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{{सूचना बक्सा कलाकार
'''कमला दास''' (अंग्रेज़ी: ''Kamala Das''; जन्म-[[31 मार्च]], [[1934]]; मृत्यु- [[31 मई]], [[2009]]; अंग्रेज़ी और मलयालम की प्रसिद्ध लेखिका थी। इन्हें  कमला साहित्य अकादमी, एशियन पोएट्री अवार्ड तथा कई अन्य पुरस्कारों से वे नवाज़ी गईं। उन्होंने वर्ष 1984 में साहित्य के नोबल पुरस्कार के दावेदारों की सूची में भी जगह बनाई।
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==जीवन परिचय ==
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कमला दास का जन्म [[31 मार्च]], [[1934]] को [[केरल]] के त्रिचूर ज़िले में हुआ था। यह उच्च [[ब्राह्मण]] नायर परिवार से थी। मात्र पन्द्रह वर्ष की आयु में ही इनका [[विवाह]] [[कलकत्ता]] के माधव दास से हो गया। वे बचपन से ही [[कविता|कवितायें]] लिखती थीं लेकिन शादी के बाद उन्हें लिखने के लिए तब तक जागना पड़ता था जब तक पूरा परिवार न सो जाए। उनकी विवादास्पद [[आत्मकथा]] ‘मेरी कहानी’ इतनी पढ़ी गई कि [[भारत]] की हर भाषा सहित इस पुस्तक का पंद्रह विदेशी भाषाओं में अनुवाद हुआ था। इस्लाम धर्म क़बूल करने से पहले उनका नाम कमला  था
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== साहित्यिक जीवन ==
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|मृत्यु= 1959
माधवी कुट्टी नाम से मशहूर कमला दास ने रचनाएं की। उनकी सबसे चर्चित और विवादास्पद रचना उनकी आत्मकथा है जिसका नाम है माई स्टोरी। कमला दास का लेखन अंतरराष्ट्रीय साहित्य जगत में भी ध्यान खींचता रहा। नोबेल की दावेदारी के लिए भी [[1984]] में नामांकित किया गया था। उन्हें कुछ जानकार सिमोन द बोउवार जैसी लेखिका के समकक्ष मानते हैं।
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== पुरस्कार ==
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*वर्ष 1984 में 'नोबेल पुरस्कार' के लिए नामांकित किया गया।
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==निधन==
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'''प्रेम अदीब''' ([[अंग्रेज़ी]] ''Prem Adib'' जन्म- [[10 अगस्त]] 1916; मृत्यु- 1959) [[भारतीय सिनेमा]] के अभिनेता थे। अदिब को राम के रूप में उनकी भूमिका के लिए याद किया जाता है। सीता बनीं शोभना समर्थ के साथ परदे पर राम की भूमिका में नज़र आते थे। दिल छू लेने वाले अभिनय ने इन्हें न सिर्फ फ़िल्म जगत में एक विशेष स्थान दिलाया बल्कि सदा के लिए अमर कर दिया।


==परिचय==
{{main|प्रेम अदीब का परिचय}}
प्रेम अदीब का जन्म [[10 अगस्त]], [[1916]]  हुआ था। कश्मीरी मूल के प्रेम अदीब के दादा-परदादा अवध के नवाब वाजिद अली शाह के ज़माने में कश्मीर छोड़कर अवध के शहर फ़ैज़ाबाद (अब [[उत्तरप्रदेश]]) में आ बसे थे। उनके दादा का नाम देवीप्रसाद दर था। प्रेम अदीब के पिता रामप्रसाद दर फ़ैज़ाबाद से सुल्तानपुर चले आए थे। [[सुल्तानपुर]] में ही इनका जन्म हुआ था। प्रेम अदीब का झुकाव बचपन से ही फ़िल्मों की तरफ था।


==फ़िल्मी सफ़र==
{{main|प्रेम अदीब का फ़िल्मी सफ़र}}
[[भारत]] की "पारंपरिक मूल्यों" में शामिल इन फ़िल्मों में प्रेम अदिब और शोभना समर्थ "आदर्श [[राम]] और [[सीता]]" का चित्रण करते थे। आदीब और समर्थ ने अपनी जोड़ी को राम और सीता के रूप में जारी रखा, और एक [[रामायण]] आधारित फ़िल्म रामबाण (1948) में एक साथ अभिनय किया।


==निधन==
प्रतिमा अदीब के अनुसार फ़िल्म ‘रामविवाह’ (1949) के निर्माण के दौरान एक कार दुर्घटना में प्रेम अदीब के गुर्दों को नुक़सान पहुंचा था, जिसका उनके रक्तचाप पर बुरा असर पड़ा था। [[25 दिसम्बर]], [[1959]] की शाम को प्रतिमा अदीब की बड़ी बहन के जन्मदिन की पार्टी में थे कि उनका रक्तचाप अचानक ही बढ़ा और ब्रेन-हैम्रेज से उनकी मृत्यु हो गयी। उस वक्त उनकी उम्र महज़ 43 साल थी। अंगुलीमाल उनकी आख़िरी फ़िल्म थी जो उनके निधन के बाद प्रदर्शित हुई थी।


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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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==बाहरी कड़ियाँ==
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[[Category:सिनेमा कोश]][[Category:सिनेमा]][[Category:कला कोश]][[Category:अभिनेता]]
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कमला दास 15 साल की उम्र से कवितायें लिखने लगी थीं। उनकी माँ बालमणि अम्मा एक बहुत अच्छी कवयित्री थीं और उनके लेखन का कमला दास पर खासा असर पड़ा। यही कारण है कि उन्होंने कविताएँ लिखना शुरू किया।


{{सूचना बक्सा कलाकार
== रचनाएं ==
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कमला दास का शुमार [[भारत]] के समकालीन सर्वश्रेष्ठ [[लेखक|लेखकों]] में होता रहा है। माधवी कुट्टी नाम से मशहूर कमला दास ने बेधड़क रचनाएं की। उनकी सबसे चर्चित और विवादास्पद रचना उनकी आत्मकथा है जिसका नाम है माई स्टोरी। [[1976]] में प्रकाशित इस किताब में समाज और व्यक्ति की मानसिकताओं की पड़ताल करते हुए कमला दास ने स्त्री पुरूष संबधों, [[विवाह]] की संस्था और इसके दायरे से बाहर के रिश्तों की वस्तुपरकता की मानवीय छानबीन की है। ये किताब इतनी लोकप्रिय हुई की दुनिया की करीब 15 भाषाओं में इसका अनुवाद हुआ।
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प्रेम अदीब का परिचय
सीता बनीं शोभना समर्थ के साथ परदे पर राम की भूमिका में नज़र आने वाले अभिनेता थे प्रेम अदीब, जिनका नाम उस दौर के फ़िल्म प्रेमियों के ज़हन में आज भी ताज़ा है। [[1930]] के दशक के मध्य में सामाजिक फ़िल्मों से अपना करियर शुरू करने वाले अभिनेता प्रेम अदीब 1940 के दशक में धार्मिक फ़िल्मों का एक मशहूर नाम बन चुके थे।
== परिचय ==
प्रेम अदीब का जन्म  [[10 अगस्त]], [[1916]] को [[सुल्तानपुर]] में हुआ था। कश्मीरी मूल के प्रेम अदीब के दादा-परदादा अवध के नवाब वाजिद अली शाह के ज़माने में [[कश्मीर]] छोड़कर अवध के शहर फ़ैज़ाबाद (अब [[उत्तरप्रदेश]]) में आ बसे थे। उनके दादा का नाम देवीप्रसाद दर था। प्रेम अदीब के [[पिता]] रामप्रसाद दर फ़ैज़ाबाद से [[सुल्तानपुर]] चले आए थे यही पर प्रेम अदीब का जन्म हुआ था। इनका नाम ‘शिवप्रसाद’ रखा गया। इनके पिता वकालत करते थे। प्रेम अदीब की प्रारंभिक शिक्षा सुल्तानपुर व [[जोधपुर]] में हुई, लेकिन इनकी रूचि [[अभिनय]] करने की थी। अदीब को उनके असली नाम शिवप्रसाद की जगह फ़िल्मी नाम ‘प्रेम’, मोहन सिन्हा ने ही दिया था।


कमला दास का लेखन अंतरराष्ट्रीय साहित्य जगत में भी ध्यान खींचता रहा। नोबेल की दावेदारी के लिए भी [[1984]] में नामांकित किया गया था। उन्हें कुछ जानकार सिमोन द बोउवार जैसी लेखिका के समकक्ष मानते हैं। [[साहित्य अकादमी]] सहित कई पुरस्कारों से सम्मानित कमला दास की कविताओ की एक लोकप्रिय किताब का नाम है, सिर्फ आत्मा ही जानती है संगीत, ओनली सोल नोज़ हाऊ टू सिंग।


प्रेम अदीब का झुकाव बचपन से ही फ़िल्मों की तरफ था। बोलते सिनेमा की शुरूआत हो चुकी थी। [[मुंबई]] के साथ-साथ [[कोलकाता]] और [[लाहौर]] भी फ़िल्म-निर्माण का केन्द्र बनकर उभर रहे थे। एक रोज़ प्रेम अदीब ने घर छोड़ा और फ़िल्मों में काम करने की तमन्ना लिए कोलकाता चले गए। लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद काम नहीं मिला तो लाहौर पहुंचे लेकिन वहाँ भी कामयाबी नहीं मिली तो आख़िर में वो मुंबई चले आए।
कमला दास का एक उपन्यास अल्फाबेट ऑफ लस्ट यानी वासना की वर्णमाला भी है। माना जाता है कि कमला दास ने जिस बेबाकी से स्त्री की यौन इच्छाओ और आकांक्षाओं को रचनाधर्मिता का विषय बनाया वैसा उनके और बाद के दौर के लेखन में कम ही हुआ है। हालांकि [[उर्दू]] में कुरर्तुलएन हैदर, इस्मत चुगताई और एक अलग स्तर पर [[हिंदी]] में अमृता प्रीतम और कृष्णा सोबती के लेखन में स्त्री की निजता के संसार का एक गहरा आलोक देखने को मिलता है। [[कविता|कविताओं]] के साथ कमला दास ने कहानियों में भी पाठकों की भारी प्रशंसा हासिल की. दुनिया के कई हिस्सो में उन्होंने कविताओं का पाठ किया है।
== प्रकाशित पुस्तकें ==
कमला दास की अंग्रेज़ी में ‘द सिरेंस’, ‘समर इन कलकत्ता’, ‘दि डिसेंडेंट्स’, ‘दि ओल्डी हाउस एंड अदर पोएम्स ’, ‘अल्फाेबेट्स ऑफ लस्ट’’, ‘दि अन्ना‘मलाई पोएम्सल’ और ‘पद्मावती द हारलॉट एंड अदर स्टोरीज’ आदि बारह पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। मलयालम में ‘पक्षीयिदू मानम’, ‘नरिचीरुकल पारक्कुम्बोल’, ‘पलायन’, ‘नेपायसम’, ‘चंदना मरंगलम’ और ‘थानुप्पू’ समेत पंद्रह पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।


[[26 फरवरी]], [[1943]] को प्रेम अदीब की शादी हुई। इनकी पत्नी का नाम प्रतिमा अदीब था। दामिनी और दामाद शैलेन सोहोनी के साथ रहती हैं। शैलेन सोहोनी विज्ञापन जगत का एक जाना-माना नाम हैं। 
== उपाधि ==
प्रेम अदीब की पत्नी प्रतिमा अदीब के अनुसार, उर्दू के ‘अदब’ लफ़्ज़ से बनी ‘अदीब’ की उपाधि से नवाब वाजिद अली शाह द्वारा नवाज़े जाने के बाद ‘दर’ परिवार को ‘अदीब’ के नाम से जाना जाने लगा था।
== महात्मा गांधी द्वारा देखी गयी फ़िल्म ==
[[1943]] में किशन से विवाहोपरांत इनकी सबसे लोकप्रिय फिल्म ‘राम राज्य’ बनी जिसने देश भर में दर्शकों का दिल जीत लिया और इन्हें विशेष ख्याति दिलाई। महात्मा गांधी ने भी यह फिल्म देखी। इस फिल्म ने 101 सप्ताह से भी अधिक चलने का कीर्तिमान हासिल किया।
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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==बाहरी कड़ियाँ==
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प्रेम अदीब [[1930]] के दशक के मध्य में सामाजिक फ़िल्मों से अपना करियर शुरू करने वाले अभिनेता थे। 1940 के दशक में धार्मिक फ़िल्मों का एक मशहूर नाम बन चुके थे। क़रीब 25 सालों में कुल 67 फ़िल्मों में अभिनय किया था।


प्रेम अदीब ने फ़िल्म ‘रोमांटिक इंडिया’ के बाद प्रेम अदीब ने ‘दरियानी प्रोडक्शंस’ की ‘फ़िदा-ए-वतन’, ‘प्रतिमा’ (दोनों 1936) और ‘इंसाफ़’(1937), ‘मिनर्वा मूवीटोन’ की ‘ख़ान बहादुर’ (1937) और ‘तलाक़’ (1938) जैसी फ़िल्मों में भी अभिनय किया। ‘जनरल फ़िल्म्स’ की साल 1938 में प्रदर्शित हुई फ़िल्म ‘इंडस्ट्रियल इंडिया’ में प्रेम अदीब पहली बार हीरो बने। इस फ़िल्म के निर्देशक भी मोहन सिन्हा ही थे और नायिका थीं ‘शोभना समर्थ’।‘विश्वकला मूवीटोन’ की ‘घूंघटवाली’ (1938), ‘सागर मूवीटोन’ की ‘भोलेभाले’ और ‘साधना’ (1939), ‘हिंदुस्तान सिनेटोन’ की ‘सौभाग्य’ (1940) जैसी फ़िल्मों के साथ प्रेम अदीब के करियर का ग्राफ लगातार ऊपर उठता चला गया।


1941 में प्रदर्शित हुई फ़िल्म ‘दर्शन’ के साथ ही प्रेम अदीब की एंट्री ‘प्रकाश पिक्चर्स’ में हुई। संगीतकार नौशाद के करियर की ये शुरूआती फ़िल्मों में से थी और चूंकि वो भी अवध (लखनऊ) के रहने वाले थे इसलिए जल्द ही प्रेम अदीब और नौशाद बहुत अच्छे दोस्त बन गए। साल 1942 में बनी ‘प्रकाश पिक्चर्स’ की ‘भरत मिलाप’ ने प्रेम अदीब को एक नयी पहचान दी। साल 1942 में ही प्रेम अदीब की ‘प्रकाश पिक्चर्स’ के बैनर में बनीं ‘चूड़ियां’ और ‘स्टेशन मास्टर’ और ‘हिंदुस्तान सिनेटोन’ की ‘स्वामीनाथ’ प्रदर्शित हुईं। और साल 1943 में ‘प्रकाश पिक्चर्स’ के बैनर में बनी फ़िल्म ‘रामराज्य’ का नाम तो हिंदी सिनेमा के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज हुआ।     
कमला दास [[अंग्रेज़ी]] और मलयालम की प्रसिद्ध लेखिका थी। कमला दास का जन्म [[31 मार्च]] 1934 को केरल के त्रिचूर ज़िले के एक उच्च [[ब्राह्मण]] नायर परिवार में हुआ था। ये बचपन से ही कवितायें लिखती थीं। कमला दास की माँ बालमणि अम्मा एक बहुत अच्छी कवयित्री थीं और उनके लेखन का कमला दास पर खासा असर पड़ा। यही कारण है कि उन्होंने कविताएँ लिखना शुरू किया।


26 फरवरी 1943 को प्रेम अदीब की शादी हुई। श्रीमती प्रतिमा अदीब के अनुसार उसी साल अगस्त माह में विजय भट्ट ने जुहू-मुंबई के बिड़ला हाऊस में फ़िल्म ‘रामराज्य’ का एक शो रखा। महात्मा गांधी उन दिनों मुंबई में ही थे। विजय भट्ट के आग्रह पर उन्होंने अपने व्यस्त कार्यक्रम में से 10 मिनट के लिए उस शो के दौरान मौजूद रहने पर हामी भर दी थी। 10 मिनट गुज़र जाने पर अपने सेक्रेट्री के याद दिलाने के बावजूद उन्होंने बाक़ी कार्यक्रम कैंसिल किए और पूरी फ़िल्म देखी थी। 
== विवाह ==
== फ़िल्मों की सूची ==
कमला दास का मात्र पन्द्रह वर्ष की आयु में ही उनका [[विवाह]] [[कलकत्ता]] के माधव दास से हो गया। वे बचपन से ही [[कविता|कवितायें]] लिखती थीं लेकिन शादी के बाद उन्हें लिखने के लिए तब तक जागना पड़ता था जब तक पूरा परिवार न सो जाए। कभी कभी वे रसोई में देर तक लिखती रहतीं थी। कमला दास के पिता कलकत्ता में ऊॅचे ओहदे पर थे। वहॉ उनका बचपन उस वक्त के दूसरे संभ्रांत सम्पन्न परिवारों की बच्चियों की ही तरह लिखने-पढ़ने-खाने-पीने की सुविधाओं के बावजूद घर की चहारदीवारियों सिमटा रहा। उन्हें घर में ही पढ़ाया-लिखाया गया। 15 वर्ष की कोमल आयु में अपनी उम्र से 15 वर्ष बड़े [[भारतीय रिजर्व बैंक|रिजर्व बैंक]] के एक आला अफसर से ब्याह दिया गया।
प्रेम अदीब ने आगे चलकर ‘भाग्यलक्ष्मी’, ‘चांद’, ‘पुलिस’ (सभी 1944), ‘आम्रपाली’, ‘विक्रमादित्य’ (दोनों 1945), ‘महारानी मीनलदेवी’, ‘सुभद्रा’, ‘उर्वशी’, (1946), ‘चन्द्रहास’, ‘गीत गोविंद’, ‘क़सम’, ‘मुलाक़ात’, ‘सती तोरल’, ‘वीरांगना’ (1947), ‘एक्ट्रेस’, ‘अनोखी अदा’, ‘रामबाण’ (1948), ‘भोली’, ‘हमारी मंज़िल’, ‘राम विवाह’ (1949), ‘भाई बहन’, ‘प्रीत के गीत’ (1950), ‘भोला शंकर’, ‘लव कुश’ (1951), ‘इंद्रासन’, ‘मोरध्वज’, ‘राजा हरिश्चन्द्र’ (1952), ‘रामी धोबन’ (1953), ‘हनुमान जन्म’, ‘महापूजा’, ‘रामायण’, शहीदे आज़म भगतसिंह’ (1954), ‘भागवत महिमा’, ‘गंगा मैया’, ‘प्रभु की माया’, श्री गणेश विवाह’ (1955), ‘दिल्ली दरबार’, ‘राजरानी मीरा’, ‘रामनवमी’ (1956), ‘आधी रोटी’, चंडीपूजा’, ‘कृष्ण सुदामा’, ‘नीलमणि’, ‘राम हनुमान युद्ध’ (1957), ‘गोपीचंद’, ‘रामभक्त विभीषण’, ‘तीसरी गली’ (1958), ‘सम्राट पृथ्वीराज चौहान’ (1959), ‘भक्तराज’ और ‘अंगुलीमाल’ (दोनों 1960) जैसी फ़िल्मों में काम किया। ‘प्रेम अदीब प्रोडक्शंस’ के बैनर में उन्होंने दो फ़िल्में ‘देहाती’ (1947) और ‘रामविवाह’ (1949) भी बनाई थीं, लेकिन फ़िल्म ‘देहाती’ में उन्होंने अभिनय नहीं किया था। ‘तलाक़’, ‘इंडस्ट्रियल इंडिया’, ‘भोलेभाले’, ‘साधना’, ‘सौभाग्य’, ‘दर्शन’, ‘चूड़ियां’,  ‘स्टेशन मास्टर’ और ‘पुलिस’ जैसी फ़िल्मों में उन्होंने कुछ गीत भी गाए थे।
सोलह वर्ष की उम्र में मानसिक परिपक्वता पाने से पहले ही कमला [[मॉ]] बन चुकी थीं। बाद को उन्होंने बेबाकी से लिखा कि सचमुच में मॉ बनना क्या होता है, यह तो उन्होंने वर्षो बाद अपने तीसरे बेटे के जन्म के साथ ही समझ पाया। माधवी कुट्टी उनकी नानी का नाम था, जिससे वे मलयालम में लिखती थीं। अंग्रेज़ी में उन्होंने कमला दास के नाम से लिखा। [[लेखन]] और पेंटिंग से भी जीवन का सूनापन न भर पाईं।


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== राजनीतिक जीवन ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
कमला दास ने [[1984]] में एक राजनैतिक पार्टी बना कर चुनाव भी लड़ा, पर जमानत जब्त हो गई। इसके बाद वे राजनीति से हट गईं, और क्रमश: सार्वजनिक जीवन से भी।
<references/>
== इस्लाम स्वीकार ==  
==बाहरी कड़ियाँ==
कमला दास ने [[1999]] में अचानक धर्मातरण कर उन्होंने [[इस्लाम]] स्वीकार कर लिया तो सुरैया नाम भी उनसे जुड़ गया। बाद को पर्दाप्रथा के विरोध तथा अभिव्यक्त की आज़ादी की मॉग को लेकर कट्टर मुसल्मानों से भी ठनी। ऐसे तमाम लंबे और टकराव से भरे दौरों से गुजराती कमला ने लगातार तीन दशकों तक कविता, कहानी, उपन्यास और आत्मवृत्त लिखे।
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13:24, 15 जून 2017 का अवतरण

कमला दास (अंग्रेज़ी: Kamala Das; जन्म-31 मार्च, 1934; मृत्यु- 31 मई, 2009; अंग्रेज़ी और मलयालम की प्रसिद्ध लेखिका थी। इन्हें कमला साहित्य अकादमी, एशियन पोएट्री अवार्ड तथा कई अन्य पुरस्कारों से वे नवाज़ी गईं। उन्होंने वर्ष 1984 में साहित्य के नोबल पुरस्कार के दावेदारों की सूची में भी जगह बनाई।

जीवन परिचय

कमला दास का जन्म 31 मार्च, 1934 को केरल के त्रिचूर ज़िले में हुआ था। यह उच्च ब्राह्मण नायर परिवार से थी। मात्र पन्द्रह वर्ष की आयु में ही इनका विवाह कलकत्ता के माधव दास से हो गया। वे बचपन से ही कवितायें लिखती थीं लेकिन शादी के बाद उन्हें लिखने के लिए तब तक जागना पड़ता था जब तक पूरा परिवार न सो जाए। उनकी विवादास्पद आत्मकथा ‘मेरी कहानी’ इतनी पढ़ी गई कि भारत की हर भाषा सहित इस पुस्तक का पंद्रह विदेशी भाषाओं में अनुवाद हुआ था। इस्लाम धर्म क़बूल करने से पहले उनका नाम कमला था

साहित्यिक जीवन

माधवी कुट्टी नाम से मशहूर कमला दास ने रचनाएं की। उनकी सबसे चर्चित और विवादास्पद रचना उनकी आत्मकथा है जिसका नाम है माई स्टोरी। कमला दास का लेखन अंतरराष्ट्रीय साहित्य जगत में भी ध्यान खींचता रहा। नोबेल की दावेदारी के लिए भी 1984 में नामांकित किया गया था। उन्हें कुछ जानकार सिमोन द बोउवार जैसी लेखिका के समकक्ष मानते हैं।

पुरस्कार

  • वर्ष 1984 में 'नोबेल पुरस्कार' के लिए नामांकित किया गया।
  • अवार्ड ऑफ एशियन पेन एंथोलोजी (1964)
  • केरल साहित्य अकादमी पुरस्कार 1969 ('कोल्ड' के लिए)
  • साहित्य अकादमी पुरस्कार (1985)
  • एशियन पोएट्री पुरस्कार(1998)
  • केन्ट पुरस्कार' (1999)
  • एशियन वर्ल्डस पुरस्कार (2000)
  • वयलॉर पुरस्कार (2001)
  • डी. लिट' की मानद उपाधि कालीकट विश्वविद्यालय द्वारा (2006)
  • मुट्टाथु वरक़े अवार्ड (2006)
  • एज्हुथाचन पुरस्कार (2009)

निधन

कमला दास का निधन 31 मई, 2009 को पुणे, महाराष्ट्र मे हुआ था।





कमला दास 15 साल की उम्र से कवितायें लिखने लगी थीं। उनकी माँ बालमणि अम्मा एक बहुत अच्छी कवयित्री थीं और उनके लेखन का कमला दास पर खासा असर पड़ा। यही कारण है कि उन्होंने कविताएँ लिखना शुरू किया।

रचनाएं

कमला दास का शुमार भारत के समकालीन सर्वश्रेष्ठ लेखकों में होता रहा है। माधवी कुट्टी नाम से मशहूर कमला दास ने बेधड़क रचनाएं की। उनकी सबसे चर्चित और विवादास्पद रचना उनकी आत्मकथा है जिसका नाम है माई स्टोरी। 1976 में प्रकाशित इस किताब में समाज और व्यक्ति की मानसिकताओं की पड़ताल करते हुए कमला दास ने स्त्री पुरूष संबधों, विवाह की संस्था और इसके दायरे से बाहर के रिश्तों की वस्तुपरकता की मानवीय छानबीन की है। ये किताब इतनी लोकप्रिय हुई की दुनिया की करीब 15 भाषाओं में इसका अनुवाद हुआ।

कमला दास का लेखन अंतरराष्ट्रीय साहित्य जगत में भी ध्यान खींचता रहा। नोबेल की दावेदारी के लिए भी 1984 में नामांकित किया गया था। उन्हें कुछ जानकार सिमोन द बोउवार जैसी लेखिका के समकक्ष मानते हैं। साहित्य अकादमी सहित कई पुरस्कारों से सम्मानित कमला दास की कविताओ की एक लोकप्रिय किताब का नाम है, सिर्फ आत्मा ही जानती है संगीत, ओनली सोल नोज़ हाऊ टू सिंग।

कमला दास का एक उपन्यास अल्फाबेट ऑफ लस्ट यानी वासना की वर्णमाला भी है। माना जाता है कि कमला दास ने जिस बेबाकी से स्त्री की यौन इच्छाओ और आकांक्षाओं को रचनाधर्मिता का विषय बनाया वैसा उनके और बाद के दौर के लेखन में कम ही हुआ है। हालांकि उर्दू में कुरर्तुलएन हैदर, इस्मत चुगताई और एक अलग स्तर पर हिंदी में अमृता प्रीतम और कृष्णा सोबती के लेखन में स्त्री की निजता के संसार का एक गहरा आलोक देखने को मिलता है। कविताओं के साथ कमला दास ने कहानियों में भी पाठकों की भारी प्रशंसा हासिल की. दुनिया के कई हिस्सो में उन्होंने कविताओं का पाठ किया है।

प्रकाशित पुस्तकें

कमला दास की अंग्रेज़ी में ‘द सिरेंस’, ‘समर इन कलकत्ता’, ‘दि डिसेंडेंट्स’, ‘दि ओल्डी हाउस एंड अदर पोएम्स ’, ‘अल्फाेबेट्स ऑफ लस्ट’’, ‘दि अन्ना‘मलाई पोएम्सल’ और ‘पद्मावती द हारलॉट एंड अदर स्टोरीज’ आदि बारह पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। मलयालम में ‘पक्षीयिदू मानम’, ‘नरिचीरुकल पारक्कुम्बोल’, ‘पलायन’, ‘नेपायसम’, ‘चंदना मरंगलम’ और ‘थानुप्पू’ समेत पंद्रह पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।




कमला दास अंग्रेज़ी और मलयालम की प्रसिद्ध लेखिका थी। कमला दास का जन्म 31 मार्च 1934 को केरल के त्रिचूर ज़िले के एक उच्च ब्राह्मण नायर परिवार में हुआ था। ये बचपन से ही कवितायें लिखती थीं। कमला दास की माँ बालमणि अम्मा एक बहुत अच्छी कवयित्री थीं और उनके लेखन का कमला दास पर खासा असर पड़ा। यही कारण है कि उन्होंने कविताएँ लिखना शुरू किया।

विवाह

कमला दास का मात्र पन्द्रह वर्ष की आयु में ही उनका विवाह कलकत्ता के माधव दास से हो गया। वे बचपन से ही कवितायें लिखती थीं लेकिन शादी के बाद उन्हें लिखने के लिए तब तक जागना पड़ता था जब तक पूरा परिवार न सो जाए। कभी कभी वे रसोई में देर तक लिखती रहतीं थी। कमला दास के पिता कलकत्ता में ऊॅचे ओहदे पर थे। वहॉ उनका बचपन उस वक्त के दूसरे संभ्रांत सम्पन्न परिवारों की बच्चियों की ही तरह लिखने-पढ़ने-खाने-पीने की सुविधाओं के बावजूद घर की चहारदीवारियों सिमटा रहा। उन्हें घर में ही पढ़ाया-लिखाया गया। 15 वर्ष की कोमल आयु में अपनी उम्र से 15 वर्ष बड़े रिजर्व बैंक के एक आला अफसर से ब्याह दिया गया। सोलह वर्ष की उम्र में मानसिक परिपक्वता पाने से पहले ही कमला मॉ बन चुकी थीं। बाद को उन्होंने बेबाकी से लिखा कि सचमुच में मॉ बनना क्या होता है, यह तो उन्होंने वर्षो बाद अपने तीसरे बेटे के जन्म के साथ ही समझ पाया। माधवी कुट्टी उनकी नानी का नाम था, जिससे वे मलयालम में लिखती थीं। अंग्रेज़ी में उन्होंने कमला दास के नाम से लिखा। लेखन और पेंटिंग से भी जीवन का सूनापन न भर पाईं।

राजनीतिक जीवन

कमला दास ने 1984 में एक राजनैतिक पार्टी बना कर चुनाव भी लड़ा, पर जमानत जब्त हो गई। इसके बाद वे राजनीति से हट गईं, और क्रमश: सार्वजनिक जीवन से भी।

इस्लाम स्वीकार

कमला दास ने 1999 में अचानक धर्मातरण कर उन्होंने इस्लाम स्वीकार कर लिया तो सुरैया नाम भी उनसे जुड़ गया। बाद को पर्दाप्रथा के विरोध तथा अभिव्यक्त की आज़ादी की मॉग को लेकर कट्टर मुसल्मानों से भी ठनी। ऐसे तमाम लंबे और टकराव से भरे दौरों से गुजराती कमला ने लगातार तीन दशकों तक कविता, कहानी, उपन्यास और आत्मवृत्त लिखे।