"रूपगोस्वामी के ग्रन्थ": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
छो (1 अवतरण)
No edit summary
पंक्ति 87: पंक्ति 87:


(9) उपदेशामृत
(9) उपदेशामृत
==टीका-टिप्पणी==
<references/>
[[Category:विविध]]
[[Category:विविध]]


__INDEX__
__INDEX__

05:30, 29 मार्च 2010 का अवतरण

रूपगोस्वामी के ग्रन्थों की तालिका

जीव गोस्वामी ने 'लघुवैष्णवतोषणी' में अपने वंश का परिचय देते समय रूप गोस्वामी के ग्रन्थों की एक तालिका दी है, जिसमें इन ग्रन्थों का उल्लेख है-

1. हंसदूत, उद्धव-संदेश और अष्टदश लीला-छन्द नामक 3 काव्य,

2. स्तवमाला, उत्कलिकावली, गोविन्द-विरूदावली और प्रेमेन्दु सागर नामक 4 स्तोत्र-ग्रन्थ,

3. विदग्ध-माधव और ललित-माधव नामक 2 नाटक,

4. दानकेलि नामक 1 भाणिक,

5. भक्तिरसामृतसिन्धु और उज्ज्वल-नीलमणि नामक 2 रस-ग्रन्थ और

6. मथुरा-महिमा, नाटक-चन्द्रिका, पद्यावली और लघुभागवतामृत नामक 4 संग्रह-ग्रन्थ।

परन्तु जीव गोस्वामी ने इस तालिका में रूप गोस्वामी के मुख्य-मुख्य ग्रन्थों का ही उल्लेख किया है। इनके अतिरिक्त उन्होंने अनेक प्रबन्धों, टीकाओं और प्रकीर्ण श्लोकों की रचना की है। उनमें बहुत-सों को जीव गोस्वामी ने उनके 'स्तवमाला' और 'पद्यावली' के अन्तर्गत संग्रहीत कर दिया है। बहुत-सों को आज भी प्रकाशित और समालोचित होने का अवसर नहीं मिला हैं। रूप गोस्वामी के चार और ग्रन्थों का उल्लेख जीव गोस्वामी के शिष्य श्रीकृष्णदास अधिकारी की तालिका में पाया जाता है, जिसे नरहरि चक्रवर्ती ने भक्ति रत्नाकर में उद्धृत किया है।<balloon title="(भक्तिरत्नाकर 1/196-199)" style="color:blue">*</balloon> वे हैं

(1) कृष्ण जन्म-तिथि विधि,

(2) वृहत्गणोद्देश-दीपिका,

(3) लघुगणोद्देश-दीपिका और

(4) प्रयुक्ताख्यातचन्द्रिका।[1]

नरहरि चक्रवर्ती ने अपनी ओर से रूप कृत अष्टकाललीला-सम्बन्धित ग्यारह श्लोकों का उल्लेख और किया है, जो 'स्मरण मंगल-स्तोत्र' के नाम से जाने जाते है। उन्होंने लिखा है कि रूप गोस्वामी ने ग्यारह श्लोक लिखकर कविराज गोस्वामी को दिये और उनका विस्तार कर 'गोविन्द-लीलामृत' लिखने की आज्ञा की। इसकी पुष्टि गोविन्द-लीलामृत के निम्न श्लोक से होती जान पड़ती है, जिसमें कविराज गोस्वामी ने कहा हैं कि उन्होंने गोविन्द-लीलामृत की रचना रूप-दर्शित पथानुसार की है-

श्रीरूप-दर्शिता-दिशा लिखिताष्टकेल्या,

श्रीराधिकेश-कृतकेलिततिर्मयेयम।-23-94

पर साधन-दीपिकाकार राधाकृष्ण दास ने इन श्लोकों का भाष्य करते समय लिखा है कि इनकी रचना कविराज गोस्वामी ने रूप गोस्वामी की आज्ञा से की। साधन-दीपिका में भी उन्होंने यही लिखा है।<balloon title="साधन-दीपिका, कक्षा 1" style="color:blue">*</balloon> इसलिए इन श्लोकों के रूपाकृत होने में सन्देह रह जाता है। हम कह चुके है कि जीव गोस्वामी ने लघु-वैष्णतोषणी में रूप गोस्वामी के केवल मुख्य-मुख्य ग्रन्थों की तालिका दी हैं। कविराज गोस्वामी ने भी चैतन्य-चरितामृत में रूप गोस्वामी के भक्तिरसामृतसिन्धु, उज्ज्वल-नीलमणि, ललित-माधव, विदग्ध-माधव आदि प्रधान-प्रधान ग्रन्थों का वर्णन कर लिखा है-

प्रधान-प्रधान किछु करिये गणन।

लक्ष ग्रन्थे कैल व्रजविलास वर्णन॥<balloon title="(चैतन्य-चरितामृत 2/1/37)" style="color:blue">*</balloon>[2]

इससे स्पष्ट है कि जिन ग्रन्थों की तालिका जीव गोस्वामी या कृष्णदास कविराज ने दी हैं, उनके अतिरिक्त बहुत से ग्रन्थों से उन्होंने रचना कीं उनमें से कुछ, जो प्रकाश में आये हैं, उनका उल्लेख श्रीकृष्णदास बाबा द्वारा प्रकाशित उज्ज्वल नीलमणि की भूमिका में किया गया हैं। वे इस प्रकार हैं-

(1) निकुंज-रहस्य-स्तव- श्रीराधागोविन्द के निकुंज विलास के वर्णन में 32 श्लोकों का यह स्तोत्र सर्वोपरि है। श्रीकृष्णदास बाबा ने लिखा हैं कि कुछ लोगों ने अब इसका अन्य सम्प्रदायों के आचार्यों के नाम से प्रचार करने की चेष्टा की हैं।<balloon title="उज्ज्वलनीलमणि, भूमिका पृ. 99" style="color:blue">*</balloon> पर श्रीरूप गोस्वामी के समय में ही उनके समसामयिक वंशीवदन ठाकुर ने पयार छन्द-बद्ध भाषा में अनुवाद कर उनके नाम से इसका प्रचार किया है। श्रीनित्यस्वरूप ब्रह्मचारी द्वारा ताड़ाश वाले मन्दिर, वृन्दावन से सम्वत 1959 में बंगाक्षर में इसका प्रकाशन हुआ है। श्रीकृष्णदास बाबा ने देवाक्षर में इसका प्रकाशन किया है।

(2) श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभो:- सहस्रनाम-स्तोत्र-बंगाब्द 1280 में इसका प्रथम बार श्रीनित्यानन्द दायिनी-नामक पत्रिका में प्रकाशन हुआ। सम्वत 2019 में कृष्णदास बाबा ने देवनागरी में इसका प्रकाशन किया। श्रीरूप गास्वामी ने श्रीरघुनादास गोस्वामी की प्रार्थना पर महाप्रभु चैतन्य देव के सहस्रनामों की रचना की, ऐसा इसमें उल्लेख है।

(3) उज्ज्वल-चन्द्रिका- इसमें श्रीराधिका और ललिता के कथोपकथन के माध्यम से श्रीकृष्ण-प्रेम का वर्णन है। पुष्पिका में रूप गोस्वामी द्वारा रचित होने का उल्लेख है।

(4) श्रीगंगाष्टक- यह श्रीनित्यानन्द प्रभु की कन्या श्रीगंगा देवी का स्तव है। पुष्पिका में रूप गोस्वामी कृत लिखा है।

(5) साधन पद्धति- इसमें 100 श्लोक हैं। गद्य एवं पद्य में इसकी रचना हैं। पुष्पिका में रूप गोस्वामी कृत होने का उल्लेख है।

(6) प्रेमान्धस्तव- इसकी पुष्पिका में भी 'श्रीरूपगोस्वामिविरचित' लिखा हैं।

(7) श्रीराधाष्टक- श्रीरूप गोस्वामी के नाम की पुष्पिका सहित इसका प्रकाशन श्रीनित्यानन्ददायिनी पत्रिका में बंगाब्द 1280 में हुआ है। यह 'स्तवमाला' के राधाष्टक से भिन्न है।

(8) श्रीमन्नवद्वीपाष्टक- इसका प्रकाशन भी नित्यानन्ददायिनी पत्रिका में बंगाब्द 1280 में हुआ है।

(9) उपासना पद्धति- श्रीरूप गोस्वामी के नाम से इसकी एक हस्तलिखित प्रति श्रीपाद गोपी वल्लभपुर के पुस्तकालय में पायी जाती है।

डा॰ जाना ने मदरास की Govt. Oriental MSS. Library के Triennial Catalogue में चढ़ी कुछ पुस्तकों का उल्लेख किया है, जिनकी पुष्पिका के अनुसार वे रूप 'गोस्वामी के नाम' से आरोपित है।<balloon title="डा॰ जाना वृन्दावनेर छय गोस्वामी पृ. 135-36" style="color:blue">*</balloon> वे हैं-

(1) वैष्णवपूजाभिधानम् (R. No. 3053 a-48)

(2) पंचश्लोकी (R. No. 3053 a-13)

(3) गदाधराष्टक (R. No. 3053 a-68)

(4) एकान्त निकुंजविलास (R. No. 3177 b)


डा॰ जाना ने ही विभिन्न पुस्तकालयों में या विद्वानों द्वारा तैयार की गयी हस्तलिखित पुस्तकों की सूचियों में पायी जाने वाली कुछ और पुस्तकों के नाम दिये हैं, जिनकी पुष्पिका में रचयिता के रूप में रूप गोस्वामी का नाम है।<balloon title="वहीं, प. 134" style="color:blue">*</balloon> वे है—

(1) अद्वैत स्तवराज (पानिहाटी ग्रन्थ मन्दिर, पोथी न. 9)

(2) जुगल स्तवराज (कलकत्ता विश्वविद्यालय, संस्कृत विभाग, पोथी न. 456)

(3) अनंग मंजरी स्तोत्र (बराहनगर ग्रन्थ-मन्दिर, पोथी न. स्तोत्र 2 क)

(4) श्रीसनातन गोस्वाभ्यष्टकं (कलकत्ता विश्वविद्यालय, बंगलापुथीशाला, पोथी न. 6616)। निताइसुन्दर पत्रिका (1343 श्रावण, पृ.113) में यह प्रकाशित है।

(5) अष्टकाल स्मरणी (ढाकाविश्व विद्यालय, 1125)।

(6) साधनामृत (A.V. Kathavate’s Report on the Search of Sanskrit MSS. (1904) p. 22, No. 314)

(7) शिक्षा दशक (Rudolf Roth’s Tubingen Catalogue, p. 10)

(8) हरेकृष्ण महामन्त्र निरूपण (Rajendra Lal Mittra’s Notices of Sanskrit Manuscript, LIX, p. 77 No. 2566)

(9) उपदेशामृत

टीका-टिप्पणी

  1. डा॰ विमान बिहारी मजूमदार ने इन ग्रन्थों के रूप गोस्वामी द्वारा लिखे जाने पर संदेह व्यक्त किया है (चैतन्य-चरितामृत उ0 पृ. 148-149)। पर डा॰ जाना ने इस सम्बन्ध में उनके सभी तर्कों को निराधार सिद्ध किया है। (वृ0 छ0 गो0 94-96)
  2. अर्थात् रूप गोस्वामी ने लक्ष ग्रन्थों की रचना की, जिनमें से प्रधान-प्रधान का ही यहाँ उल्लेख किया गया है। 'लक्ष' ग्रन्थों से मतलब है 'अनेक ग्रन्थ' जिनका सबका उल्लेख करना उन्होंने आवश्यक नहीं समझा।