"मुकरी (पहेली)": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
शिल्पी गोयल (वार्ता | योगदान) ('*मुकरी लोकप्रचलित पहेलियों का ही एक रूप है, ज...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replace - "{{लेख प्रगति" to "{{प्रचार}} {{लेख प्रगति") |
||
पंक्ति 10: | पंक्ति 10: | ||
'''वाके बिछरत फाटे हिया।''' <br /> | '''वाके बिछरत फाटे हिया।''' <br /> | ||
'''क्यों सखि साजन ना सखि दिया'''- '''खुसरो'''</blockquote> | '''क्यों सखि साजन ना सखि दिया'''- '''खुसरो'''</blockquote> | ||
{{प्रचार}} | |||
{{लेख प्रगति | {{लेख प्रगति | ||
|आधार=आधार1 | |आधार=आधार1 |
13:22, 10 जनवरी 2011 का अवतरण
- मुकरी लोकप्रचलित पहेलियों का ही एक रूप है, जिसका लक्ष्य मनोरंजन के साथ-साथ बुद्धिचातुरी की परीक्षा लेना होता है।
- इसमें जो बातें कही जाती हैं, वे द्वयर्थक या श्लिष्ट होती है, पर उन दोनों अर्थों में से जो प्रधान होता है, उससे मुकरकर दूसरे अर्थ को उसी छन्द में स्वीकार किया जाता है, किन्तु यह स्वीकारोक्ति वास्तविक नहीं होती। अर्थात् पर बाद में उस कही हुई बात से मुकरकर उसकी जगह कोई दूसरी उपयुक्त बात बनाकर कह दी जाती है। जिससे सुननेवाला कुछ का कुछ समझने लगता है।
- हिन्दी में अमीर खुसरो ने इस लोककाव्य-रूप को साहित्यिक रूप दिया।
- अलंकार की दृष्टि से इसे छेकापह्नुति कर सकते हैं, क्योंकि इसमें प्रस्तुत अर्थ को अस्वीकार करके अप्रस्तुत को स्थापित किया जाता है।[1]
- हिंदी में अमीर खुसरो की मुकरियाँ प्रसिद्ध हैं।
- इसी को ‘कह-मुकरी’ भी कहते हैं।
- अमीर ख़ुसरो ने मुकरी का एक बहुत जीवंत उदाहरण दिया है। उन्होंने कहा है—
सगरि रैन वह मो संग जागा।
भोर भई तब बिछुरन लागा।
वाके बिछरत फाटे हिया।
क्यों सखि साजन ना सखि दिया- खुसरो
|
|
|
|
|