"कैलाश मानसरोवर": अवतरणों में अंतर

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==शिव का धाम कैलाश मानसरोवर==
==शिव का धाम कैलाश मानसरोवर==
कैलाश मानसरोवर को शिव-पार्वती का घर माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार मानसरोवर के पास स्थित कैलाश पर्वत पर शिव-शंभु का धाम है। यही वह पावन जगह है, जहाँ शिव-शंभु विराजते हैं। कैलाश बर्फ से आच्छादित 22,028 फुट ऊँचे शिखर और उससे लगे मानसरोवर को कैलाश मानसरोवर तीर्थ कहते है और इस प्रदेश को मानस खंड कहते हैं। हर साल कैलाश-मानसरोवर की यात्रा करने, शिव-शंभु की आराधना करने, हजारों साधु-संत, श्रद्धालु, दार्शनिक यहाँ एकत्रित होते हैं, जिससे इस स्थान की पवित्रता और महत्ता काफी बढ़ जाती है।
कैलाश मानसरोवर को शिव-पार्वती का घर माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार मानसरोवर के पास स्थित कैलाश पर्वत पर शिव-शंभु का धाम है। यही वह पावन जगह है, जहाँ शिव-शंभु विराजते हैं। पुराणों के अनुसार यहां शिवजी का स्थायी निवास होने के कारण इस स्थन को 12 ज्येतिर्लिंगों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है। कैलाश बर्फ से आच्छादित 22,028 फुट ऊँचे शिखर और उससे लगे मानसरोवर को कैलाश मानसरोवर तीर्थ कहते है और इस प्रदेश को मानस खंड कहते हैं। हर साल कैलाश-मानसरोवर की यात्रा करने, शिव-शंभु की आराधना करने, हजारों साधु-संत, श्रद्धालु, दार्शनिक यहाँ एकत्रित होते हैं, जिससे इस स्थान की पवित्रता और महत्ता काफी बढ़ जाती है।
कैलाश-मानसरोवर उतना ही प्राचीन है, जितनी प्राचीन हमारी सृष्टि है। इस अलौकिक जगह पर प्रकाश तरंगों और ध्वनि तरंगों का समागम होता है, जो ‘ॐ’ की प्रतिध्वनि करता है। इस पावन स्थल को भारतीय दर्शन के हृदय की उपमा दी जाती है, जिसमें भारतीय सभ्यता की झलक प्रतिबिंबित होती है।  
कैलाश-मानसरोवर उतना ही प्राचीन है, जितनी प्राचीन हमारी सृष्टि है। इस अलौकिक जगह पर प्रकाश तरंगों और ध्वनि तरंगों का समागम होता है, जो ‘ॐ’ की प्रतिध्वनि करता है। इस पावन स्थल को भारतीय दर्शन के हृदय की उपमा दी जाती है, जिसमें भारतीय सभ्यता की झलक प्रतिबिंबित होती है।  


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परम पावन कैलाश पर्वत हिन्दु धर्म में अपना विशिष्ट स्थान रखता है । हिन्दु धर्म के अनुसार यह भगवान शंकर एवं जगत माता पार्वती का स्थायी निवास है । कैलास पर्वतमाला कश्मीर से लेकर भूटान तक फैली हुई है और ल्हा चू और झोंग चू के बीच कैलाश पर्वत है जिसके उत्तरी शिखर का नाम कैलाश है। कैलाश पर्वत को 'गणपर्वत और रजतगिरि' भी कहते हैं। कदाचित प्राचीन साहित्य में उल्लिखित मेरु भी यही है। मान्यता है कि यह पर्वत स्वयंभू है। कैलाश पर्वत के दक्षिण भाग को नीलम, पूर्व भाग को क्रिस्टल, पश्चिम को रूबी और उत्तर को स्वर्ण रूप में माना जाता है। कैलाश पर्वत समुद्र सतह से 22,028 फीट ऊँचा एक पत्थर का पिरामिड जैसा है, जिसके शिखर की आकृति विराट् शिवलिंग की तरह है। पर्वतों से बने षोडशदल कमल के मध्य यह स्थित है। यह सदैव बर्फ से आच्छादित रहता है। इसकी परिक्रमा का महत्व कहा गया है तथा हिमालय से उत्तरी क्षेत्र में तिब्बत प्रदेश में स्थित एक तीर्थ है। चूँकि तिब्बत चीन के अधीन है अतः कैलाश चीन में आता है। जो चार धर्मों तिब्बती धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म और हिन्दू का आध्यात्मिक केन्द्र है। कैलाश पर्वत की चार दिशाओं से एशिया की चार नदियों का उद्गम हुआ है ब्रह्मपुत्र, सिंधू, सतलज व करनाली। कैलाश के चारों दिशाओं में विभिन्न जानवरों के मुख है जिसमें से नदियों का उद्गम होता है, पूर्व में अश्वमुख है, पश्चिम में हाथी का मुख है, उत्तर में सिंह का मुख है, दक्षिण में मोर का मुख है।  
परम पावन कैलाश पर्वत हिन्दु धर्म में अपना विशिष्ट स्थान रखता है । हिन्दु धर्म के अनुसार यह भगवान शंकर एवं जगत माता पार्वती का स्थायी निवास है । कैलास पर्वतमाला कश्मीर से लेकर भूटान तक फैली हुई है और ल्हा चू और झोंग चू के बीच कैलाश पर्वत है जिसके उत्तरी शिखर का नाम कैलाश है। कैलाश पर्वत को 'गणपर्वत और रजतगिरि' भी कहते हैं। कदाचित प्राचीन साहित्य में उल्लिखित मेरु भी यही है। मान्यता है कि यह पर्वत स्वयंभू है। कैलाश पर्वत के दक्षिण भाग को नीलम, पूर्व भाग को क्रिस्टल, पश्चिम को रूबी और उत्तर को स्वर्ण रूप में माना जाता है। कैलाश पर्वत समुद्र सतह से 22,028 फीट ऊँचा एक पत्थर का पिरामिड जैसा है, जिसके शिखर की आकृति विराट् शिवलिंग की तरह है। पर्वतों से बने षोडशदल कमल के मध्य यह स्थित है। यह सदैव बर्फ से आच्छादित रहता है। इसकी परिक्रमा का महत्व कहा गया है तथा हिमालय से उत्तरी क्षेत्र में तिब्बत प्रदेश में स्थित एक तीर्थ है। चूँकि तिब्बत चीन के अधीन है अतः कैलाश चीन में आता है। जो चार धर्मों तिब्बती धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म और हिन्दू का आध्यात्मिक केन्द्र है। कैलाश पर्वत की चार दिशाओं से एशिया की चार नदियों का उद्गम हुआ है ब्रह्मपुत्र, सिंधू, सतलज व करनाली। कैलाश के चारों दिशाओं में विभिन्न जानवरों के मुख है जिसमें से नदियों का उद्गम होता है, पूर्व में अश्वमुख है, पश्चिम में हाथी का मुख है, उत्तर में सिंह का मुख है, दक्षिण में मोर का मुख है।  


==मानसरोवर==
==मानसरोवर झील==
मानसरोवर झील तिब्बत में स्थित एक झील है । यह झील लगभग 320 वर्ग किलोमाटर के क्षेत्र में फैला हुआ है । इसके उत्तर में कैलाश पर्वत तथा पश्चिम मे रक्षातल झील है । यह समुद्रतल से लगभग 4556 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है । इसकी परिमिति लगभग 88 किलोमीटर है और औसत गहराई 90 मीटर । मानसरोवर झील से घिरा होना कैलाश पर्वत की धार्मिक महत्ता को और अधिक बढ़ाता है। प्राचीनकाल से विभिन्न धर्मों के लिए इस स्थान का विशेष महत्व है। इस स्थान से जुड़े विभिन्न मत और लोक-कथाएँ केवल एक ही सत्य को प्रदर्शित करती हैं, जो है सभी धर्मों की एकता। हिन्दू धर्म में इसे लिए पवित्र माना गया है । इसके दर्शन के लिए हज़ारों लोग प्रतिवर्ष कैलाश मानसरोवर यात्रा में भाग लेते है ।  
मानसरोवर झील तिब्बत में स्थित एक झील है । यह झील लगभग 320 वर्ग किलोमाटर के क्षेत्र में फैला हुआ है । इसके उत्तर में कैलाश पर्वत तथा पश्चिम मे रक्षातल झील है । पुराणों के अनुसार विश्व में सर्वाधिक समुद्रतल से 17 हजार फुट की उंचाई पर स्थित 120 किलोमीटर की परिधि तथा 3 सौ फुट गहरे मीठे पानी की मानसरोवर झील की उत्पत्ति भगीरथ की तपस्या से भगवान शिव के प्रसन्न होने पर हुई थी। ऐसी अद्भुत प्राकृतिक झील इतनी ऊंचाई पर किसी भी देश में नहीं है। पुराणों के अनुसार शंकर भगवान द्वारा प्रकट किये गये जल के वेग से जो झील बनी. कालांतर में उसी का नाम मानसरोवर हुआ। मानसरोवर झील से घिरा होना कैलाश पर्वत की धार्मिक महत्ता को और अधिक बढ़ाता है। प्राचीनकाल से विभिन्न धर्मों के लिए इस स्थान का विशेष महत्व है। इस स्थान से जुड़े विभिन्न मत और लोक-कथाएँ केवल एक ही सत्य को प्रदर्शित करती हैं, जो है सभी धर्मों की एकता। हिन्दू धर्म में इसे लिए पवित्र माना गया है । इसके दर्शन के लिए हज़ारों लोग प्रतिवर्ष कैलाश मानसरोवर यात्रा में भाग लेते है ।  


हमारे शास्त्रों के अनुसार परमपिता परमेश्वर के आनन्द अश्रुओं को भगवान ब्रह्मा ने अपने कमण्डुल में रख लिया था तथा इस भूलोक पर "त्रियष्टकं" (तिब्बत) स्वर्ग समान स्थल पर "मानसरोवर" की स्थापना की । शक्त ग्रंथ के अनुसार, देवी सती का दांया हाथ इसी स्थान पर गिरा था, जिससे यह झील तैयार हुई। इसलिए यहां एक पाषाण शिला को उसका रूप मानकर पूजा जाता है। इसलिए इसे 51 शक्तिपीठों में से एक माना गया है। गर्मी के दिनों में जब मानसरोवर की बर्फ पिघलती है, तो एक प्रकार की आवाज भी सुनाई देती है। श्रद्धालु मानते हैं कि यह मृदंग की आवाज है। मान्यता यह भी है कि कोई व्यक्ति मानसरोवर में एक बार डुबकी लगा ले, तो वह रुद्रलोक पहुंच सकता है। कैलाश पर्वत जो स्वर्ग है जिस पर कैलाशपति सदाशिव विराजे हैं नीचे मृत्यलोक है, इसकी बाहरी परिधि 52 किमी है। मानसरोवर पहाड़ों से घीरी झील है जो पुराणों में 'क्षीर सागर' के नाम से वर्णित है। क्षीर सागर कैलाश से 40 किमी की दूरी पर है व इसी में शेष शैय्‌या पर विष्णु व लक्ष्मी विराजित हो पूरे संसार को संचालित कर रहे है। ऐसा माना जाता है कि महाराज मानधाता ने मानसरोवर झील की खोज की और कई वर्षों तक इसके किनारे तपस्या की थी, जो कि इन पर्वतों की तलहटी में स्थित है।  
हमारे शास्त्रों के अनुसार परमपिता परमेश्वर के आनन्द अश्रुओं को भगवान ब्रह्मा ने अपने कमण्डुल में रख लिया था तथा इस भूलोक पर "त्रियष्टकं" (तिब्बत) स्वर्ग समान स्थल पर "मानसरोवर" की स्थापना की । शक्त ग्रंथ के अनुसार, देवी सती का दांया हाथ इसी स्थान पर गिरा था, जिससे यह झील तैयार हुई। इसलिए यहां एक पाषाण शिला को उसका रूप मानकर पूजा जाता है। इसलिए इसे 51 शक्तिपीठों में से एक माना गया है। गर्मी के दिनों में जब मानसरोवर की बर्फ पिघलती है, तो एक प्रकार की आवाज भी सुनाई देती है। श्रद्धालु मानते हैं कि यह मृदंग की आवाज है। मान्यता यह भी है कि कोई व्यक्ति मानसरोवर में एक बार डुबकी लगा ले, तो वह रुद्रलोक पहुंच सकता है। कैलाश पर्वत जो स्वर्ग है जिस पर कैलाशपति सदाशिव विराजे हैं नीचे मृत्यलोक है, इसकी बाहरी परिधि 52 किमी है। मानसरोवर पहाड़ों से घीरी झील है जो पुराणों में 'क्षीर सागर' के नाम से वर्णित है। क्षीर सागर कैलाश से 40 किमी की दूरी पर है व इसी में शेष शैय्‌या पर विष्णु व लक्ष्मी विराजित हो पूरे संसार को संचालित कर रहे है। ऐसा माना जाता है कि महाराज मानधाता ने मानसरोवर झील की खोज की और कई वर्षों तक इसके किनारे तपस्या की थी, जो कि इन पर्वतों की तलहटी में स्थित है।  


==राक्षस ताल==
==राक्षस ताल==
राक्षस ताल लगभग 225 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है। प्रचलित है कि रावण ने यहां पर शिव की आराधना की थी। इसलिए इसे राक्षस ताल या रावणहृद भी कहते हैं। एक छोटी नदी गंगा-चू दोनों झीलों को जोडती है।  
राक्षस ताल लगभग 225 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र, 84 किलोमीटर परिधि तथा 150 फुट गहरे में फैला है। प्रचलित है कि राक्षसों के राजा रावण ने यहां पर शिव की आराधना की थी। इसलिए इसे राक्षस ताल या रावणहृद भी कहते हैं। एक छोटी नदी गंगा-चू दोनों झीलों को जोडती है।  


==पौराणिक मान्यताये==  
==पौराणिक मान्यताये==  
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रामायण की कहानियां कहती हैं कि हिमालय जैसा कोई दूसरा पर्वत नहीं है, क्योंकि यहां कैलाश और मानसरोवर स्थित हैं। पौराणिक अनुश्रुतियों के अनुसार शिव और ब्रह्मा आदि देवगण, मरीच आदि ऋषि एवं लंकापति रावण, भस्मासुर आदि और चक्रवर्ती मांधाता ने यहाँ तप किया था। पांडवों के दिग्विजय प्रयास के समय अर्जुन ने इस प्रदेश पर विजय प्राप्त किया था। युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में इस प्रदेश के राजा ने उत्तम घोड़े, सोना, रत्न और बाक के पूँछ के बने काले और सफेद चामर भेंट किए थे। इस प्रदेश की यात्रा व्यास, भीम, कृष्ण, दत्तात्रेय आदि ने की थी। इनके अतिरिक्त अन्य अनेक ऋषि मुनियों के यहाँ निवास करने का उल्लेख प्राप्त होता है। कुछ लोगों का कहना है कि आदि शंकराचार्य ने इसी के आसपास कहीं अपना शरीर त्याग किया था। हिन्दू धर्म के अनुयायियों की मान्यता है कि कैलाश पर्वत मेरू पर्वत है जो ब्राह्मंड की धूरी है।  
रामायण की कहानियां कहती हैं कि हिमालय जैसा कोई दूसरा पर्वत नहीं है, क्योंकि यहां कैलाश और मानसरोवर स्थित हैं। पौराणिक अनुश्रुतियों के अनुसार शिव और ब्रह्मा आदि देवगण, मरीच आदि ऋषि एवं लंकापति रावण, भस्मासुर आदि और चक्रवर्ती मांधाता ने यहाँ तप किया था। पांडवों के दिग्विजय प्रयास के समय अर्जुन ने इस प्रदेश पर विजय प्राप्त किया था। युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में इस प्रदेश के राजा ने उत्तम घोड़े, सोना, रत्न और बाक के पूँछ के बने काले और सफेद चामर भेंट किए थे। इस प्रदेश की यात्रा व्यास, भीम, कृष्ण, दत्तात्रेय आदि ने की थी। इनके अतिरिक्त अन्य अनेक ऋषि मुनियों के यहाँ निवास करने का उल्लेख प्राप्त होता है। कुछ लोगों का कहना है कि आदि शंकराचार्य ने इसी के आसपास कहीं अपना शरीर त्याग किया था। हिन्दू धर्म के अनुयायियों की मान्यता है कि कैलाश पर्वत मेरू पर्वत है जो ब्राह्मंड की धूरी है।  
पुराणों के अनुसार इस पवित्र झील की एक परिक्रमा से एक जन्म तथा दस परिक्रमा से हजार जन्मों के पापों का नाश और 108 बार परिक्रमा करने से प्राणी भवबंधन से मुक्त हो कर ईश्वर में समाहित हो जाता है। शिव पुराण के अनुसार कुबेर ने इसी स्थान पर कठिन तपस्या की थी. जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने कैलास पार्वत को अपना स्थायी निवास तथा कुबेर को अपना सखा बनने का वरदान दिया था। शास्त्रों में इसी स्थान को पृथ्वी का स्वर्ग और कुबेर की अलकापुरी की संज्ञा दी गई है।


कैलास पर रावण ने की थी शिव स्तुति  --  शिव महापुराण के अनुसार एक बार लंकापति रावण ने कई वर्षों तक लगातार शिव स्तुति की, लेकिन उसकी स्तुति का कोई प्रभाव भगवान शंकर की समाधि पर नहीं पड़ा, तब उसने कैलास पर्वत के नीचे घुसकर उसे हिलाने की कोशिश की ताकि भगवान शंकर से उठकर उसकी इच्छानुसार वरदान प्रदान करें। उसकी इस इच्छा को जानकर शिव ने उसे पहले ही उसे कैलास के नीचे दबा दिया, जिससे वह बाहर न निकल सके। पर्वत के नीचे दब जाने के बाद रावण ने शिव का प्यारा तांडव नृत्य करते हुए एक स्त्रोत रचकर गाने लगा। जिससे प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने उसे इच्छानुसार वरदान दिया।
कैलास पर रावण ने की थी शिव स्तुति  --  शिव महापुराण के अनुसार एक बार लंकापति रावण ने कई वर्षों तक लगातार शिव स्तुति की, लेकिन उसकी स्तुति का कोई प्रभाव भगवान शंकर की समाधि पर नहीं पड़ा, तब उसने कैलास पर्वत के नीचे घुसकर उसे हिलाने की कोशिश की ताकि भगवान शंकर से उठकर उसकी इच्छानुसार वरदान प्रदान करें। उसकी इस इच्छा को जानकर शिव ने उसे पहले ही उसे कैलास के नीचे दबा दिया, जिससे वह बाहर न निकल सके। पर्वत के नीचे दब जाने के बाद रावण ने शिव का प्यारा तांडव नृत्य करते हुए एक स्त्रोत रचकर गाने लगा। जिससे प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने उसे इच्छानुसार वरदान दिया।

17:36, 4 जनवरी 2011 का अवतरण

शिव का धाम कैलाश मानसरोवर

कैलाश मानसरोवर को शिव-पार्वती का घर माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार मानसरोवर के पास स्थित कैलाश पर्वत पर शिव-शंभु का धाम है। यही वह पावन जगह है, जहाँ शिव-शंभु विराजते हैं। पुराणों के अनुसार यहां शिवजी का स्थायी निवास होने के कारण इस स्थन को 12 ज्येतिर्लिंगों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है। कैलाश बर्फ से आच्छादित 22,028 फुट ऊँचे शिखर और उससे लगे मानसरोवर को कैलाश मानसरोवर तीर्थ कहते है और इस प्रदेश को मानस खंड कहते हैं। हर साल कैलाश-मानसरोवर की यात्रा करने, शिव-शंभु की आराधना करने, हजारों साधु-संत, श्रद्धालु, दार्शनिक यहाँ एकत्रित होते हैं, जिससे इस स्थान की पवित्रता और महत्ता काफी बढ़ जाती है। कैलाश-मानसरोवर उतना ही प्राचीन है, जितनी प्राचीन हमारी सृष्टि है। इस अलौकिक जगह पर प्रकाश तरंगों और ध्वनि तरंगों का समागम होता है, जो ‘ॐ’ की प्रतिध्वनि करता है। इस पावन स्थल को भारतीय दर्शन के हृदय की उपमा दी जाती है, जिसमें भारतीय सभ्यता की झलक प्रतिबिंबित होती है।

कैलाश पर्वत

परम पावन कैलाश पर्वत हिन्दु धर्म में अपना विशिष्ट स्थान रखता है । हिन्दु धर्म के अनुसार यह भगवान शंकर एवं जगत माता पार्वती का स्थायी निवास है । कैलास पर्वतमाला कश्मीर से लेकर भूटान तक फैली हुई है और ल्हा चू और झोंग चू के बीच कैलाश पर्वत है जिसके उत्तरी शिखर का नाम कैलाश है। कैलाश पर्वत को 'गणपर्वत और रजतगिरि' भी कहते हैं। कदाचित प्राचीन साहित्य में उल्लिखित मेरु भी यही है। मान्यता है कि यह पर्वत स्वयंभू है। कैलाश पर्वत के दक्षिण भाग को नीलम, पूर्व भाग को क्रिस्टल, पश्चिम को रूबी और उत्तर को स्वर्ण रूप में माना जाता है। कैलाश पर्वत समुद्र सतह से 22,028 फीट ऊँचा एक पत्थर का पिरामिड जैसा है, जिसके शिखर की आकृति विराट् शिवलिंग की तरह है। पर्वतों से बने षोडशदल कमल के मध्य यह स्थित है। यह सदैव बर्फ से आच्छादित रहता है। इसकी परिक्रमा का महत्व कहा गया है तथा हिमालय से उत्तरी क्षेत्र में तिब्बत प्रदेश में स्थित एक तीर्थ है। चूँकि तिब्बत चीन के अधीन है अतः कैलाश चीन में आता है। जो चार धर्मों तिब्बती धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म और हिन्दू का आध्यात्मिक केन्द्र है। कैलाश पर्वत की चार दिशाओं से एशिया की चार नदियों का उद्गम हुआ है ब्रह्मपुत्र, सिंधू, सतलज व करनाली। कैलाश के चारों दिशाओं में विभिन्न जानवरों के मुख है जिसमें से नदियों का उद्गम होता है, पूर्व में अश्वमुख है, पश्चिम में हाथी का मुख है, उत्तर में सिंह का मुख है, दक्षिण में मोर का मुख है।

मानसरोवर झील

मानसरोवर झील तिब्बत में स्थित एक झील है । यह झील लगभग 320 वर्ग किलोमाटर के क्षेत्र में फैला हुआ है । इसके उत्तर में कैलाश पर्वत तथा पश्चिम मे रक्षातल झील है । पुराणों के अनुसार विश्व में सर्वाधिक समुद्रतल से 17 हजार फुट की उंचाई पर स्थित 120 किलोमीटर की परिधि तथा 3 सौ फुट गहरे मीठे पानी की मानसरोवर झील की उत्पत्ति भगीरथ की तपस्या से भगवान शिव के प्रसन्न होने पर हुई थी। ऐसी अद्भुत प्राकृतिक झील इतनी ऊंचाई पर किसी भी देश में नहीं है। पुराणों के अनुसार शंकर भगवान द्वारा प्रकट किये गये जल के वेग से जो झील बनी. कालांतर में उसी का नाम मानसरोवर हुआ। मानसरोवर झील से घिरा होना कैलाश पर्वत की धार्मिक महत्ता को और अधिक बढ़ाता है। प्राचीनकाल से विभिन्न धर्मों के लिए इस स्थान का विशेष महत्व है। इस स्थान से जुड़े विभिन्न मत और लोक-कथाएँ केवल एक ही सत्य को प्रदर्शित करती हैं, जो है सभी धर्मों की एकता। हिन्दू धर्म में इसे लिए पवित्र माना गया है । इसके दर्शन के लिए हज़ारों लोग प्रतिवर्ष कैलाश मानसरोवर यात्रा में भाग लेते है ।

हमारे शास्त्रों के अनुसार परमपिता परमेश्वर के आनन्द अश्रुओं को भगवान ब्रह्मा ने अपने कमण्डुल में रख लिया था तथा इस भूलोक पर "त्रियष्टकं" (तिब्बत) स्वर्ग समान स्थल पर "मानसरोवर" की स्थापना की । शक्त ग्रंथ के अनुसार, देवी सती का दांया हाथ इसी स्थान पर गिरा था, जिससे यह झील तैयार हुई। इसलिए यहां एक पाषाण शिला को उसका रूप मानकर पूजा जाता है। इसलिए इसे 51 शक्तिपीठों में से एक माना गया है। गर्मी के दिनों में जब मानसरोवर की बर्फ पिघलती है, तो एक प्रकार की आवाज भी सुनाई देती है। श्रद्धालु मानते हैं कि यह मृदंग की आवाज है। मान्यता यह भी है कि कोई व्यक्ति मानसरोवर में एक बार डुबकी लगा ले, तो वह रुद्रलोक पहुंच सकता है। कैलाश पर्वत जो स्वर्ग है जिस पर कैलाशपति सदाशिव विराजे हैं नीचे मृत्यलोक है, इसकी बाहरी परिधि 52 किमी है। मानसरोवर पहाड़ों से घीरी झील है जो पुराणों में 'क्षीर सागर' के नाम से वर्णित है। क्षीर सागर कैलाश से 40 किमी की दूरी पर है व इसी में शेष शैय्‌या पर विष्णु व लक्ष्मी विराजित हो पूरे संसार को संचालित कर रहे है। ऐसा माना जाता है कि महाराज मानधाता ने मानसरोवर झील की खोज की और कई वर्षों तक इसके किनारे तपस्या की थी, जो कि इन पर्वतों की तलहटी में स्थित है।

राक्षस ताल

राक्षस ताल लगभग 225 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र, 84 किलोमीटर परिधि तथा 150 फुट गहरे में फैला है। प्रचलित है कि राक्षसों के राजा रावण ने यहां पर शिव की आराधना की थी। इसलिए इसे राक्षस ताल या रावणहृद भी कहते हैं। एक छोटी नदी गंगा-चू दोनों झीलों को जोडती है।

पौराणिक मान्यताये

हिंदू के अलावा, बौद्ध और जैन धर्म में भी कैलाश मानसरोवर को पवित्र तीर्थस्थान के रूप में देखा जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह जगह कुबेर की नगरी है। यहीं से महाविष्णु के करकमलों से निकलकर गंगा कैलाश पर्वत की चोटी पर गिरती है, जहाँ प्रभु शिव उन्हें अपनी जटाओं में भर धरती में निर्मल धारा के रूप में प्रवाहित करते हैं। हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, जो व्यक्ति मानसरोवर झील की धरती को छू लेता है, वह ब्रह्मा के बनाये स्वर्ग में पहुंच जाता है और जो व्यक्ति झील का पानी पी लेता है, उसे भगवान शिव के बनाये स्वर्ग में जाने का अधिकार मिल जाता है।

रामायण की कहानियां कहती हैं कि हिमालय जैसा कोई दूसरा पर्वत नहीं है, क्योंकि यहां कैलाश और मानसरोवर स्थित हैं। पौराणिक अनुश्रुतियों के अनुसार शिव और ब्रह्मा आदि देवगण, मरीच आदि ऋषि एवं लंकापति रावण, भस्मासुर आदि और चक्रवर्ती मांधाता ने यहाँ तप किया था। पांडवों के दिग्विजय प्रयास के समय अर्जुन ने इस प्रदेश पर विजय प्राप्त किया था। युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में इस प्रदेश के राजा ने उत्तम घोड़े, सोना, रत्न और बाक के पूँछ के बने काले और सफेद चामर भेंट किए थे। इस प्रदेश की यात्रा व्यास, भीम, कृष्ण, दत्तात्रेय आदि ने की थी। इनके अतिरिक्त अन्य अनेक ऋषि मुनियों के यहाँ निवास करने का उल्लेख प्राप्त होता है। कुछ लोगों का कहना है कि आदि शंकराचार्य ने इसी के आसपास कहीं अपना शरीर त्याग किया था। हिन्दू धर्म के अनुयायियों की मान्यता है कि कैलाश पर्वत मेरू पर्वत है जो ब्राह्मंड की धूरी है।

पुराणों के अनुसार इस पवित्र झील की एक परिक्रमा से एक जन्म तथा दस परिक्रमा से हजार जन्मों के पापों का नाश और 108 बार परिक्रमा करने से प्राणी भवबंधन से मुक्त हो कर ईश्वर में समाहित हो जाता है। शिव पुराण के अनुसार कुबेर ने इसी स्थान पर कठिन तपस्या की थी. जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने कैलास पार्वत को अपना स्थायी निवास तथा कुबेर को अपना सखा बनने का वरदान दिया था। शास्त्रों में इसी स्थान को पृथ्वी का स्वर्ग और कुबेर की अलकापुरी की संज्ञा दी गई है।

कैलास पर रावण ने की थी शिव स्तुति -- शिव महापुराण के अनुसार एक बार लंकापति रावण ने कई वर्षों तक लगातार शिव स्तुति की, लेकिन उसकी स्तुति का कोई प्रभाव भगवान शंकर की समाधि पर नहीं पड़ा, तब उसने कैलास पर्वत के नीचे घुसकर उसे हिलाने की कोशिश की ताकि भगवान शंकर से उठकर उसकी इच्छानुसार वरदान प्रदान करें। उसकी इस इच्छा को जानकर शिव ने उसे पहले ही उसे कैलास के नीचे दबा दिया, जिससे वह बाहर न निकल सके। पर्वत के नीचे दब जाने के बाद रावण ने शिव का प्यारा तांडव नृत्य करते हुए एक स्त्रोत रचकर गाने लगा। जिससे प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने उसे इच्छानुसार वरदान दिया।

मानसरोवर की उत्पत्ति -- पुराणों के अनुसार एक समय की बात है कि सनक, सनंदन, सनत् कुमार व सनत् सुजात ऋषि कैलास पर्वत पर शिव शंकर को प्रसन्न करने के लिए तपश्या कर रहे थे, उसी दौरान 12 वर्षों तक वर्षा न होने के कारण सारी नदियां सूख गयी थी, और इन ऋषियों को स्नान आदि करने के लिए बहुत दूर मंदाकिनी तक जाना पड़ता था। ऋषियों की प्रार्थना पर ब्रम्हाजी ने अपने मानसिक संकल्प से पर्वत के निकट एक सरोवर का निर्माण किया और बाद में स्वयं हंसरूप में होकर इसमें प्रवेश किया था। इस प्रकार यह झील सर्वप्रथम भगवान ब्रह्मा के मन में उत्पन्न हुआ था । इसी कारण इसे मानस मानसरेवर कहते हैं। दरअसल, मानसरोवर संस्कृत के मानस (मस्तिष्क) और सरोवर (झील) शब्द से बना है। जिसका शाब्दिक अर्थ होता है - मन का सरोवर । मान्यता है कि ब्रह्ममुहुर्त (प्रात:काल 3-5बजे) में देवता गण यहां स्नान करते हैं।

यह स्थान बौद्ध धर्मावलंबियों के सभी तीर्थ स्थानों में सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। बौद्ध साहित्य में मानसरोवर का उल्लेख अनवतप्त के रूप में हुआ है। उसे पृथ्वी स्थित स्वर्ग कहा गया है। बौद्ध धर्मावलंबियों का मानना है कि कैलाश पर्वत पृथ्वी के मध्य भाग में स्थित है। उसकी तलछटी केंद्र (उपत्यका) में रत्नखचित कल्पवृक्ष लगा हुआ है। जिसके फलों के चिकित्सकीय गुण सभी प्रकार के शारीरिक व मानसिक रोगों का उपचार करने में सक्षम हैं। डेमचोक (धर्मपाल) वहाँ के अधिष्ठाता देव हैं; वे व्याघ्रचर्म धारण करते, मुंडमाल पहनते हैं, उनके हाथ में डम डिग्री और त्रिशूल है, वज्र उनकी शक्ति है। कैलाश पर स्थित बुद्ध भगवान के अलौकिक रूप ‘डेमचौक’ बौद्ध धर्मावलंबियों के लिए पूजनीय है। वह बुद्ध के इस रूप को ‘धर्मपाल’ की संज्ञा भी देते हैं। बौद्ध धर्मावलंबियों का मानना है कि इस स्थान पर आकर उन्हें निर्वाण की प्राप्ति होती है। ग्यारहवीं शती में सिद्ध मिलेरेपा इस प्रदेश में अनेक वर्ष तक रहे। विक्रमशिला के प्रमुख आचार्य दीपशंकर श्रीज्ञान (982-1054 ई0) तिब्बत नरेश के आमंत्रण पर बौद्ध धर्म के प्रचारार्थ यहाँ आए थे। मानसरोवर झील को बौद्ध धर्म में भी इसे पवित्र माना गया है । ऐसा कहा जाता है कि रानी माया को भगवान बुद्ध की पहचान यहीं हुई थी और कहा जाता है कि मानसरोवर के पास ही भगवान बुद्ध महारानी माया के गर्भ में आये। बौद्ध समुदाय कैलाश पर्वत को कांग रिनपोचे पर्वत भी कहते हैं। उनका मानना है कि यहां उन्हें आध्यात्मिक सुख की प्राप्ति होती है।

तिब्बतियों की मान्यता है कि वहाँ के एक सत कवि ने वर्षों गुफा में रहकर तपस्या की थीं, तिब्बती (भोटिया) लोग कैलास मानसरोवर की तीन अथवा तेरह परिक्रमा का महत्व मानते हैं और अनेक यात्री दंड प्रणिपात करने से एक जन्म का, दस परिक्रमा करने से एक कल्प का पाप नष्ट हो जाता है। जो 108 परिक्रमा पूरी करते हैं उन्हें जन्म-मरण से मुक्ति मिल जाती है। वहीं जैन धर्म में भी इस स्थान का महत्व है। वे कैलाश को अष्टापद कहते है। कहा जाता है कि प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव ने यहीं आध्यात्मिक ज्ञान (निर्वाण) प्राप्त किया था। जैनियों की मान्यता है कि आदिनाथ ऋषभ देव का यह निर्वाण स्थल कैलाश (अष्टपद) है। कहते हैं ऋषभ देव ने आठ पग में कैलाश की यात्रा की थी। जैन धर्म तथा तिब्बत के स्थानीय बोनपा लोग भी मानसरोवर झील कोपवित्र मानते हैं। इस झील के तट पर कई मठ भी हैं ।

कालीदास ने भी किया कैलास का वर्णन -- कवि कालीदास ने भी अपने साहित्य लेखन के माध्यम से मेघदूत के पूर्वाद्ध, 60 में कैलास का वर्णन किया है। मेघदूत की अलकापुरी कैलास पर ही बसी थी।

मानस मानसरोवर में हंसों का वास -- स्थानीय लोगों के अनुसार इस मानस मानसरोवर में हमेशा कई दर्जन हंसों के जोड़े रहते हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ