"दृष्टकूट": अवतरणों में अंतर
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|विशेष=इसका एक उदाहरण द्रष्टव्य है-कृष्ण वियोग में गोपिकाओं का कथन है-ग्रह नक्षत्र जुग जोरि अरध करि सोई बनत अब खात।यहाँ ग्रह अर्थात्9 नक्षत्र अर्थात् 27 जुग अर्थात् 4 को जोरि(जोड़कर) प्राप्त 40 को अरच करि (आशा करके) प्राप्त'बीस' (अर्थात् बिस=विष) खाते ही अब बनता है। | |विशेष=इसका एक उदाहरण द्रष्टव्य है-[[कृष्ण]] वियोग में गोपिकाओं का कथन है-ग्रह नक्षत्र जुग जोरि अरध करि सोई बनत अब खात।यहाँ ग्रह अर्थात्9 नक्षत्र अर्थात् 27 जुग अर्थात् 4 को जोरि(जोड़कर) प्राप्त 40 को अरच करि (आशा करके) प्राप्त'बीस' (अर्थात् बिस=विष) खाते ही अब बनता है। | ||
|पर्यायवाची= पहेली, बुझौअल | |पर्यायवाची= पहेली, बुझौअल | ||
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07:36, 6 जनवरी 2011 का अवतरण
हिन्दी | वह कविता जिसका शब्दों के वाच्यार्थ से न जाना जा सके अपितु प्रसंग और रूढ़ अर्थों की सहायता से जाना जाए। |
-व्याकरण | [स. दृष्ट सामान्यत कूट], पुंलिंग- कठिन प्रश्न |
-उदाहरण | |
-विशेष | इसका एक उदाहरण द्रष्टव्य है-कृष्ण वियोग में गोपिकाओं का कथन है-ग्रह नक्षत्र जुग जोरि अरध करि सोई बनत अब खात।यहाँ ग्रह अर्थात्9 नक्षत्र अर्थात् 27 जुग अर्थात् 4 को जोरि(जोड़कर) प्राप्त 40 को अरच करि (आशा करके) प्राप्त'बीस' (अर्थात् बिस=विष) खाते ही अब बनता है। |
-विलोम | |
-पर्यायवाची | पहेली, बुझौअल |
संस्कृत | |
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