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-1769 ई.
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||[[चित्र:Tipu-Sultan-1.jpg|right|100px|टीपू सुल्तान]] '[[टीपू सुल्तान]]' [[भारतीय इतिहास]] में 'शेर-ए-मैसूर' के नाम से प्रसिद्ध है। वह प्रसिद्ध योद्धा [[हैदर अली]] का पुत्र था। हैदर अली की मृत्यु के बाद पुत्र टीपू सुल्तान ने [[मैसूर]] की सेना की कमान संभाली थी। टीपू अपने पिता की ही भांति योग्य एवं पराक्रमी था। '[[मैसूर युद्ध तृतीय|मैसूर की तीसरी लड़ाई]]' में भी जब [[अंग्रेज़]] [[टीपू सुल्तान]] को नहीं हरा पाए, तो उन्होंने [[मैसूर]] के इस शेर से 'मेंगलूर की संधि' नाम से एक समझौता किया। लेकिन 'फूट डालो और शासन करो' की नीति चलाने वाले अंग्रेज़ों ने संधि करने के कुछ समय बाद ही टीपू से गद्दारी कर डाली। [[ईस्ट इंडिया कंपनी]] ने [[हैदराबाद]] के साथ मिलकर चौथी बार टीपू पर ज़बर्दस्त हमला किया और आख़िरकार '[[4 मई]], सन् 1799 ई.' को मैसूर का शेर [[श्रीरंगपट्टनम]] की रक्षा करते हुए शहीद हुआ।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[टीपू सुल्तान]]]
||[[चित्र:Tipu-Sultan-1.jpg|right|100px|टीपू सुल्तान]] '[[टीपू सुल्तान]]' [[भारतीय इतिहास]] में 'शेर-ए-मैसूर' के नाम से प्रसिद्ध है। वह प्रसिद्ध योद्धा [[हैदर अली]] का पुत्र था। हैदर अली की मृत्यु के बाद पुत्र टीपू सुल्तान ने [[मैसूर]] की सेना की कमान संभाली थी। टीपू अपने पिता की ही भांति योग्य एवं पराक्रमी था। '[[मैसूर युद्ध तृतीय|मैसूर की तीसरी लड़ाई]]' में भी जब [[अंग्रेज़]] [[टीपू सुल्तान]] को नहीं हरा पाए, तो उन्होंने [[मैसूर]] के इस शेर से 'मेंगलूर की संधि' नाम से एक समझौता किया। लेकिन 'फूट डालो और शासन करो' की नीति चलाने वाले अंग्रेज़ों ने संधि करने के कुछ समय बाद ही टीपू से गद्दारी कर डाली। [[ईस्ट इंडिया कंपनी]] ने [[हैदराबाद]] के साथ मिलकर चौथी बार टीपू पर ज़बर्दस्त हमला किया और आख़िरकार '[[4 मई]], सन् 1799 ई.' को मैसूर का शेर [[श्रीरंगपट्टनम]] की रक्षा करते हुए शहीद हुआ।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[टीपू सुल्तान]]]
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