"रामसेतु": अवतरणों में अंतर

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अंन्य ग्रंथों में कालीदास की रघुवंश में सेतु का वर्णन है। स्कंद पुराण (तृतीय, 1.2.1-114), विष्णु पुराण (चतुर्थ, 4.40-49), अग्नि पुराण (पंचम-एकादश) और ब्रह्म पुराण (138.1-40) में भी श्रीराम के सेतु का जिक्र किया गया है।
अंन्य ग्रंथों में कालीदास की रघुवंश में सेतु का वर्णन है। स्कंद पुराण (तृतीय, 1.2.1-114), विष्णु पुराण (चतुर्थ, 4.40-49), अग्नि पुराण (पंचम-एकादश) और ब्रह्म पुराण (138.1-40) में भी श्रीराम के सेतु का जिक्र किया गया है।


;रामसेतु मानव निर्मित या प्राकृतिक निर्मित
===रामसेतु मानव निर्मित या प्राकृतिक निर्मित===
वैज्ञानिकों में इस ब्रिज को लेकर विवाद है। कुछ वैज्ञानिक इसे प्राकृतिक ब्रिज मानते हैं तो कुछ इसे मानव निर्मित मानते हैं।  
वैज्ञानिकों में इस ब्रिज को लेकर विवाद है। कुछ वैज्ञानिक इसे प्राकृतिक ब्रिज मानते हैं तो कुछ इसे मानव निर्मित मानते हैं।  
;मानव निर्मित होने के पक्ष में मत और शोध
भू-विज्ञान विभाग, भारत सरकार, का शोध (मार्च 2007), परन्तु, कुछ मजबूत तर्को के साथ इसे मानव निर्मित बताता है| शोध का सारांश कुछ इस प्रकार है -


रामसेतु प्राकृतिक तौर पर नहीं बना - कोरल चट्टानों और रीफ से बने इस पुल की स्थापना की पुष्टि आधुनिक सैटेलाइट द्वारा खींचे गये चित्रों की मदद से की गयी है जिसके अनुसार कहा गया है कि यह एक प्राकृतिक नहीं, बल्कि मानवीय रचना है और इस बात की पुष्टि जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया द्वारा पेश की गयी एक रिपोर्ट में की गयी है जिसे सरकार द्वारा जनता से छुपाया गया। जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (भारत सरकार का भू विज्ञान विभाग) के पूर्व निदेशक और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशन टैक्नोलॉजी के सदस्य डॉ. बद्रीनारायण कहते हैं कि इस तरह की प्राकृतिक बनावट मुश्किल से ही दिखती है। यह तभी हो सकता है, जब इसे किसी ने बनाया हो। कुछ शिलाखंड तो इतने हल्के हैं कि वे पानी पर तैर सकते हैं।
रामसेतु प्राकृतिक तौर पर नहीं बना - कोरल चट्टानों और रीफ से बने इस पुल की स्थापना की पुष्टि आधुनिक सैटेलाइट द्वारा खींचे गये चित्रों की मदद से की गयी है जिसके अनुसार कहा गया है कि यह एक प्राकृतिक नहीं, बल्कि मानवीय रचना है और इस बात की पुष्टि जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया द्वारा पेश की गयी एक रिपोर्ट में की गयी है जिसे सरकार द्वारा जनता से छुपाया गया। जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (भारत सरकार का भू विज्ञान विभाग) के पूर्व निदेशक और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशन टैक्नोलॉजी के सदस्य डॉ. बद्रीनारायण कहते हैं कि इस तरह की प्राकृतिक बनावट मुश्किल से ही दिखती है। यह तभी हो सकता है, जब इसे किसी ने बनाया हो। कुछ शिलाखंड तो इतने हल्के हैं कि वे पानी पर तैर सकते हैं।


ज्योलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने विस्तृत सर्वे में इसे प्राकृतिक बताया था - देश के इस जाने माने इंस्टीट्यूट ने राम सेतु के आसपास 91 बोरहोल्स बनाकर वहां से सैंपल लिए थे और उनकी पड़ताल की थी। इन्हें सेतु प्रोजेक्ट के दफ्तर में रखा गया था।
यह एक अच्छी तरह से स्थापित वैज्ञानिक तथ्य है कि 18000 BP के आसपास एक प्रमुख हिमयुग (ice age) अपने उच्चतम पर था। संसार के विभिन्न भागो मे अर्धडूबी मूँगा चट्टानों की मदद से इसे देखा गया और इसका विस्तृत अध्ययन किया गया है। उस काल मे समुद्रतल वर्तमान तल से 130 मीटर नीचे था| भारत के पूर्वी और पश्चिमी समुद्रतटों पर इसे प्रमाणो के साथ देखा गया, जहाँ जलमग्न मूँगा चट्टाने केवल 1 से 2 मीटर ही गहराई पर है और वे निकट तटीय क्षेत्र के स्पष्ट संकेत हैं।
 
राम सेतु रिज एक प्रमुख समुद्री विभाजन है| यह एक मेढ़ की तरह है, और बहुत कुछ अल्लाबन्द (Allaband) की तरह है| 19वीं शताब्दी में अरब सागर मे एक बड़े भूकम्प के बाद अल्लाबन्द का निर्माण हुआ था| अल्लाबन्द मे 90 किमी लम्बा और 0.5 से 4 किमी चौड़ा भूखण्ड समुद्र से उपर निकल आया था, और इसका कारण था- पृथ्वी के गर्भ मे प्लेटो का खिसकना, जो कि हर भूकम्प का कारण होता है| लोगों को लगता है कि यह अल्लाह की इच्छा के कारण हुआ है इसलिये इसे अल्लाबन्द के नाम से बुलाया गया|
 
राम सेतु कुछ इसी प्रकार का है, लेकिन यह बहुत पहले बना है| पिछले हिमयुग (ice age) (18000 years BP) के दौरान सम्पूर्ण भारत से श्रीलंका और आगे दक्षिण और दक्षिण पूर्व के भाग एक ही भूखण्ड थे, क्योकि उस समय समुद्रतल आज के युग से बहुत नीचे था| और जब पहाड़ो और आर्कटिक क्षेत्र से बर्फ का पिघलना शुरु हुआ तो समुद्र स्तर उठना शुरु हो गया| जलमग्न मूँगा चट्टानो के निर्माण प्रक्रिया के अध्ययन के दौरान इस तथ्य को बहुत बार देखा गया| आज से लगभग 7300 साल पहले भारत के दक्षिणी भाग में समुद्र तल वर्तमान स्तर से 3.5 मी ऊपर था| यह डॉ. पी. के. बनर्जी ने पाबन (Paban), रामेश्वरम (Rameswaram), और तूतीकोरिन (Tuticorin) इत्यादि स्थानो पर चट्टानो का अध्ययन किया और इस तथ्य को सत्य पाया| इसके बाद समुद्र स्तर नीचे गिरा और आज से 5000 से 4000 साल के बीच वर्तमान से 2 मी उपर था|
 
रामसेतु के अंतर ज्वारीय क्षेत्रो मे एन आई ओ टी (NIOT) के द्वारा किये गये छिद्रो के भूगर्भीय अध्ययन से बहुत ही रोचक जानकारी का पता चलता है । सभी छिद्रो का शीर्ष भाग ताजी समुद्री रेत से भरा हुआ देखा गया| लगभग सभी छिद्र 4.5 से 7.5m की गहराई पर कठोरता मिलती है, जो कि कैल्शियम युक्त (calcareous) पत्थरो और मूँगा चट्टानो की वजह से है| यहाँ पर ध्यान देने वाली बात यह है कि मूँगा चट्टाने (Coral Rocks) तुलनात्मक रूप से कम कठोर होती है और हल्की होती है, और कही ले जाने के लिये सरल होती है| यह चट्टाने ऊपर की ओर बढती है, और स्थायित्व के लिये इनका ऊपरी भाग अपेक्षाकृत कठोर होता है| इन चट्टानो का समूह स्थिर रहने के लिये ऊपर की ओर बढता है और समुद्र स्तर से हमेशा 1 से 2 मीटर की गहराई बना कर रखता है| इस ऊर्ध्वतर बढने को लक्षद्वीप, अन्दमान और मनार की खाडी मे देखा गया है| इनका निचला भाग भी कठोर पाया गया है|
 
परन्तु राम सेतु मे मूँगा चट्टाने मुश्किल से 1 से 2.5 मीटर की मिली है, बाकी भाग समुद्री रेत है| ये चट्टाने मूँगे के गोल, छोटे टुकडो जैसे है| ऐसा लगता है कि इन टुकडो को कही और से लाकर यहाँ रखा गया है| चूँकि यह कैल्शियम युक्त रेतीले पत्थर और मूँगा चट्टाने सामान्य चट्टानो से कम कठोर है, सम्भव है कि प्राचीन काल मे लोगो ने इसका प्रयोग भारत और श्रीलंका के बीच सम्पर्क मार्ग बनाने के लिये किया हो|
 
इन निष्कर्षो के समर्थन मे अन्य बहुत से पुरातत्व और भौगोलिक प्रमाण भारत के दक्षिणी भाग, रामेश्वर के चारो ओर्, तुतीकोरिन्, और श्रीलंका के पश्चिमी भाग मे मिले है| यहाँ पर टेरी (Teri) मिले है, जो कि मध्य पाषाण युग के छोटे पत्थरो से बने औजारो के जैसे है| इससे निष्कर्ष निकलता है कि 8000 BP से 9000 BP और हाल के 4000 BP मे यहाँ पर मानव की बस्तियाँ और और उनकी मजबूत गतिविधियाँ थी| श्रीलंका मे तो मानव और जानवरो के हड्डियो और जीवाश्मो के आधार पर ऐसे संकेत मिले है कि वहाँ मानव बस्तियाँ 13000 BP (late Pleistocene) मे भी थी|
 
यह सभी बाते एक ही निष्कर्ष पर पहुँचाती है कि जब भारत और श्रीलंका के बीच समुद्रस्तर जब ठीक सुविधाजनक था, उसी समय राम सेतु के दोनो ओर मानव गतिविधियाँ भी तेज थी| यही वह समय था जब यह सेतु बनाया गया| कुछ विद्वान रामायण का समय भी यही बताते है| सम्भव है कि यही वह पुल हो जिसे राम ने रावण से युद्ध करने के लिये बनाया हो|
 
;प्राकृतिक निर्मित होने के पक्ष में मत और शोध
दिसम्बर 2002 – मार्च 2003 के बीच भारतीय भूगोल सर्वेक्षण (Geological Survey of India (GSI)) ने एक वैज्ञानिक शोध किया, देश के इस जाने माने इंस्टीट्यूट ने राम सेतु के आसपास 91 बोरहोल्स बनाकर वहां से सैंपल लिए थे और उनकी पड़ताल की थी। इन्हें सेतु प्रोजेक्ट के दफ्तर में रखा गया था। इस शोध मे बताया गया कि रामेश्वरम द्वीप 125,000 BP (before present) के आसपास समुद्र से बाहर निकला। रामेश्वरम और थलाई मन्नार 18000 BP से 7000BP तक समुद्र से उपर ही थे और भारत और श्री लंका के बीच एक मार्ग प्रदान करते थे| यह शोध आगे बताता है कि धनुषकोडि और दूसरे द्वीपो के बीच जो मार्ग दिखायी देता है, जिसे रामसेतु माना जाता है, उसके मानव निर्मित होने के कोई प्रमाण नही है1
 
अंतरिक्ष अनुसंधान केन्द्र, अहमदाबाद (The Space Application Centre, Ahmedabad) भी इसी निष्कर्ष पर पहुँचता है। उसके अनुसार यह वास्तव मे मूँगा-चट्टानो के 103 छोटे खंड है, जो कि एक सीधी रेखा बनाते है। Journal of the Indian society of Remote Sensing मे छपा एक लेख आदम पुल को न केवल एक मूँगा-चट्टानो की एक श्रृंखला प्रदर्शित करता है, बल्कि भूवैज्ञानिको और पुरातत्त्वविदो की इस धारणा को भी बल देता है कि यह मानव निर्मित नही बल्कि प्राकृतिक है।


नासा कहता है कि रामसेतु प्राकृतिक तौर पर बना - अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा का कहना है कि भारत और श्रीलंका के बीच पाक जलडमरूमध्य में मौजूद ढांचा किसी भी हालत में आदमी का बनाया हुआ नहीं है। यह पूरी तरह प्राकृतिक है। सेतुसमुद्रम कॉपरेरेशन लि. के सीईओ एनके रघुपति के मुताबिक उन्हें नासा के जॉन्सन स्पेस सेंटर की ओर से मिले ईमेल में नासा ने अपने पक्ष का खुलासा किया है। नासा की तस्वीरों को लेकर काफी होहल्ला पहले ही मच चुका है।
नासा कहता है कि रामसेतु प्राकृतिक तौर पर बना - अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा का कहना है कि भारत और श्रीलंका के बीच पाक जलडमरूमध्य में मौजूद ढांचा किसी भी हालत में आदमी का बनाया हुआ नहीं है। यह पूरी तरह प्राकृतिक है। सेतुसमुद्रम कॉपरेरेशन लि. के सीईओ एनके रघुपति के मुताबिक उन्हें नासा के जॉन्सन स्पेस सेंटर की ओर से मिले ईमेल में नासा ने अपने पक्ष का खुलासा किया है। नासा की तस्वीरों को लेकर काफी होहल्ला पहले ही मच चुका है।

14:55, 11 फ़रवरी 2011 का अवतरण

रामसेतु , एडम ब्रिज , आदम पुल

क्या है रामसेतु

रामसेतु एक आश्चर्यजनक ऐतिहासिक पक्ष है जो भौतिक रूप में उत्तर में बंगाल की खाड़ी को दक्षिण में शांत और स्वच्छ पानी वाली मन्नार की खाड़ी से (मन्नार की खाड़ी और पाक जलडमरू मध्य को) अलग करता है, जो धार्मिक एवं मानसिक रूप से दक्षिण भारत को उत्तर भारत से जोड़ता है। भारत के दक्षिणपूर्व में रामेश्वरम और श्रीलंका के पूर्वोत्तर में मन्नार द्वीप के बीच उथली चट्टानों की एक चेन है। इस इलाके में समुद्र बेहद उथला है। समुद्र में इन चट्टानों की गहराई सिर्फ 3 फुट से लेकर 30 फुट के बीच है। इसे भारत में रामसेतु व दुनिया में एडम्स ब्रिज के नाम से जाना जाता है। इस पुल की लंबाई लगभग 30 से 48 किमी है।

वाल्मीकि के रामायण में एक ऐसे रामसेतु का जिक्र है जो काफी प्राचीन है और गहराई में हैं तथा जो 1.5 से 2.5 मीटर तक पतले कोरल और पत्थरों से भरा पड़ा है। इस पुल को राम के निर्देशन पर कोरल चट्टानों और रीफ से बनाया गया था। प्राचीन वस्तुकारों ने इस संरचना की परत का उपयोग बड़े पैमाने पर पत्थरों और गोल आकार के विशाल चट्टानों को कम करने में किया और साथ ही साथ कम से कम घनत्व तथा छोटे पत्थरों और चट्टानों का उपयोग किया, जिससे आसानी से एक लंबा रास्ता तो बना ही, साथ ही समय के साथ यह इतना मजबूत भी बन गया कि मनुष्यों व समुद्र के दबाव को भी सह सके। शांत परिस्थिति के कारण मन्नार की खाड़ी में काफी कम संख्या में कोरल और समुद्र जीव जंतुओं का विकास होता है, जबकि बंगाल की खाड़ी के क्षेत्र में ये जीव-जंतु पूरी तरह अनुपस्थित हैं।

कहा जाता है कि 15वीं शताब्दी तक इस पुल पर चलकर रामेश्वरम से मन्नार द्वीप तक जाया जा सकता था, लेकिन तूफानों ने यहाँ समुद्र को कुछ गहरा कर दिया। 1480 ईस्वी सन् में यह चक्रवात के कारण टूट गया और समुद्र का जल स्तर बढ़ने के कारण यह डूब गया।

ऐतिहासिक रामसेतु अथवा मिथक

भारतीय सेटेलाइट और अमेरिका के अन्तरिक्ष अनुसंधान संस्थान 'नासा (NASA) ' ने उपग्रह से खीचे गए चित्रों में भारत के दक्षिण में धनुषकोटि तथा श्रीलंका के उत्तर पश्चिम में पम्बन के मध्य समुद्र में 48 किमी चौड़ी पट्टी के रूप में उभरे एक भू-भाग (द्वीपों) की रेखा दिखती है, उसे ही आज रामसेतु या राम का पुल माना जाता है। ईसाई या पश्चिमी लोग इसे एडम ब्रिज (Adam’s Bridge) और मुसलमानों ने आदम पुल कहने लगे हैं। इस चित्रों को अमेरिका के अन्तरिक्ष अनुसंधान संस्थान 'नासा' ने उपग्रह से खीचे गए चित्र जब 1993 मे दुनिया भर में और दिल्ली के प्रगति मैदान मे "राष्ट्रीय विज्ञान केन्द्र" की प्रदर्शनी मे उपलब्ध कराये थे। तो भारत में इसे लेकर राजनीतिक वाद-विवाद का जन्म हो गया था। रामसेतु का यह चित्र नासा ने 14 दिसम्बर 1966 को जेमिनी-11 से अंतरिक्ष से प्राप्त किया था। इसके 22 साल बाद आई.एस.एस 1 ए ने तमिलनाडु तट पर स्थित रामेश्वरम और जाफना द्वीपों के बीच समुद्र के भीतर भूमि-भाग का पता लगाया और उसका चित्र लिया। इससे अमेरिकी उपग्रह के चित्र की पुष्टि हुई। इन चित्रो मे समुद्रतल से नीचे एक पट्टी जैसी आकृति दिखायी देती है जो कि एक डूबे हुए पुल का भ्रम पैदा करती है| इस भ्रम से इस विश्वास को बल मिला कि यही मानव-निर्मित वह पुल है जिसे राम ने बनवाया था| हालांकि नासा ने इसका खंडन किया और कहा कि यह प्राकृतिक है और दो द्वीपो के बीच समुद्री लहरो के द्वारा बनी एक भूमि पट्टी है| इसे टोम्बोलो (Tombolo) कहते है| ऐसे टोम्बोलो संसार मे बहुत स्थानो पर मिले है|

रामसेतु की उम्र

रामसेतु की प्राचीनता पर शोधकर्ता एकमत नहीं है। रामसेतु की उम्र को लेकर महाकाव्य रामायण के संदर्भ में कई दावे किए जाते रहे हैं। कुछ इसे 3500 साल पुराना पुराना बताते हैं तो कछ इसे आज से 7000 हजार वर्ष पुराना बताते हैं। कुछ का मानना है कि यह 17 लाख वर्ष पूराना है। न केवल लोक मान्यताओ बल्कि पुरातत्वविदों के शोधों से भी यह सिद्ध हो गया है कि इस सेतु का काल 7500000 साडे सत्तर लाख वर्ष पुराना है जो रामायण काल के समकालीन बैठता है।

रामसेतु करीब 3500 साल पुराना है - रामासामी कहते हैं कि जमीन और बीचों का निर्माण साढ़े तीन हजार पहले रामनाथपुरम और पंबन के बीच हुआ था। इसकी वजह थी रामेश्वरम और तलाईमन्नार के दक्षिण में किनारों को काटने वाली लहरें। वह आगे कहते हैं कि हालांकि बीचों की कार्बन डेटिंग मुश्किल से ही रामायण काल से मिलती है, लेकिन रामायण से इसके संबंध की पड़ताल होनी ही चाहिए।

धर्म ग्रंथों में जिक्र

भारत का एक लम्बा व गौरवशाली इतिहास रहा है। हिन्दू परम्परा मे ऐसा विश्वास है कि राम-सेतु वास्तव मे एक पुल है जो कि तमिलनाडु के रामेश्वरम द्वीप को श्रीलंका के मन्नार द्वीप से जोड़ता है। हिन्दुओ के प्राचीन धार्मिक ग्रंथ रामायण, महाभारत, पुराण आदि मे मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम द्वारा श्रीलंका पर चढाई के समय रामसेतु निर्माण का स्पष्ट उल्लेख है। वेदिक ग्रंथो में वाल्मीकि रामायण सबसे प्राचीनतम ग्रंथ है। इस रामायण ग्रंथ मे वर्णन है कि जब राम (जिन्हे विष्णु का अवतार माना जाता है) को लंका जाने के लिये समुद्र पर पुल बनाने की आवश्यकता हुई तो उन्होने समुद्र देवता से अनुमति लेकर अपने वानर सेना की सहायता से यह सौ योजन लम्बा पुल बनाया था। तथा इस ग्रंथ मे उल्लेख है कि श्रीराम की सेना लंका के विजय अभियान पर चलते समय जब समुद्र तट पर पहुची तब विभीषण के परामर्श पर समुद्र तट पर डाब के आसान पर लेटकर भगवान राम ने समुद्र से मार्ग देने का आग्रह किया था। महाभारत मे भी इस घटना का उल्लेख है। रामेश्वरम मे आज भी प्रभु श्रीराम चन्द्र की शयन मुद्रा मूर्ति है। समुद्र से रास्ता मांगने के लिए यहीं पर रामचंद्र जी ने तीन दिन तक प्राथना की थी। शास्त्रों मे श्रीराम सेतु के आकार के साथ साथ इसकी निर्माण प्रक्रिया का भी उल्लेख है।

वाल्मीकि रामायण कहता है कि जब श्रीराम ने सीता को लंकापति रावण से छुड़ाने के लिए लंका द्वीप पर चढ़ाई की, तो उस वक्त उन्होंने सभी देवताओं का आह्‍वान किया और युद्ध में विजय के लिए आशीर्वाद माँगा था। इनमें समुद्र के देवता वरुण भी थे। वरुण से उन्होंने समुद्र पार जाने के लिए रास्ता माँगा था। जब वरुण ने उनकी प्रार्थना नहीं सुनी तो उन्होंने समुद्र को सुखाने के लिए धनुष उठाया। डरे हुए वरुण ने क्षमायाचना करते हुए उन्हें बताया कि श्रीराम की सेना में मौजूद नल-नील नाम के वानर जिस पत्थर पर उनका नाम लिखकर समुद्र में डाल देंगे, वह तैर जाएगा और इस तरह श्रीराम की सेना समुद्र पर पुल बनाकर उसे पार कर सकेगी। इसके बाद श्रीराम की सेना ने लंका के रास्ते में पुल बनाया और लंका पर हमला कर विजय हासिल की।

विभिन्न पुस्तको में रामसेतु

ओ. एच. के. स्पाटे (O H K Spate) “भारत और पाकिस्तान (India and Pakistan, London,. Pp 727-728) मे लिखते है कि राम सेतु वस्तुतः एक कोरल रीफ (coral reef) है जो कि सामूहिक रूप से ऊपर उठ कर कोरल रॉक (coral rock) बन गये है। इन्सायक्लोपेडिया ब्रिटेनिका (The Encyclopaedia Britannica, (Volume-1, 1766, p. 129)) मे इस सेतु का वर्णन इस प्रकार है -- आदम का पुल जिसे रामसेतु भी कहा जाता है, जो कि उत्तरी पश्चिमी श्रीलंका तथा भारत के दक्षिणी पुर्वी तट से दूर रामेश्वरम के समीप मन्नार के द्वीपों के मध्य ‘उथले स्थानों की श्रुंखला’ है। The Gazettier of India (Indian Union Vol-1 pg 57) मे लिखा है कि उत्तर की खाड़ी मे भूमि की दो पतली पट्टियाँ, एक भारत की ओर से, दूसरा सिलोन (Ceylon i.e. Sri lanka) से आकर, एक अर्ध-डूबी पठार पट्टी के द्वारा जुड़ती है, एडम ब्रिज (रामसेतु) बनाती है, जो कि समुद्र तल से मुश्किल से चार मीटर नीचे है। यह हिम युग के बाद (post glacial time) समुद्र तल का उठने का प्रमाण है, जो कि भारत और सिलोन के बीच सम्पर्क के डूबने का कारण है।”

नीदरलैंड मे सन 1747 मे बने मालाबार बोबन मानचित्र मे रामन कोविल के नाम से रामसेतु को दिखाया गया है। इस मानचित्र का 1788 का संस्करण आज भी तंजावूर के सरस्वती महल पुस्तकालय मे उपलब्ध है। जोसेफ मार्क्स नाम के ऑस्ट्रेलियाई शोधकर्ता ने इस मानचित्र मे श्रीलंका से जोड़ने वाले रामसेतु को 'रामार ब्रिज' कहा है।

नल सेतु

वाल्मीक रामायण में वर्णन मिलता है कि पुल लगभग पाँच दिनों में बन गया जिसकी लम्बाई सौ योजन और चौड़ाई दस योजन थी। रामायण में इस पुल को ‘नल सेतु’ की संज्ञा दी गई है। नल के निरीक्षण में वानरों ने बहुत प्रयत्न पूर्वक इस सेतु का निर्माण किया था।- (वाल्मीक रामायण- 6/22/76)। वाल्मीक रामायण में कई प्रमाण हैं कि सेतु बनाने में उच्च तकनीक प्रयोग किया गया था। कुछ वानर बड़े-बड़े पर्वतों को यन्त्रों के द्वारा समुद्रतट पर ले आए ते। कुछ वानर सौ योजन लम्बा सूत पकड़े हुए थे अर्थात पुल का निर्माण सूत से सीध में हो रहा था।- (वाल्मीक रामायण- 6/22/62)

गीताप्रेस गोरखपुर से छपी पुस्तक श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण-कथा-सुख-सागर में वर्णन है कि राम ने सेतु के नामकरण के अवसर पर उसका नाम ‘नल सेतु’ रखा। इसका कारण था कि लंका तक पहुँचने के लिए निर्मित पुल का निर्माण विश्वकर्मा के पुत्र नल द्वारा बताई गई तकनीक से संपन्न हुआ था। महाभारत में भी राम के नल सेतु का जिक्र आया है।

अंन्य ग्रंथों में कालीदास की रघुवंश में सेतु का वर्णन है। स्कंद पुराण (तृतीय, 1.2.1-114), विष्णु पुराण (चतुर्थ, 4.40-49), अग्नि पुराण (पंचम-एकादश) और ब्रह्म पुराण (138.1-40) में भी श्रीराम के सेतु का जिक्र किया गया है।

रामसेतु मानव निर्मित या प्राकृतिक निर्मित

वैज्ञानिकों में इस ब्रिज को लेकर विवाद है। कुछ वैज्ञानिक इसे प्राकृतिक ब्रिज मानते हैं तो कुछ इसे मानव निर्मित मानते हैं।

मानव निर्मित होने के पक्ष में मत और शोध

भू-विज्ञान विभाग, भारत सरकार, का शोध (मार्च 2007), परन्तु, कुछ मजबूत तर्को के साथ इसे मानव निर्मित बताता है| शोध का सारांश कुछ इस प्रकार है -

रामसेतु प्राकृतिक तौर पर नहीं बना - कोरल चट्टानों और रीफ से बने इस पुल की स्थापना की पुष्टि आधुनिक सैटेलाइट द्वारा खींचे गये चित्रों की मदद से की गयी है जिसके अनुसार कहा गया है कि यह एक प्राकृतिक नहीं, बल्कि मानवीय रचना है और इस बात की पुष्टि जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया द्वारा पेश की गयी एक रिपोर्ट में की गयी है जिसे सरकार द्वारा जनता से छुपाया गया। जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (भारत सरकार का भू विज्ञान विभाग) के पूर्व निदेशक और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशन टैक्नोलॉजी के सदस्य डॉ. बद्रीनारायण कहते हैं कि इस तरह की प्राकृतिक बनावट मुश्किल से ही दिखती है। यह तभी हो सकता है, जब इसे किसी ने बनाया हो। कुछ शिलाखंड तो इतने हल्के हैं कि वे पानी पर तैर सकते हैं।

यह एक अच्छी तरह से स्थापित वैज्ञानिक तथ्य है कि 18000 BP के आसपास एक प्रमुख हिमयुग (ice age) अपने उच्चतम पर था। संसार के विभिन्न भागो मे अर्धडूबी मूँगा चट्टानों की मदद से इसे देखा गया और इसका विस्तृत अध्ययन किया गया है। उस काल मे समुद्रतल वर्तमान तल से 130 मीटर नीचे था| भारत के पूर्वी और पश्चिमी समुद्रतटों पर इसे प्रमाणो के साथ देखा गया, जहाँ जलमग्न मूँगा चट्टाने केवल 1 से 2 मीटर ही गहराई पर है और वे निकट तटीय क्षेत्र के स्पष्ट संकेत हैं।

राम सेतु रिज एक प्रमुख समुद्री विभाजन है| यह एक मेढ़ की तरह है, और बहुत कुछ अल्लाबन्द (Allaband) की तरह है| 19वीं शताब्दी में अरब सागर मे एक बड़े भूकम्प के बाद अल्लाबन्द का निर्माण हुआ था| अल्लाबन्द मे 90 किमी लम्बा और 0.5 से 4 किमी चौड़ा भूखण्ड समुद्र से उपर निकल आया था, और इसका कारण था- पृथ्वी के गर्भ मे प्लेटो का खिसकना, जो कि हर भूकम्प का कारण होता है| लोगों को लगता है कि यह अल्लाह की इच्छा के कारण हुआ है इसलिये इसे अल्लाबन्द के नाम से बुलाया गया|

राम सेतु कुछ इसी प्रकार का है, लेकिन यह बहुत पहले बना है| पिछले हिमयुग (ice age) (18000 years BP) के दौरान सम्पूर्ण भारत से श्रीलंका और आगे दक्षिण और दक्षिण पूर्व के भाग एक ही भूखण्ड थे, क्योकि उस समय समुद्रतल आज के युग से बहुत नीचे था| और जब पहाड़ो और आर्कटिक क्षेत्र से बर्फ का पिघलना शुरु हुआ तो समुद्र स्तर उठना शुरु हो गया| जलमग्न मूँगा चट्टानो के निर्माण प्रक्रिया के अध्ययन के दौरान इस तथ्य को बहुत बार देखा गया| आज से लगभग 7300 साल पहले भारत के दक्षिणी भाग में समुद्र तल वर्तमान स्तर से 3.5 मी ऊपर था| यह डॉ. पी. के. बनर्जी ने पाबन (Paban), रामेश्वरम (Rameswaram), और तूतीकोरिन (Tuticorin) इत्यादि स्थानो पर चट्टानो का अध्ययन किया और इस तथ्य को सत्य पाया| इसके बाद समुद्र स्तर नीचे गिरा और आज से 5000 से 4000 साल के बीच वर्तमान से 2 मी उपर था|

रामसेतु के अंतर ज्वारीय क्षेत्रो मे एन आई ओ टी (NIOT) के द्वारा किये गये छिद्रो के भूगर्भीय अध्ययन से बहुत ही रोचक जानकारी का पता चलता है । सभी छिद्रो का शीर्ष भाग ताजी समुद्री रेत से भरा हुआ देखा गया| लगभग सभी छिद्र 4.5 से 7.5m की गहराई पर कठोरता मिलती है, जो कि कैल्शियम युक्त (calcareous) पत्थरो और मूँगा चट्टानो की वजह से है| यहाँ पर ध्यान देने वाली बात यह है कि मूँगा चट्टाने (Coral Rocks) तुलनात्मक रूप से कम कठोर होती है और हल्की होती है, और कही ले जाने के लिये सरल होती है| यह चट्टाने ऊपर की ओर बढती है, और स्थायित्व के लिये इनका ऊपरी भाग अपेक्षाकृत कठोर होता है| इन चट्टानो का समूह स्थिर रहने के लिये ऊपर की ओर बढता है और समुद्र स्तर से हमेशा 1 से 2 मीटर की गहराई बना कर रखता है| इस ऊर्ध्वतर बढने को लक्षद्वीप, अन्दमान और मनार की खाडी मे देखा गया है| इनका निचला भाग भी कठोर पाया गया है|

परन्तु राम सेतु मे मूँगा चट्टाने मुश्किल से 1 से 2.5 मीटर की मिली है, बाकी भाग समुद्री रेत है| ये चट्टाने मूँगे के गोल, छोटे टुकडो जैसे है| ऐसा लगता है कि इन टुकडो को कही और से लाकर यहाँ रखा गया है| चूँकि यह कैल्शियम युक्त रेतीले पत्थर और मूँगा चट्टाने सामान्य चट्टानो से कम कठोर है, सम्भव है कि प्राचीन काल मे लोगो ने इसका प्रयोग भारत और श्रीलंका के बीच सम्पर्क मार्ग बनाने के लिये किया हो|

इन निष्कर्षो के समर्थन मे अन्य बहुत से पुरातत्व और भौगोलिक प्रमाण भारत के दक्षिणी भाग, रामेश्वर के चारो ओर्, तुतीकोरिन्, और श्रीलंका के पश्चिमी भाग मे मिले है| यहाँ पर टेरी (Teri) मिले है, जो कि मध्य पाषाण युग के छोटे पत्थरो से बने औजारो के जैसे है| इससे निष्कर्ष निकलता है कि 8000 BP से 9000 BP और हाल के 4000 BP मे यहाँ पर मानव की बस्तियाँ और और उनकी मजबूत गतिविधियाँ थी| श्रीलंका मे तो मानव और जानवरो के हड्डियो और जीवाश्मो के आधार पर ऐसे संकेत मिले है कि वहाँ मानव बस्तियाँ 13000 BP (late Pleistocene) मे भी थी|

यह सभी बाते एक ही निष्कर्ष पर पहुँचाती है कि जब भारत और श्रीलंका के बीच समुद्रस्तर जब ठीक सुविधाजनक था, उसी समय राम सेतु के दोनो ओर मानव गतिविधियाँ भी तेज थी| यही वह समय था जब यह सेतु बनाया गया| कुछ विद्वान रामायण का समय भी यही बताते है| सम्भव है कि यही वह पुल हो जिसे राम ने रावण से युद्ध करने के लिये बनाया हो|

प्राकृतिक निर्मित होने के पक्ष में मत और शोध

दिसम्बर 2002 – मार्च 2003 के बीच भारतीय भूगोल सर्वेक्षण (Geological Survey of India (GSI)) ने एक वैज्ञानिक शोध किया, देश के इस जाने माने इंस्टीट्यूट ने राम सेतु के आसपास 91 बोरहोल्स बनाकर वहां से सैंपल लिए थे और उनकी पड़ताल की थी। इन्हें सेतु प्रोजेक्ट के दफ्तर में रखा गया था। इस शोध मे बताया गया कि रामेश्वरम द्वीप 125,000 BP (before present) के आसपास समुद्र से बाहर निकला। रामेश्वरम और थलाई मन्नार 18000 BP से 7000BP तक समुद्र से उपर ही थे और भारत और श्री लंका के बीच एक मार्ग प्रदान करते थे| यह शोध आगे बताता है कि धनुषकोडि और दूसरे द्वीपो के बीच जो मार्ग दिखायी देता है, जिसे रामसेतु माना जाता है, उसके मानव निर्मित होने के कोई प्रमाण नही है1

अंतरिक्ष अनुसंधान केन्द्र, अहमदाबाद (The Space Application Centre, Ahmedabad) भी इसी निष्कर्ष पर पहुँचता है। उसके अनुसार यह वास्तव मे मूँगा-चट्टानो के 103 छोटे खंड है, जो कि एक सीधी रेखा बनाते है। Journal of the Indian society of Remote Sensing मे छपा एक लेख आदम पुल को न केवल एक मूँगा-चट्टानो की एक श्रृंखला प्रदर्शित करता है, बल्कि भूवैज्ञानिको और पुरातत्त्वविदो की इस धारणा को भी बल देता है कि यह मानव निर्मित नही बल्कि प्राकृतिक है।

नासा कहता है कि रामसेतु प्राकृतिक तौर पर बना - अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा का कहना है कि भारत और श्रीलंका के बीच पाक जलडमरूमध्य में मौजूद ढांचा किसी भी हालत में आदमी का बनाया हुआ नहीं है। यह पूरी तरह प्राकृतिक है। सेतुसमुद्रम कॉपरेरेशन लि. के सीईओ एनके रघुपति के मुताबिक उन्हें नासा के जॉन्सन स्पेस सेंटर की ओर से मिले ईमेल में नासा ने अपने पक्ष का खुलासा किया है। नासा की तस्वीरों को लेकर काफी होहल्ला पहले ही मच चुका है।

सेतु समुद्रम परियोजना

क्या है सेतु समुद्रम परियोजना

2005 में भारत सरकार ने सेतुसमुद्रम परियोजना का ऐलान किया गया। भारत सरकार सेतु समुद्रम परियोजना के तहत तमिलनाडु को श्रीलंका से जोड़ने की योजना पर काम कर रही है। इससे व्यापारिक फायदा उठाने की बात कही जा रही है।

इसके तहत रामसेतु के कुछ इलाके को गहरा कर समुद्री जहाजों के लायक बनाया जाएगा। इसके लिए सेतु की चट्टानों को तोड़ना जरूरी है। इस परियोजना से रामेश्वरम देश का सबसे बड़ा शिपिंग हार्बर बन जाएगा। तूतिकोरन हार्बर एक नोडल पोर्ट में तब्दील हो जाएगा और तमिलनाडु के कोस्टल इलाकों में कम से कम 13 छोटे एयरपोर्ट बन जाएँगे।

माना जा रहा है कि सेतु समुद्रम परियोजना पूरी होने के बाद सारे अंतरराष्ट्रीय जहाज कोलंबो बंदरगाह का लंबा मार्ग छोड़कर इसी नहर से गुजरेंगें, अनुमान है कि 2000 या इससे अधिक जलपोत प्रतिवर्ष इस नहर का उपयोग करेंगे।

मार्ग छोटा होने से सफर का समय और लंबाई तो छोटी होगी ही, संभावना है कि जलपोतों का 22 हजार करोड़ का तेल बचेगा। 19वें वर्ष तक परियोजना 5000 करोड़ से अधिक का व्यवसाय करने लगेगी जबकि इसके निर्माण में 2000 करोड़ की राशि खर्च होने का अनुमान है।

परियोजना से नुकसान

हर साल बंगाल की खाड़ी में आने वाले खतरनाक तूफानों से राम सेतु ही बचाता है जिस कारण मन्नार की खाड़ी में असंतुलन की स्थिति नहीं आती है। इसलिए हम लोग भी वैज्ञानिकों के अनुसंधान से यह निष्कर्ष पा रहे हैं कि रामसेतु के कारण सुनामी को भी कमजोर होना पड़ा है। नहीं तो अब तक के अनुभवों के मुकाबले सुनामी के कारण भयंकर क्षति हो जाती। रामसेतु को तोड़े जाने से ऐसी संभावना व्यक्त की जा रही है कि अगली सुनामी से केरल में तबाही का जो मंजर होगा उससे बचाना मुश्किल हो जाएगा। हजारों मछुआरे बेरोजगार हो जाएँगे।

इस क्षेत्र में मिलने वाले दुर्लभ शंख व शिप जिनसे 150 करोड़ रुपए की वार्षिक आय होती है, से लोगों को वंचित होना पड़ेगा। जल जीवों की कई दुर्लभ प्रजातियाँ नष्ट हो जाएँगी। भारत के पास यूरेनियम के सर्वश्रेष्ठ विकल्प थोरियम का विश्व में सबसे बड़ा भंडार है। यदि रामसेतु को तोड़ दिया जाता है तो भारत को थोरियम के इस अमूल्य भंडार से हाथ धोना पड़ेगा।

सेतु समुद्रम पर विवाद

भगवान राम ने जहाँ धनुष मारा था उस स्थान को 'धनुषकोटि' कहते हैं। राम ने अपनी सेना के साथ लंका पर चढ़ाई करने के लिए उक्त स्थान से समुद्र में एक ब्रिज बनाया था इसका उल्लेख 'वाल्मिकी रामायण' में मिलता है।

केन्द्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय में दाखिल किए गए एक हलफनामें कहा था कि रामसेतु को खुद भगवान राम ने अपने एक जादुई बाण से तोड़ दिया था, इसके सुबूत के तौर पर सरकार ने 'कंबन रामायण' और 'पद्मपुराण' को पेश किया। सरकार ने रामसेतु के वर्तमान हिस्से के बारे में कहा कि यह हिस्सा मानव निर्मित न होकर भौगोलिक रूप से प्रकृति द्वारा निर्मित है। इसमें रामसेतु नाम की कोई चीज नहीं है।

विवाद का कारण

इससे पूर्व जब भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने सितंबर 2007 में उच्चतम न्यायालय में दाखिल अपने हलफनामें में रामायण में उल्‍लेखित पौराणिक चरित्रों के अस्तित्व पर ही सवालिया निशान लगा दिए थे, जिसे हिंदू भावनाओं को ठेस पहुँचाना माना गया।

एएसआई के हलफनामें में उसके निदेशक (स्मारक) सी. दोरजी ने कहा था कि राहत की माँग कर रहे याचिकाकर्ता मूल रूप से वाल्मीकि रामायण, तुलसीदास की रचित राम चरित्र मानस और पौराणिक ग्रंथों पर विश्वास कर रहे हैं, जो प्राचीन भारतीय साहित्य का महत्वपूर्ण अंग है, लेकिन इन्हें ऐतिहासिक दस्तावेज नहीं कहा जा सकता और उनमें वर्णित चरित्रों तथा घटनाओं को भी प्रामाणिक सिद्ध नहीं किया जा सकता।

इससे पूर्व अहमदाबाद के मैरीन ऐंड वाटर रिसोर्सेज ग्रुप स्पेस एप्लिकेशन सेंटर ने कहा कि माना जाता है कि एडम्स ब्रिज या रामसेतु भगवान राम ने समुद्र पारकर श्रीलंका जाने के लिए बनाया था, जो मानव निर्मित नहीं है। सरकार और एएसआई ने भी इस मामले में इसी अध्ययन से मिलते जुलते विचार प्रकट किए हैं।

गौरतलब है कि रामसेतु की रक्षार्थ याचिकाकर्ता ने अदालत से रामसेतु को संरक्षित एवं प्राचीन स्मारक घोषित करने का अनुरोध किया था। यह निर्देश देने का भी अनुरोध किया गया था कि रामेश्वरम को श्रीलंका से जोड़ने वाले सेतु समुद्रम के निर्माण के समय रामसेतु को नष्ट न किया जाए। इस याचिका पर 14 सितम्बर 20007 को उच्चतम न्यायालय में सुनवाई हुई।

नया हलफनाम

विवाद के चलते भारत सरकार ने हलमनामें को वापस लेते हुए 29 फरवरी 2008 को उच्चतम न्यायालय में नया हलफनामा पेश कर कहा कि रामसेतु के मानव निर्मित अथवा प्राकृतिक बनावट सुनिश्चित करने के लिए कोई वैज्ञानिक विधि मौजूद नहीं है।

इस विवाद के चलते उधर तमिलनाडु की करुणानिधि सरकार ने रामसेतु को तोड़कर सेतु समुद्रम परियोजना को जल्द से जल्द पूरा करने के लिए कमर कस ली। हालाँकि उच्चतम न्यायालय ने अधिकारियों को निर्देश दिया है कि खनन गतिविधियों के दौरान रामसेतु को किसी प्रकार का नुकसान नहीं हो, लेकिन इस आदेश का पालन किस हद तक किया जा रहा है यह राज्य सरकार ही बता सकती है।

सरकारी दावे का खंडन

रामकथा के लेखक नरेंद्र कोहली के अनुसार, सरकार यह झूठ प्रचारित कर रही है कि राम ने लौटते हुए सेतु को तोड़ दिया था। जबकि रामायण के मुताबिक राम लंका से वायुमार्ग से लौटे थे, तो सोचे वह पुल कैसे तुड़वा सकते थे। रामायण में सेतु निर्माण का जितना जीवंत और विस्तृत वर्णन मिलता है, वह कल्पना नहीं हो सकता। यह सेतु कालांतर में समुद्री तूफानों आदि की चोटें खाकर टूट गया, मगर इसके अस्तित्व को नकारा नहीं जा सकता।

लालबहादुर शास्त्री विद्यापीठ के लेक्चरर डॉ. राम सलाई द्विवेदी का कहना है कि वाल्मीकि रामायण के अलावा कालिदास ने 'रघुवंश' के तेरहवें सर्ग में राम के आकाश मार्ग से लौटने का वर्णन किया है। इस सर्ग में राम द्वारा सीता को रामसेतु के बारे में बताने का वर्णन है। इसलिए यह कहना गलत है कि राम ने लंका से लौटते हुए सेतु तोड़ दिया था।

भारतीय नौ सेना की चिंता

सेतुसमुद्रम परियोजना को लेकर चल रही राजनीति के बीच कोस्ट गार्ड के डायरेक्टर जनरल आर.एफ. कॉन्ट्रैक्टर ने कहा था कि यह परियोजना देश की सुरक्षा के लिए एक खतरा साबित हो सकती है।

वाइस एडमिरल कॉन्ट्रैक्टर ने कहा था कि इसकी पूरी संभावना है कि इस चैनल का इस्तेमाल आतंकवादी कर सकते हैं। वाइस एडमिरल कॉन्ट्रैक्टर का इशारा श्रीलांकाई तमिल उग्रवादियों तथा अन्य आतंकवादियों की ओर है, जो इसका इस्तेमाल भारत में घुसने के लिए कर सकते हैं।



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