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अब्दुल क़ावी देसनावी की पढ़ाई [[मुंबई]] में हुई। उनकी पढ़ाई भी सेंट जेवियर्स कॉलेज से हुई। उर्दू से जुड़ाव भी ग्लैमर की दुनिया वाले इसी शहर में रहने के दौरान हुआ। अब्दुल क़ावी क्योंकि बिहार के देसना के रहने वाले थे, इसलिए उनके नाम के आगे अब्दुल क़ावी देसनावी जुड़ गया, जो उनकी पहचान बना रहा। हालांकि उनके चाचा सुलेमान [[भोपाल]] में रहते थे, ऐसे में अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने अपना रुख मुंबई से भोपाल की ओर कर लिया। इसके बाद वह भोपाल के मशहूर सेफिया कॉलेज में उर्दू विषय के प्रोफेसर हो गए।<ref>{{cite web |url=http://www.angwaal.com/national/google-honours-urdu-author-abdul-qavi-desnavi-as-doodle-22373|title=जानिए गूगल ने अपने डूडल में किस शायर को दी जगह, कौन हैं ये शख्सियत |accessmonthday=01 नवम्बर |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=angwaal.com |language=हिंदी }}</ref>
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==लेखन कार्य==
==लेखन कार्य==
अब्दुल क़ावी देसनावी को भोपाल से इस कदर प्यार हो गया था कि उन्होंने भोपाल पर रिसर्च कर डाली। उन्होंने अपने रिसर्च को दो किताबों की शक्ल दी। पहली किताब का नाम था 'अल्लामा इकबाल और भोपाल', दूसरी का नाम था 'गालिब भोपाल'। अब्दुल क़ावी देसनावी ने [[उर्दू साहित्य]] पर कई प्रसिद्ध किताबें लिखी थीं। उनके सबसे बेहतरीन और प्रसिद्ध कार्यों में [[मौलाना अबुल कलाम आज़ाद]], [[मिर्ज़ा ग़ालिब]] और अल्लामा मोहम्मद इकबाल की आत्मकथाएँ हैं। उनके इन कार्यों के लिए उन्हें कई बार पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था। सन [[2000]] में अब्दुल क़ावी देसनावी की एक किताब 'हयात-ए-अबुल-कलाम-आज़ाद' प्रकाशित हुई थी। यह मौलाना अबुल कलाम आज़ाद पर लिखी गयी थी और इस किताब के कार्य को देसनावी जी के बेहतरीन कार्यों में से एक माना जाता है तथा इसी पुस्तक से वह और अधिक प्रचलित हो गए थे।
[[चित्र:Abdul-Qavi-Desnavi-Google-Doodle.jpg|left|thumb|250px|अब्दुल क़ावी देसनावी पर गूगल का डूडल]]
अब्दुल क़ावी देसनावी को भोपाल से इस कदर प्यार हो गया था कि उन्होंने भोपाल पर रिसर्च कर डाली। उन्होंने अपने रिसर्च को दो किताबों की शक्ल दी। पहली किताब का नाम था 'अल्लामा इकबाल और भोपाल', दूसरी का नाम था 'गालिब भोपाल'। अब्दुल क़ावी देसनावी ने [[उर्दू साहित्य]] पर कई प्रसिद्ध किताबें लिखी थीं। उनके सबसे बेहतरीन और प्रसिद्ध कार्यों में [[मौलाना अबुल कलाम आज़ाद]], [[मिर्ज़ा ग़ालिब]] और अल्लामा मोहम्मद इकबाल की आत्मकथाएँ हैं। उनके इन कार्यों के लिए उन्हें कई बार पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था।
 
 
सन [[2000]] में अब्दुल क़ावी देसनावी की एक किताब 'हयात-ए-अबुल-कलाम-आज़ाद' प्रकाशित हुई थी। यह मौलाना अबुल कलाम आज़ाद पर लिखी गयी थी और इस किताब के कार्य को देसनावी जी के बेहतरीन कार्यों में से एक माना जाता है तथा इसी पुस्तक से वह और अधिक प्रचलित हो गए थे।
==सम्मान तथा पुरस्कार==
==सम्मान तथा पुरस्कार==
*[[1998]] में 'परवेज शाहिदी पुरस्कार'
*[[1998]] में 'परवेज शाहिदी पुरस्कार'

07:37, 1 नवम्बर 2017 का अवतरण

अब्दुल क़ावी देसनावी
अब्दुल क़ावी देसनावी
अब्दुल क़ावी देसनावी
पूरा नाम अब्दुल क़ावी देसनावी
जन्म 1 नवम्बर, 1930
जन्म भूमि नालन्दा, बिहार
मृत्यु 7 जुलाई, 2011
मृत्यु स्थान भोपाल, मध्य प्रदेश
पालक माता-पिता पिता- सैयद मोहम्मद सईद रज़ा
कर्म भूमि भारत
मुख्य रचनाएँ 'हयात-ए-अबुल-कलाम-आज़ाद'
पुरस्कार-उपाधि 'परवेज शाहिदी पुरस्कार', 'वरिष्ठ फैलोशिप', 'शिब्ली पुरस्कार'
प्रसिद्धि उर्दू साहित्यकार
नागरिकता भारतीय
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

अब्दुल क़ावी देसनावी (अंग्रेज़ी: Abdul Qavi Desnavi, जन्म- 1 नवम्बर, 1930, नालन्दा; मृत्यु- 7 जुलाई, 2011, भोपाल) प्रसिद्ध भारतीय, जिन्होंने उर्दू भाषा के लेखक के रूप में अपनी पहचान बनाई। उनको साहित्य का गज़ब का ज्ञान था, यही कारण है कि वे भारत तथा उर्दू भाषा की दुनिया की जानी मानी हस्ती थे। अब्दुल क़ावी देसनावी न केवल एक प्रसिद्ध लेखक बल्कि एक उर्दू शायर, आलोचक और भाषाविद भी थे अर्थात उनको भाषा का काफ़ी ज्ञान था।

परिचय

अब्दुल क़ावी देसनावी का जन्म 1 नवम्बर, 1930 को बिहार राज्य के नालन्दा ज़िले के देसना गाँव में हुआ था। उनके पिता सैयद मोहम्मद सईद रज़ा उर्दू, अरबी तथा फ़ारसी भाषा के प्रोफेसर थे तथा वे सेंट जेवियर्स कॉलेज, मुंबई में पढ़ाते थे। अब्दुल क़ावी देसनावी के दो भाई भी थे। उनके नाम प्रो. सैयद मोही रज़ा और सईद अब्दुल वली देसनावी थे।[1]

अब्दुल क़ावी देसनावी की पढ़ाई मुंबई में हुई। उनकी पढ़ाई भी सेंट जेवियर्स कॉलेज से हुई। उर्दू से जुड़ाव भी ग्लैमर की दुनिया वाले इसी शहर में रहने के दौरान हुआ। अब्दुल क़ावी क्योंकि बिहार के देसना के रहने वाले थे, इसलिए उनके नाम के आगे अब्दुल क़ावी देसनावी जुड़ गया, जो उनकी पहचान बना रहा। हालांकि उनके चाचा सुलेमान भोपाल में रहते थे, ऐसे में अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने अपना रुख मुंबई से भोपाल की ओर कर लिया। इसके बाद वह भोपाल के मशहूर सेफिया कॉलेज में उर्दू विषय के प्रोफेसर हो गए।[2]

लेखन कार्य

अब्दुल क़ावी देसनावी पर गूगल का डूडल

अब्दुल क़ावी देसनावी को भोपाल से इस कदर प्यार हो गया था कि उन्होंने भोपाल पर रिसर्च कर डाली। उन्होंने अपने रिसर्च को दो किताबों की शक्ल दी। पहली किताब का नाम था 'अल्लामा इकबाल और भोपाल', दूसरी का नाम था 'गालिब भोपाल'। अब्दुल क़ावी देसनावी ने उर्दू साहित्य पर कई प्रसिद्ध किताबें लिखी थीं। उनके सबसे बेहतरीन और प्रसिद्ध कार्यों में मौलाना अबुल कलाम आज़ाद, मिर्ज़ा ग़ालिब और अल्लामा मोहम्मद इकबाल की आत्मकथाएँ हैं। उनके इन कार्यों के लिए उन्हें कई बार पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था।


सन 2000 में अब्दुल क़ावी देसनावी की एक किताब 'हयात-ए-अबुल-कलाम-आज़ाद' प्रकाशित हुई थी। यह मौलाना अबुल कलाम आज़ाद पर लिखी गयी थी और इस किताब के कार्य को देसनावी जी के बेहतरीन कार्यों में से एक माना जाता है तथा इसी पुस्तक से वह और अधिक प्रचलित हो गए थे।

सम्मान तथा पुरस्कार

  • 1998 में 'परवेज शाहिदी पुरस्कार'
  • 1979 में 'वरिष्ठ फैलोशिप'
  • 1957 में 'शिब्ली पुरस्कार'

मृत्यु

अब्दुल क़ावी देसनावी का निधन 7 जुलाई, 2011 को भोपाल में हुआ। देसनावी ने लगभग अपना सारा जीवन भोपाल में बिता दिया था। उनकी मौत के बाद बिहार के लोग अकसर ये बात कहते हैं कि भोपाल वालों ने देसनावी को उनसे छीन लिया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अब्दुल क़ावी देसनावी (हिंदी) hindinext.com। अभिगमन तिथि: 01 नवम्बर, 2011।
  2. जानिए गूगल ने अपने डूडल में किस शायर को दी जगह, कौन हैं ये शख्सियत (हिंदी) angwaal.com। अभिगमन तिथि: 01 नवम्बर, 2011।

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