"देवकी": अवतरणों में अंतर
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मथुरा के राजा उग्रसेन के छोटे भाई देवक की पुत्री, वासुदेव की पत्नी तथा कृष्ण की वास्तविक माता का नाम देवकी था। इसके अतिरिक्त शैव्य की कन्या, युधिष्ठिर की पत्नी, उद्गीथ ऋषि की पत्नी का भी देवकी के नाम से उल्लेख मिलता है। यद्यपि देवकी कृष्ण की वास्तविक माता हैं, तथापि कृष्ण-भक्त कवि यशोदा की तुलना में उसके व्यक्तित्व में मातृत्व का उभार नहीं दे सके। देवकी को कृष्ण-जन्म के पूर्व ही उनके अतिप्राकृत व्यक्तित्व का ज्ञान था फिर भी जन्म के समय उनके अतिप्राकृत चिह्नों को देखकर वह चिन्तित हो जाती हैं<balloon title="सूरसागर, प0 (622-625)" style="color:blue">*</balloon>। इस अवसर पर उनके मातृत्व का आभास मात्र मिलता है। वह वसुदेव से किसी भी प्रकार कृष्ण की रक्षा की प्रार्थना करती हैं <balloon title="(सूरसागर0प0 627)" style="color:blue">*</balloon>। कृष्ण-कथा में देवकी की दूसरी झलक [[मथुरा]] में उसके कृष्ण से पुनर्मिलन के अवसर पर होती है <balloon title="(सूरसागर, प0 3708)" style="color:blue">*</balloon>। कृष्ण के अलौकिक व्यक्तित्व के परिचय एवं [[बलराम]] के स्वयं को [[शेषनाग]] का अवतार कहने पर वह अपना विलाप त्यागकर मौन हो जाती हैं। इसलिए कथा के उत्तरार्द्ध में देवकी का मातृत्व दब सा गया है अन्त में देवकी का वात्सल्य भक्ति में बदल जाता है। वह [[कृष्ण]] से स्वयं को [[गोकुल]] में शरण देने की प्रार्थना करती हैं <balloon title="(सूरसागर प0 3740)" style="color:blue">*</balloon>। | मथुरा के राजा उग्रसेन के छोटे भाई देवक की पुत्री, वासुदेव की पत्नी तथा कृष्ण की वास्तविक माता का नाम देवकी था। इसके अतिरिक्त शैव्य की कन्या, युधिष्ठिर की पत्नी, उद्गीथ ऋषि की पत्नी का भी देवकी के नाम से उल्लेख मिलता है। यद्यपि देवकी कृष्ण की वास्तविक माता हैं, तथापि कृष्ण-भक्त कवि यशोदा की तुलना में उसके व्यक्तित्व में मातृत्व का उभार नहीं दे सके। देवकी को कृष्ण-जन्म के पूर्व ही उनके अतिप्राकृत व्यक्तित्व का ज्ञान था फिर भी जन्म के समय उनके अतिप्राकृत चिह्नों को देखकर वह चिन्तित हो जाती हैं<balloon title="सूरसागर, प0 (622-625)" style="color:blue">*</balloon>। इस अवसर पर उनके मातृत्व का आभास मात्र मिलता है। वह वसुदेव से किसी भी प्रकार कृष्ण की रक्षा की प्रार्थना करती हैं <balloon title="(सूरसागर0प0 627)" style="color:blue">*</balloon>। कृष्ण-कथा में देवकी की दूसरी झलक [[मथुरा]] में उसके कृष्ण से पुनर्मिलन के अवसर पर होती है <balloon title="(सूरसागर, प0 3708)" style="color:blue">*</balloon>। कृष्ण के अलौकिक व्यक्तित्व के परिचय एवं [[बलराम]] के स्वयं को [[शेषनाग]] का अवतार कहने पर वह अपना विलाप त्यागकर मौन हो जाती हैं। इसलिए कथा के उत्तरार्द्ध में देवकी का मातृत्व दब सा गया है अन्त में देवकी का वात्सल्य भक्ति में बदल जाता है। वह [[कृष्ण]] से स्वयं को [[गोकुल]] में शरण देने की प्रार्थना करती हैं <balloon title="(सूरसागर प0 3740)" style="color:blue">*</balloon>। | ||
==कृष्ण-कथा देवी भागवत के अनुसार== | ==कृष्ण-कथा देवी भागवत के अनुसार== | ||
कृष्ण-कथा में अंकित सभी पात्र किसी न किसी कारणवश शापग्रस्त होकर जन्मे थे। कश्यप ने | कृष्ण-कथा में अंकित सभी पात्र किसी न किसी कारणवश शापग्रस्त होकर जन्मे थे। कश्यप ने वरुण से [[कामधेनु]] मांगी थी फिर लौटायी नहीं, अत: वरुण के शाप से वे ग्वाले हुए। देवी भागवत में [[दिति]] और [[अदिति]] को [[दक्ष]] कन्या माना गया है। अदिति का पुत्र इन्द्र था जिसने माँ की प्रेरणा से दिति के गर्भ के 49 भाग कर दिए थे जो मरूत हुए। अदिति से रूष्ट होकर दिति ने शाप दिया था-'जिस प्रकार गुप्त रूप से तूने मेरा गर्भ नष्ट करने का प्रयत्न करवाया है उसी प्रकार [[पृथ्वी]] पर जन्म लेकर तू बार-बार मृतवत्सा होगी। फलत: उसने देवकी के रूप में जन्म लिया। -(देवी भागवत) | ||
==देवकी कथा== | ==देवकी कथा== |
02:37, 4 अप्रैल 2010 का अवतरण
देवकी / Devaki
परिचय आहुक ने अपनी बहिन आहुकी का ब्याह अवंती देश में किया था। आहुक की एक पुत्री भी थी, जिसने दो पुत्र उत्पन्न किये। उनके नाम हैं- देवक और उग्रसेन। वे दोनों देवकुमारों के समान तेजस्वी हैं। देवक के चार पुत्र हुए, जो देवताओं के समान सुन्दर और वीर हैं। उनके नाम हैं- देववान, उपदेव, सुदेव और देवरक्षक। उनके सात बहिनें थीं, जिनका ब्याह देवक ने वसुदेव के साथ कर दिया। उन सातों के नाम इस प्रकार हैं- देवकी, श्रुतदेवा, यशोदा, श्रुतिश्रवा, श्रीदेवा, उपदेवा और सुरूपा। उग्रसेन के नौ पुत्र हुए; उनमें कंस सबसे बड़ा था। शेष के नाम इस प्रकार हैं- न्यग्रोध, सुनामा, कंक, शंकु, सुभू, राष्ट्रपाल, बद्धमुष्टि और सुमुष्टिक। उनके पाँच बहिनें थीं- कंसा, कंसवती, सुरभी, राष्ट्रपाली और कंका। ये सब-की-सब बड़ी सुन्दरी थीं। इस प्रकार सन्तानों सहित उग्रसेन तक कुकुर-वंश का वर्णन किया गया।
छान्दोग्य उपनिषद में उल्लेख
देवकी- कृष्ण की माता का नाम देवकी तथा पिता का नाम वसुदेव है। देवकी कंस की बहन थी। कंस ने पति सहित उसको कारावास में बन्द कर रखा था, क्योंकि उसको ज्योतिषियों ने बताया था कि देवकी का कोई पुत्र ही उसका वध करेगा। कंस ने देवकी के सभी पुत्रों का वध किया, किन्तु जब कृष्ण उत्पन्न हुए तो वसुदेव रातों-रात उन्हें गोकुल ग्राम में नन्द-यशोदा के यहाँ छोड़ आये। देवकी के बारे में इससे अधिक कुछ विशेष वक्तव्य ज्ञात नहीं होता है। छान्दोग्य उपनिषद में भी देवकीपुत्र कृष्ण(घोर आगिंरस के शिष्य) का उल्लेख है।
अन्य उल्लेख
मथुरा के राजा उग्रसेन के छोटे भाई देवक की पुत्री, वासुदेव की पत्नी तथा कृष्ण की वास्तविक माता का नाम देवकी था। इसके अतिरिक्त शैव्य की कन्या, युधिष्ठिर की पत्नी, उद्गीथ ऋषि की पत्नी का भी देवकी के नाम से उल्लेख मिलता है। यद्यपि देवकी कृष्ण की वास्तविक माता हैं, तथापि कृष्ण-भक्त कवि यशोदा की तुलना में उसके व्यक्तित्व में मातृत्व का उभार नहीं दे सके। देवकी को कृष्ण-जन्म के पूर्व ही उनके अतिप्राकृत व्यक्तित्व का ज्ञान था फिर भी जन्म के समय उनके अतिप्राकृत चिह्नों को देखकर वह चिन्तित हो जाती हैं<balloon title="सूरसागर, प0 (622-625)" style="color:blue">*</balloon>। इस अवसर पर उनके मातृत्व का आभास मात्र मिलता है। वह वसुदेव से किसी भी प्रकार कृष्ण की रक्षा की प्रार्थना करती हैं <balloon title="(सूरसागर0प0 627)" style="color:blue">*</balloon>। कृष्ण-कथा में देवकी की दूसरी झलक मथुरा में उसके कृष्ण से पुनर्मिलन के अवसर पर होती है <balloon title="(सूरसागर, प0 3708)" style="color:blue">*</balloon>। कृष्ण के अलौकिक व्यक्तित्व के परिचय एवं बलराम के स्वयं को शेषनाग का अवतार कहने पर वह अपना विलाप त्यागकर मौन हो जाती हैं। इसलिए कथा के उत्तरार्द्ध में देवकी का मातृत्व दब सा गया है अन्त में देवकी का वात्सल्य भक्ति में बदल जाता है। वह कृष्ण से स्वयं को गोकुल में शरण देने की प्रार्थना करती हैं <balloon title="(सूरसागर प0 3740)" style="color:blue">*</balloon>।
कृष्ण-कथा देवी भागवत के अनुसार
कृष्ण-कथा में अंकित सभी पात्र किसी न किसी कारणवश शापग्रस्त होकर जन्मे थे। कश्यप ने वरुण से कामधेनु मांगी थी फिर लौटायी नहीं, अत: वरुण के शाप से वे ग्वाले हुए। देवी भागवत में दिति और अदिति को दक्ष कन्या माना गया है। अदिति का पुत्र इन्द्र था जिसने माँ की प्रेरणा से दिति के गर्भ के 49 भाग कर दिए थे जो मरूत हुए। अदिति से रूष्ट होकर दिति ने शाप दिया था-'जिस प्रकार गुप्त रूप से तूने मेरा गर्भ नष्ट करने का प्रयत्न करवाया है उसी प्रकार पृथ्वी पर जन्म लेकर तू बार-बार मृतवत्सा होगी। फलत: उसने देवकी के रूप में जन्म लिया। -(देवी भागवत)
देवकी कथा
देवकी उग्रसेन के छोटे भाई देवक की सबसे छोटी कन्या थी। कंस अपनी छोटी चचेरी बहन देवकी से अत्यन्त स्नेह करता था। जब उसका विवाह वसुदेव से हुआ तो कंस स्वयं रथ हाँककर अपनी उस बहन को पहँचाने चला। रास्ते में आकाशवाणी हुई- 'मूर्ख! तू जिसे इतने प्रेम से पहुँचाने जा रहा है, उसी के आठवें गर्भ से उत्पन्न पुत्र तेरा वध करेगा।' आकाशवाणी सुनते ही कंस का सारा प्रेम समाप्त हो गया। वह रथ से कूद पड़ा और देवकी के केश पकड़ कर तलवार से उसका वध करने के लिये तैयार हो गया।
वसुदेव का वचन
'महाभाग! आप क्या करने जा रहे हैं? विश्व में कोई अमर होकर नहीं आया है। आपको स्त्री वध जैसा जघन्य पाप नहीं करना चाहिये। यह आपकी छोटी बहन है और आपके लिये पुत्री के समान है। आप कृपा करके इसे छोड़ दें। आपको इसके पुत्र से भय है। मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि इससे जो भी पुत्र होगा, उसे मैं आपको लाकर दे दूँगा।' वसुदेव ने कहा। कंस ने वसुदेव के वचनों पर विश्वास करके देवकी को छोड़ दिया। कंस स्वभाव से ही अत्याचारी था। इसलिये उसने अपने पिता उग्रसेन को बन्दी बनाकर कारागार में डाल दिया। शासक होते ही उसने अपने असुर सेवकों को स्वतन्त्रता दे दी। यज्ञ बन्द हो गये। धर्मकृत्य अपराध माने जाने लगे। गौ और ब्राह्मणों की हिंसा होने लगी।
नारद की सलाह
समय पाकर देवकी जी को प्रथम पुत्र हुआ। वसुदेव जी अपने वचन के अनुसार उसे लेकर कंस के समीप पहुँचे। कंस ने उनका आदर किया और कहा-'इससे मुझे कोई भय नहीं है। आप इसे लेकर लौट जायें।' वहाँ देवर्षि नारद भी थे। उन्होंने कहा- आपने यह क्या किया? विष्णु कपटी है। आपके वध के लिये उन्हैं अवतार लेना है। पता नहीं वे किस गर्भ में आयें। पहला गर्भ भी आठवाँ हो सकता है और आठवाँ गर्भ भी पहला हो सकता है।' देवर्षि की बात सुनकर कंस ने बच्चे का पैर पकड़कर उसे शिलाखण्ड पर पटक दिया। देवकी चीत्कार कर उठी। कंस ने नवदम्पति को तत्काल हथकड़ी-बेड़ी में जकड़कर कारागार में डाल दिया और कठोर पहरा बैठा दिया। इसी प्रकार देवकी के छ: पुत्रों को कंस ने क्रमश: मौत के घाट उतार दिया। सातवें गर्भ में अनन्त भगवान शेष पधारे। भगवान के आदेश से योगमाया ने इस गर्भ को आकर्षित करके वसुदेव की दूसरी पत्नी रोहिणी के गर्भ में पहुँचा दिया। यह प्रचार हो गया कि देवकी का गर्भ स्त्रवित हो गया।
कृष्ण जन्म
देवकी के आठवें गर्भ का समय आया। उनका शरीर ओज से पूर्ण हो गया। कंस को निश्चित हो गया कि अब की ज़रूर मुझे मारने वाला विष्णु आया है। पहरेदारों की संख्या बढ़ा दी गयी। भाद्रपद की अँधेरी रात की अष्टमी तिथि थी। शंख, चक्र, गदा, पद्म, वनमाला धारण किये भगवान देवकी-वसुदेव के समक्ष प्रकट हुए। भगवान का दर्शन करके माता देवकी धन्य हो गयीं। पुन: भगवान नन्हें शिशु के रूप में देवकी की गोद में आ गये। पहरेदार सो गये। वसुदेव-देवकी की हथकड़ी-बेड़ी अपने-आप खुल गयी। भगवान के आदेश से वसुदेव जी उन्हें गोकुल में यशोदा की गोद में डाल आये और वहाँ से उनकी तत्काल पैदा हुई कन्या ले आये। कन्या के रोने की आवाज सुनकर पहरेदारों ने कंस को सूचना पहुँचायी और वह बन्दीगृह में दौड़ता हुआ आया। देवकी से कन्या को छीनकर कंस ने जैसे ही उसे शिला पर पटकना चाहा, वह उसके हाथ से छूटकर आकाश में चली गयी और कंस के शत्रु के कहीं और प्रकट होने की भविष्यवाणी करके अन्तर्धान हो गयी। एक-एक करके कंस के द्वारा भेजे गये सभी दैत्य गोकुल में श्रीकृष्ण बलराम के हाथों यमलोक सिधारे और अन्त में मथुरा की रंगशाला में कंस की मृत्यु के साथ उसके अत्याचारों का अन्त हुआ। वसुदेव-देवकी के जयघोष के स्वरों ने माता देवकी को चौंका दिया और जब माता ने आँख खोलकर देखा तो राम-श्याम उनके चरणों में पड़े थे। वसुदेव-देवकी के दु:खों का अन्त हुआ।