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-[[न्याय दर्शन|न्याय]]
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+[[मीमांसा दर्शन|मीमांसा]]
+[[मीमांसा दर्शन|मीमांसा]]
||'कर्म का सिद्धांत' मीमांसा से संबंधित है। [[वेद]] के दो भाग हैं- कर्मकांड तथा ज्ञानकांड। ब्राह्मण ग्रंथों में वैदिक कर्मकांडों का विशिष्ट विवरण मिलता है तथा उपनिषदों में ज्ञानकांड का प्रतिपादन है। [[मीमांसा दर्शन|मीमांसा]] जिसे 'पूर्व मीमांसा' भी कहा जाता है, का उद्देश्य वैदिक कर्मकांडों के संबंध में निर्णय देना है तथा उनकी दार्शनिक महत्ता का प्रतिपादन करना है। यह मत वेद को अपौरुषेय तथा नित्य मानता है। [[उपनिषद]] तथा वेदांत उत्तरमीमांसा कहे जाते हैं, क्योंकि इनमें कर्मकांडों के स्थान पर ज्ञान का विवेचन मिलता है। पूर्व मीमांसा के प्रणेता [[जैमिनी]] हैं, जिनका ग्रंथ 'मीमांसा सूत्र' इस [[दर्शन]] का मूल है।→अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[मीमांसा दर्शन]]
-[[वेदांत]]
-[[वेदांत]]
-[[वैशेषिक दर्शन|वैशेषिक]]
-[[वैशेषिक दर्शन|वैशेषिक]]
||'कर्म का सिद्धांत' मीमांसा से संबंधित है। [[वेद]] के दो भाग हैं- कर्मकांड तथा ज्ञानकांड। ब्राह्मण ग्रंथों में वैदिक कर्मकांडों का विशिष्ट विवरण मिलता है तथा उपनिषदों में ज्ञानकांड का प्रतिपादन है। [[मीमांसा दर्शन|मीमांसा]] जिसे 'पूर्व मीमांसा' भी कहा जाता है, का उद्देश्य वैदिक कर्मकांडों के संबंध में निर्णय देना है तथा उनकी दार्शनिक महत्ता का प्रतिपादन करना है। यह मत वेद को अपौरुषेय तथा नित्य मानता है। [[उपनिषद]] तथा वेदांत उत्तरमीमांसा कहे जाते हैं, क्योंकि इनमें कर्मकांडों के स्थान पर ज्ञान का विवेचन मिलता है। पूर्व मीमांसा के प्रणेता [[जैमिनी]] हैं, जिनका ग्रंथ 'मीमांसा सूत्र' इस [[दर्शन]] का मूल है।→अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[मीमांसा दर्शन]]
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