"इतिहास सामान्य ज्ञान 2": अवतरणों में अंतर
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- [[मुण्डकोपनिषद]] | - [[मुण्डकोपनिषद]] | ||
||कृष्ण [[यजुर्वेद]] शाखा का यह उपनिषद अत्यन्त महत्त्वपूर्ण उपनिषदों में है। इस उपनिषद के रचयिता कठ नाम के तपस्वी आचार्य थे। वे मुनि वैशम्पायन के शिष्य तथा यजुर्वेद की कठशाखा के प्रवृर्त्तक थे। इसमें दो अध्याय हैं और प्रत्येक अध्याय में तीन-तीन वल्लियां हैं, जिनमें वाजश्रवा-पुत्र [[नचिकेता]] और यम के बीच संवाद हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[कठोपनिषद]] | ||कृष्ण [[यजुर्वेद]] शाखा का यह उपनिषद अत्यन्त महत्त्वपूर्ण उपनिषदों में है। इस उपनिषद के रचयिता कठ नाम के तपस्वी आचार्य थे। वे मुनि वैशम्पायन के शिष्य तथा यजुर्वेद की कठशाखा के प्रवृर्त्तक थे। इसमें दो अध्याय हैं और प्रत्येक अध्याय में तीन-तीन वल्लियां हैं, जिनमें वाजश्रवा-पुत्र [[नचिकेता]] और यम के बीच संवाद हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[कठोपनिषद]] | ||
{[[अकबर]] निम्नलिखित में से किस वाद्य यन्त्र को कुशलता से बजाता था? | |||
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- वीणा | |||
- पखावज | |||
- [[सितार]] | |||
+ नक्कारा | |||
{[[पश्चिम बंगाल|बंगाल]] के किस बन्दरगाह को [[पुर्तग़ाल|पुर्तग़ाली]] पोर्टो ग्राण्डे या महान बन्दरगाह कहते थे? | |||
|type="()"} | |||
- सतगाँव | |||
+ चटगाँव | |||
- [[हुगली नदी|हुगली]] | |||
- चन्द्रद्वीप | |||
{[[मराठा|मराठों]] ने गुरिल्ला युद्ध प्रणाली का कुशल प्रशिक्षण सम्भवतः किससे प्राप्त किया था? | |||
|type="()"} | |||
- [[गोलकुण्डा]] के मीर जुमला | |||
+ अहमद नगर के अबीसीनियायी मंत्री [[मलिक अम्बर]] | |||
- मलिक क़ाफूर | |||
- मीर ज़ाफ़र | |||
{निम्नलिखित में से किसे 'जाटों का प्लेटो' कहा जाता था? | |||
|type="()"} | |||
- [[राजाराम]] | |||
- [[ठाकुर चूड़ामन सिंह|चूड़ामन]] | |||
+ [[सूरजमल]] | |||
- [[बदनसिंह]] | |||
{[[1857]] के विद्रोह का रुहेलखण्ड में नेतृत्व किसने किया था? | |||
|type="()"} | |||
+ ख़ान बहादुर ख़ाँ | |||
- शहज़ादा फ़िरोज़ ख़ाँ | |||
- राजा बेनी माधोसिंह | |||
- मुहम्मद हसन ख़ाँ | |||
{सन् [[1932]] ई. में अखिल भारतीय हरिजन संघ की स्थापना किसने की थी? | |||
|type="()"} | |||
- [[भीमराव आम्बेडकर|बाबा साहेब अम्बेडकर]] | |||
+ [[महात्मा गाँधी]] | |||
- [[बाल गंगाधर तिलक]] | |||
- ज्योतिबा फुले | |||
||महात्मा गाँधी ([[2 अक्तूबर]], [[1869]] - [[30 जनवरी]], [[1948]]) को ब्रिटिश शासन के ख़िलाफ़ भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का नेता और '''राष्ट्रपिता''' माना जाता है। इनका पूरा नाम मोहनदास करमचंद गाँधी था। राजनीतिक और सामाजिक प्रगति की प्राप्ति हेतु अपने अहिंसक विरोध के सिद्धांत के लिए उन्हें अंतराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हुई। मोहनदास करमचंद गांधी [[भारत]] एवं भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख राजनीतिक एवं आध्यात्मिक नेता थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[महात्मा गाँधी]] | |||
{[[राजा राममोहन राय]] के प्रथम शिष्य, जिन्होंने उनके मरणोपरांत ब्रह्म समाज का नेतृत्व सँभाला था? | |||
|type="()"} | |||
- द्वारकानाथ टैगोर | |||
+ रामचन्द्र विद्यावागीश | |||
- केशवचन्द्र सेन | |||
- देवेन्द्रनाथ टैगोर | |||
{वह राष्ट्रकूट शासक कौन था, जिसकी तुलना उदार तथा विद्वानों के संरक्षक के रूप में विख्यात [[चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य|राजा विक्रमादित्य]] से की गई है? | |||
|type="()"} | |||
- गोविन्द तृतीय | |||
- ध्रुव चतुर्थ | |||
- कृष्ण तृतीय | |||
+ अमोघवर्ष | |||
{[[महमूद ग़ज़नवी|महमूद]] के आक्रमण के समय हिन्दूशाही साम्राज्य की राजधानी कहाँ थी? | |||
- [[क़ाबुल]] | |||
- [[पेशावर]] | |||
- अटक | |||
+ उदमाण्डपुर या ओहिन्द | |||
{[[महमूद ग़ज़नवी|महमूद]] के आक्रमण के समय हिन्दूशाही साम्राज्य की राजधानी कहाँ थी? | |||
- [[क़ाबुल]] | |||
- [[पेशावर]] | |||
- अटक | |||
+ उदमाण्डपुर या ओहिन्द | |||
{वैदिककालीन लोगों ने सर्वप्रथम किस धातु का प्रयोग किया? | |||
|type="()"} | |||
- लोहा | |||
- कांसा | |||
+ तांबा | |||
- सोना | |||
{उत्तरवैदिक काल के महत्वपूर्ण देवता कौन थे? | |||
|type="()"} | |||
- [[रुद्र]] | |||
- [[विष्णु]] | |||
+ प्रजापति | |||
- पूषन | |||
{[[भारत]] का राष्ट्रीय आदर्श वाक्य 'सत्यमेव जयते' कहाँ से उद्धत है? | |||
|type="()"} | |||
+ [[मुण्डकोपनिषद]] से | |||
- [[कठोपनिषद]] से | |||
- [[छान्दोग्य उपनिषद]] से | |||
- उपर्युक्त में से कोई नहीं | |||
||यह उपनिषद अथर्ववेदीय शौनकीय शाखा से सम्बन्धित है। इसमें अक्षर-ब्रह्म 'ॐ: का विशद विवेचन किया गया है। इसे मन्त्रोपनिषद नाम से भी पुकारा जाता है। इसमें तीन मुण्डक हैं और प्रत्येक मुण्डक के दो-दो खण्ड हैं तथा कुल चौंसठ मन्त्र हैं। 'मुण्डक' का अर्थ है- मस्तिष्क को अत्यधिक शक्ति प्रदान करने वाला और उसे अविद्या-रूपी अन्धकार से मुक्त करने वाला। इस उपनिषद में महर्षि [[अंगिरा]] ने शौनक को 'परा-अपरा' विद्या का ज्ञान कराया है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[मुण्डकोपनिषद]] | |||
{उत्तर वैदिक कालीन ग्रंथों की रचना लगभग 1000 ई. पू.-600 ई. पू. के मध्य किन स्थानों पर की गई? | |||
|type="()"} | |||
- सैन्धव घाटी के मैदान में | |||
- आर्यावर्त के मैदान में | |||
+ गंगा के उत्तरी मैदान में | |||
- मध्य एशिया के मैदान में | |||
{'सभा और समिति प्रजापति की दो पुत्रियाँ थीं' का उल्लेख किस ग्रंथ में मिलता है? | |||
|type="()"} | |||
- [[ऋग्वेद]] में | |||
+[[अथर्ववेद]] | |||
- [[यजुर्वेद]] में | |||
- [[सामवेद]] में | |||
||[[चित्र:Atharvaveda.jpg|thumb|150px|अथर्ववेद का आवरण पृष्ठ]] अथर्ववेद की भाषा और स्वरूप के आधार पर ऐसा माना जाता है कि इस [[वेद]] की रचना सबसे बाद में हुई। अथर्ववेद के दो पाठों (शौनक और पैप्पलद) में संचरित हुए लगभग सभी स्तोत्र ॠग्वेदीय स्तोत्रों के छदों में रचित हैं। दोनो वेदों में इसके अतिरिक्त अन्य कोई समानता नहीं है। अथर्ववेद मे दैनिक जीवन से जुड़े तांत्रिक धार्मिक सरोकारों को व्यक्त करता है, इसका स्वर [[ॠग्वेद]] के उस अधिक पुरोहिती स्वर से भिन्न है, जो महान [[देवता|देवों]] को महिमामंडित करता है और [[सोम रस|सोम]] के प्रभाव में कवियों की उत्प्रेरित दृष्टि का वर्णन करता है। [[यज्ञ|यज्ञों]] व देवों को अनदेखा करने के कारण वैदिक पुरोहित वर्ग इसे अन्य तीन वेदों के बराबर नहीं मानता था। इसे यह दर्जा बहुत बाद में मिला। इसकी भाषा ॠग्वेद की भाषा की तुलना में स्पष्टतः बाद की है और कई स्थानों पर ब्राह्मण ग्रंथों से मिलती है। अतः इसे लगभग 1000 ई.पू. का माना जा सकता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[अथर्ववेद]] | |||
{उत्तर वैदिक कालीन ग्रंथों में किस आश्रम का उल्लेख नहीं मिलता? | |||
|type="()"} | |||
+ संन्यास | |||
- ब्रह्मचर्य | |||
- गृहस्थ | |||
- वानप्रस्थ | |||
{'गायत्री मंत्र' किस [[वेद]] से लिया गया है? | |||
|type="()"} | |||
+ [[ऋग्वेद]] | |||
- [[सामवेद]] | |||
- [[यजुर्वेद]] | |||
- [[अथर्ववेद]] | |||
{[[वेद|वेदों]] को 'अपौरुषेय' क्यों कहा जाता है? | |||
|type="()"} | |||
+ क्योंकि वेदों की रचना देवताओं द्वारा की गई है | |||
- क्योंकि वेदों की रचना पुरुषों द्वारा की गई है | |||
-क्योंकि वेदों की रचना ऋषियों द्वारा की गई है | |||
- उपर्युक्त में से कोई नहीं | |||
{राष्ट्र एवं राजा शब्द का उल्लेख सर्वप्रथम कब हुआ? | |||
|type="()"} | |||
- सैन्धव काल में | |||
- ऋग्वैदिक काल में | |||
+उत्तरवैदिक काल में | |||
-महाकाव्य में | |||
{आर्यों के मूल निवास स्थान के बारे में सर्वाधिक मान्य मत कौन-सा है? | |||
|type="()"} | |||
-दक्षिणी रूस | |||
+मध्य एशिया में बैक्ट्रिया | |||
-भारत में सप्तसैन्धव प्रदेश | |||
-मध्य एशिया का पामीर क्षेत्र | |||
{सर्वप्रथम चारों आश्रमों के विषय में जानकारी कहाँ से मिलती है? | |||
|type="()"} | |||
+[[जाबालोपनिषद]] से | |||
-[[छान्दोग्य उपनिषद]] से | |||
-[[मुण्डकोपनिषद]] से | |||
-[[कठोपनिषद]] से | |||
||[[चित्र:Yajurveda.jpg|thumb|150px|यजुर्वेद का आवरण पृष्ठ]] [[यजुर्वेद|शुक्ल यजुर्वेद]] के इस उपनिषद में कुल छह खण्ड हैं। | |||
#प्रथम खण्ड में भगवान [[बृहस्पति ऋषि|बृहस्पति]] और ऋषि [[याज्ञवल्क्य]] के संवाद द्वारा प्राण-विद्या का विवेचन किया गया है। | |||
#द्वितीय खण्ड में [[अत्रि]] मुनि और याज्ञवल्क्य के संवाद द्वारा 'अविमुक्त' क्षेत्र को भृकुटियों के मध्य बताया गया है। | |||
#तृतीय खण्ड में ऋषि याज्ञवल्क्य द्वारा मोक्ष-प्राप्ति का उपाय बताया गया है। | |||
#चतुर्थ खण्ड में विदेहराज [[जनक]] के द्वारा संन्यास के विषय में पूछे गये प्रश्नों का उत्तर याज्ञवल्क्य देते हैं। | |||
#पंचम खण्ड में अत्रि मुनि संन्यासी के यज्ञोपवीत, वस्त्र, भिक्षा आदि पर याज्ञवल्क्य से मार्गदर्शन प्राप्त करते हैं और | |||
#षष्ठ खण्ड में प्रसिद्ध संन्यासियों आदि के आचरण की समीक्षा की गयी है और दिगम्बर परमंहस का लक्षण बताया गया है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[यजुर्वेद]] | |||
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