"सूरकोटदा": अवतरणों में अंतर
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* | *यहाँ से प्राप्त अवशेषों में महत्वपूर्ण हैं - | ||
#घोड़े की अस्थियां एवं एक अनोखी कब्रगाह। | #घोड़े की अस्थियां एवं एक अनोखी कब्रगाह। | ||
#सुरकोटदा के ‘दुर्ग‘ एवं ‘नगर क्षेत्र‘ दोनों एक ही रक्षा प्राचीर से घिरे हुए थे। | #सुरकोटदा के ‘दुर्ग‘ एवं ‘नगर क्षेत्र‘ दोनों एक ही रक्षा प्राचीर से घिरे हुए थे। | ||
#अन्य नगरों के विपरीत | #अन्य नगरों के विपरीत यहाँ नगर दो भागों-गढ़ी तथा आवास क्षेत्र में विभाजित था। | ||
#सुरकोटदा के दुर्ग को पीली कुटी हुई मिट्टी से निर्मित चबूतरे पर बनाया गया था। | #सुरकोटदा के दुर्ग को पीली कुटी हुई मिट्टी से निर्मित चबूतरे पर बनाया गया था। | ||
# | #यहाँ पर एक कब्र बड़े आकार की शिला से ढंकी हुई मिली है। यह कब्र अभी तक ज्ञात सैंधव शव-विसर्जन परम्परा में सर्वथा नवीन प्रकार की है। | ||
#दुर्गीकृत क्षेत्र के दक्षिण पश्चिम से प्राप्त कब्रिस्तान से कलश शवाधान का उदाहरण प्राप्त हुआ है। | #दुर्गीकृत क्षेत्र के दक्षिण पश्चिम से प्राप्त कब्रिस्तान से कलश शवाधान का उदाहरण प्राप्त हुआ है। | ||
11:37, 26 सितम्बर 2010 का अवतरण
- यह स्थल गुजरात के कच्छ ज़िले में स्थित है।
- इसकी खोज 1964 में 'जगपति जोशी' ने की थी इस स्थल से 'सिंधु सभ्यता के पतन' के अवशेष परिलक्षित होते हैं।
- यहाँ से प्राप्त अवशेषों में महत्वपूर्ण हैं -
- घोड़े की अस्थियां एवं एक अनोखी कब्रगाह।
- सुरकोटदा के ‘दुर्ग‘ एवं ‘नगर क्षेत्र‘ दोनों एक ही रक्षा प्राचीर से घिरे हुए थे।
- अन्य नगरों के विपरीत यहाँ नगर दो भागों-गढ़ी तथा आवास क्षेत्र में विभाजित था।
- सुरकोटदा के दुर्ग को पीली कुटी हुई मिट्टी से निर्मित चबूतरे पर बनाया गया था।
- यहाँ पर एक कब्र बड़े आकार की शिला से ढंकी हुई मिली है। यह कब्र अभी तक ज्ञात सैंधव शव-विसर्जन परम्परा में सर्वथा नवीन प्रकार की है।
- दुर्गीकृत क्षेत्र के दक्षिण पश्चिम से प्राप्त कब्रिस्तान से कलश शवाधान का उदाहरण प्राप्त हुआ है।
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