"भारतकोश:Quotations/शनिवार": अवतरणों में अंतर
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*मनुष्य का अहंकार ऐसा है कि प्रासादों का भिखारी भी कुटी का अतिथि बनना स्वीकार नहीं करेगा। -'''[[महादेवी वर्मा]]''' (दीपशिखा, चिंतन के कुछ क्षण) | *मनुष्य का अहंकार ऐसा है कि प्रासादों का भिखारी भी कुटी का अतिथि बनना स्वीकार नहीं करेगा। -'''[[महादेवी वर्मा]]''' (दीपशिखा, चिंतन के कुछ क्षण) | ||
*जीवन स्वयं में न तो अच्छा होता है, न बुरा। जैसा तुम इसे बना दो, यह तो वैसा ही अच्छा या बुरा बन जाता है। -'''मांतेन''' (निबंध) | *जीवन स्वयं में न तो अच्छा होता है, न बुरा। जैसा तुम इसे बना दो, यह तो वैसा ही अच्छा या बुरा बन जाता है। -'''मांतेन''' (निबंध) | ||
*प्राय: प्रत्ययमाघत्ते स्वगुणेषूत्तमादर:॥<br>“बड़े लोगों से प्राप्त सम्मान अपने गुणों में विश्वास उत्पन्न कर देता है।” -'''[[कालिदास]]''' (कुमारसंभव,6|20 | *प्राय: प्रत्ययमाघत्ते स्वगुणेषूत्तमादर:॥<br>“बड़े लोगों से प्राप्त सम्मान अपने गुणों में विश्वास उत्पन्न कर देता है।” -'''[[कालिदास]]''' (कुमारसंभव,6|20) '''[[सूक्ति और कहावत|.... और पढ़ें]]''' | ||
12:08, 8 जनवरी 2011 का अवतरण
- हम ऐसा मानने की ग़लती कभी न करें कि अपराध, आकार में छोटा या बड़ा होता है। -महात्मा गाँधी (बापू के आशीर्वाद, 268)
- मनुष्य का अहंकार ऐसा है कि प्रासादों का भिखारी भी कुटी का अतिथि बनना स्वीकार नहीं करेगा। -महादेवी वर्मा (दीपशिखा, चिंतन के कुछ क्षण)
- जीवन स्वयं में न तो अच्छा होता है, न बुरा। जैसा तुम इसे बना दो, यह तो वैसा ही अच्छा या बुरा बन जाता है। -मांतेन (निबंध)
- प्राय: प्रत्ययमाघत्ते स्वगुणेषूत्तमादर:॥
“बड़े लोगों से प्राप्त सम्मान अपने गुणों में विश्वास उत्पन्न कर देता है।” -कालिदास (कुमारसंभव,6|20) .... और पढ़ें