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'''रामकिंकर  उपाध्याय''' ([[अंग्रेज़ी]]: '''Ram Kinkar Upadhyay''', जन्म: [[1 नवम्बर]], [[1924]], [[जबलपुर]]; मृत्यु: [[9 अगस्त]], [[2002]]) भारत के मानस मर्मज्ञ, कथावाचक एवं हिन्दी साहित्यकार थे। इन्हें सन [[1999]] में [[भारत सरकार]] ने [[पद्म भूषण]] से सम्मानित किया था।
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'''अलादी कृष्ण स्वामी अय्यर''' ([[अंग्रेज़ी]]:''Alladi Krishnaswamy Iyer'', जन्म: [[14 मई]], [[1883]], ज़िला नेलोर, [[मद्रास]]; मृत्यु: [[3 अक्टूबर]], [[1953]], [[चेन्नई]]) [[भारत]] के क्रांतिकारी नेता थे।<ref>{{cite web |url=http://www.kranti1857.org/tamilnadu%20krantikari.php#Kumarappa/|title=एस. सत्यमूर्ति |accessmonthday=25 फ़रवरी |accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=
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==परिचय==
==परिचय==
अलादी कृष्ण स्वामी अय्यर का जन्म 15 मई, 1883 को मद्रास के नेलोर ज़िले में हुआ था। इन्होंने मद्रास से शिक्षा प्राप्त की तथा निजी शिक्षक के रूप में अपने कैरियर की शुरूआत की। ये सन [[1933]] में विधि में उच्च अध्ययन के लिए [[इंग्लैण्ड]] गये। [[1920]] में ये मद्रास-बार के एकमात्र स्वीकृत नेता बने। स्वाधीनता प्राप्ति के पश्चात अलादी कृष्ण स्वामी अय्यर [[भारतीय संविधान]] की प्रारूप समिति के सदस्य बनाये गये। इन्हें अनेकों उपाधियां प्रदान की गयीं, जिनमें नाइट हुड की उपाधि भी शामिल थी।
रामकिंकर उपाध्याय का जन्म 1 नवम्बर 1924 में [[मध्य प्रदेश]] के जबलपुर शहर में हुआ था। ये जन्म से ही होनहार व प्रखर बुद्धि के थे। इनकी शिक्षा-दीक्षा जबलपुर व [[काशी]] में हुई। रामकिंकर उपाध्याय स्वभाव से ही अत्यन्त संकोची एवं शान्त प्रकृति के बालक थे। ये बचपन से ही अपनी अवस्था के बच्चों की अपेक्षा कुछ अधिक गम्भीर हुआ करते थे। बाल्यावस्था से ही इनकी मेधाशक्ति इतनी विकसित थी कि क्लिष्ट एवं गम्भीर लेखन, देश-विदेश का विशद साहित्य अल्पकालीन अध्ययन में ही स्मृति पटल पर अमिट रूप से अंकित हो जाता था। प्रारम्भ से ही पृष्ठभूमि के रूप में रामकिंकर उपाध्याय पर अपने माता-पिता के धार्मिक विचार एवं संस्कारों का प्रभाव था।<ref>{{cite web |url=http://rntiwari1.blogspot.in/2012/06/blog-post_26.html |title=पद्म भूषण श्री पंडित रामकिंकर उपाध्याय जी महाराज |accessmonthday=26 फ़रवरी |accessyear= 2017|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=rntiwari1.blogspot.in |language=हिंदी }}</ref>
 
==संत==
श्रीरामकिंकर जी आचार्य कोटि के संत थे। सारा विश्व (जहाँ- जहाँ श्रीरामकिंकर जी का नाम गया) जानता है की [[रामायण]] की मीमांसा जिस रूप में उन्होंने की वह अद्वितीय थी। परन्तु स्वयं श्रीरामकिंकर जी ने अपने ग्रंथो में, प्रवचनों में या बातचीत में कभी स्वीकार नहीं किया की उन्होंने कोई मौलिक कार्य किया है। वे हमेशा यही कहते रहे कि ''मौलिक कोई वस्तु नहीं होती है भगवान जिससे जो सेवा लेना चाहते हैं वह ले लेते हैं वस्तु या ज्ञान जो पहले से होता है व्यक्ति को केवल उसका सीमित प्रकाशक दिखाई देता है, दिखाई वही वस्तु देती है जो होती है जो नहीं थी वह नहीं दिखाई जा सकती है''। वह कहते हैं कि रामायण में वे सूत्र पहले से थे, जो लोगों को लगते है कि मैंने दिखाए या बोले, पर सत्य नहीं है। उनका वह वाक्य उनकी और इश्वर की व्यापक्ता को सिद्ध करता है।<ref>{{cite web |url=http://shriramkinkerpravachanmala.blogspot.in/ |title=SHRI RAMKINKER PRAVACHAN MALA  |accessmonthday=26 फ़रवरी |accessyear= 2017|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=rntiwari1.blogspot.in |language=हिंदी }}</ref>
==स्वभाव==
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==शिष्य को उपदेश==
एक शिष्य ने परमपूज्यपाद श्री रामकिंकर जी से कहा... महाराज! मुझे यह भजन करना झंझट सा लगता है, मैं छोड़ना चाहता हूँ इसे!!! उदार और सहज कृपालु महाराजश्री उस शिष्य की ओर करुनामय होकर बोले... छोड़ दो भजन! मैं तुमसे सहमत हूँ। स्वाभाविक है की झंझट न तो करना चाहिए और न ही उसमे पड़ना चाहिए पर मेरा एक सुझाव है जिसे ध्यान रखना की फिर जीवन में कोई और झंझट भी मत पालना क्योंकि तुम झंझट से बचने की इच्छा रखते हो और कहीं भजन छोड़ कर सारी झंझटों में पड़ गए तो जीवन में भजन छूट जायेगा और झंझट में फँस जाओगे और यदि भजन नहीं छूटा तो झंझट भी भजन हो जाएगा तो अधिक अच्छा यह है की इतनी झंझटें जब हैं ही तो भजन की झंझट भी होती रहे।
 
==निधन==
==निधन==
अलादी कृष्ण स्वामी अय्यर का निधन [[3 अक्टूबर]], [[1953]], [[चेन्नई]] में हो गया।
रामकिंकर उपाध्याय ने 9 अगस्त 2002 को अपना पञ्च भौतिक देह का त्याग कर दिया। इस 78 वर्ष के अन्तराल में इन्होंने [[श्रीरामचरितमानस]] पर 49 वर्ष तक लगातार प्रवचन दिये थे।

11:43, 26 फ़रवरी 2017 का अवतरण

रामकिंकर उपाध्याय (अंग्रेज़ी: Ram Kinkar Upadhyay, जन्म: 1 नवम्बर, 1924, जबलपुर; मृत्यु: 9 अगस्त, 2002) भारत के मानस मर्मज्ञ, कथावाचक एवं हिन्दी साहित्यकार थे। इन्हें सन 1999 में भारत सरकार ने पद्म भूषण से सम्मानित किया था।

परिचय

रामकिंकर उपाध्याय का जन्म 1 नवम्बर 1924 में मध्य प्रदेश के जबलपुर शहर में हुआ था। ये जन्म से ही होनहार व प्रखर बुद्धि के थे। इनकी शिक्षा-दीक्षा जबलपुर व काशी में हुई। रामकिंकर उपाध्याय स्वभाव से ही अत्यन्त संकोची एवं शान्त प्रकृति के बालक थे। ये बचपन से ही अपनी अवस्था के बच्चों की अपेक्षा कुछ अधिक गम्भीर हुआ करते थे। बाल्यावस्था से ही इनकी मेधाशक्ति इतनी विकसित थी कि क्लिष्ट एवं गम्भीर लेखन, देश-विदेश का विशद साहित्य अल्पकालीन अध्ययन में ही स्मृति पटल पर अमिट रूप से अंकित हो जाता था। प्रारम्भ से ही पृष्ठभूमि के रूप में रामकिंकर उपाध्याय पर अपने माता-पिता के धार्मिक विचार एवं संस्कारों का प्रभाव था।[1]

संत

श्रीरामकिंकर जी आचार्य कोटि के संत थे। सारा विश्व (जहाँ- जहाँ श्रीरामकिंकर जी का नाम गया) जानता है की रामायण की मीमांसा जिस रूप में उन्होंने की वह अद्वितीय थी। परन्तु स्वयं श्रीरामकिंकर जी ने अपने ग्रंथो में, प्रवचनों में या बातचीत में कभी स्वीकार नहीं किया की उन्होंने कोई मौलिक कार्य किया है। वे हमेशा यही कहते रहे कि मौलिक कोई वस्तु नहीं होती है भगवान जिससे जो सेवा लेना चाहते हैं वह ले लेते हैं वस्तु या ज्ञान जो पहले से होता है व्यक्ति को केवल उसका सीमित प्रकाशक दिखाई देता है, दिखाई वही वस्तु देती है जो होती है जो नहीं थी वह नहीं दिखाई जा सकती है। वह कहते हैं कि रामायण में वे सूत्र पहले से थे, जो लोगों को लगते है कि मैंने दिखाए या बोले, पर सत्य नहीं है। उनका वह वाक्य उनकी और इश्वर की व्यापक्ता को सिद्ध करता है।[2]

स्वभाव

श्रीरामकिंकर जी आचार्य की ज्ञान-विज्ञान पथ में जितनी गहरी पैठ थी, उतना ही प्रबल पक्ष, भक्ति साधना का, उनके जीवन में दर्शित होता था। वैसे तो अपने संकोची स्वभाव के कारण इन्होंने अपने जीवन की दिव्य अनुभूतियों का रहस्योद्घाटन अपने श्रीमुख से बहुत आग्रह के बावजूद नहीं किया। पर कहीं-कहीं उनके जीवन के इस पक्ष की पुष्टि दूसरों के द्वारा जहाँ-तहाँ प्राप्त होती रही। उसी क्रम में उत्तराखण्ड की दिव्य भूमि ऋषिकेश में श्रीहनुमानजी महाराज का प्रत्यक्ष साक्षात्कार, निष्काम भाव से किए गए, एक छोटे से अनुष्ठान के फलस्वरूप हुआ। वैसे ही श्री चित्रकूट धाम की दिव्य भूमि में अनेकानेक अलौकिक घटनाएँ परम पूज्य महाराजश्री के साथ घटित हुईं। जिनका वर्णन महाराजश्री के निकटस्थ भक्तों के द्वारा सुनने को मिला। परमपूज्य महाराजश्री अपने स्वभाव के अनुकूल ही इस विषय में सदैव मौन रहे।

शिष्य को उपदेश

एक शिष्य ने परमपूज्यपाद श्री रामकिंकर जी से कहा... महाराज! मुझे यह भजन करना झंझट सा लगता है, मैं छोड़ना चाहता हूँ इसे!!! उदार और सहज कृपालु महाराजश्री उस शिष्य की ओर करुनामय होकर बोले... छोड़ दो भजन! मैं तुमसे सहमत हूँ। स्वाभाविक है की झंझट न तो करना चाहिए और न ही उसमे पड़ना चाहिए पर मेरा एक सुझाव है जिसे ध्यान रखना की फिर जीवन में कोई और झंझट भी मत पालना क्योंकि तुम झंझट से बचने की इच्छा रखते हो और कहीं भजन छोड़ कर सारी झंझटों में पड़ गए तो जीवन में भजन छूट जायेगा और झंझट में फँस जाओगे और यदि भजन नहीं छूटा तो झंझट भी भजन हो जाएगा तो अधिक अच्छा यह है की इतनी झंझटें जब हैं ही तो भजन की झंझट भी होती रहे।

निधन

रामकिंकर उपाध्याय ने 9 अगस्त 2002 को अपना पञ्च भौतिक देह का त्याग कर दिया। इस 78 वर्ष के अन्तराल में इन्होंने श्रीरामचरितमानस पर 49 वर्ष तक लगातार प्रवचन दिये थे।

  1. पद्म भूषण श्री पंडित रामकिंकर उपाध्याय जी महाराज (हिंदी) rntiwari1.blogspot.in। अभिगमन तिथि: 26 फ़रवरी, 2017।
  2. SHRI RAMKINKER PRAVACHAN MALA (हिंदी) rntiwari1.blogspot.in। अभिगमन तिथि: 26 फ़रवरी, 2017।