"क़लम (लेखन सामग्री)": अवतरणों में अंतर

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[[प्राचीन भारत लेखन सामग्री|प्राचीन भारत की लेखन सामग्री]] में कलम एक लेखन सामग्री के रूप में प्रयोग होती थी।  
[[प्राचीन भारत लेखन सामग्री|प्राचीन भारत की लेखन सामग्री]] में कलम एक लेखन सामग्री के रूप में प्रयोग होती थी।  


संस्कृत का एक श्लोक है, जिसमें लेखन के लिए आवश्यक उपकरणों की जानकारी दी गई है। विशेष बात यह है कि इस श्लोक में जिन उपकरणों को गिनाया गया है, उनमें से एक का नाम ‘क’ से आरम्भ होता है।  
[[संस्कृत भाषा|संस्कृत]] का एक श्लोक है, जिसमें लेखन के लिए आवश्यक उपकरणों की जानकारी दी गई है। विशेष बात यह है कि इस श्लोक में जिन उपकरणों को गिनाया गया है, उनमें से एक का नाम ‘क’ से आरम्भ होता है।  
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कुम्पी कज्जल केश कम्बलमहो मध्ये शुभ्रं कुशम्,
कुम्पी कज्जल केश कम्बलमहो मध्ये शुभ्रं कुशम्,
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एतै रम्यककाक्षरैश्च सहितः शास्त्रं च नित्यं लिखेत्।।</poem>
एतै रम्यककाक्षरैश्च सहितः शास्त्रं च नित्यं लिखेत्।।</poem>
 
 
इस श्लोक में दिए गए 17 उपकरणों के अर्थ ये हैं-
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|+उपकरणों के अर्थ
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! उपकरण  
! उपकरण  
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| कुश
| कुश
| पवित्र माने वाली एक घास
| पवित्र मानी जाने वाली एक घास
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| काम्बी
| काम्बी
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| कैंची
| कैंची
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| काष्ठ
| [[काष्ठ (लेखन सामग्री)|काष्ठ]]
| लकड़ी की तख्ती
| लकड़ी की तख्ती
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| कामलम्
| कामलम्
| काग़ज़
| [[काग़ज़ (लेखन सामग्री)|काग़ज़]]
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| कीकी
| कीकी
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इन 17 वस्तुओं में से काग़ज़, भूर्जपत्र, ताड़पत्र आदि की विस्तृत चर्चा की जा चुकी है। अब प्रमुखतः कलम और स्याही की चर्चा करेंगे।  
इन 17 वस्तुओं में से काग़ज़, [[भूर्जपत्र (लेखन सामग्री)|भूर्जपत्र]], [[ताड़पत्र (लेखन सामग्री)|ताड़पत्र]] आदि की विस्तृत चर्चा की जा चुकी है। अब प्रमुखतः कलम और [[स्याही (लेखन सामग्री)|स्याही]] की चर्चा करेंगे।  
==नरकुल==
नरकुल या लकड़ी से बनी कलम और रेशों से बनी कूची को ‘लेखनी’ कहते थे। जी. ब्यूह्लर अपनी पुस्तक ‘भारतीय लिपिशास्त्र’ में लिखते हैं-<blockquote>"लिखने के लिए प्रयुक्त होने वाले उपकरण का सामान्य नाम ‘लेखनी’ था। ‘लेखनी’ का प्रयोग शलाका, तूलिका, वर्णवर्तिका और वर्णिका, सभी के लिए होता था। ‘लेखनी’ शब्द महाकाव्यों में उपलब्ध है।"</blockquote> <blockquote>"नरकुल या नरसल से बनी लेखनी को आमतौर पर कलम कहते थे, मगर इस शब्द की व्युपत्ति स्पष्ट नहीं है। कलम के लिए देशी संस्कृत नाम ‘इषीका’ या ‘ईषिका’ था, जिसका शब्दार्थ है, नरकुल। नरकुल, बाँस या लकड़ी के टुकड़ों को हमारी आज की (यानी आज से क़रीब सौ साल पहले की) कलमों की तरह बनाकर उनसे लिखने की सारे भारत में प्रथा रही है। ताड़पत्र और भूर्जपत्र पर लिखी गई सारी उपलब्ध हस्तलिपियाँ इसी तरह की कलमों से लिखी गई हैं।"- '''ब्यूह्लर'''</blockquote>
==शलाका==
दक्षिण भारत में ताड़पत्र पर अक्षर उकेरने के लिए लोहे से बनी जिस नुकीली लेखनी का उपयोग होता था, उसे संस्कृत में ‘शलाका कहते हैं’। बाद में इन अक्षरों में कोयले का चूर्ण या काजल भर दिया जाता था। विद्यार्थी प्राचीन काल में लकड़ी के पाटों पर गोल तीखे मुख की जिस कलम से लिखते थे, उसे 'वर्णक' या 'वर्णिका' कहते थे। रंगीन कलमों को 'वर्णवर्तिका' कहते थे और कूची को 'तूलि' या 'तूलिका' कहा जाता था।


नरकुल या लकड़ी से बनी कलम और रेशों से बनी कूची को ‘लेखनी’ कहते थे। जी. ब्यूह्लर अपनी पुस्तक ‘भारतीय लिपिशास्त्र’ में लिखते हैं-"लिखने के लिए प्रयुक्त होने वाले उपकरण का सामान्य नाम ‘लेखनी’ था। ‘लेखनी’ का प्रयोग शलाका, तूलिका, वर्णवर्तिका और वर्णिका, सभी के लिए होता था। ‘लेखनी’ शब्द महाकाव्यों में उपलब्ध है।"
"नरकुल या नरसल से बनी लेखनी को आमतौर पर कलम कहते थे, मगर इस शब्द की व्युपत्ति स्पष्ट नहीं है। कलम के लिए देशी संस्कृत नाम ‘इषीका’ या ‘ईषिका’ था, जिसका शब्दार्थ है, नरकुल। नरकुल, बाँस या लकड़ी के टुकड़ों को हमारी आज की (यानी आज से क़रीब सौ साल पहले की) कलमों की तरह बनाकर उनसे लिखने की सारे भारत में प्रथा रही है। ताड़पत्र और भूर्जपत्र पर लिखी गई सारी उपलब्ध हस्तलिपियाँ इसी तरह की कलमों से लिखी गई हैं।" (ब्यूह्लर)
दक्षिण भारत में ताड़पत्र पर अक्षर उकेरने के लिए लोहे से बनी जिस नुकीली लेखनी का उपयोग होता था, उसे संस्कृत में ‘शलाका कहते हैं’। बाद में इन अक्षरों में कोयले का चूर्ण या काजल भर दिया जाता था। विद्यार्थी प्राचीन काल में लकड़ी के पाटों पर गोल तीखे मुख की जिस कलम से लिखते थे, उसे ‘वर्णक’ या ‘वर्णिका’ कहते थे। रंगीन कलमों को ‘वर्णवर्तिका’ कहते थे और कूची को ‘तूलि’ या ‘तूलिका’ कहा जाता था।
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07:51, 27 जनवरी 2011 का अवतरण

प्राचीन भारत की लेखन सामग्री में कलम एक लेखन सामग्री के रूप में प्रयोग होती थी।

संस्कृत का एक श्लोक है, जिसमें लेखन के लिए आवश्यक उपकरणों की जानकारी दी गई है। विशेष बात यह है कि इस श्लोक में जिन उपकरणों को गिनाया गया है, उनमें से एक का नाम ‘क’ से आरम्भ होता है।

कुम्पी कज्जल केश कम्बलमहो मध्ये शुभ्रं कुशम्,
काम्बी कल्म कृपाणिका कतरणी काष्ठं तथ् कागलम्।
कीकी कोटरि कल्मदान क्रमणेः तथा कांकरो,
एतै रम्यककाक्षरैश्च सहितः शास्त्रं च नित्यं लिखेत्।।

 

उपकरणों के अर्थ
उपकरण अर्थ
कुम्पी दवात
कज्जल काजल
केश बाल
कम्बल -
कुश पवित्र मानी जाने वाली एक घास
काम्बी रेखनी, रूलर
कल्म कलम
कृपाणिका चाकू
कतरणी कैंची
काष्ठ लकड़ी की तख्ती
कामलम् काग़ज़
कीकी आँखें
कोटरि छोटी कोठरी
कल्मदान कलम, चाकू, रेखनी आदि रखने का बक्सा
कटि कमर
कांकर छोटा कंकड़
क्रमण पैर

इन 17 वस्तुओं में से काग़ज़, भूर्जपत्र, ताड़पत्र आदि की विस्तृत चर्चा की जा चुकी है। अब प्रमुखतः कलम और स्याही की चर्चा करेंगे।

नरकुल

नरकुल या लकड़ी से बनी कलम और रेशों से बनी कूची को ‘लेखनी’ कहते थे। जी. ब्यूह्लर अपनी पुस्तक ‘भारतीय लिपिशास्त्र’ में लिखते हैं-

"लिखने के लिए प्रयुक्त होने वाले उपकरण का सामान्य नाम ‘लेखनी’ था। ‘लेखनी’ का प्रयोग शलाका, तूलिका, वर्णवर्तिका और वर्णिका, सभी के लिए होता था। ‘लेखनी’ शब्द महाकाव्यों में उपलब्ध है।"

"नरकुल या नरसल से बनी लेखनी को आमतौर पर कलम कहते थे, मगर इस शब्द की व्युपत्ति स्पष्ट नहीं है। कलम के लिए देशी संस्कृत नाम ‘इषीका’ या ‘ईषिका’ था, जिसका शब्दार्थ है, नरकुल। नरकुल, बाँस या लकड़ी के टुकड़ों को हमारी आज की (यानी आज से क़रीब सौ साल पहले की) कलमों की तरह बनाकर उनसे लिखने की सारे भारत में प्रथा रही है। ताड़पत्र और भूर्जपत्र पर लिखी गई सारी उपलब्ध हस्तलिपियाँ इसी तरह की कलमों से लिखी गई हैं।"- ब्यूह्लर

शलाका

दक्षिण भारत में ताड़पत्र पर अक्षर उकेरने के लिए लोहे से बनी जिस नुकीली लेखनी का उपयोग होता था, उसे संस्कृत में ‘शलाका कहते हैं’। बाद में इन अक्षरों में कोयले का चूर्ण या काजल भर दिया जाता था। विद्यार्थी प्राचीन काल में लकड़ी के पाटों पर गोल तीखे मुख की जिस कलम से लिखते थे, उसे 'वर्णक' या 'वर्णिका' कहते थे। रंगीन कलमों को 'वर्णवर्तिका' कहते थे और कूची को 'तूलि' या 'तूलिका' कहा जाता था।


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