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परिक्रमा(पुस्तक 'हिन्दू धर्मकोश') पृष्ठ संख्या-390
'''सामान्य स्थान या व्यक्ति के चारों ओर उसकी दाहिनी तरफ़ से घूमना।''' इसको प्रदक्षिणा करना भी कहते हैं, जो षोडशोपचार पूजा का एक अंग है। प्राय: सोमवती [[अमावस]] को महिलाएँ पीपल वृक्ष की 108 परिक्रमाएँ करती हैं। इसी प्रकार [[दुर्गा]]देवी की परिक्रमा की जाती है। पवित्र धर्मस्थानों, [[अयोध्या]], [[मथुरा]] आदि पुण्पुरियों की पंचकोशी (25 कोस की), [[ब्रज]] में [[गोवर्ध्न पर्वत]] की सप्तकोसी, ब्रहमंडल की चौरासी [[कोसी]], [[नर्मदा]] जी की अमरकंटक से समुद्र तक छ:मासी और समस्त भारतखण्ड की वर्षों में पूरी होने वाली-इस प्रकार की विविध '''परिक्रमाएँ''' भूमि में पद-पद पर दण्डवत् लेटकर पूरी की जाती है। यही 108-108 बार प्रति पद पर आवृत्ति करके वर्षों में समाप्त होती है।  
 
 
'''सामान्य स्थान या व्यक्ति के चारों ओर उसकी दाहिनी तरफ़ से घूमना। इसको प्रदक्षिणा करना भी कहते हैं''', जो षोडशोपचार पूजा का एक अंग है। प्राय: [[सोमवती अमावस]] को महिलाएँ पीपल वृक्ष की 108 परिक्रमाएँ करती हैं। इसी प्रकार दुर्गादेवी की परिक्रमा की जाती है। पवित्र धर्मस्थानों, [[अयोध्या]], [[मथुरा]] आदि पुण्पुरियों की पंचकोशी (25 कोस की), ब्रज में [[गोवर्ध्न]] पर्वत की सप्तकोसी, ब्रहमंडल की चौरासी [[कोसी]], [[नर्मदा]] जी की अमरकंटक से समुद्र तक छ:मासी और समस्त भारतखण्ड की वर्षों में पूरी होने वाली-इस प्रकार की विविध '''परिक्रमाएँ''' भूमि में पद-पद पर दण्डवत् लेटकर पूरी की जाती है। यही 108-108 बार प्रति पद पर आवृत्ति करके '''वर्षों''' में समाप्त होती है।  
 


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16:48, 28 नवम्बर 2010 का अवतरण

सामान्य स्थान या व्यक्ति के चारों ओर उसकी दाहिनी तरफ़ से घूमना। इसको प्रदक्षिणा करना भी कहते हैं, जो षोडशोपचार पूजा का एक अंग है। प्राय: सोमवती अमावस को महिलाएँ पीपल वृक्ष की 108 परिक्रमाएँ करती हैं। इसी प्रकार दुर्गादेवी की परिक्रमा की जाती है। पवित्र धर्मस्थानों, अयोध्या, मथुरा आदि पुण्पुरियों की पंचकोशी (25 कोस की), ब्रज में गोवर्ध्न पर्वत की सप्तकोसी, ब्रहमंडल की चौरासी कोसी, नर्मदा जी की अमरकंटक से समुद्र तक छ:मासी और समस्त भारतखण्ड की वर्षों में पूरी होने वाली-इस प्रकार की विविध परिक्रमाएँ भूमि में पद-पद पर दण्डवत् लेटकर पूरी की जाती है। यही 108-108 बार प्रति पद पर आवृत्ति करके वर्षों में समाप्त होती है।


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