"प्रत्यभिज्ञादर्शन": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
('*प्रत्यभिज्ञादर्शन एक दार्शनिक सम्प्रदाय है। *इसके...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
No edit summary
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
*इसके अनुयायी काश्मीरक शैव होते हैं।  
*इसके अनुयायी काश्मीरक शैव होते हैं।  
*इसके अनुसार [[महेश्वर]] ही जगत के कारण और कार्य सभी कुछ हैं।  
*इसके अनुसार [[महेश्वर]] ही जगत के कारण और कार्य सभी कुछ हैं।  
*यह संसार मात्र शिवमय है। महेश्वर ही ज्ञाता और ज्ञानस्वरूप हैं। घट-पटादि का [[ज्ञान]] भी शिवस्वरूप है।  
*यह संसार मात्र शिवमय है। महेश्वर ही ज्ञाता और ज्ञानस्वरूप हैं। घट-पटादि का ज्ञान भी शिवस्वरूप है।  
*इस दर्शन के अनुसार [[पूजा]], पाठ, जप, तप आदि की कोई आवश्यकता नहीं है, केवल इस प्रत्यभिज्ञा अथवा ज्ञान की कोई आवश्यकता है कि जीव और ईश्वर एक हैं।  
*इस दर्शन के अनुसार [[पूजा]], पाठ, जप, तप आदि की कोई आवश्यकता नहीं है, केवल इस प्रत्यभिज्ञा अथवा ज्ञान की कोई आवश्यकता है कि जीव और ईश्वर एक हैं।  
*इस ज्ञान की प्राप्ति ही मुक्ति है। [[जीवात्मा|जीवात्मा]]-परमात्मा में जो भेद दिखता है, वह भ्रम है।  
*इस ज्ञान की प्राप्ति ही मुक्ति है। [[आत्मा|जीवात्मा]]-परमात्मा में जो भेद दिखता है, वह भ्रम है।  
*इस दर्शन के मानने वालों का विश्वास है कि जिस मनुष्य में ज्ञान और क्रियाशक्ति है, वही परमेश्वर है।
*इस दर्शन के मानने वालों का विश्वास है कि जिस मनुष्य में ज्ञान और क्रियाशक्ति है, वही परमेश्वर है।


{{प्रचार}}
{{प्रचार}}
पंक्ति 17: पंक्ति 16:
}}
}}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
*<span>पुस्तक हिन्दू धर्म कोश से पेज संख्या 428 | '''डॉ. राजबली पाण्डेय''' |उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान (हिन्दी समिति प्रभाग) |राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन हिन्दी भवन महात्मा गाँधी मार्ग, लखनऊ </span>  
*<span>पुस्तक हिन्दू धर्म कोश से पेज संख्या 420 | '''डॉ. राजबली पाण्डेय''' |उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान (हिन्दी समिति प्रभाग) |राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन हिन्दी भवन महात्मा गाँधी मार्ग, लखनऊ </span>  
<references/>
<references/>
[[Category:नया पन्ना]]
[[Category:नया पन्ना]]
__INDEX__
__INDEX__

12:12, 7 फ़रवरी 2011 का अवतरण

  • प्रत्यभिज्ञादर्शन एक दार्शनिक सम्प्रदाय है।
  • इसके अनुयायी काश्मीरक शैव होते हैं।
  • इसके अनुसार महेश्वर ही जगत के कारण और कार्य सभी कुछ हैं।
  • यह संसार मात्र शिवमय है। महेश्वर ही ज्ञाता और ज्ञानस्वरूप हैं। घट-पटादि का ज्ञान भी शिवस्वरूप है।
  • इस दर्शन के अनुसार पूजा, पाठ, जप, तप आदि की कोई आवश्यकता नहीं है, केवल इस प्रत्यभिज्ञा अथवा ज्ञान की कोई आवश्यकता है कि जीव और ईश्वर एक हैं।
  • इस ज्ञान की प्राप्ति ही मुक्ति है। जीवात्मा-परमात्मा में जो भेद दिखता है, वह भ्रम है।
  • इस दर्शन के मानने वालों का विश्वास है कि जिस मनुष्य में ज्ञान और क्रियाशक्ति है, वही परमेश्वर है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  • पुस्तक हिन्दू धर्म कोश से पेज संख्या 420 | डॉ. राजबली पाण्डेय |उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान (हिन्दी समिति प्रभाग) |राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन हिन्दी भवन महात्मा गाँधी मार्ग, लखनऊ