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*इसकी खोज 1964 में 'जगपति जोशी' ने की थी इस स्थल से 'सिंधु सभ्यता के पतन' के अवशेष परिलक्षित होते हैं।  
*इसकी खोज 1964 में 'जगपति जोशी' ने की थी इस स्थल से 'सिंधु सभ्यता के पतन' के अवशेष परिलक्षित होते हैं।  
*यहां से प्राप्त अवशेषों में महत्वपूर्ण हैं - #घोड़े की अस्थियां एवं एक अनोखी कब्रगाह।  
*यहां से प्राप्त अवशेषों में महत्वपूर्ण हैं -  
#घोड़े की अस्थियां एवं एक अनोखी कब्रगाह।  
#सुरकोटदा के ‘दुर्ग‘ एवं ‘नगर क्षेत्र‘ दोनों एक ही रक्षा प्राचीर से घिरे हुए थे।  
#सुरकोटदा के ‘दुर्ग‘ एवं ‘नगर क्षेत्र‘ दोनों एक ही रक्षा प्राचीर से घिरे हुए थे।  
#अन्य नगरों के विपरीत यहां नगर दो भागों-गढ़ी तथा आवास क्षेत्र में विभाजित था।  
#अन्य नगरों के विपरीत यहां नगर दो भागों-गढ़ी तथा आवास क्षेत्र में विभाजित था।  

10:18, 23 सितम्बर 2010 का अवतरण

  • यह स्थल गुजरात के कच्छ ज़िले में स्थित है।
  • इसकी खोज 1964 में 'जगपति जोशी' ने की थी इस स्थल से 'सिंधु सभ्यता के पतन' के अवशेष परिलक्षित होते हैं।
  • यहां से प्राप्त अवशेषों में महत्वपूर्ण हैं -
  1. घोड़े की अस्थियां एवं एक अनोखी कब्रगाह।
  2. सुरकोटदा के ‘दुर्ग‘ एवं ‘नगर क्षेत्र‘ दोनों एक ही रक्षा प्राचीर से घिरे हुए थे।
  3. अन्य नगरों के विपरीत यहां नगर दो भागों-गढ़ी तथा आवास क्षेत्र में विभाजित था।
  4. सुरकोटदा के दुर्ग को पीली कुटी हुई मिट्टी से निर्मित चबूतरे पर बनाया गया था।
  5. यहां पर एक कब्र बड़े आकार की शिला से ढंकी हुई मिली है। यह कब्र अभी तक ज्ञात सैंधव शव-विसर्जन परम्परा में सर्वथा नवीन प्रकार की है।
  6. दुर्गीकृत क्षेत्र के दक्षिण पश्चिम से प्राप्त कब्रिस्तान से कलश शवाधान का उदाहरण प्राप्त हुआ है।


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