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'''सरदार अजीत सिंह''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Sardar Ajit Singh'', जन्म- [[1881]], [[जालन्धर ज़िला]], [[पंजाब]]; मृत्यु- [[15 अगस्त]], [[1947]]) [[भारत]] के सुप्रसिद्ध राष्ट्रभक्त एवं क्रांतिकारी थे। ये प्रख्यात शहीद [[भगत सिंह|सरदार भगत सिंह]] के चाचा थे।<ref>{{cite web |url=http://www.kranti1857.org/pish%20bangal%20%20krantikari.php#Saha|title=गोपीनाथ शाह|accessmonthday=16 मार्च|accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=क्रांति 1857|language= हिंदी}}</ref> | |||
सरदार अजीत सिंह | |||
सरदार अजीत का जन्म पंजाब के जालन्धर जिले के एक गांव में हुआ था। इनके जन्म दिन की तारीख ठीक-ठीक मालूम नहीं है। इन्होंने जालन्धर और लाहौर से शिक्षा ग्रहण की। इन्होंने 1907 के भू-संबंधी आन्दोलन में हिस्सा लिया तथा इन्हें गिरफ्तार कर बर्मा की माण्डले जेल में भेज दिया गया। इन्होंने कुछ पत्रिकाएं निकाली तथा भारतीय स्वाधीनता के अग्रिम कारणों पर अनेक पुस्तकें लिखी। इन्होंने भारत और विदेशों में होने वाली क्रांतिकारी गतिविधियों में पूर्ण रूप से सहयोग दिया। ये परसिया, रोम तथा दक्षिणी अफ्रीका में रहे तथा सन 1947 को भारत वापिस लौट आए। जिस दिन 15 अगस्त, 1947 को भारत आजाद हुआ उस दिन इनकी आत्मा भी शरीर से मुक्त हो गई। | |||
(1881–1947) भारत के सुप्रसिद्ध राष्ट्रभक्त एवं क्रांतिकारी थे। वे भगत सिंह के चाचा थे। उन्होने भारत में ब्रितानी शासन को चुनौती दी तथा भारत के औपनिवेशिक शासन की आलोचना की और खुलकर विरोध भी किया। उन्हें राजनीतिक 'विद्रोही' घोषित कर दिया गया था। उनका अधिकांश जीवन जेल में बीता। १९०६ ई. में लाला लाजपत राय जी के साथ ही साथ उन्हें भी देश निकाले का दण्ड दिया गया था। | |||
इनके बारे में कभी श्री बाल गंगाधर तिलक ने कहा था ये स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति बनने योग्य हैं । जब तिलक ने ये कहा था तब सरदार अजीत सिंह की उम्र केवल २५ साल थी। १९०९ में सरदार अपना घर बार छोड़ कर देश सेवा के लिए विदेश यात्रा पर निकल चुके थे, उस समय उनकी उम्र २८ वर्ष की थी। इरान के रास्ते तुर्की, जर्मनी, ब्राजील, स्विट्जरलैंड, इटली, जापान आदि देशों में रहकर उन्होंने क्रांति का बीज बोया और आजाद हिन्द फौज की स्थापना की। | |||
नेताजी को हिटलर और मुसोलिनी से मिलाया। मुसोलिनी तो उनके व्यक्तित्व के मुरीद थे। इन दिनों में उन्होंने ४० भाषाओं पर अधिकार प्राप्त कर ली थी। रोम रेडियो को तो उन्होंने नया नाम दे दिया था, 'आजाद हिन्द रेडियो' तथा इसके मध्यम से क्रांति का प्रचार प्रसार किया। मार्च १९४७ में वे भारत वापस लौटे। भारत लौटने पर पत्नी ने पहचान के लिए कई सवाल पूछे, जिनका सही जवाब मिलने के बाद भी उनकी पत्नी को विश्वास नही। इतनी भाषाओं के ज्ञानी हो चुके थे सरदार, कि पहचानना बहुत ही मुश्किल था। ४० साल तक एकाकी और तपस्वी जीवन बिताने वाली श्रीमती हरनाम कौर भी वैसे ही जीवत व्यक्तित्व वाली महिला थीं। | |||
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11:54, 16 मार्च 2017 का अवतरण
माधवी
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पूरा नाम | गोपीनाथ शाह |
जन्म | 1901 |
जन्म भूमि | हुगली ज़िला, पश्चिम बंगाल |
मृत्यु | 12 जनवरी, 1924 |
अद्यतन | 04:31, 10 मार्च-2017 (IST) |
गोपीनाथ शाह (अंग्रेज़ी: Gopinath Saha, जन्म- 1901, हुगली ज़िला, पश्चिम बंगाल; मृत्यु- 12 जनवरी, 1924) पश्चिम बंगाल के प्रसिद्ध क्रांतिकारी थे। वे हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सदस्य थे।[1]
परिचय
गोपीनाथ शाह का जन्म पूर्वी बंगाल के हुगली ज़िले के समरपुर नामक स्थान पर सन् 1901 में हुआ था। समरपुर से उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण की। वे युगान्तर पार्टी की ओर आकर्षित हुए।
मृत्यु
गोपीनाथ शाह को पुलिस उपायुक्त सर चार्ल्स टेगर्ट की हत्या के लिए बुलाया गया किन्तु गलती से उन्होंने अर्नस्ट डे नामक एक अन्य अंग्रेज अधिकारी को गोली मार दी। 12 जनवरी, 1924 को उन्हें गिरफ्तार कर फांसी पर लटका दिया गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ गोपीनाथ शाह (हिंदी) क्रांति 1857। अभिगमन तिथि: 16 मार्च, 2017।
संबंधित लेख
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माधवी
| |
पूरा नाम | सरदार अजीत सिंह |
जन्म | 1881 |
जन्म भूमि | हुगली ज़िला, पश्चिम बंगाल |
मृत्यु | 12 जनवरी, 1924 |
अद्यतन | 04:31, 10 मार्च-2017 (IST) |
सरदार अजीत सिंह (अंग्रेज़ी: Sardar Ajit Singh, जन्म- 1881, जालन्धर ज़िला, पंजाब; मृत्यु- 15 अगस्त, 1947) भारत के सुप्रसिद्ध राष्ट्रभक्त एवं क्रांतिकारी थे। ये प्रख्यात शहीद सरदार भगत सिंह के चाचा थे।[1]
सरदार अजीत सिंह सरदार अजीत का जन्म पंजाब के जालन्धर जिले के एक गांव में हुआ था। इनके जन्म दिन की तारीख ठीक-ठीक मालूम नहीं है। इन्होंने जालन्धर और लाहौर से शिक्षा ग्रहण की। इन्होंने 1907 के भू-संबंधी आन्दोलन में हिस्सा लिया तथा इन्हें गिरफ्तार कर बर्मा की माण्डले जेल में भेज दिया गया। इन्होंने कुछ पत्रिकाएं निकाली तथा भारतीय स्वाधीनता के अग्रिम कारणों पर अनेक पुस्तकें लिखी। इन्होंने भारत और विदेशों में होने वाली क्रांतिकारी गतिविधियों में पूर्ण रूप से सहयोग दिया। ये परसिया, रोम तथा दक्षिणी अफ्रीका में रहे तथा सन 1947 को भारत वापिस लौट आए। जिस दिन 15 अगस्त, 1947 को भारत आजाद हुआ उस दिन इनकी आत्मा भी शरीर से मुक्त हो गई।
(1881–1947) भारत के सुप्रसिद्ध राष्ट्रभक्त एवं क्रांतिकारी थे। वे भगत सिंह के चाचा थे। उन्होने भारत में ब्रितानी शासन को चुनौती दी तथा भारत के औपनिवेशिक शासन की आलोचना की और खुलकर विरोध भी किया। उन्हें राजनीतिक 'विद्रोही' घोषित कर दिया गया था। उनका अधिकांश जीवन जेल में बीता। १९०६ ई. में लाला लाजपत राय जी के साथ ही साथ उन्हें भी देश निकाले का दण्ड दिया गया था।
इनके बारे में कभी श्री बाल गंगाधर तिलक ने कहा था ये स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति बनने योग्य हैं । जब तिलक ने ये कहा था तब सरदार अजीत सिंह की उम्र केवल २५ साल थी। १९०९ में सरदार अपना घर बार छोड़ कर देश सेवा के लिए विदेश यात्रा पर निकल चुके थे, उस समय उनकी उम्र २८ वर्ष की थी। इरान के रास्ते तुर्की, जर्मनी, ब्राजील, स्विट्जरलैंड, इटली, जापान आदि देशों में रहकर उन्होंने क्रांति का बीज बोया और आजाद हिन्द फौज की स्थापना की।
नेताजी को हिटलर और मुसोलिनी से मिलाया। मुसोलिनी तो उनके व्यक्तित्व के मुरीद थे। इन दिनों में उन्होंने ४० भाषाओं पर अधिकार प्राप्त कर ली थी। रोम रेडियो को तो उन्होंने नया नाम दे दिया था, 'आजाद हिन्द रेडियो' तथा इसके मध्यम से क्रांति का प्रचार प्रसार किया। मार्च १९४७ में वे भारत वापस लौटे। भारत लौटने पर पत्नी ने पहचान के लिए कई सवाल पूछे, जिनका सही जवाब मिलने के बाद भी उनकी पत्नी को विश्वास नही। इतनी भाषाओं के ज्ञानी हो चुके थे सरदार, कि पहचानना बहुत ही मुश्किल था। ४० साल तक एकाकी और तपस्वी जीवन बिताने वाली श्रीमती हरनाम कौर भी वैसे ही जीवत व्यक्तित्व वाली महिला थीं।
भारत के विभाजन से वे इतने व्यथित थे कि १५ अगस्त १९४७ के सुबह ४ बजे उन्होंने आपने पूरे परिवार को जगाया, ओर जय हिन्द कह कर दुनिया से विदा ले ली।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ गोपीनाथ शाह (हिंदी) क्रांति 1857। अभिगमन तिथि: 16 मार्च, 2017।
संबंधित लेख
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