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}}'''योगेश गौड़''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Yogesh Gaur'', जन्म- [[19 मार्च]], [[1943]], [[लखनऊ]], [[उत्तर प्रदेश]]; मृत्यु- [[29 मई]], [[2020]], [[मुम्बई]], [[महाराष्ट्र]]) प्रसिद्ध भारतीय गीतकार और लेखक थे। उन्हें विशेष रूप से फ़िल्म 'आनंद' के गीत 'कहीं दूर जब दिन ढल जाये' और 'ज़िन्दगी कैसी है पहेली हाए'; 'रिमझिम गिरे सावन' (फ़िल्म- मंज़िल), 'रजनीगंधा फूल तुम्हारे' (फ़िल्म- रजनीगंधा) जैसे सुपरहित गीतों के लिए प्रसिद्धि प्राप्त है। [[हिंदी सिनेमा|भारतीय हिंदी सिनेमा]] में उनके दिये योगदान के लिए उन्हें '[[दादा साहब फाल्के पुरस्कार]]' के अलावा 'यश भारती पुरस्कार' भी दिया गया।
'''योगेश गौड़''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Yogesh Gaur'' जन्म: [[1943]]) एक प्रसिद्ध गीतकार और लेखक हैं। योगेश 'कहीं दूर जब दिन ढल जाये', 'ज़िन्दगी कैसी है पहेली' (फ़िल्म- [[आनंद (फ़िल्म)|आनंद]]), 'रिमझिम गिरे सावन' (फ़िल्म- मंज़िल), 'रजनीगंधा फूल तुम्हारे' (फ़िल्म- रजनीगंधा) जैसे गीतों के लिए प्रसिद्ध हैं। 
==जीवन परिचय==
==जीवन परिचय==
हिन्दी फ़िल्मों के सुपरिचित गीतकार योगेश गौड उर्फ़ योगेश का जन्म [[लखनऊ]], [[उत्तर प्रदेश]] में एक मध्यवर्गीय परिवार में हुआ। आरंभिक शिक्षा लखनऊ के संस्कृति संपन्न माहौल में हुई, इस तरह योगेश का बचपन और किशोरावस्था यहीं बीते। पिता की असामयिक मृत्यु के कारण पढाई बीच में ही रोक कर रोज़गार की तलाश में लग गए। परिवार, मित्रों की सलाह पर मायानगरी [[मुंबई]] का रुख किया, मकसद इतना था कि जल्द-से-जल्द कोई काम मिले। मुंबई फ़िल्म उद्योग में पहला लक्ष्य नहीं था, महानगर की परिस्थितियों में योगेश को समझ में नहीं आ रहा था कि किस तरह एक शुरुआत होगी। इस क्रम में उन्होंने कहानी लेखन को चुना और सफ़र पर निकल पड़े, धीरे-धीरे पटकथाएं और संवाद लिखकर सिने-जीवन का आगाज़ किया।
हिन्दी फ़िल्मों के सुपरिचित गीतकार योगेश गौड उर्फ़ योगेश का जन्म [[लखनऊ]], [[उत्तर प्रदेश]] में एक मध्यवर्गीय [[परिवार]] में हुआ। आरंभिक शिक्षा लखनऊ के संस्कृति संपन्न माहौल में हुई, इस तरह योगेश का बचपन और किशोरावस्था यहीं बीते। [[पिता]] की असामयिक मृत्यु के कारण पढाई बीच में ही रोक कर रोज़गार की तलाश में लग गए। परिवार, मित्रों की सलाह पर मायानगरी [[मुंबई]] का रुख किया, मकसद इतना था कि जल्द-से-जल्द कोई काम मिले। मुंबई फ़िल्म उद्योग में पहला लक्ष्य नहीं था, महानगर की परिस्थितियों में योगेश को समझ में नहीं आ रहा था कि किस तरह एक शुरुआत होगी। इस क्रम में उन्होंने कहानी लेखन को चुना और सफ़र पर निकल पड़े, धीरे-धीरे पटकथाएं और संवाद लिखकर सिने-जीवन का आगाज़ किया।
==गीत एवं पटकथा लेखन==
==गीत एवं पटकथा लेखन==
योगेश जी के [[मुंबई]] में आरंभिक संघर्ष को मित्र व सहयोगी सत्यप्रकाश ने साथ दिया,  दोनों में सच्ची दोस्ती सा रिश्ता बना। भाई सत्यप्रकाश योगेश के सलाहकार, प्रेरक और संकट-मोचक रहे। मित्र के साथ ‘चाल’ में गुज़रा यह वक्त प्रेरणा का वरदान सा बन गया। आत्म-निर्भर पहचान के लिए अपने नाम से ‘गौड’ हटाने का फ़ैसला उनके व्यक्तित्व विकास के लिए अवसरों के नए द्वार लेकर आया, कहानी, पटकथा, संवाद के बाद कविता और गीत-लेखन की ओर उन्मुख हुए। यहां पर बचपन में कविता लिख कर याद करने का अभ्यास काम आया। लखनऊ का साहित्य-सांस्कृतिक सांचा और आत्मबल योगेश को कवि-गीतकार रूप दे गया। योगेश को सगीत निर्देशक की ‘धुनों’ पर गीत लिखना पसंद नहीं था। गीत-लेखन की तकनीकी मांगों से अपरिचित होकर फ़िल्मकार रोबिन बैनर्जी के पास काम मांगा। उस समय सगीत धुनों पर ही गीत लिखने का चलन था। रोबिन बैनर्जी उन दिनों फ़िल्म ‘मासूम’ (1963) पर काम कर रहे थे। योगेश को रोबिन जी ने इस फ़िल्म के गीत लिखने को कहा। इस अनुभव ने उनकी आंखें खोल दी। अब वह संगीत धुनों पर लिखने को समझ चुके थे। रोबिन बैनर्जी-योगेश का सफ़र सखी रौबिन, मारवेल मैन, फ़्लाइंग सर्कस, रौबिनहुड समेत लगभग दर्जन भर फ़िल्मों तक रहा।  
योगेश जी के [[मुंबई]] में आरंभिक संघर्ष को मित्र व सहयोगी सत्यप्रकाश ने साथ दिया,  दोनों में सच्ची दोस्ती सा रिश्ता बना। भाई सत्यप्रकाश योगेश के सलाहकार, प्रेरक और संकट-मोचक रहे। मित्र के साथ ‘चाल’ में गुज़रा यह वक्त प्रेरणा का वरदान सा बन गया। आत्म-निर्भर पहचान के लिए अपने नाम से ‘गौड’ हटाने का फ़ैसला उनके व्यक्तित्व विकास के लिए अवसरों के नए द्वार लेकर आया, कहानी, पटकथा, संवाद के बाद कविता और गीत-लेखन की ओर उन्मुख हुए। यहां पर बचपन में कविता लिख कर याद करने का अभ्यास काम आया। लखनऊ का साहित्य-सांस्कृतिक सांचा और आत्मबल योगेश को कवि-गीतकार रूप दे गया।
 
योगेश जी को सगीत निर्देशक की ‘धुनों’ पर गीत लिखना पसंद नहीं था। गीत-लेखन की तकनीकी मांगों से अपरिचित होकर फ़िल्मकार रोबिन बैनर्जी के पास काम मांगा। उस समय सगीत धुनों पर ही गीत लिखने का चलन था। रोबिन बैनर्जी उन दिनों फ़िल्म ‘मासूम’ (1963) पर काम कर रहे थे। योगेश को रोबिन जी ने इस फ़िल्म के गीत लिखने को कहा। इस अनुभव ने उनकी आंखें खोल दी। अब वह संगीत धुनों पर लिखने को समझ चुके थे। रोबिन बैनर्जी-योगेश का सफ़र सखी रौबिन, मारवेल मैन, फ़्लाइंग सर्कस, रौबिनहुड समेत लगभग दर्जन भर फ़िल्मों तक रहा।  
====फ़िल्म 'आनंद' से मिली सफलता====
====फ़िल्म 'आनंद' से मिली सफलता====
प्रसिद्ध संगीत निर्देशक [[सलिल चौधरी]] बहु-चर्चित फ़िल्म ‘[[आनंद (फ़िल्म)|आनंद]]’ (1971) पर काम कर रहे थे, उन्हें इस फ़िल्म के लिए एक सुलझे हुए गीतकार की तलाश थी। मशहूर [[शैलेन्द्र]] की कमी में योगेश का चयन किया। आनंद की सफ़लता से ‘योगेश’ देशभर में विख्यात होकर सलिल चौधरी के साथ अपने कैरियर की ‘सफ़लतम’ यात्रा पर निकल पड़े। सलिल दा-योगेश ने आनंद के अलावे ‘अनोखादान’, ‘अन्नदाता’, ‘आनंद महल’, ‘रजनीगंधा’ और ‘मीनू’ जैसी फ़िल्मों में साथ काम किया। सलिल दा की जलेबीदार, कठिन संगीत धुनों के लिए गीत लिखना योगेश के लिए बहुत ही ‘चुनौतीपूर्ण’ कार्य रहा। निस दिन, रजनीगंधा फूल तुम्हारे, प्यास लिए मनवा जैसे गीतों में गीतकार की ‘कविताई’ निखर कर सामने आई। इस तरह सलिल दा के मापदंडों पर एक गीतकार ‘कवि’ भी बन सका।
प्रसिद्ध संगीत निर्देशक [[सलिल चौधरी]] बहु-चर्चित फ़िल्म ‘[[आनंद (फ़िल्म)|आनंद]]’ (1971) पर काम कर रहे थे, उन्हें इस फ़िल्म के लिए एक सुलझे हुए गीतकार की तलाश थी। मशहूर [[शैलेन्द्र]] की कमी में योगेश का चयन किया। आनंद की सफ़लता से ‘योगेश’ देशभर में विख्यात होकर सलिल चौधरी के साथ अपने कैरियर की ‘सफ़लतम’ यात्रा पर निकल पड़े। सलिल दा-योगेश ने आनंद के अलावे ‘अनोखादान’, ‘अन्नदाता’, ‘आनंद महल’, ‘रजनीगंधा’ और ‘मीनू’ जैसी फ़िल्मों में साथ काम किया। सलिल दा की जलेबीदार, कठिन संगीत धुनों के लिए गीत लिखना योगेश के लिए बहुत ही ‘चुनौतीपूर्ण’ कार्य रहा। निस दिन, रजनीगंधा फूल तुम्हारे, प्यास लिए मनवा जैसे गीतों में गीतकार की ‘कविताई’ निखर कर सामने आई। इस तरह सलिल दा के मापदंडों पर एक गीतकार ‘कवि’ भी बन सका।
योगेश ने अपने कैरियर में संगीतकार घरानों के ‘पिता-पुत्र’ संगीतकारों के साथ काम किया, इस परम्परा में सलिल एवं संजय चौधरी और [[सचिन देव बर्मन|सचिन देव]] एवं [[राहुल देव बर्मन]] के लिए गीत लिखे। जाने-माने संगीतकार सचिन देव बर्मन की ‘उसपार’ तथा ‘मिली’ योगेश के यादगार ‘प्रोजेक्ट’ रहे, इन फ़िल्मों का जीवंत गीत-संगीत इस साथ की सुनहरी याद है। 'मिली' अभी पूरी भी न हुई थी कि सचिन देव बीच में ‘बीमार’ पड़ गए, पिता की आधी फ़िल्म को राहुल देव बर्मन ने ‘बडी सूनी-सूनी है ज़िंदगी’ और ‘मैने कहा फूलों से’ रिकार्ड कर पूरा किया।  संगीतकार राहुल की ‘लिस्ट’ में योगेश का नम्बर पाँचवीं पायदान पर आता था, फिर भी राहुल देव-योगेश की जोड़ी 8 से 10 फ़िल्मों में साथ आई।
 
योगेश ने अपने कैरियर में संगीतकार घरानों के ‘पिता-पुत्र’ संगीतकारों के साथ काम किया, इस परम्परा में सलिल एवं संजय चौधरी और [[सचिन देव बर्मन|सचिन देव]] एवं [[राहुल देव बर्मन]] के लिए गीत लिखे। जाने-माने संगीतकार सचिन देव बर्मन की ‘उसपार’ तथा ‘मिली’ योगेश के यादगार ‘प्रोजेक्ट’ रहे, इन फ़िल्मों का जीवंत गीत-संगीत इस साथ की सुनहरी याद है। 'मिली' अभी पूरी भी न हुई थी कि सचिन देव बीच में ‘बीमार’ पड़ गए, पिता की आधी फ़िल्म को राहुल देव बर्मन ने ‘बडी सूनी-सूनी है ज़िंदगी’ और ‘मैने कहा फूलों से’ रिकार्ड कर पूरा किया।  संगीतकार राहुल की ‘लिस्ट’ में योगेश का नम्बर पाँचवीं पायदान पर आता था, फिर भी राहुल देव-योगेश की जोड़ी 8 से 10 फ़िल्मों में साथ आई।
 
फ़िल्मकार [[ऋषिकेश मुखर्जी]] के निर्देशन मे बनी ‘आनंद’ (1971) के बाद योगेश को सिने जगत् में उचित सम्मान मिला, फ़िल्म के कभी ना भुलाए जा सकने वाले गीत आज भी लोकप्रिय बने हुए हैं। कहा जाता है कि ऋषिकेश जी को ‘आनंद’ बनाने की प्रेरणा मूलत: एक जापानी फ़िल्म से मिली, कहानी से इस क़दर प्रोत्साहित हुए कि केन्द्र में ‘महिला’ को रखकर ‘मिली’ भी बनाई। योगेश जी ने दोनों फ़िल्मों के गीत लिखकर ऋषिकेश दा की ‘सबसे बड़ा सुख’, ‘रंग-बिरंगी’ और ‘किसी से ना कहना’ के गीत समेत अनेक फ़िल्मों के गीत लिखे।<ref>{{cite web |url=http://jankipul.com/2011/05/blog-post_09.html|title=एक थे गीतकार योगेश |accessmonthday=22 फ़रवरी |accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=जानकी पुल |language=हिन्दी }}</ref>  
फ़िल्मकार [[ऋषिकेश मुखर्जी]] के निर्देशन मे बनी ‘आनंद’ (1971) के बाद योगेश को सिने जगत् में उचित सम्मान मिला, फ़िल्म के कभी ना भुलाए जा सकने वाले गीत आज भी लोकप्रिय बने हुए हैं। कहा जाता है कि ऋषिकेश जी को ‘आनंद’ बनाने की प्रेरणा मूलत: एक जापानी फ़िल्म से मिली, कहानी से इस क़दर प्रोत्साहित हुए कि केन्द्र में ‘महिला’ को रखकर ‘मिली’ भी बनाई। योगेश जी ने दोनों फ़िल्मों के गीत लिखकर ऋषिकेश दा की ‘सबसे बड़ा सुख’, ‘रंग-बिरंगी’ और ‘किसी से ना कहना’ के गीत समेत अनेक फ़िल्मों के गीत लिखे।<ref>{{cite web |url=http://jankipul.com/2011/05/blog-post_09.html|title=एक थे गीतकार योगेश |accessmonthday=22 फ़रवरी |accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=जानकी पुल |language=हिन्दी }}</ref>  
==प्रसिद्ध गीत==
==प्रसिद्ध गीत==
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* आए तुम याद मुझे, गाने लगी हर धडकन (मिली)
* आए तुम याद मुझे, गाने लगी हर धडकन (मिली)
* न जाने क्यों होता है, ये जिंदगी के साथ (छोटी सी बात)
* न जाने क्यों होता है, ये जिंदगी के साथ (छोटी सी बात)
==मृत्यु==
गीतकार तथा लेखक योगेश का निधन [[29 मई]], [[2020]] को बसई, [[मुम्बई]] में हुआ।


 
[[हिंदी सिनेमा]] की महान कलाकार [[लता मंगेशकर]] ने उनके निधन पर लिखा- "मुझे अभी पता चला कि दिल को छूने वाले गीत लिखने वाले कवि योगेश जी का आज स्वर्गवास हो गया है। ये सुनकर मुझे बहुत दु:ख हुआ। योगेश जी के लिखे गीत मैंने गाए। योगेश जी बहुत शांत और मधुर स्वभाव के इंसान थे। मैं उनको विनम्र श्रद्धांजलि अर्पण करती हूं"। योगेश के साथ लता मंगेशकर ने कई फिल्मों में काम किया था।
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05:28, 30 मई 2020 का अवतरण

योगेश
योगेश
योगेश
पूरा नाम योगेश गौड़
प्रसिद्ध नाम योगेश
जन्म 19 मार्च, 1943
जन्म भूमि लखनऊ, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 29 मई, 2020
मृत्यु स्थान बसई, मुम्बई, महाराष्ट्र
कर्म भूमि मुम्बई
कर्म-क्षेत्र फ़िल्मी गीत एवं पटकथा
मुख्य रचनाएँ 'कहीं दूर जब दिन ढल जाये', 'ज़िन्दगी कैसी है पहेली' (फ़िल्म- आनंद), 'रिमझिम गिरे सावन' (फ़िल्म- मंज़िल), 'रजनीगंधा फूल तुम्हारे' (फ़िल्म- रजनीगंधा)
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी योगेश ने अपने कैरियर में संगीतकार घरानों के ‘पिता-पुत्र’ संगीतकारों के साथ काम किया, इस परम्परा में सलिल एवं संजय चौधरी और सचिन देव एवं राहुल देव बर्मन के लिए गीत लिखे।
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योगेश गौड़ (अंग्रेज़ी: Yogesh Gaur, जन्म- 19 मार्च, 1943, लखनऊ, उत्तर प्रदेश; मृत्यु- 29 मई, 2020, मुम्बई, महाराष्ट्र) प्रसिद्ध भारतीय गीतकार और लेखक थे। उन्हें विशेष रूप से फ़िल्म 'आनंद' के गीत 'कहीं दूर जब दिन ढल जाये' और 'ज़िन्दगी कैसी है पहेली हाए'; 'रिमझिम गिरे सावन' (फ़िल्म- मंज़िल), 'रजनीगंधा फूल तुम्हारे' (फ़िल्म- रजनीगंधा) जैसे सुपरहित गीतों के लिए प्रसिद्धि प्राप्त है। भारतीय हिंदी सिनेमा में उनके दिये योगदान के लिए उन्हें 'दादा साहब फाल्के पुरस्कार' के अलावा 'यश भारती पुरस्कार' भी दिया गया।

जीवन परिचय

हिन्दी फ़िल्मों के सुपरिचित गीतकार योगेश गौड उर्फ़ योगेश का जन्म लखनऊ, उत्तर प्रदेश में एक मध्यवर्गीय परिवार में हुआ। आरंभिक शिक्षा लखनऊ के संस्कृति संपन्न माहौल में हुई, इस तरह योगेश का बचपन और किशोरावस्था यहीं बीते। पिता की असामयिक मृत्यु के कारण पढाई बीच में ही रोक कर रोज़गार की तलाश में लग गए। परिवार, मित्रों की सलाह पर मायानगरी मुंबई का रुख किया, मकसद इतना था कि जल्द-से-जल्द कोई काम मिले। मुंबई फ़िल्म उद्योग में पहला लक्ष्य नहीं था, महानगर की परिस्थितियों में योगेश को समझ में नहीं आ रहा था कि किस तरह एक शुरुआत होगी। इस क्रम में उन्होंने कहानी लेखन को चुना और सफ़र पर निकल पड़े, धीरे-धीरे पटकथाएं और संवाद लिखकर सिने-जीवन का आगाज़ किया।

गीत एवं पटकथा लेखन

योगेश जी के मुंबई में आरंभिक संघर्ष को मित्र व सहयोगी सत्यप्रकाश ने साथ दिया, दोनों में सच्ची दोस्ती सा रिश्ता बना। भाई सत्यप्रकाश योगेश के सलाहकार, प्रेरक और संकट-मोचक रहे। मित्र के साथ ‘चाल’ में गुज़रा यह वक्त प्रेरणा का वरदान सा बन गया। आत्म-निर्भर पहचान के लिए अपने नाम से ‘गौड’ हटाने का फ़ैसला उनके व्यक्तित्व विकास के लिए अवसरों के नए द्वार लेकर आया, कहानी, पटकथा, संवाद के बाद कविता और गीत-लेखन की ओर उन्मुख हुए। यहां पर बचपन में कविता लिख कर याद करने का अभ्यास काम आया। लखनऊ का साहित्य-सांस्कृतिक सांचा और आत्मबल योगेश को कवि-गीतकार रूप दे गया।

योगेश जी को सगीत निर्देशक की ‘धुनों’ पर गीत लिखना पसंद नहीं था। गीत-लेखन की तकनीकी मांगों से अपरिचित होकर फ़िल्मकार रोबिन बैनर्जी के पास काम मांगा। उस समय सगीत धुनों पर ही गीत लिखने का चलन था। रोबिन बैनर्जी उन दिनों फ़िल्म ‘मासूम’ (1963) पर काम कर रहे थे। योगेश को रोबिन जी ने इस फ़िल्म के गीत लिखने को कहा। इस अनुभव ने उनकी आंखें खोल दी। अब वह संगीत धुनों पर लिखने को समझ चुके थे। रोबिन बैनर्जी-योगेश का सफ़र सखी रौबिन, मारवेल मैन, फ़्लाइंग सर्कस, रौबिनहुड समेत लगभग दर्जन भर फ़िल्मों तक रहा।

फ़िल्म 'आनंद' से मिली सफलता

प्रसिद्ध संगीत निर्देशक सलिल चौधरी बहु-चर्चित फ़िल्म ‘आनंद’ (1971) पर काम कर रहे थे, उन्हें इस फ़िल्म के लिए एक सुलझे हुए गीतकार की तलाश थी। मशहूर शैलेन्द्र की कमी में योगेश का चयन किया। आनंद की सफ़लता से ‘योगेश’ देशभर में विख्यात होकर सलिल चौधरी के साथ अपने कैरियर की ‘सफ़लतम’ यात्रा पर निकल पड़े। सलिल दा-योगेश ने आनंद के अलावे ‘अनोखादान’, ‘अन्नदाता’, ‘आनंद महल’, ‘रजनीगंधा’ और ‘मीनू’ जैसी फ़िल्मों में साथ काम किया। सलिल दा की जलेबीदार, कठिन संगीत धुनों के लिए गीत लिखना योगेश के लिए बहुत ही ‘चुनौतीपूर्ण’ कार्य रहा। निस दिन, रजनीगंधा फूल तुम्हारे, प्यास लिए मनवा जैसे गीतों में गीतकार की ‘कविताई’ निखर कर सामने आई। इस तरह सलिल दा के मापदंडों पर एक गीतकार ‘कवि’ भी बन सका।

योगेश ने अपने कैरियर में संगीतकार घरानों के ‘पिता-पुत्र’ संगीतकारों के साथ काम किया, इस परम्परा में सलिल एवं संजय चौधरी और सचिन देव एवं राहुल देव बर्मन के लिए गीत लिखे। जाने-माने संगीतकार सचिन देव बर्मन की ‘उसपार’ तथा ‘मिली’ योगेश के यादगार ‘प्रोजेक्ट’ रहे, इन फ़िल्मों का जीवंत गीत-संगीत इस साथ की सुनहरी याद है। 'मिली' अभी पूरी भी न हुई थी कि सचिन देव बीच में ‘बीमार’ पड़ गए, पिता की आधी फ़िल्म को राहुल देव बर्मन ने ‘बडी सूनी-सूनी है ज़िंदगी’ और ‘मैने कहा फूलों से’ रिकार्ड कर पूरा किया। संगीतकार राहुल की ‘लिस्ट’ में योगेश का नम्बर पाँचवीं पायदान पर आता था, फिर भी राहुल देव-योगेश की जोड़ी 8 से 10 फ़िल्मों में साथ आई।

फ़िल्मकार ऋषिकेश मुखर्जी के निर्देशन मे बनी ‘आनंद’ (1971) के बाद योगेश को सिने जगत् में उचित सम्मान मिला, फ़िल्म के कभी ना भुलाए जा सकने वाले गीत आज भी लोकप्रिय बने हुए हैं। कहा जाता है कि ऋषिकेश जी को ‘आनंद’ बनाने की प्रेरणा मूलत: एक जापानी फ़िल्म से मिली, कहानी से इस क़दर प्रोत्साहित हुए कि केन्द्र में ‘महिला’ को रखकर ‘मिली’ भी बनाई। योगेश जी ने दोनों फ़िल्मों के गीत लिखकर ऋषिकेश दा की ‘सबसे बड़ा सुख’, ‘रंग-बिरंगी’ और ‘किसी से ना कहना’ के गीत समेत अनेक फ़िल्मों के गीत लिखे।[1]

प्रसिद्ध गीत

  • कहीं दूर जब दिन ढल जाये (आनंद)
  • रिमझिम गिरे सावन (मंज़िल)
  • रजनीगंधा फूल तुम्हारे (रजनीगंधा)
  • ज़िन्दगी कैसी है पहेली (आनंद)
  • ना बोले तुम, ना मैने कुछ कहा (बातों बातों में)
  • कई बार यूँ भी देखा है (रजनीगंधा)
  • कहा तक ये मन को अंधेरे छलेंगे (बातों बातों में)
  • आए तुम याद मुझे, गाने लगी हर धडकन (मिली)
  • न जाने क्यों होता है, ये जिंदगी के साथ (छोटी सी बात)

मृत्यु

गीतकार तथा लेखक योगेश का निधन 29 मई, 2020 को बसई, मुम्बई में हुआ।

हिंदी सिनेमा की महान कलाकार लता मंगेशकर ने उनके निधन पर लिखा- "मुझे अभी पता चला कि दिल को छूने वाले गीत लिखने वाले कवि योगेश जी का आज स्वर्गवास हो गया है। ये सुनकर मुझे बहुत दु:ख हुआ। योगेश जी के लिखे गीत मैंने गाए। योगेश जी बहुत शांत और मधुर स्वभाव के इंसान थे। मैं उनको विनम्र श्रद्धांजलि अर्पण करती हूं"। योगेश के साथ लता मंगेशकर ने कई फिल्मों में काम किया था।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. एक थे गीतकार योगेश (हिन्दी) जानकी पुल। अभिगमन तिथि: 22 फ़रवरी, 2017।

बाहरी कड़ियाँ

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