"एरण": अवतरणों में अंतर
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) छो (Removed Category:नया पन्ना; Adding category Category:मध्य प्रदेश (using HotCat)) |
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) छो (Adding category Category:मध्य प्रदेश के ऐतिहासिक स्थान (using HotCat)) |
||
पंक्ति 18: | पंक्ति 18: | ||
[[Category:मध्य प्रदेश]] | [[Category:मध्य प्रदेश]] | ||
[[Category:मध्य प्रदेश के ऐतिहासिक स्थान]] |
05:52, 2 नवम्बर 2010 का अवतरण
मध्य प्रदेश के ज़िला सागर में एरण एक प्राक्-ऐतिहासिक एवं ऐतिहासिक स्थल है। यह बेतवा नदी के किनारे विन्ध्याचल पर्वतमालाओं के उत्तर में एक पठार पर स्थित है। इस स्थल पर चार सांस्कृतिक स्तर मिले हैं। प्रथम ताम्राश्मीय कालीन, द्वितीय लौहयुगीन तथा अन्य दो परवर्ती हैं। यहाँ से पंचमार्क सिक्कों के भारी भण्डार मिले हैं।
इतिहास
एरण गुप्तकाल में एक महत्वपूर्ण नगर था। यहाँ से गुप्तकाल के अनेक अभिलेख प्राप्त हुये है। गुप्त सम्राट समुद्रगुप्त के एक शिलालेख में एरण को 'एरकिण' कहा गया है। इस अभिलेख को कनिंघम ने खोजा था। यह वर्तमान में कोलकाता संग्रहालय में सुरक्षित है। यह भग्नावस्था में हैं। फिर भी जितना बचा है, उससे समुद्रगुप्त के बारे में काफी जानकारी प्राप्त होती है। इसमें समुद्रगुप्त की वीरता, सम्पत्ति-भण्डार, पुत्र-पौत्रों सहित यात्राओं पर उसकी वीरोचित धाक का विशद वर्णन है। यहाँ गुप्त सम्राट बुद्धगुप्त का भी अभिलेख प्राप्त हुआ है। इससे ज्ञात होता है, कि पूर्वी मालवा भी उसके साम्राज्य में शामिल था। इसमें कहा गया है कि बुद्धगुप्त की अधीनता में यमुना और नर्मदा नदी के बीच के प्रदेश में 'महाराज सुरश्मिचन्द्र' शासन कर रहा था।
एरण प्रदेश में उसकी अधीनता में मातृविष्णु शासन कर रहा था। यह लेख एक स्तम्भ पर खुदा हुआ है, जिसे ध्वजास्तम्भ कहते हैं। इसका निर्माण महाराज मातृविष्णु तथा उसके छोटे भाई धन्यगुप्त ने करवाया था। यह आज भी अपने स्थान पर अक्षुण्ण है। यह स्तम्भ 43 फुट ऊँचा और 13 फुट वर्गाकार आधार पर खड़ा किया गया है। इसके ऊपर 5 फुट ऊँची गरुड़ की दोरुखी मूर्ति है, जिसके पीछे चक्र का अंकन है। एरण से एक अन्य अभिलेख प्राप्त हुआ है, जो 510 ई. का है। इसे भानुगुप्त का अभिलेख कहते हैं। अनुमान है कि भानुगुप्त राजवंश से सम्बन्धित था। यह लेख महाराज भानुगुप्त के अमात्य गोपराज के विषय में जो उस स्थान पर भानुगुप्त के साथ सम्भवतः किसी युद्ध में आया था और वीरगति को प्राप्त हुआ था। गोपराज की पत्नी यहाँ सती हो गई थी। इस अभिलेख को एरण का सती अभिलेख भी कहा जाता है। एरण से प्राप्त एक वराह मूर्ति के अभिलेख में हूण शासक तोरमाण और उसके प्रथम वर्ष का उल्लेख है। इसमें दिवंगत महाराज मातृविष्णु के छोटे भाई धन्यविष्णु द्वारा वराह विष्णु के निमित्त मन्दिर निर्माण करवाने का उल्लेख है। एरण में गुप्तकालीन नृसिंह मन्दिर, वराह मन्दिर तथा विष्णु मन्दिर पाये गये हैं। ये सब अब ध्वस्त अवस्था में हैं।
|
|
|
|
|