथा केन्द्रीय प्रान्तों में औद्योगिक सर्वेक्षण किया। उन्होंने [[1929]]-[[1931]] के दौरान गुजरात विद्यापीठ में पढ़ाया और गांधीजी की गैर-मोजूदगी में यंग इण्डिया का सम्पादन किया। उन्हें गिरफ्तार कर सन् 1931 में जेल भेज दिया गया। सन् 1934 में वे ऑल इण्डिया विलेज इन्डस्ट्रीज एसोशिएशन के सचिव बनाये गये और गांधीजी के देहान्त के बाद वे इसके अध्यापक बनाये गये कुमरप्पा ने महात्मा गांधी के आर्थिक विचारों को एक वैज्ञानिक आत्मा के साथ व्याख्यायित किया। आधारभूत शिक्षा के प्रतिपादन में भी उन्होंने मुख्य भूमिका निभायी। वे एक बहुसर्जक रचनाकार थे और उन्होंने गांधीवादी अर्थशास्त्र में अनेक पुस्तकें लिखी। उनमें दो पुस्तकें उनकी अत्यंत लोकप्रिय हुई इकोनोमी ऑफ प्रमानेन्स तथा गांधीयन इकोनोमीक थोट।
==मृत्यु==
शेख़ मोहम्मद अब्दुल्ला का निधन [[7 नवम्बर]], [[1982]]) को 77 वर्ष की आयु में हो गया।
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
==संबंधित लेख==
[[Category:राजनीतिज्ञ]][[Category:राजनीति कोश]][[Category:चरित कोश]][[Category:प्रसिद्ध_व्यक्तित्व]][[Category:इतिहास कोश]]
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जे.सी. कुमारप्पा (अंग्रेज़ी: J. C. Kumarappa, जन्म: 4 जनवरी, 1892, मद्रास; मृत्यु: 30 जनवरी, 1960) भारत के एक अर्थशास्त्री थे। उनका मूल नाम 'जोसेफ चेल्लादुरई कॉर्नेलिअस' (Joseph Chelladurai Cornelius) था। ये महात्मा गांधी के निकट सहयोगी रहे थे।। ये ग्राम-विकास सम्बन्धी आर्थिक सिद्धान्तों के अग्रदूत थे। जे.सी. कुमारप्पा ने गांधीवाद पर आधारित आर्थिक सिद्धान्तों का विकास किया।

जे सी कुमारप्पा को भारत में गाँधीवादी अर्थशास्त्र का प्रथम गुरु माना जाता है। अपने जीवनकाल में कुमारप्पा ने गाँधीवादी अर्थशास्त्र से जुड़े विषयों पर न केवल विशद लेखन किया बल्कि एक पूर्णकालिक कार्यकर्ता के रूप में भारत के दूरस्थ स्थानों में अनेक आर्थिक सर्वेक्षण करके ग्रामीण अर्थव्यवस्था के कायाकल्प के लिए सार्थक कार्यनीति का प्रतिपादन भी किया। कुमारप्पा का अर्थशास्त्र स्वतंत्र भारत के हर व्यक्ति के लिए आर्थिक स्वायत्तता एवं सर्वांगीण विकास के अवसर देने के उसूल पर आधारित था। भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था और इसके प्राकृतिक स्वरूप को उन्नत करने के हिमायती कुमारप्पा ऐसे बिरले अर्थशास्त्री थे जो पर्यावरण संरक्षण को औद्योगिक-वाणिज्यिक उन्नति से कहीं अधिक लाभप्रद मानते थे। गाँधी के आर्थिक दर्शन से कांग्रेस पार्टी में उनके अपने सहयोगी भी पूर्णतः सहमत नहीं थे। इसीलिए स्वतंत्र भारत की आर्थिक नीतियों और गाँधीवादी आर्थिक नीतियों के बीच कोई समानता नहीं रही। परिणास्वरूप स्वतंत्र भारत ने पाश्चात्य अर्थव्यस्था के नमूने के अंधानुकरण की होड़ में कुमारप्पा को जल्दी ही विस्मृत कर दिया।

परिचय

जे.सी. कुमारप्पा मद्रास में थानजीवर नामक स्थान पर 4 जनवरी, 1892 में पैदा हुए थे। ये मदुरई के मध्यमवर्गीय परम्परागत इक़साई परिवार से थे। इनके बचपन का नाम जोसफ़ चेल्लादुरै कॉर्नेलियस था। इन्होंने मद्रास से अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की तथा उसके बाद लंदन जाकर लेखा-विधि (एकाउंटेंसी) में प्रशिक्षण प्राप्त किया और फिर वहीं लंदन में एकाउंटेंट के रूप में कुछ वर्षों तक काम भी किया। प्रथम विश्वयुद्ध की समाप्ति पर और अपनी माता के बुलाने पर ये भारत लौट आये और बम्बई में कुछ समय तक एक ब्रिटिश कम्पनी में काम किया। उसके बाद 1924 में इन्होंने अपना व्यवसाय शुरू किया।

शिक्षा

1927 में ये फिर उच्च अध्ययन के लिए अमेरिका गये और सायराक्रुज़ विश्वविद्यालय से वाणिज्य एवं व्यापार प्रबंधन में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। इसके बाद इन्होंने कोलम्बिया विश्वविद्यालय में सार्वजनिक वित्त का अध्ययन करके अपने समय के प्रख्यात अर्थशास्त्री एडविन सेलिग्मन के मार्गदर्शन में 'सार्वजनिकवित्त एवं भारत की निर्धनता' पर शोध पत्र लिखा जिसमें भारत की आर्थिक दुर्दशा में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन की नीतियों से हुए नुकसान का अध्ययन किया गया था। इस अध्ययन के दौरान ही कुमारप्पा ने पाया कि भारत की दयनीय आर्थिक स्थिति का मुख्य कारण ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन की अनैतिक और शोषक नीतियाँ हैं। इसी बीच उन्होंने अपने मूल पारिवारिक नाम कुमारप्पा को अपने नाम के साथ जोड़ने का फ़ैसला किया।

कार्य

जे.सी. कुमारप्पा 1929 में भारत वापिस लौट आए। उन्होंने स्वयं गांधीजी के साथ मिलकर गुजरात के ग्रामीण सर्वेक्षण संचालित किया तथा केन्द्रीय प्रान्तों में औद्योगिक सर्वेक्षण किया। उन्होंने 1929-1931 के दौरान गुजरात विद्यापीठ में पढ़ाया और गांधीजी की गैर-मोजूदगी में यंग इण्डिया का सम्पादन किया। उन्हें गिरफ्तार कर सन् 1931 में जेल भेज दिया गया। सन् 1934 में वे ऑल इण्डिया विलेज इन्डस्ट्रीज एसोशिएशन के सचिव बनाये गये और गांधीजी के देहान्त के बाद वे इसके अध्यापक बनाये गये कुमरप्पा ने महात्मा गांधी के आर्थिक विचारों को एक वैज्ञानिक आत्मा के साथ व्याख्यायित किया। आधारभूत शिक्षा के प्रतिपादन में भी उन्होंने मुख्य भूमिका निभायी। वे एक बहुसर्जक रचनाकार थे और उन्होंने गांधीवादी अर्थशास्त्र में अनेक पुस्तकें लिखी। उनमें दो पुस्तकें उनकी अत्यंत लोकप्रिय हुई इकोनोमी ऑफ प्रमानेन्स तथा गांधीयन इकोनोमीक थोट।