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*यह प्राचीन स्थल भिलसा से चार मील दूर बेतवा तथा बेश नदियों के बीच स्थित है। | *यह प्राचीन स्थल भिलसा से चार मील दूर बेतवा तथा बेश नदियों के बीच स्थित है। | ||
*[[चन्द्रगुप्त द्वितीय]] के उदयगिरि गुहालेख में इस सुप्रसिद्ध पहाड़ी का वर्णन है। | *[[चन्द्रगुप्त द्वितीय]] के उदयगिरि गुहालेख में इस सुप्रसिद्ध पहाड़ी का वर्णन है। |
06:20, 31 अक्टूबर 2010 का अवतरण
- मध्य प्रदेश में रायसीन ज़िले का यह स्थल, बालुकाश्म पहाड़ी में काटकर बनाये गये गुफा मन्दिरों के लिए विश्रुत है।
- प्राचीन काल में उदयगिरि विदिशा नगरी का ही एक उपनगर था।
- यह प्राचीन स्थल भिलसा से चार मील दूर बेतवा तथा बेश नदियों के बीच स्थित है।
- चन्द्रगुप्त द्वितीय के उदयगिरि गुहालेख में इस सुप्रसिद्ध पहाड़ी का वर्णन है।
- यहाँ पर बीस गुफाएँ है। जो हिन्दू और जैन मूर्तिकारी के लिए प्रसिद्ध हैं।
- मूर्तियाँ विभिन्न पौराणिक कथाओं से सम्बद्ध हैं और अधिकांश गुप्तकालीन हैं।
- मूर्तिकला की दृष्टि से पाँचवीं गुफा सबसे महत्वपूर्ण है।
- इसमें वराह अवतार का दृश्य अंकित वराह भगवान का बाँया पाँव नाग राजा के सिर पर दिखलाया गया है। जो सम्भवतः गुप्तकाल में सम्राटों द्धारा कि गये नाग शक्ति के परिहास का प्रतीक है।
- छठी गुफा में दो द्वारपालों, विष्णु, महिष-मर्दिनी एवं गणेश की मूर्तियाँ हैं।
- गुफा छः से प्राप्त लेख से ज्ञात होता है कि उस क्षेत्र पर सनकानियों का अधिकार था।
- उदयगिरि के द्वितीय गुफा लेख में चन्द्रगुप्त के सचिव पाटलिपुत्र निवासी वीरसेन उर्फ शाव द्वारा शिव मन्दिर के रुप में गुफा निर्माण कराने का उल्लेख है।
- वह वहाँ चन्द्रगुप्त के साथ किसी अभियान में आया था।
- तृतीय उदयगिरि गुफा लेख में कुमारगुप्त के शासन काल में शंकर नामक व्यक्ति द्वारा गुफा संख्या दस के द्वार पर जैन तीर्थंकर पार्श्वनाथ की मूर्ति को प्रतिष्ठित कराये जाने का उल्लेख है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ