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1781 ई. में जब ईस्ट इण्डिया कम्पनी और [[मराठा|मराठों]] के बीच लड़ाई चल रही थी, उस समय कम्पनी के गवर्नर-जनरल [[वारेन हेस्टिंग्स]] ने नवाब से बक़ाया रक़म की माँग की। नवाब ने बक़ाया रक़म बेबाक करने में तब तक अपनी असमर्थता प्रकट की, जब तक उसे अपने बाप मरहूम नवाब [[शुजाउद्दौला]] द्वारा छोड़ी गई दौलत न दिला दी जाए, जो कि उसकी माँ और दादी के क़ब्ज़े में थी।
1781 ई. में जब ईस्ट इण्डिया कम्पनी और [[मराठा|मराठों]] के बीच लड़ाई चल रही थी, उस समय कम्पनी के गवर्नर-जनरल [[वारेन हेस्टिंग्स]] ने नवाब से बक़ाया रक़म की माँग की। नवाब ने बक़ाया रक़म बेबाक करने में तब तक अपनी असमर्थता प्रकट की, जब तक उसे अपने बाप मरहूम नवाब [[शुजाउद्दौला]] द्वारा छोड़ी गई दौलत न दिला दी जाए, जो कि उसकी माँ और दादी के क़ब्ज़े में थी।
====आसफ़उद्दौला का कुशासन====
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'''वारेन हेस्टिंग्स''' ने [[अवध]] की बेग़मों को आदेश दिया कि वे [[फ़ैजाबाद]] में अपने महल से बाहर न निकले। उसने उनके महले ख़्वाजा सरां आदि को इतनी यातनाएँ दीं कि बेग़मों ने अन्त में उसकी बात मानकर रुपया दे दिया। इस काण्ड को '''अवध की बेग़मों की लूट''' की संज्ञा दी जाती है। नवाब आसफ़उद्दौला ने इस प्रकार कम्पनी के पदाधिकारियों से मिलकर अपनी माँ और दादी को जिस प्रकार अपमानित कराया, उससे उसकी बहुत बदनामी हुई। अवध का 16 साल तक कुशासन करने के बाद 1797 ई. में आसफ़उद्दौला की मृत्यु हो गई।
'''वारेन हेस्टिंग्स''' ने [[अवध की बेगमें|अवध की बेग़मों]] को आदेश दिया कि वे [[फ़ैजाबाद]] में अपने महल से बाहर न निकले। उसने उनके महले ख़्वाजा सरां आदि को इतनी यातनाएँ दीं कि बेग़मों ने अन्त में उसकी बात मानकर रुपया दे दिया। इस काण्ड को '''अवध की बेग़मों की लूट''' की संज्ञा दी जाती है। नवाब आसफ़उद्दौला ने इस प्रकार कम्पनी के पदाधिकारियों से मिलकर अपनी माँ और दादी को जिस प्रकार अपमानित कराया, उससे उसकी बहुत बदनामी हुई। अवध का 16 साल तक कुशासन करने के बाद 1797 ई. में आसफ़उद्दौला की मृत्यु हो गई।


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07:41, 1 जनवरी 2011 का अवतरण

आसफ़उद्दौला (1775-97 ई.) अवध के नवाब शुजाउद्दौला का बेटा और उत्तराधिकारी था।

अयोग्य शासक

वह एक अयोग्य शासक था, जिसने ईस्ट इण्डिया कम्पनी से फ़ैजाबाद की सन्धि करके कम्पनी को 74 लाख रुपये वार्षिक इस शर्त पर देना स्वीकार कर लिया कि कम्पनी अपनी दो रेजीमेण्ट फ़ौज अवध में उसके राज्य की सुरक्षा के लिए रखेगी। नवाब का वित्तीय प्रबन्ध बहुत ही दोषपूर्ण था और शीघ्र ही उस पर बक़ाया की रक़म बहुत बढ़ गई।

वारेन हेस्टिंग्स की माँग

1781 ई. में जब ईस्ट इण्डिया कम्पनी और मराठों के बीच लड़ाई चल रही थी, उस समय कम्पनी के गवर्नर-जनरल वारेन हेस्टिंग्स ने नवाब से बक़ाया रक़म की माँग की। नवाब ने बक़ाया रक़म बेबाक करने में तब तक अपनी असमर्थता प्रकट की, जब तक उसे अपने बाप मरहूम नवाब शुजाउद्दौला द्वारा छोड़ी गई दौलत न दिला दी जाए, जो कि उसकी माँ और दादी के क़ब्ज़े में थी।

आसफ़उद्दौला का कुशासन

वारेन हेस्टिंग्स ने अवध की बेग़मों को आदेश दिया कि वे फ़ैजाबाद में अपने महल से बाहर न निकले। उसने उनके महले ख़्वाजा सरां आदि को इतनी यातनाएँ दीं कि बेग़मों ने अन्त में उसकी बात मानकर रुपया दे दिया। इस काण्ड को अवध की बेग़मों की लूट की संज्ञा दी जाती है। नवाब आसफ़उद्दौला ने इस प्रकार कम्पनी के पदाधिकारियों से मिलकर अपनी माँ और दादी को जिस प्रकार अपमानित कराया, उससे उसकी बहुत बदनामी हुई। अवध का 16 साल तक कुशासन करने के बाद 1797 ई. में आसफ़उद्दौला की मृत्यु हो गई।


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