"भारतकोश:Quotations/गुरुवार": अवतरणों में अंतर

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*जितना दिखाते हो उससे अधिक तुम्हारे पास होना चाहिये;<br>जितना जानते हो उससे कम तुम्हें बोलना चाहिए; -'''शेक्सपियर''' (किंग लियर, 1।4)
*जितना दिखाते हो उससे अधिक तुम्हारे पास होना चाहिये;<br>जितना जानते हो उससे कम तुम्हें बोलना चाहिए; -'''शेक्सपियर''' (किंग लियर, 1।4)
*जो कमजोर होता है वही सदा रोष करता है और द्वेष करता है। हाथी चींटी से द्वेष नहीं करता। चींटी, चींटी से द्वेष करती है। -'''[[महात्मा गाँधी]]''' (नवजीवन, 16-1-1912)
*जो कमजोर होता है वही सदा रोष करता है और द्वेष करता है। हाथी चींटी से द्वेष नहीं करता। चींटी, चींटी से द्वेष करती है। -'''[[महात्मा गाँधी]]''' (नवजीवन, 16-1-1912)
*द्वेष का मायाजाल बड़ी-बड़ी मछलियों को ही फँसाता है। छोटी मछलियाँ या तो उसमें फँसती ही नहीं या तुरन्त निकल जाती हैं। उनके लिए वह घातक जाल क्रीड़ा की वस्तु है, भय की नहीं।  -'''[[प्रेमचंद|प्रेमचन्द]]''' (गोदान, पृ॰ 44)
*सौभाग्य और दुर्भाग्य मनुष्य की दुर्बलता के नाम है। मैं तो पुरुषार्थ को ही सबका नियामक समझता हूँ। पुरुषार्थ ही सौभाग्य को खीच लाता है। -'''[[जयशंकर प्रसाद]]''' (ध्रुवस्वामिनी, पृ॰ 38)
*प्रेम रीति से जो मिलै, तासों मिलिए धाय ।<br > अंतर राखे जो मिलै, तासौ मिलै बलाय॥ -'''[[कबीर]]'''
*धन खोकर अगर हम अपनी आत्मा को पा सकें, तो यह कोई महँगा सौदा नहीं है।  -'''[[प्रेमचंद|प्रेमचन्द]]''' (गोदान, पृ॰297)
*धन खोकर अगर हम अपनी आत्मा को पा सकें, तो यह कोई महँगा सौदा नहीं है।  -'''[[प्रेमचंद|प्रेमचन्द]]''' (गोदान, पृ॰297)
*जामैं रस कछु होत है पढ़त ताहि सब कोय।<br>बात अनूठी चाहिए भाषा कोऊ होय॥ -'''[[भारतेन्दु हरिश्चंद्र]]'''
*भाषा संस्कृति का वाहन है और उसका अंग भी। -'''रामविलास शर्मा''' (भाषा और समाज, पृ॰ 445) '''[[सूक्ति और कहावत|.... और पढ़ें]]'''
*भाषा संस्कृति का वाहन है और उसका अंग भी। -'''रामविलास शर्मा''' (भाषा और समाज, पृ॰ 445) '''[[सूक्ति और कहावत|.... और पढ़ें]]'''

06:37, 11 जनवरी 2011 का अवतरण

  • जितना दिखाते हो उससे अधिक तुम्हारे पास होना चाहिये;
    जितना जानते हो उससे कम तुम्हें बोलना चाहिए; -शेक्सपियर (किंग लियर, 1।4)
  • जो कमजोर होता है वही सदा रोष करता है और द्वेष करता है। हाथी चींटी से द्वेष नहीं करता। चींटी, चींटी से द्वेष करती है। -महात्मा गाँधी (नवजीवन, 16-1-1912)
  • धन खोकर अगर हम अपनी आत्मा को पा सकें, तो यह कोई महँगा सौदा नहीं है। -प्रेमचन्द (गोदान, पृ॰297)
  • भाषा संस्कृति का वाहन है और उसका अंग भी। -रामविलास शर्मा (भाषा और समाज, पृ॰ 445) .... और पढ़ें