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खास बात यह है कि गिरीश की तकनीकी से पारंपरिक पुलों की तुलना में सिर्फ 10 फीसद की लागत में ही पुल का निर्माण बड़े ही कम समय में हो जाता है। प्रतीक के तौर पर अत्यधिक दुर्गम पश्चिमी घाट में उनके बनाए पुल लोगों के लिए काफी मददगार साबित हुए हैं।  
खास बात यह है कि गिरीश की तकनीकी से पारंपरिक पुलों की तुलना में सिर्फ 10 फीसद की लागत में ही पुल का निर्माण बड़े ही कम समय में हो जाता है। प्रतीक के तौर पर अत्यधिक दुर्गम पश्चिमी घाट में उनके बनाए पुल लोगों के लिए काफी मददगार साबित हुए हैं।  
 
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11:58, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण

गिरीश भारद्वाज
गिरीश भारद्वाज
गिरीश भारद्वाज
पूरा नाम गिरीश भारद्वाज
अन्य नाम सेतु बंधु, ब्रिज मैन
जन्म 2 मई, 1950
जन्म भूमि सुल्लिया, कर्नाटक
कर्म भूमि भारत
शिक्षा इंजीनियरिंग
विद्यालय पी. ए. एस. कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग, मंड्या
पुरस्कार-उपाधि पद्मश्री (2017)
विशेष योगदान पारंपरिक पुलों की तुलना में बेहद कम लागत पर क़रीब 120 से ज़्यादा झूलते पुलों का निर्माण किया।
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी भारत के दूरदराज के गांवों में कम लागत और पर्यावरण के अनुकूल सौ से अधिक पुलों का निर्माण करने वाले अभियंता हैं। इनके इस योगदान के कारण इन्हें पुल बंधु के नाम से भी जाना जाता है।
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गिरीश भारद्वाज (अंग्रेज़ी: Girish Bharadwaj, जन्म- 2 मई, 1950, सुल्लिया, कर्नाटक) भारतीय सामाजिक कार्यकर्ता एवं याँत्रिक अभियंता हैं, उन्हें भारत के दूरदराज के गांवों में कम लागत और पर्यावरण के अनुकूल 127 पुलों के निर्माण के लिए भारत के 'सेतु बंधु' और 'ब्रिजमैन' के नाम से जाना जाता है। उन्हें 2017 में भारत सरकार द्वारा पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।[1]

परिचय

गिरीश का जन्म 2 मई, 1950 को सुल्लिया, कर्नाटक में हुआ था। उन्होंने 1973 में पी. ए. एस. कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग, मंड्या से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त की थी।

पुल निर्माण

यांत्रिक इंजीनियर गिरीश भारद्वाज ने भारत के उन पिछड़े इलाकों में 100 से ज्यादा झूलते पुल बनाए हैं जहां सरकारी उदासीनता या अन्य किसी कारण से पुल नहीं बन सके थे। इस वजह से इन इलाकों के लोगों के जीवन स्तर पर खासा प्रभाव पड़ रहा था, जिसे गिरीश ने करीब से महसूस किया। उन्होंने ऐसे लोगों की समस्या और पीड़ा को समझकर अपने ज्ञान का सदुपयोग किया और ऐसे क्षेत्रों में सैकड़ों पुलों का निर्माण किया। इसी वजह से आज उन्हें 'पुल बंधु' के रूप में भी जाना जाता है।[1]

वे जिस क्षेत्र में अपना कॅरियर बनाना चाहते थे, उसमें नहीं जा सके और उन्होंने कारोबार करने का निश्चय किया। इसी बीच गिरीश के एक सरकारी अधिकारी मित्र, जो उनकी प्रतिभा से परिचित थे, ने उनसे एक गांव को जोड़ने के लिए पुल बनाने में मदद मांगी। गिरीश ने इसे स्वीकार किया और कुछ दिन में रस्सी एवं लकड़ी को जोड़कर एक पैदल यात्री पुल का निर्माण कर डाला। इसे सहारा देने के लिए उन्होंने स्टील और लोहे की रॉडों का प्रयोग किया जिसके सहारे लकड़ी टिकी रही। इसके बाद से तो गिरीश का यही ध्येय हो गया। वे धीरे-धीरे उन गांवों को मुख्य धारा से जोड़ने लगे जहां पुल नहीं होने की वजह से स्थानीय लोगों के जीवन स्तर पर खासा प्रभाव पड़ रहा था।

खास बात यह है कि गिरीश की तकनीकी से पारंपरिक पुलों की तुलना में सिर्फ 10 फीसद की लागत में ही पुल का निर्माण बड़े ही कम समय में हो जाता है। प्रतीक के तौर पर अत्यधिक दुर्गम पश्चिमी घाट में उनके बनाए पुल लोगों के लिए काफी मददगार साबित हुए हैं।

सम्मान एवं पुरस्कार

गिरीश भारद्वाज को उनके विशेष योगदान के लिए वर्ष 2017 में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किया गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 सहजता का सम्मान (हिंदी) panchjanya.com। अभिगमन तिथि: 07 नवम्बर, 2017।

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