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'''राहुल बजाज''' ([[अंग्रेजी]]: Rhaul Bajaj जन्म: [[10 जून]], [[1938]]) [[भारत]] के सबसे सफल उद्योगपतियों में से एक हैं। वह बजाज समूह के अध्यक्ष हैं जिसे भारत और विदेशों में विनिर्मित उत्पादों और वित्तीय सेवाओं को प्रदान करने के लिए जाना जाता है। बजाज समूह का व्यवसाय दुपहिया वाहन, घरेलू उपकरणों, इलेक्ट्रिक लैम्प, पवन ऊर्जा, विशेष मिश्र धातु और स्टेनलेस स्टील, फोर्जिंग, बुनियादी ढांचे के विकास, सामग्री हैंडलिंग उपकरणों, यात्रा, जनरल और जीवन बीमा और निवेश में वित्तीय सेवाओं जैसे क्षेत्रों में फैला हुआ है।
जन्म: 26 जुलाई 1925, कपद्वंज, खेड़ा, गुजरात


====जीवन परिचय====
मृत्यु: 2 जुलाई 2009, मुंबई
राहुल बजाज का जन्म [[10 जून]] [[1938]] को [[बंगाल]] प्रेसीडेंसी में हुआ था। बजाज व्यवसायिक घराने की नीव राहुल के दादा जमना लाल बजाज ने रखी थी। आने वाली पीढ़ियों ने बजाज घराने के व्यवसाय को आगे बढ़ाया। राहुल ने कैथेड्रल एंड जॉन कॉनन स्कूल से प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने [[दिल्ली विश्वविद्यालय]] के सेंट स्टीफेंस कॉलेज से अर्थशास्त्र (ऑनर्स) डिग्री और [[बंबई विश्वविद्यालय]] से कानून की डिग्री ली है और हार्वर्ड बिजनेस स्कूल से एमबीए हैं।
====कॅरियर====
राहुल बजाज ने सन [[1965]] में बजाज समूह की बागडोर संभाली। उनके कुशल नेतृत्व में कंपनी ने लाइसेंस-राज जैसे कठिन समय में भी सफलता के नयी बुलंदियों को छुआ। सन [[1980]] के दशक में बजाज दो पहिया स्कूटरों का शीर्ष निर्माता था। समूह के ‘चेतक’ ब्रांड स्कूटर की मांग इतनी ज्यादा थी की इसके लिए 10 साल तक का वेटिंग-पीरियड था।
राहुल कई कंपनियों के बोर्ड के अध्यक्ष भी हैं। आर्थिक क्षेत्र और उद्योग दुनिया में उनके योगदान के लिए उन्हें भारतीय संसद के उच्च सदन राज्यसभा ([[2006]]-[[2010]]) के लिए चुना गया। उनको आईआईटी रुड़की सहित 7 विश्वविद्यालयों द्वारा डॉक्टरेट की मानद उपाधि प्रदान की गई है।


[[1990]] के दशक में [[भारत]] में उदारीकरण के दौर की शुरुआत हुई। यह समय बजाज ऑटो के लिए बड़ी चुनौतियाँ लेकर आया। उदारीकरण सस्ते आयात और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) जैसे अहम चनौतियां लाया जिसके फलस्वरूप राहुल बजाज ने उदारीकरण का विरोध किया। स्कूटरों की बिक्री गिरने लगी क्योंकि लोग मोटरसाइकिलों में अधिक रुचि दिखाने लगे और प्रतिद्वंद्वी हीरो होंडा को इसका पूरा फायदा मिला।
कार्यक्षेत्र: चित्रकारी


सन [[1979]]-[[1980]] से लेकर सन [[1999]]-[[2000]] तक राहुल भारतीय उद्योग परिसंघ (CII) के अध्यक्ष रहे। वे सोसाइटी ऑफ़ इंडियन इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स (सियाम) और महरत्ता चैंबर ऑफ़ कॉमर्स के अध्यक्ष रहे। इसके साथ-साथ राहुल ऑटोमोबाइल और संबद्ध उद्योगों के विकास परिषद के  अध्यक्ष भी रहे। उन्हें सन [[1986]] से लेकर 1989 तक भारत सरकार द्वारा इंडियन एयरलाइंस का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था।
तैयब मेहता एक जाने-माने भारतीय चित्रकार थे। वे प्रसिद्ध ‘बॉम्बे प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट्स ग्रुप’ के सदस्य थे। इस समूह में एफ.एन. सौज़ा, एस.एच. रजा और एम.एफ. हुसैन जैसे महान कलाकार भी शामिल थे। वे स्वतंत्रता के बाद की पीढ़ी के उन चित्रकारों में से थे जो राष्ट्रवादी बंगाल स्कूल ऑफ़ आर्ट के परंपरा से हटकर एक आधुनिक विधा में कार्य करना चाहते थे।
भारत के राष्ट्रपति ने उनको [[2003]] से लेकर [[2006]] तक ‘इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी बॉम्बे’ के बोर्ड ऑफ़ गवर्नर्स का अध्यक्ष बनाया। वे अंतर्राष्ट्रीय व्यापार परिषद जिनेवा के आर्थिक मंच के पूर्व अध्यक्ष और सदस्य हैं और हार्वर्ड बिजनेस स्कूल की वैश्विक सलाहकार बोर्ड के सदस्य हैं। राहुल ब्रूकिंग्स इंस्टीट्यूशन, वाशिंगटन डीसी, के अंतर्राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के एक सदस्य है और इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस के कार्यकारी बोर्ड के एक सदस्य भी हैं।
बजाज समूह के कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी (CSR) के तहत भी राहुल बजाज का बहुत बड़ा योगदान है। इसके अंतर्गत जमनालाल बजाज फाउंडेशन और शिक्षा मंडल और अनेक सामाजिक संगठन जैसे भारतीय युवा शक्ति ट्रस्ट और रूबी हॉल क्लिनिक (पुणे में एक बड़े अस्पताल) जैसे संगठनों को चलाया जाता है।
====पुरस्कार और सम्मान====
आर्थिक और व्यापर के क्षेत्र में उनके बहुमूल्य योगदान को देखते हुए, राहुल को अनेकों पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है।
*सन [[2001]] में [[भारत सरकार]] द्वारा ‘[[पद्म भूषण]]’ प्रदान किया
*हार्वर्ड बिजनेस स्कूल द्वारा अलुमिनी (पूर्व छात्रों) अचीवमेंट पुरस्कार प्राप्त हुआ
*[[नवभारत टाइम्स]], अर्न्स्ट एंड यंग और सीएनबीसी टीवी 18 द्वारा “लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार” से नवाजा गया
*फ्रांस गणराज्य के राष्ट्रपति द्वारा “नाइट इन द आर्डर ऑफ़ द लीजन ऑफ़ ऑनर” नियुक्त किया गया
*[[भारत सरकार]] ने राहुल बजाज को [[1975]] से लेकर [[1977]] तक ऑटोमोबाइल और संबद्ध उद्योगों के विकास परिषद का अध्यक्ष बनाया
*सन [[1975]] में उन्हें राष्ट्रीय गुणवत्ता एश्योरेंस संस्थान द्वारा ‘मैन ऑफ़ द ईयर” के पुरस्कार से सम्मानित किया गया
*सन [[1990]] में प्रबंधन के क्षेत्र में सबसे विशिष्ट सेवाओं के लिए उन्हें बॉम्बे मैनेजमेंट एसोसिएशन पुरस्कार प्राप्त किया
*प्रिंस ऑफ़ वेल्स ने उन्हें “प्रिंस ऑफ़ वेल्स इंटरनेशनल बिज़नेस लीडर्स फोरम” का सदस्य फरवरी 1992 में बनाया।
*FIE फाउंडेशन ने उन्हें साल [[1996]] में राष्ट्र भूषण सम्मान से पुरष्कृत किया।
*लोकमान्य तिलक स्मारक ट्रस्ट ने सन [[2000]] में श्री बजाज को तिलक पुरस्कार से सम्मानित किया।


उनके जीवन के अंतिम दशक में उनकी बनायीं हुई पेंटिंग्स रिकॉर्ड कीमतों पर बिकीं जिसमें उनके मृत्यु के बाद बिकी एक पेंटिंग भी शामिल है जो दिसम्बर 2014 में 17 करोड़ रुपये से ज्यादा कीमत पर बेची गयी। इससे पहले भी मेहता की एक पेंटिंग ‘गर्ल इन लव’ लगभग 4.5 करोड़ रुपये में बिकी थी। सन 2002 में उनकी एक पेंटिंग ‘सेलिब्रेशन’ लगभग 1.5 करोड़ रुपये में बिकी थी जो अन्तराष्ट्रीय स्तर पर उस समय तक की सबसे महंगी भारतीय पेंटिंग थी।


[http://www.itshindi.com/rahul-bajaj.html राहुल बजाज]
आज भारतीय कला में सारी दुनिया की दिलचस्पी है और इस दिलचस्पी का एक बड़ा श्रेय तैयब मेहता को भी जाता है। जब क्रिस्टी जैसी कलादीर्घा ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उनकी कृतियों की नीलामी की तो भारतीय कला के लिए ये एक बड़ी बात थी। समकालीन भारतीय कला इतिहास में तैयब मेहता ही अकेले पेंटर थे जिनका काम इतने कीमतों में बिका।
 
प्रारंभिक जीवन     
 
तैयब मेहता का जन्म 26 जुलाई 1925 को गुजरात के खेड़ा जिले में हुआ था। उनका पालन-पोषण मुंबई के क्रावफोर्ड मार्केट में दावूदी बोहरा समुदाय में हुआ था। सन 1947 में उन्होंने विभाजन के बाद हुए दंगों में मुंबई के मोहम्मद अली रोड पर एक व्यक्ति को पत्थर से मारे जाने की ह्रदय विदारक घटना देखी थी। इस घटना ने उनको इतना प्रभावित किया कि उनके कामों में इसकी झलक कहीं न कहीं हमें दिख ही जाती है।
 
तैयब मेहता ने प्रारंभ में कुछ समय के लिए मुंबई स्थित एक नामी फिल्म स्टूडियो ‘फेमस स्टूडियोज’ के लैब में फिल्म एडिटर का कार्य किया। बाद में उन्होंने मुंबई के सर जे.जे. स्कूल ऑफ़ आर्ट्स में दाखिला लिया और सन 1952 में यहाँ से डिप्लोमा ग्रहण किया। इसके बाद वे ‘बॉम्बे प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट्स ग्रुप’ के सदस्य बन गए। यह ग्रुप पश्चिम के आधुनिकतावादी शैली से प्रभावित था और तैयब के साथ-साथ उसमें एफ.एन. सौज़ा, एस.एच. रजा और एम.एफ. हुसैन जैसे महान कलाकार भी शामिल थे।
 
करियर
 
सन 1959 में तैयब लन्दन चले गए और 1964 तक वहीँ रहकर कार्य किया। सन 1968 में जब उन्हें जॉन डी रॉकफेलर फ़ेलोशिप मिल गयी तब वे न्यू यॉर्क चले गए। लन्दन प्रवास के दौरान उनकी कला फ़्रन्कोइस बेकन जैसे कलाकारों से प्रभावित हुई जबकि न्यू यॉर्क प्रवास के दौरान उनकी चित्रकारी में अतिसूक्ष्म्वाद देखने को मिला।
 
उन्होंने बॉम्बे के बांद्रा स्थित बूचड़खाने में ‘कूदाल’ नाम की एक शार्ट फिल्म भी बनाई जिसे सन 1970 में फिल्मफेयर क्रिटिक्स अवार्ड मिला।
 
सन 1984-85 के दौरान वे शान्तिनिकेतन में भी रहे जिसके बाद उनकी चित्रकारी में महत्वपूर्ण परिवर्तन देखने को मिला। इस दौरान उनके चित्रों की विषय-वस्तु ‘बंधे हुए सांड’ और ‘रिक्शापुलर्स’ थे। इसके बाद उन्होंने 1970 के दशक में ‘डायगनल’ श्रृंखला के चित्र बनाये। उन्होंने अंग विच्छेद वाली और गिरती आकृतियों का प्रयोग 70 के दशक में शुरू किया जो कला की दुनिया को उनका महत्वपूर्ण योगदान है।
 
सन 2002 में क्रिस्टी की नीलामी में जब उनकी एक पेंटिंग ‘सेलिब्रेशन’ लगभग 1.5 करोड़ रुपये में बिकी तब उस समय किसी भी भारतीय चित्रकार की यह सबसे महंगी पेंटिंग थी। सन 2005 में भारतीय कलादीर्घा ‘सैफ्रनआर्ट’ ने ऑनलाइन नीलामी में उनकी एक पेंटिंग ‘काली’ को 1 करोड़ रुपये में बेचा। जून 2008 में क्रिस्टी ने एक नीलामी में उनकी एक पेंटिंग को 20 लाख अमेरिकी डॉलर में बेचा। सन 2005 में उनकी एक पेंटिंग ‘जेस्चर’ 3.1 करोड़ रुपये में एक भारतीय रंजित मलकानी ने खरीदी। उस समय यह किसी भी भारतीय द्वारा किसी भी भारतीय समकालीन कला के नमूने को खरीदने के लिए सबसे ज्यादा रकम थी।
 
तैयब मेहता पहले ऐसे भारतीय समकालीन चित्रकार थे जिनकी पेंटिंग्स 10 लाख डॉलर या उससे अधिक कीमत में बेची गयीं। यह ऐसा समय था जिसके बाद पूरी दुनिया के कला प्रशंसक भारतीय कला और चित्रकारी में गहरी दिलचस्पी लेने लगे।
 
तैयब मेहता के करीबी कहते हैं कि वे अपनी कला के प्रति इतने समर्पित थे कि पूर्ण रूप से संतुष्ट न होने तक अपनी पेंटिंग्स को कला दीर्घाओं में भेजने से कतराते थे। उनके अन्दर सृजनात्मकता की एक जिद थी जिसकी ख़ातिर उन्होंने कई कैनवस नष्ट कर दिए। वे मानते थे कि किसी भी कला को सार्वजनिक होने से पहले कलाकार को यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए की उसमें कोई खोट नहीं रह गया हो।
 
व्यक्तिगत जीवन
 
तैयब मेहता का विवाह सकीना से हुआ था। उन्होंने अपने जीवन का ज्यादातर समय मुंबई में बिताया। मुंबई के अलावा वे लन्दन, न्यू यॉर्क और शान्तिनिकेतन में भी रहे।
 
उनका निधन 2 जुलाई 2009 को ह्रदय गति रुक जाने के कारण मुंबई के एक अस्पताल में हुआ। वे अपने पीछे अपनी पत्नी, एक पुत्र (युसूफ) और पुत्री (हिमानी) छोड़ गए।
 
पुरस्कार और सम्मान
 
    सन 1968 में उन्हें ‘जॉन डी रॉकफेलर फ़ेलोशिप’ प्रदान की गयी
    सन 1968 में ही दिल्ली में पेंटिंग के लिए एक स्वर्ण पदक प्रदान किया गया
    सन 1974 में फ्रांस में आयोजित ‘इंटरनेशनल फेस्टिवल ऑफ़ पेंटिंग’ में उन्हें स्वर्ण पदक प्रदान किया गया
    सन 1988 में मध्य प्रदेश सरकार ने उन्हें ‘कालिदास सम्मान’ से नवाजा
    सन 2005 में उन्हें कला, संस्कृति और शिक्षा के लिए दयावती मोदी फाउंडेशन पुरस्कार दिया गया
    सन 2007 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया
    उनकी शार्ट फिल्म ‘कूदाल’ को सन 1970 में फिल्मफेयर क्रिटिक्स अवार्ड दिया गया

12:48, 16 सितम्बर 2017 का अवतरण

जन्म: 26 जुलाई 1925, कपद्वंज, खेड़ा, गुजरात

मृत्यु: 2 जुलाई 2009, मुंबई

कार्यक्षेत्र: चित्रकारी

तैयब मेहता एक जाने-माने भारतीय चित्रकार थे। वे प्रसिद्ध ‘बॉम्बे प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट्स ग्रुप’ के सदस्य थे। इस समूह में एफ.एन. सौज़ा, एस.एच. रजा और एम.एफ. हुसैन जैसे महान कलाकार भी शामिल थे। वे स्वतंत्रता के बाद की पीढ़ी के उन चित्रकारों में से थे जो राष्ट्रवादी बंगाल स्कूल ऑफ़ आर्ट के परंपरा से हटकर एक आधुनिक विधा में कार्य करना चाहते थे।

उनके जीवन के अंतिम दशक में उनकी बनायीं हुई पेंटिंग्स रिकॉर्ड कीमतों पर बिकीं जिसमें उनके मृत्यु के बाद बिकी एक पेंटिंग भी शामिल है जो दिसम्बर 2014 में 17 करोड़ रुपये से ज्यादा कीमत पर बेची गयी। इससे पहले भी मेहता की एक पेंटिंग ‘गर्ल इन लव’ लगभग 4.5 करोड़ रुपये में बिकी थी। सन 2002 में उनकी एक पेंटिंग ‘सेलिब्रेशन’ लगभग 1.5 करोड़ रुपये में बिकी थी जो अन्तराष्ट्रीय स्तर पर उस समय तक की सबसे महंगी भारतीय पेंटिंग थी।

आज भारतीय कला में सारी दुनिया की दिलचस्पी है और इस दिलचस्पी का एक बड़ा श्रेय तैयब मेहता को भी जाता है। जब क्रिस्टी जैसी कलादीर्घा ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उनकी कृतियों की नीलामी की तो भारतीय कला के लिए ये एक बड़ी बात थी। समकालीन भारतीय कला इतिहास में तैयब मेहता ही अकेले पेंटर थे जिनका काम इतने कीमतों में बिका।

प्रारंभिक जीवन

तैयब मेहता का जन्म 26 जुलाई 1925 को गुजरात के खेड़ा जिले में हुआ था। उनका पालन-पोषण मुंबई के क्रावफोर्ड मार्केट में दावूदी बोहरा समुदाय में हुआ था। सन 1947 में उन्होंने विभाजन के बाद हुए दंगों में मुंबई के मोहम्मद अली रोड पर एक व्यक्ति को पत्थर से मारे जाने की ह्रदय विदारक घटना देखी थी। इस घटना ने उनको इतना प्रभावित किया कि उनके कामों में इसकी झलक कहीं न कहीं हमें दिख ही जाती है।

तैयब मेहता ने प्रारंभ में कुछ समय के लिए मुंबई स्थित एक नामी फिल्म स्टूडियो ‘फेमस स्टूडियोज’ के लैब में फिल्म एडिटर का कार्य किया। बाद में उन्होंने मुंबई के सर जे.जे. स्कूल ऑफ़ आर्ट्स में दाखिला लिया और सन 1952 में यहाँ से डिप्लोमा ग्रहण किया। इसके बाद वे ‘बॉम्बे प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट्स ग्रुप’ के सदस्य बन गए। यह ग्रुप पश्चिम के आधुनिकतावादी शैली से प्रभावित था और तैयब के साथ-साथ उसमें एफ.एन. सौज़ा, एस.एच. रजा और एम.एफ. हुसैन जैसे महान कलाकार भी शामिल थे।

करियर

सन 1959 में तैयब लन्दन चले गए और 1964 तक वहीँ रहकर कार्य किया। सन 1968 में जब उन्हें जॉन डी रॉकफेलर फ़ेलोशिप मिल गयी तब वे न्यू यॉर्क चले गए। लन्दन प्रवास के दौरान उनकी कला फ़्रन्कोइस बेकन जैसे कलाकारों से प्रभावित हुई जबकि न्यू यॉर्क प्रवास के दौरान उनकी चित्रकारी में अतिसूक्ष्म्वाद देखने को मिला।

उन्होंने बॉम्बे के बांद्रा स्थित बूचड़खाने में ‘कूदाल’ नाम की एक शार्ट फिल्म भी बनाई जिसे सन 1970 में फिल्मफेयर क्रिटिक्स अवार्ड मिला।

सन 1984-85 के दौरान वे शान्तिनिकेतन में भी रहे जिसके बाद उनकी चित्रकारी में महत्वपूर्ण परिवर्तन देखने को मिला। इस दौरान उनके चित्रों की विषय-वस्तु ‘बंधे हुए सांड’ और ‘रिक्शापुलर्स’ थे। इसके बाद उन्होंने 1970 के दशक में ‘डायगनल’ श्रृंखला के चित्र बनाये। उन्होंने अंग विच्छेद वाली और गिरती आकृतियों का प्रयोग 70 के दशक में शुरू किया जो कला की दुनिया को उनका महत्वपूर्ण योगदान है।

सन 2002 में क्रिस्टी की नीलामी में जब उनकी एक पेंटिंग ‘सेलिब्रेशन’ लगभग 1.5 करोड़ रुपये में बिकी तब उस समय किसी भी भारतीय चित्रकार की यह सबसे महंगी पेंटिंग थी। सन 2005 में भारतीय कलादीर्घा ‘सैफ्रनआर्ट’ ने ऑनलाइन नीलामी में उनकी एक पेंटिंग ‘काली’ को 1 करोड़ रुपये में बेचा। जून 2008 में क्रिस्टी ने एक नीलामी में उनकी एक पेंटिंग को 20 लाख अमेरिकी डॉलर में बेचा। सन 2005 में उनकी एक पेंटिंग ‘जेस्चर’ 3.1 करोड़ रुपये में एक भारतीय रंजित मलकानी ने खरीदी। उस समय यह किसी भी भारतीय द्वारा किसी भी भारतीय समकालीन कला के नमूने को खरीदने के लिए सबसे ज्यादा रकम थी।

तैयब मेहता पहले ऐसे भारतीय समकालीन चित्रकार थे जिनकी पेंटिंग्स 10 लाख डॉलर या उससे अधिक कीमत में बेची गयीं। यह ऐसा समय था जिसके बाद पूरी दुनिया के कला प्रशंसक भारतीय कला और चित्रकारी में गहरी दिलचस्पी लेने लगे।

तैयब मेहता के करीबी कहते हैं कि वे अपनी कला के प्रति इतने समर्पित थे कि पूर्ण रूप से संतुष्ट न होने तक अपनी पेंटिंग्स को कला दीर्घाओं में भेजने से कतराते थे। उनके अन्दर सृजनात्मकता की एक जिद थी जिसकी ख़ातिर उन्होंने कई कैनवस नष्ट कर दिए। वे मानते थे कि किसी भी कला को सार्वजनिक होने से पहले कलाकार को यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए की उसमें कोई खोट नहीं रह गया हो।

व्यक्तिगत जीवन

तैयब मेहता का विवाह सकीना से हुआ था। उन्होंने अपने जीवन का ज्यादातर समय मुंबई में बिताया। मुंबई के अलावा वे लन्दन, न्यू यॉर्क और शान्तिनिकेतन में भी रहे।

उनका निधन 2 जुलाई 2009 को ह्रदय गति रुक जाने के कारण मुंबई के एक अस्पताल में हुआ। वे अपने पीछे अपनी पत्नी, एक पुत्र (युसूफ) और पुत्री (हिमानी) छोड़ गए।

पुरस्कार और सम्मान

   सन 1968 में उन्हें ‘जॉन डी रॉकफेलर फ़ेलोशिप’ प्रदान की गयी
   सन 1968 में ही दिल्ली में पेंटिंग के लिए एक स्वर्ण पदक प्रदान किया गया
   सन 1974 में फ्रांस में आयोजित ‘इंटरनेशनल फेस्टिवल ऑफ़ पेंटिंग’ में उन्हें स्वर्ण पदक प्रदान किया गया
   सन 1988 में मध्य प्रदेश सरकार ने उन्हें ‘कालिदास सम्मान’ से नवाजा
   सन 2005 में उन्हें कला, संस्कृति और शिक्षा के लिए दयावती मोदी फाउंडेशन पुरस्कार दिया गया
   सन 2007 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया
   उनकी शार्ट फिल्म ‘कूदाल’ को सन 1970 में फिल्मफेयर क्रिटिक्स अवार्ड दिया गया