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'''शिव कुमार बटालवी''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Shiv Kumar Batalvi'', जन्म- [[23 जुलाई]], [[1936]]; मृत्यु- [[6 मई]], [[1973]]) [[पंजाबी भाषा]] के एक विख्यात [[कवि]] थे, जो उन रोमांटिक कविताओं के लिए सबसे ज्यादा जाने जाते हैं, जिनमें भावनाओं का उभार, करुणा, जुदाई और प्रेमी के दर्द का बखूबी चित्रण है। शिव कुमार बटालवी ऐसे शायर और कवि थे जो एक छोटी-सी जिंदगी में इतना नाम बना गये कि आज [[भारत]] में हर नौजवां के सीने में धड़कते हैं। उनके गीतों में ‘बिरह की पीड़ा’ इस कदर थी कि उस दौर की प्रसिद्ध कवयित्री [[अमृता प्रीतम]] ने उन्हें '''बिरह का सुल्तान''' नाम दे दिया। शिव कुमार बटालवी यानी [[पंजाब]] का वह शायर, जिसके गीत [[हिंदी]] में न आकर भी वह बहुत लोकप्रिय हो गया। उसने जो गीत अपनी गुम हुई महबूबा के लिए बतौर इश्तहार लिखा था, वो जब फ़िल्मों तक पहुंचा तो मानो हर कोई उसकी महबूबा को ढूंढ़ते हुए गा रहा था- "इक कुड़ी जिहदा नाम मोहब्बत गुम है"।
'''शिव कुमार बटालवी''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Shiv Kumar Batalvi'', जन्म- [[23 जुलाई]], [[1936]]; मृत्यु- [[6 मई]], [[1973]]) [[पंजाबी भाषा]] के एक विख्यात [[कवि]] थे, जो उन रोमांटिक कविताओं के लिए सबसे ज्यादा जाने जाते हैं, जिनमें भावनाओं का उभार, करुणा, जुदाई और प्रेमी के दर्द का बखूबी चित्रण है। शिव कुमार बटालवी ऐसे शायर और कवि थे जो एक छोटी-सी जिंदगी में इतना नाम बना गये कि आज [[भारत]] में हर नौजवां के सीने में धड़कते हैं। उनके गीतों में ‘बिरह की पीड़ा’ इस कदर थी कि उस दौर की प्रसिद्ध कवयित्री [[अमृता प्रीतम]] ने उन्हें '''बिरह का सुल्तान''' नाम दे दिया। शिव कुमार बटालवी यानी [[पंजाब]] का वह शायर, जिसके गीत [[हिंदी]] में न आकर भी वह बहुत लोकप्रिय हो गया। उसने जो गीत अपनी गुम हुई महबूबा के लिए बतौर इश्तहार लिखा था, वो जब फ़िल्मों तक पहुंचा तो मानो हर कोई उसकी महबूबा को ढूंढ़ते हुए गा रहा था- "इक कुड़ी जिहदा नाम मोहब्बत गुम है"।
==परिचय==
==परिचय==
शिव कुमार बटालवी की पैदाइश बड़ा पिंड लोहतियाँ, सियालकोट में 23 जुलाई, 1936 को हुई थी, जो कि अब [[पाकिस्तान]] में है। बाद में वह अपने ख़ानदान के साथ [[भारत]] आ गए और बटाला में क़याम-पज़ीर हो गए। उन्होंने अपनी शुरुआती तालीम बटाला में ही हासिल की। उनके बचपन के इन वाक़िआत ने शिव कुमार बटालवी के अंदर के शायर को तामीर किया। हिजरत के दु:ख के साथ-साथ पंजाब के गाँवों की ज़िंदगी, क़िस्से-कहानियों की रवायत, उनके आस-पास की औरतों की ज़िंदगी ने उनकी ज़हनी साख़्त को तराशा। ये सब चीज़ें उनकी शायरी में जगह-जगह दिखाई भी देती हैं।
शिव कुमार बटालवी की पैदाइश बड़ा पिंड लोहतियाँ, सियालकोट में 23 जुलाई, 1936 को हुई थी, जो कि अब [[पाकिस्तान]] में है। बाद में वह अपने ख़ानदान के साथ [[भारत]] आ गए और बटाला में क़याम-पज़ीर हो गए। उन्होंने अपनी शुरुआती तालीम बटाला में ही हासिल की। उनके बचपन के इन वाक़िआत ने शिव कुमार बटालवी के अंदर के शायर को तामीर किया। हिजरत के दु:ख के साथ-साथ पंजाब के गाँवों की ज़िंदगी, क़िस्से-कहानियों की रवायत, उनके आस-पास की औरतों की ज़िंदगी ने उनकी ज़हनी साख़्त को तराशा। ये सब चीज़ें उनकी शायरी में जगह-जगह दिखाई भी देती हैं।<ref name="pp">{{cite web |url=https://blog.rekhta.org/sultan-of-birha-shiv-kumar-batalvi/ |title=शिव को बिरहा का सुल्तान क्यों कहते हैं?|accessmonthday=21 सितंबर|accessyear=2021 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=blog.rekhta.org |language=हिंदी}}</ref>


शिव कुमार बटालवी की ज़बान ठेठ पंजाबी है और उनकी शायरी में नज़र आने वाले इस्तिआरे भी तमाम गाँव की ज़िंदगी की तरफ़ झुकाव रखते हैं, उनकी शायरी में पंजाबी सूफ़ी शायरों की गूँज सुनाई देती है लेकिन इससे ये मुराद बिलकुल नहीं है कि उन्हें आलमी अदब से शग़फ़ नहीं था। शिव कुमार बटालवी ने [[उर्दू]] के साथ-साथ रूसी और दीगर ममालिक के अदब को ग़ौर से पढ़ा था।
शिव कुमार बटालवी की ज़बान ठेठ पंजाबी है और उनकी शायरी में नज़र आने वाले इस्तिआरे भी तमाम गाँव की ज़िंदगी की तरफ़ झुकाव रखते हैं, उनकी शायरी में पंजाबी सूफ़ी शायरों की गूँज सुनाई देती है लेकिन इससे ये मुराद बिलकुल नहीं है कि उन्हें आलमी अदब से शग़फ़ नहीं था। शिव कुमार बटालवी ने [[उर्दू]] के साथ-साथ रूसी और दीगर ममालिक के अदब को ग़ौर से पढ़ा था।
==शिक्षा==
शिव कुमार बटालवी को गांव से बाहर पढ़ने भेजा गया था। पर असल में बाल बटालवी तो गांव की [[मिट्टी]] में ही किसी पौधे की तरह जड़े जमाए उग गया। जो बाहर गया तो बस एक प्रेत था। जो अपनी मुक्ति के लिए भटक रहा था। उनका गांव छूट जाना उन पर पहला प्रहार था। जिसका गहरा जख्म उन्हें सदैव पीड़ा देता रहा। आगे की पढ़ाई के लिए उनको कादियां के एस. एन. कॉलेज के कला विभाग में भेजा गया हालांकि दूसरे साल ही उन्होंने उसे बीच में छोड़ दिया। उसके बाद उन्हें [[हिमाचल प्रदेश]] के बैजनाथ के एक स्कूल में इंजीनियरिंग की पढ़ाई हेतु भेजा गया। पर पिछली बार की तरह ही उन्होंने उसे भी बीच में छोड़ दिया। इसके बाद उन्होंने नाभा के सरकारी कॉलेज में अध्ययन किया। उनका बार-बार बीच में ही अभ्यास छोड़ देना, उनके भीतर पल रही अराजकता और अनिश्चितता का बीजारोपण था। जो कुछ ही सालों बाद उन के लिए मृत्यु का वृक्ष बन जाना था। [[पिता]] शिव कुमार बटालवी को कुछ बनता हुआ देखना चाहते थे। इसलिए गांव से दूर पढ़ाई के लिए उनको भेज दिया। उसके चलते फिर कभी पिता-पुत्र में नहीं बनी।
==युवती से प्रेम==
किशोरावस्था में उन्हें पास ही के किसी गांव के मेले में एक लड़की से प्यार हो गया। उस लड़की का नाम मैना था जिसे खोजते हुए बटालवी उसके गांव तक गये थे। उस लड़की के भाई से दोस्‍ती गांठ ली थी और दोस्त से मिलने के नाम पर वो रोज मैना के गांव चले जाते; लेकिन मैना कुछ ही दिन में बीमार हुई और चल बसी। उसकी याद में फिर शिव कुमार बटालवी ने एक लंबी [[कविता]] लिखी 'मैना'। युवावस्था में उन्हें फिर पंजाबी लेखक गुरबख्श सिंह प्रीतलड़ी की बेटी से प्यार हो गया। दोनों के बीच जाति भेद होने के कारण उनका [[विवाह]] नहीं हो पाया और लड़की की शादी किसी ब्रिटिश नागरिक से करा दी गई। इस "गुम हुई लड़की" पर शिव कुमार बटालवी ने 'इश्तेहार' शीर्षक से कविता लिखी-
<center><poem>गुम है गुम है गुम है
इक कुड़ी जिहदा नाम मोहब्बत
गुम है गुम है गुम है
साद मुरादी सोहणी फब्बत
गुम है गुम है गुम है
सूरत उसदी परियां वरगी
सीरत दी ओह मरियम लगदी
हसदी है तां फुल्ल झड़दे ने
तुरदी है तां ग़ज़ल है लगदी
लम्म सलम्मी सरूं क़द दी
उम्र अजे है मर के अग्ग दी</poem></center>


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==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==


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07:40, 21 सितम्बर 2022 का अवतरण

शिव कुमार बटालवी (अंग्रेज़ी: Shiv Kumar Batalvi, जन्म- 23 जुलाई, 1936; मृत्यु- 6 मई, 1973) पंजाबी भाषा के एक विख्यात कवि थे, जो उन रोमांटिक कविताओं के लिए सबसे ज्यादा जाने जाते हैं, जिनमें भावनाओं का उभार, करुणा, जुदाई और प्रेमी के दर्द का बखूबी चित्रण है। शिव कुमार बटालवी ऐसे शायर और कवि थे जो एक छोटी-सी जिंदगी में इतना नाम बना गये कि आज भारत में हर नौजवां के सीने में धड़कते हैं। उनके गीतों में ‘बिरह की पीड़ा’ इस कदर थी कि उस दौर की प्रसिद्ध कवयित्री अमृता प्रीतम ने उन्हें बिरह का सुल्तान नाम दे दिया। शिव कुमार बटालवी यानी पंजाब का वह शायर, जिसके गीत हिंदी में न आकर भी वह बहुत लोकप्रिय हो गया। उसने जो गीत अपनी गुम हुई महबूबा के लिए बतौर इश्तहार लिखा था, वो जब फ़िल्मों तक पहुंचा तो मानो हर कोई उसकी महबूबा को ढूंढ़ते हुए गा रहा था- "इक कुड़ी जिहदा नाम मोहब्बत गुम है"।

परिचय

शिव कुमार बटालवी की पैदाइश बड़ा पिंड लोहतियाँ, सियालकोट में 23 जुलाई, 1936 को हुई थी, जो कि अब पाकिस्तान में है। बाद में वह अपने ख़ानदान के साथ भारत आ गए और बटाला में क़याम-पज़ीर हो गए। उन्होंने अपनी शुरुआती तालीम बटाला में ही हासिल की। उनके बचपन के इन वाक़िआत ने शिव कुमार बटालवी के अंदर के शायर को तामीर किया। हिजरत के दु:ख के साथ-साथ पंजाब के गाँवों की ज़िंदगी, क़िस्से-कहानियों की रवायत, उनके आस-पास की औरतों की ज़िंदगी ने उनकी ज़हनी साख़्त को तराशा। ये सब चीज़ें उनकी शायरी में जगह-जगह दिखाई भी देती हैं।[1]

शिव कुमार बटालवी की ज़बान ठेठ पंजाबी है और उनकी शायरी में नज़र आने वाले इस्तिआरे भी तमाम गाँव की ज़िंदगी की तरफ़ झुकाव रखते हैं, उनकी शायरी में पंजाबी सूफ़ी शायरों की गूँज सुनाई देती है लेकिन इससे ये मुराद बिलकुल नहीं है कि उन्हें आलमी अदब से शग़फ़ नहीं था। शिव कुमार बटालवी ने उर्दू के साथ-साथ रूसी और दीगर ममालिक के अदब को ग़ौर से पढ़ा था।

शिक्षा

शिव कुमार बटालवी को गांव से बाहर पढ़ने भेजा गया था। पर असल में बाल बटालवी तो गांव की मिट्टी में ही किसी पौधे की तरह जड़े जमाए उग गया। जो बाहर गया तो बस एक प्रेत था। जो अपनी मुक्ति के लिए भटक रहा था। उनका गांव छूट जाना उन पर पहला प्रहार था। जिसका गहरा जख्म उन्हें सदैव पीड़ा देता रहा। आगे की पढ़ाई के लिए उनको कादियां के एस. एन. कॉलेज के कला विभाग में भेजा गया हालांकि दूसरे साल ही उन्होंने उसे बीच में छोड़ दिया। उसके बाद उन्हें हिमाचल प्रदेश के बैजनाथ के एक स्कूल में इंजीनियरिंग की पढ़ाई हेतु भेजा गया। पर पिछली बार की तरह ही उन्होंने उसे भी बीच में छोड़ दिया। इसके बाद उन्होंने नाभा के सरकारी कॉलेज में अध्ययन किया। उनका बार-बार बीच में ही अभ्यास छोड़ देना, उनके भीतर पल रही अराजकता और अनिश्चितता का बीजारोपण था। जो कुछ ही सालों बाद उन के लिए मृत्यु का वृक्ष बन जाना था। पिता शिव कुमार बटालवी को कुछ बनता हुआ देखना चाहते थे। इसलिए गांव से दूर पढ़ाई के लिए उनको भेज दिया। उसके चलते फिर कभी पिता-पुत्र में नहीं बनी।

युवती से प्रेम

किशोरावस्था में उन्हें पास ही के किसी गांव के मेले में एक लड़की से प्यार हो गया। उस लड़की का नाम मैना था जिसे खोजते हुए बटालवी उसके गांव तक गये थे। उस लड़की के भाई से दोस्‍ती गांठ ली थी और दोस्त से मिलने के नाम पर वो रोज मैना के गांव चले जाते; लेकिन मैना कुछ ही दिन में बीमार हुई और चल बसी। उसकी याद में फिर शिव कुमार बटालवी ने एक लंबी कविता लिखी 'मैना'। युवावस्था में उन्हें फिर पंजाबी लेखक गुरबख्श सिंह प्रीतलड़ी की बेटी से प्यार हो गया। दोनों के बीच जाति भेद होने के कारण उनका विवाह नहीं हो पाया और लड़की की शादी किसी ब्रिटिश नागरिक से करा दी गई। इस "गुम हुई लड़की" पर शिव कुमार बटालवी ने 'इश्तेहार' शीर्षक से कविता लिखी-

गुम है गुम है गुम है
इक कुड़ी जिहदा नाम मोहब्बत
गुम है गुम है गुम है
साद मुरादी सोहणी फब्बत
गुम है गुम है गुम है
 
सूरत उसदी परियां वरगी
सीरत दी ओह मरियम लगदी
हसदी है तां फुल्ल झड़दे ने
तुरदी है तां ग़ज़ल है लगदी
लम्म सलम्मी सरूं क़द दी
उम्र अजे है मर के अग्ग दी


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. शिव को बिरहा का सुल्तान क्यों कहते हैं? (हिंदी) blog.rekhta.org। अभिगमन तिथि: 21 सितंबर, 2021।

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