"प्रयोग:रिंकू4": अवतरणों में अंतर
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रिंकू बघेल (वार्ता | योगदान) No edit summary |
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{तटस्थता विधि से उपभोक्ता के संतुलन निर्धारण के लिए उदासीनता वक्र का मूल बिंदु की ओर नतोदर होना आवश्यक है, यह कथन है- (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-19,प्रश्न-51 | |||
|type="()"} | |||
-सही | |||
+गलत | |||
-सही और गलत | |||
-न तो सही, न गलत | |||
||तटस्थता विधि से उपभोक्ता के संतुलन निर्धारण के लिए उदासीनता वक्र अथवा अनधिमान वक्र मूल बिंदु की ओर उन्नतोदार होते हैं न कि नतोदार। अत: प्रश्न में उल्लिखित कथन गलत है। अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य- अनधिमान वक्र विश्लेषण कुछ मान्यताओं पर आधारित है- 1. उपभोक्ता विवेकपूर्णता व्यवहार करेगा। 2. उपयोगिता का क्रमवाचक माप संभव है। 3. अनधिमान वक्र विश्लेषण निर्बल क्रमबद्धता पर आधारित है। निर्बल क्रमबद्धता से तात्पर्य उपभोक्ता जब दो या दो से अधिक संयोग (वस्तुओं का) एक ही स्थान पर प्राप्त हो, तो उपभोक्ता उनके बीच चुनाव करने में तटस्थ हो जाता है। 4. अनधिमान वक्र प्रतिस्थापन की सीमांत दर की घटती हुई मान्यता पर आधारित होती है। | |||
{एक सीधी रेखा वाले मांग वक्र के मध्य मांग की लोच निम्न में से किसके बराबर है? (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-34,प्रश्न-123 | |||
|type="()"} | |||
-2 | |||
-1/2 | |||
+1 | |||
-4 | |||
||एक सामान्य मांग वक्र, जो बांये से दांये नीचे के ओर गिरती हुई होती है, के मध्य, मांग की लोच इकाई के बराबर होती है। नोट: मांग के वक्र के अन्य रूपों पर मांग की लोच अलग-अलग हो सकती है लेकिन वह विशेष परिस्थितियों पर निर्भर करेगा। | |||
{निम्न में से अल्पाधिकार की स्थिति कौन-सी है? (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-68,प्रश्न-101 | |||
|type="()"} | |||
-अनेक क्रेता तथा अनेक विक्रेता | |||
-एक क्रेता तथा अनेक विक्रेता | |||
-एक विक्रेता तथा अनेक क्रेता | |||
+कुछ विक्रेता तथा अनेक क्रेता | |||
{रिकार्डियन सिद्धांत के अनुसार निम्न में से कौन सही है? (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-78,प्रश्न-46 | |||
|type="()"} | |||
-लगान, सीमांत भूमि पर उत्पादन की लागत के बराबर है | |||
+लगान, उत्पादन लागत के ऊपर शुद्ध अतिरेक है | |||
-लगान, एक उत्पादन कारक की अवसर लागत के बराबर है | |||
-दोनों के मध्य विपरीत संबंध होता है | |||
||रिकार्डियन सिद्धांत के अनुसार लगान, उत्पादन लागत के ऊपर शुद्ध अतिरेक होता है। अत: लगान= कुल आय (TR) - कुल लागत (TC); लगान= औसत आय (AR) - औसत लागत (AC) | |||
{दो उदासीन वक्र 1C1 और 1C2 एक-दूसरे को नही काट सकते क्योंकि- (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-19,प्रश्न-52 | |||
|type="()"} | |||
1C<sub>1</sub> मूल बिन्दू से नतोदर होता है | |||
-1C<sub>2</sub> मूल बिंदु से नतोदर होता है | |||
+1C<sub>1</sub> और 1C<sub>2</sub> संतोष के विभिन्न स्तरों को व्यक्त करते हैं | |||
-1C<sub>1</sub> और 1C<sub>2</sub> समानांतर नहीं होते हैं | |||
||दो अनधिमान वक्र एक-दूसरे को न काट सकते हैं और न एक-दूसरे को स्पर्श कर सकते हैं क्योंकि प्रत्येक अनधिमान वक्र संतुष्टि के एक निश्चित स्तर को प्रकट करता है, इसलिए ऊपर वाला वक्र नीचे चक्र की अपेक्षा अधिक संतुष्टि का स्तर व्यक्त करता है। '''अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य'''- अनधिमान वक्र की अन्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं- 1. अनधिमान वक्रों की ढाल ऋणात्मक होती है अर्थात ये ऊपर से नीचे की ओर दाहिनी ओर गिरते हुए होते हैं। 2. अनधिमान वक्र मूल बिंदु की ओर उन्नतोदार होते हैं। यह अनधिमान वक्र की सबसे प्रमुख विशेषता है। समान संतुष्टि के स्तर पर बने रहने के लिए यह आवश्यक है कि y के लिए x की प्रतिस्थापन की सीमांत दर क्रमश: घटती जाए। 3. निम्नतर अनधिमान वक्र की तुलना में उच्चतर अनधिमान वक्र अपेक्षाकृत अधिक संतुष्टि प्रदर्शित करेगा। | |||
{निम्न में कौन सही है? (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-34,प्रश्न-124 | |||
|type="()"} | |||
+सामान्य वस्तुओं के संबंध में आय प्रभाव धनात्मक होता है। | |||
-निम्न वस्तुओं के संबंध में आय प्रभाव ऋणात्मक होता है। | |||
-श्रेष्ठ वस्तुओं के संबंध में आय प्रभाव शून्य होता है। | |||
-गिफिन वस्तुओं के संबंध में आय प्रभाव धनात्मक होता है। | |||
||उपभोक्ता की आय बढ़ने पर सामान्य वस्तुओं के संबंध में आय प्रभाव धनात्मक होता है लेकिन यदि मूल्य में कमी होने के फलस्वरूप आय बढ़े, तब गिफिन वस्तुओं के संबंध में आय प्रभाव धनात्मक होगा। '''अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य'''- हिक्सीयन विधि के अनुसार, मूल्य जन्यआय प्रभाव होने पर- मूल्य प्रभाव= आय प्रकाश+प्रतिस्थापन प्रभाव। 1. सामान्य वस्तुओं के संदर्भ में आय प्रभाव ऋणात्मक होते हैं, जिसके कारण मूल्य प्रभाव भी ऋणात्मक होता है। 2. निकृष्ट कोटि की वस्तुओं में आय प्रभाव तथा कीमत प्रभाव एवं प्रतिस्थान प्रभाव ऋणात्मक होते हैं। 3. गिफिन वस्तुओं के संबंध में आय प्रभाव तथा मूल्य प्रभाव धनात्मक एवं प्रतिस्थापन प्रभाव ऋणात्मक होता है। | |||
{'कार्टेल' किस बाज़ार का भाग है? (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-68,प्रश्न-102 | |||
|type="()"} | |||
-एकाधिकार | |||
-पूर्ण प्रतियोगिता | |||
+अल्पाधिकार | |||
-एकाधिकारीकृत प्रतियोगिता | |||
||कार्टेल अल्पाधिकार बाज़ार का एक भाग है। जब एक उद्योग की विभिन्न अल्पाधिकारी फर्में कीमत-युद्ध अथवा गला-काट प्रतियोगिता से बचने तथा एक साथ मिलकर अपने हितों की रक्षा के लिए आपस में एक औपचारिक समझौता करती हैं तो उसे 'कार्टेल' कहा जाता है। | |||
{लगान के प्रतिष्ठित सिद्धांत के अनुसार निम्न में से कौन का कथन सत्य है? (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-78,प्रश्न-47 | |||
|type="()"} | |||
-भूमि भिन्न-भिन्न प्रकार की पाई जाती है। | |||
-लगान सीमांत भूमि और उसके ऊपर प्राप्त किया जाता है। | |||
-भूमि की अलग-अलग उर्वरता होती है। | |||
+उपर्युक्त सभी। | |||
||लगान के प्रतिष्ठित सिद्धांत के अनुसार (रिकार्डो के अनुसार), लगान भूमि की मौलिक एवं अविनाशी शक्तियों के कारण उत्पन्न होता है। लगान की माप केवल सीमांत भूमि के आय के आधार पर भूमि की उर्वरता अलग-अलग होती है। भूमि भिन्न-भिन्न प्रकार की पाए जाती है। | |||
{अल्पकालीन साम्य की अवस्था में पूर्ण प्रतियोगी फर्म- (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-69,प्रश्न-110 | |||
|type="()"} | |||
-लाभ कमा सकती है। | |||
-हानि सहन कर सकती है। | |||
-न लाभ न हानि की दशा में हो सकती है। | |||
+उपरोक्त सभी | |||
||अल्पकालीन वह समय होता है जिसमें फर्म के लिए परिवर्तन की संभावनाएं बहुत कम होती हैं। अत: अल्पकालीन साम्य की अवस्था में पूर्ण प्रतियोगी फर्म असामान्य लाभ, असामान्य हानि, सामान्य लाभ (न लाभ, न हानि) की दशा में अपने आप को बाज़ार में कायम रख सकती है। | |||
{जब किसी को क्षति पहुँचाए बिना किसी को अच्छा बनाना संभव हो, तो ऐसी स्थिति क्या कहलाती है? (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-79,प्रश्न-54 | |||
|type="()"} | |||
-संभाविता अनुकूलतम | |||
+पैरेटो अनुकूलतम | |||
-जनसंख्या अनुकूलतम | |||
-प्रदूषण अनुकूलतम | |||
</quiz> | </quiz> | ||
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12:14, 9 दिसम्बर 2017 का अवतरण
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