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हिमाचल प्रदेश में पर्यटन उद्योग को उच्‍च प्राथमिकता दी गई है। हिमाचल प्रदेश सरकार ने विकास के लिए सुनियोजित विकास किया है जिसमें जनोपयोगी सेवाएं, सड़कें, संचार तंत्र, हवाई अड्डे, यातायात सेवाएं, जलापूर्ति और जन स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं को शामिल किया है। राज्‍य सरकार राज्‍य को ‘हर हाल में गंतव्‍य’ का रूप देने के लिए प्रतिबद्ध है। राज्‍य पर्यटन विकास निगम की आय में 10 प्रतिशत का योगदान करता है। यह निगम बिक्री कर, सुख-सुविधा कर और यात्री कर के रूप में 2 करोड़ वार्षिक आय का योगदान राज्य की आय में करता है। वर्ष 2007 में हिमाचल प्रदेश में 8.3 मिलियन पर्यटक आए जिनमें लगभग 2008 लाख पर्यटक विदेशी थे।
हिमाचल प्रदेश में पर्यटन उद्योग को उच्‍च प्राथमिकता दी गई है। हिमाचल प्रदेश सरकार ने विकास के लिए सुनियोजित विकास किया है जिसमें जनोपयोगी सेवाएं, सड़कें, संचार तंत्र, हवाई अड्डे, यातायात सेवाएं, जलापूर्ति और जन स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं को शामिल किया है। राज्‍य सरकार राज्‍य को ‘हर हाल में गंतव्‍य’ का रूप देने के लिए प्रतिबद्ध है। राज्‍य पर्यटन विकास निगम की आय में 10 प्रतिशत का योगदान करता है। यह निगम बिक्री कर, सुख-सुविधा कर और यात्री कर के रूप में 2 करोड़ वार्षिक आय का योगदान राज्य की आय में करता है। वर्ष 2007 में हिमाचल प्रदेश में 8.3 मिलियन पर्यटक आए जिनमें लगभग 2008 लाख पर्यटक विदेशी थे।


राज्‍य में तीर्थो और मानवशास्त्रीय महत्‍व के स्‍थलों का समृद्ध एवं अथाह भंडार है। इस राज्‍य का [[व्‍यास]], [[पाराशर]], [[वसिष्ठ]], [[मार्कण्‍डेय]] और [[लोमश]] आदि ऋषि मुनियों का स्‍थल होने का गौरवपूर्ण पौराणिक इतिहास है, साथ ही गर्म पानी के स्रोत, ऐतिहासिक दुर्ग, प्राकृतिक तथा मानव निर्मित झीलें, उन्‍मुक्‍त घूमते चरवाहे पर्यटकों को असीम सुख और आनंद प्रदान करते हैं। राज्‍य सरकार पर्यटन को  प्रोत्साहित करने के लिए निजी क्षेत्रों को योजनाओं में शामिल करके पर्यटन संबंधी विकास इस तरह कर रही है कि राज्‍य की प्राकृतिक स्थिति और पर्यावरण अक्षुण्‍ण बना रहे। साथ ही  रोजगारों का सृजन हो और पर्यटन का विकास हो। पर्यटकों के प्रवास की अवधि बढ़ाने के लिए गतिविधियों पर आधारित पर्यटन का विकास विशेष रूप से  
राज्‍य में तीर्थो और मानवशास्त्रीय महत्‍व के स्‍थलों का समृद्ध एवं अथाह भंडार है। इस राज्‍य का [[व्यास]], [[पाराशर]], [[वसिष्ठ]], [[मार्कण्‍डेय]] और [[लोमश]] आदि ऋषि मुनियों का स्‍थल होने का गौरवपूर्ण पौराणिक इतिहास है, साथ ही गर्म पानी के स्रोत, ऐतिहासिक दुर्ग, प्राकृतिक तथा मानव निर्मित झीलें, उन्‍मुक्‍त घूमते चरवाहे पर्यटकों को असीम सुख और आनंद प्रदान करते हैं। राज्‍य सरकार पर्यटन को  प्रोत्साहित करने के लिए निजी क्षेत्रों को योजनाओं में शामिल करके पर्यटन संबंधी विकास इस तरह कर रही है कि राज्‍य की प्राकृतिक स्थिति और पर्यावरण अक्षुण्‍ण बना रहे। साथ ही  रोजगारों का सृजन हो और पर्यटन का विकास हो। पर्यटकों के प्रवास की अवधि बढ़ाने के लिए गतिविधियों पर आधारित पर्यटन का विकास विशेष रूप से  
किया जा रहा है।
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03:29, 2 अप्रैल 2010 का अवतरण

हिमाचल प्रदेश / Himachal Pradesh

हिमाचल प्रदेश पश्चिमी भारत में स्थित राज्य है। यह उत्तर में जम्मू कश्मीर, पश्चिम तथा दक्षिण-पश्चिम में दक्षिण में हरियाणा एवं उत्तर प्रदेश, दक्षिण-पूर्व में उत्तराखंड तथा पूर्व में तिब्बत से घिरा है। 'हिमाचल' प्रदेश का शाब्दिक अर्थ बर्फ़ीले पहाड़ों का अंचल' है। हिमाचल प्रदेश को देव भूमि भी कहा जाता है। हिमाचल प्रदेश में आर्यों का प्रभाव ऋग्वेद से भी पुराना है। आंग्ल-गोरखा युद्ध के बाद, यह ब्रिटिश शासन के अंतर्गत आ गया। सन 1857 तक यह पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह के शासन के अधीन पंजाब राज्य का हिस्सा रहा। सन 1950 में इस राज्य को केन्द्र शासित प्रदेश बनाया गया, परन्तु 1971 में 'हिमाचल प्रदेश राज्य अधिनियम-1971' के अन्तर्गत इसे 25 जून 1971 को भारत का अठारहवाँ राज्य बना दिया गया। हिमाचल प्रदेश में प्रतिव्यक्ति अनुमानित आय भारत के अन्य किसी भी राज्य की तुलना में ज़्यादा है। नदियों की बहुतायत के कारण, हिमाचल अन्य राज्यों को पनबिजली देता है, जिनमें दिल्ली, पंजाब और राजस्थान प्रमुख रूप से हैं। राज्य की अर्थव्यवस्था पनबिजली, पर्यटन और कृषि पर मूल रूप से आधारित है। राज्य में हिंदूओं की संख्या कुल जनसंख्या का 90 प्रतिशत है और मुख्य समुदायों में ब्राह्मण, राजपूत, कन्नेत, राठी और कोली हैं।

इतिहास और भूगोल

हिमाचल प्रदेश पश्चिमी हिमालय के मध्‍य में स्थित है, इसे देव भूमि कहा जाता है। यहाँ देवी और देवताओं का निवास स्थान माना जाता है। हिमाचल राज्‍य में पत्‍थर और लकड़ी के अनेक मंदिर हैं। सम़ृद्ध संस्‍कृति और परम्‍पराओं ने हिमाचल को एक अनोखा राज्‍य बना दिया है। यहां के ऊंचे नीचे पहाड़, ग्‍लेशियर, छायादार घाटियां और विशाल पाइन वृक्ष और गरजती नदियां तथा विशिष्‍ट जीव जंतु मिलकर हिमाचल के लिए एक मधुर संगीत की रचना तैयार करते प्रतीत होते हैं।

हिमाचल प्रदेश पूर्ण राज्य 25 जनवरी, 1971 को बना। अप्रैल 1948 में यहाँ की 27,000 वर्ग कि.मी. में फैली हुई लगभग 30 रियासतों को मिलाकर इसे केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया। 1954 में ‘ग’ श्रेणी की रियासत तबलासपुर को इसमें मिलाने पर इसका क्षेत्रफल बढ़कर 28,241 वर्ग कि.मी.हो गया। सन 1966 में इस केन्द्रशासित प्रदेश में पंजाब के पहाड़ी भाग को मिलाकर इस राज्य का पुनर्गठन किया गया और इसका क्षेत्रफल बढ़कर 55,673 वर्ग कि.मी. हो गया। आज हिमाचल प्रदेश में न केवल पहाड़ी क्षेत्रों का विकास हुआ, बल्कि शिक्षा, स्‍वास्‍थ्‍य और सामाजिक सेवाओं में भी इस प्रदेश ने उल्‍लेखनीय विकास प्राप्त किया है।

कृषि

हिमाचल प्रदेश का प्रमुख व्‍यवसाय कृषि है। कृषि राज्‍य की अर्थव्‍यवस्‍था में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाती है। कृषि से 69 प्रतिशत कामकाजी नागरिकों को सीधा काम मिलता है। कृषि और उसके सहायक क्षेत्र से प्राप्त आय प्रदेश के कुल घरेलू उत्‍पादन का 22.1 प्रतिशत है। कुल भूमि क्षेत्र 55.673 लाख हेक्‍टेयर में से 9.79 लाख हेक्‍टेयर भूमि के स्‍वामी 9.14 लाख किसान हैं। मध्यम और छोटे किसानों के पास कुल भूमि का 86.4 प्रतिशत भाग है। राज्‍य में कृषि भूमि केवल 10.4 प्रतिशत है। लगभग 80 प्रतिशत भूमि वर्षा द्वारा सिंचित है और किसान इंद्र देवता की कृपा पर निर्भर रहते हैं। वर्ष 2006-07 में खाद्यान्‍न का कुल उत्‍पादन 16 लाख मिलियन टन रहा ।

बागवानी

प्रकृति द्वारा हिमाचल प्रदेश को व्‍यापक रूप से कृषि के अनुकूल जलवायु और परिस्थितियां दी हैं जिसके कारण किसानों को विविध फल उगाने में मदद मिलती है। बागवानी के प्रमुख फल हैं- सेब, नाशपाती, आडू, बेर, खुमानी, गुठली वाले फल, नीबू, आम, लीची, अमरूद और झरबेरी आदि। 1950 में केवल 792 हेक्‍टेयर क्षेत्र बागवानी के अंतर्गत था, जो बढ़कर 2.23 लाख हेक्‍टेयर हो गया है। 1950 में फल उत्‍पादन 1200 मीट्रिक टन था, जो 2007 में बढकर 6.95 लाख टन हो गया है। फल उद्योग से लगभग 2200 करोड़ रूपये की घरेलू वार्षिक आय होती है। दसवीं पंचवर्षीय योजना में राज्‍य में बागवानी के विकास के लिए टेक्‍नोलॉजी मिशन 80 करोड़ रूपये की कुल लागत के साथ स्‍थापित किया जा रहा है। इस मिशन से राज्‍य में बागवानी विकास की सभी संभावनाओं का पता लगाया जाएगा। इस योजना में विभिन्‍न जलवायु वाले कृषि क्षेत्रों में चार उत्‍कृष्‍टता केंद्र बनाए जाएंगे और जल संरक्षण, ग्रीन हाउस, कार्बनिक कृषि और कृषि तकनीकों से जुड़ी सभी सुविधाएं प्रदान की जाएंगी।

परिवहन

हिमाचल प्रदेश राज्‍य में सड़कें ही यहां की जीवन रेखा हैं और यही संचार के प्रमुख साधन हैं। इसके 55,673 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में से 36,700 किलोमीटर में रहने योग्य स्थान है, जिसमें से 16,807 गांव अनेक पर्वतीय श्रृंखलाओं और घाटियों के ढलानों पर फैले हुए हैं। उत्‍पादन क्षेत्रों और बाजार केंद्रों को जोड़ने वाली महत्वपूर्ण सड़कों के निर्माण के लिए हिमाचल प्रदेश सरकार ने तीन वर्षों में प्रत्येक पंचायत को सड़क से जोड़ने का निर्णय किया है। यह राज्‍य जब1948 में बना, तो यहां पर केवल 288 कि.मी. लंबी सड़कें थीं जिनको 15 अगस्‍त 2007 तक बढ़ाकर 30,264 कि.मी. तक विकसित कर दिया गया है।

जैव प्रौद्योगिकी

जैव प्रौद्योगिकी के लिए राज्‍य में जैव-प्रौद्योगिकी के दोहन पर विशेष विकास किया जा रहा है। इसके विकास के लिए अलग से जैव-प्रौद्योगिकी विभाग खोल दिया गया है। राज्‍य की अपनी जैव-प्रौद्योगिकी नीति है। सरकार की ओर से जैव प्रौद्योगिकी इकाइयों को रियायतें दी जा रही हैं जो अन्‍य औद्योगिकी इकाइयों को दी जाती हैं। राज्‍य सरकार का सोलन ज़िले में जैव-प्रौद्योगिकी पार्क की स्‍थापना का विचार है।

सिंचाई और जलापूर्ति

वर्ष 2007 तक हिमाचल प्रदेश में कुल कृषि क्षेत्र 5.83 लाख हेक्‍टेयर था। गांवों में पीने के पानी की सुविधा दी गई है और राज्‍य में 14,611 हैंडपंप लग चुके हैं। जल आपूर्ति और सिंचाई व्यवस्था में सुधार के लिए राज्‍य सरकार 339 करोड़ रूपए की लागत से ‘वाश’ परियोजना चला रही है। इस परियोजना में सिंचाई और पीने के पानी के लिए जी.डी.जेड. सहयोग दे रही है।

वानिकी

राज्‍य का कुल क्षेत्रफल 55,673 वर्ग किलोमीटर है। रिकार्ड के अनुसार कुल वन क्षेत्र 37,033 वर्ग किलोमीटर है। इसमें लगभग 16,376 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में पहाड़ी वनस्‍पतियां नहीं उगाईं जा सकतीं क्‍योंकि यह क्षेत्र स्‍थायी रूप से बर्फ से ढ़का रहता है। उपयोग में आने वाला वन क्षेत्र 20,657 वर्ग किलोमीटर है। राज्‍य सरकार परियोजनाओं के द्वारा अधिकतम क्षेत्र को हरित क्षेत्र बनाने कि लिए प्रयास चल रहे हैं। इन योजनाओं के लिए सरकार अपनी योजनाओं के साथ साथ भारत सरकार की योजनाओं और बाह्य सहायता से चल रही योजनाओ को क्रियान्वित कर रही है। विश्‍व बैंक ने हिमालय में जलाशय विकास योजना के लिए 365 करोड़ रूपये स्‍वीकृत किए हैं। इस परियोजना को अगले छ: वर्षों में 10 जिलों के 42 विकास खंडों की 545 पंचायतों में चलाया जाएगा। राज्‍य में 2 राष्‍ट्रीय पार्क तथा 32 वन्‍यजीवन अभयारण्‍य हैं। वन्‍यजीवन अभयारण्‍य के अंतर्गत कुल क्षेत्र 5,562 कि.मी., राष्‍ट्रीय पार्क के अंतर्गत 1,440 कि.मी. क्षेत्र है। इस प्रकार कुल संरक्षित क्षेत्र 7,002 कि.मी. है।

पर्यटन

हिमाचल प्रदेश में पर्यटन उद्योग को उच्‍च प्राथमिकता दी गई है। हिमाचल प्रदेश सरकार ने विकास के लिए सुनियोजित विकास किया है जिसमें जनोपयोगी सेवाएं, सड़कें, संचार तंत्र, हवाई अड्डे, यातायात सेवाएं, जलापूर्ति और जन स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं को शामिल किया है। राज्‍य सरकार राज्‍य को ‘हर हाल में गंतव्‍य’ का रूप देने के लिए प्रतिबद्ध है। राज्‍य पर्यटन विकास निगम की आय में 10 प्रतिशत का योगदान करता है। यह निगम बिक्री कर, सुख-सुविधा कर और यात्री कर के रूप में 2 करोड़ वार्षिक आय का योगदान राज्य की आय में करता है। वर्ष 2007 में हिमाचल प्रदेश में 8.3 मिलियन पर्यटक आए जिनमें लगभग 2008 लाख पर्यटक विदेशी थे।

राज्‍य में तीर्थो और मानवशास्त्रीय महत्‍व के स्‍थलों का समृद्ध एवं अथाह भंडार है। इस राज्‍य का व्यास, पाराशर, वसिष्ठ, मार्कण्‍डेय और लोमश आदि ऋषि मुनियों का स्‍थल होने का गौरवपूर्ण पौराणिक इतिहास है, साथ ही गर्म पानी के स्रोत, ऐतिहासिक दुर्ग, प्राकृतिक तथा मानव निर्मित झीलें, उन्‍मुक्‍त घूमते चरवाहे पर्यटकों को असीम सुख और आनंद प्रदान करते हैं। राज्‍य सरकार पर्यटन को प्रोत्साहित करने के लिए निजी क्षेत्रों को योजनाओं में शामिल करके पर्यटन संबंधी विकास इस तरह कर रही है कि राज्‍य की प्राकृतिक स्थिति और पर्यावरण अक्षुण्‍ण बना रहे। साथ ही रोजगारों का सृजन हो और पर्यटन का विकास हो। पर्यटकों के प्रवास की अवधि बढ़ाने के लिए गतिविधियों पर आधारित पर्यटन का विकास विशेष रूप से किया जा रहा है।

पर्यटन के विकास की दृष्टि से राज्‍य सरकार निम्न क्षेत्रों पर विशेष रूप से ध्‍यान दे रही है-

  1. इतिहास संबंधी पर्यटन
  2. नए पर्यटन क्षेत्रों का पता लगाना
  3. पर्यटन व्यवस्था का सुधार
  4. तीर्थ पर्यटनको बढ़ावा देना
  5. आदिवासी पर्यटन
  6. प्रकृति पर्यटन
  7. स्‍वास्‍थ्‍य पर्यटन
  8. साहसिक पर्यटन को प्रोत्‍साहन देना
  9. वन्‍यजीवन पर्यटन
  10. सांस्‍कृतिक पर्यटन

वर्ष 2006-07 में राज्‍य मेंके पर्यटन विकास के लिए 6276.38 लाख रुपये का आवंटन हुआ था। भारत सरकार ने 8 करोड़ रुपये कुल्‍लू-मनाली-लाहौल एवं स्‍पीति तथा लेह मठ परिसर के लिए, 21 करोड़ रुपये कांगड़ा, शिमला और सिरमौर क्षेत्र के लिए, 16 करोड़ रुपये बिलासपुर-मंडी और चंबा क्षेत्र के लिए, 30 लाख रूपये मनाली में पर्यटन सूचना केंद्र का निर्माण करने के लिए स्‍वीकृत किए थे। त्‍योहारों और अन्‍य मुख्य अवसरों के लिए 1,545 योजनाओं हेतु 67.57 करोड़ रुपये की केंद्रीय वित्त सहायता प्राप्‍त हुई थी।


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