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'''युद्ध राणा प्रताप के पक्ष में निर्णायक न हो सका।''' खुला युद्ध समाप्त हो गया था किंतु संघर्ष समाप्त नहीं हुआ था। भविष्य में संघर्षो को अंजाम देने के लिए, प्रताप एवं उसकी सेना युद्धस्थल से हटकर पहाड़ी प्रदेश मे आ गयी थी।  [[अकबर]] की आधीनता स्वीकार न किए जाने के कारण प्रताप के साहस एवं शौर्य की गाथाएँ तब तक गुंजित रहेंगी जब तक युद्धों का वर्णन किया जाता रहेगा। युद्ध के दौरान प्रताप का स्वामिभक्त घोड़ा चेतक घायल हो गया था। फिर भी, उसने अपने स्वामी की रक्षा की। अंत में चेतक वीरगति को प्राप्त हुआ। युद्धस्थली के समीप ही चेतक की स्मृति में स्मारक बना हुआ है। अब यहाँ पर एक संग्रहालय है। इस संग्रहालय में हल्‍दीघाटी के युद्ध के मैदान का एक मॉडल रखा गया है। इसके अलावा यहाँ महाराणा प्रताप से संबंधित वस्‍तुओं को रखा गया है।  
'''युद्ध राणा प्रताप के पक्ष में निर्णायक न हो सका।''' खुला युद्ध समाप्त हो गया था किंतु संघर्ष समाप्त नहीं हुआ था। भविष्य में संघर्षो को अंजाम देने के लिए, प्रताप एवं उसकी सेना युद्धस्थल से हटकर पहाड़ी प्रदेश मे आ गयी थी।  [[अकबर]] की आधीनता स्वीकार न किए जाने के कारण प्रताप के साहस एवं शौर्य की गाथाएँ तब तक गुंजित रहेंगी जब तक युद्धों का वर्णन किया जाता रहेगा। युद्ध के दौरान प्रताप का स्वामिभक्त घोड़ा चेतक घायल हो गया था। फिर भी, उसने अपने स्वामी की रक्षा की। अंत में चेतक वीरगति को प्राप्त हुआ। युद्धस्थली के समीप ही चेतक की स्मृति में स्मारक बना हुआ है। अब यहाँ पर एक संग्रहालय है। इस संग्रहालय में हल्‍दीघाटी के युद्ध के मैदान का एक मॉडल रखा गया है। इसके अलावा यहाँ महाराणा प्रताप से संबंधित वस्‍तुओं को रखा गया है।  


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13:58, 10 जनवरी 2011 का अवतरण

हल्‍दीघाटी, उदयपुर
Haldighati, Udaipur

राजस्थान के उदयपुर जिले से 27 मील उत्तर-पश्चिम एवं नाथद्वार से 7 मील पश्चिम में इतिहास प्रसिद्ध रणस्थली हल्दीघाटी है। यहीं सम्राट अकबर की मुग़ल सेना एवं महाराणा प्रताप तथा उनकी राजपूत सेना में 18 जून, 1576 को भीषण युद्ध हुआ। इस युद्ध में प्रताप के साथ कई राजपूत योद्धाओं सहित हकीम खाँ सूर भी उपस्थित था। इस युद्ध में राणा प्रताप का साथ स्थानीय भीलों ने दिया, जो इस युद्ध की मुख्य बात थी मुगलों की ओर से मानसिंह सेना का नेतृत्व कर रहा था।

युद्ध राणा प्रताप के पक्ष में निर्णायक न हो सका। खुला युद्ध समाप्त हो गया था किंतु संघर्ष समाप्त नहीं हुआ था। भविष्य में संघर्षो को अंजाम देने के लिए, प्रताप एवं उसकी सेना युद्धस्थल से हटकर पहाड़ी प्रदेश मे आ गयी थी। अकबर की आधीनता स्वीकार न किए जाने के कारण प्रताप के साहस एवं शौर्य की गाथाएँ तब तक गुंजित रहेंगी जब तक युद्धों का वर्णन किया जाता रहेगा। युद्ध के दौरान प्रताप का स्वामिभक्त घोड़ा चेतक घायल हो गया था। फिर भी, उसने अपने स्वामी की रक्षा की। अंत में चेतक वीरगति को प्राप्त हुआ। युद्धस्थली के समीप ही चेतक की स्मृति में स्मारक बना हुआ है। अब यहाँ पर एक संग्रहालय है। इस संग्रहालय में हल्‍दीघाटी के युद्ध के मैदान का एक मॉडल रखा गया है। इसके अलावा यहाँ महाराणा प्रताप से संबंधित वस्‍तुओं को रखा गया है।


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