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*सोमेश्वर तृतीय | *'''सोमेश्वर तृतीय''' (1126 से 1138 ई.) [[कल्याणी कर्नाटक|कल्याणी]] के [[विक्रमादित्य षष्ठ]] का पुत्र तथा उत्तराधिकरी था। | ||
*1126 ई. में | *वह एक शान्तिप्रिय शासक था। उसका राज्यारोहण 1126 ई. में हुआ था। | ||
*उसने उत्तरी भारत में विजय यात्राएँ कर [[मगध]] और [[नेपाल]] को अपना वशवर्त्ती बनाया। [[अंग]], [[बंगाल|बंग]], [[कलिंग]] पहले ही [[चालुक्य साम्राज्य]] की अधीनता को स्वीकार कर चुके थे। मगध भी पूर्ववर्त्ती चालुक्य विजेताओं के द्वारा आक्रान्त हो चुका था। | *इसके उपलक्ष्य में उसने 'भूलोकमल्ल वर्ष' नामक एकनवीन वर्ष का प्रचलन किया तथा 'भूलोकमल्ल' विरुद धारण किया। | ||
*सोमेश्वर तृतीय ने अपने कुल की शक्ति को बढ़ाकर [[नेपाल]] तक भी आक्रमण किए। | |||
* [[सोमेश्वर प्रथम]] के समय से उत्तरी भारत पर और विशेषतया अंग, बंग तथा कलिंग पर दक्षिणापथ की सेनाओं के जो निरन्तर आक्रमण होते रहे, उन्हीं के कारण बहुत से सैनिक व उनके सरदार उन प्रदेशों में स्थिर रूप से बस गए, और उन्हीं से [[बंगाल]] में [[सेन वंश]] एवं [[मिथिला]] में | *उसने उत्तरी [[भारत]] में विजय यात्राएँ कर [[मगध]] और [[नेपाल]] को अपना वशवर्त्ती बनाया। [[अंग]], [[बंगाल|बंग]], [[कलिंग]] पहले ही [[चालुक्य साम्राज्य]] की अधीनता को स्वीकार कर चुके थे। मगध भी पूर्ववर्त्ती चालुक्य विजेताओं के द्वारा आक्रान्त हो चुका था। | ||
*वह राजशास्त्र, न्याय व्यवस्था, वैद्यक, ज्योतिष, | *[[सोमेश्वर प्रथम]] के समय से ही उत्तरी भारत पर और विशेषतया अंग, बंग तथा कलिंग पर दक्षिणापथ की सेनाओं के जो निरन्तर आक्रमण होते रहे, उन्हीं के कारण बहुत से सैनिक व उनके सरदार उन प्रदेशों में स्थिर रूप से बस गए, और उन्हीं से [[बंगाल]] में [[सेन वंश]] एवं [[मिथिला]] में नान्यदेव वंश के राज्य स्थापित हुए। इसीलिए इन्हें 'कर्णाट' कहा गया है। | ||
*किन्तु उसकी बहुमुखी प्रतिभा एवं विद्वत्ता उसकी सैन्य संगठन शक्ति में सहायक न हो सकी। | *यह एक उच्चकोटि का विद्धान एवं शिल्पशास्त्र ग्रन्थ था। | ||
*उसके शासन काल में अधीनस्थ सामंतों ने | *वह राजशास्त्र, न्याय व्यवस्था, वैद्यक, ज्योतिष, [[रसायन विज्ञान|रसायन]] तथा पिंगल सदृश विषयों पर अनेक ग्रंथों का रचयिता बताया जाता है। | ||
*उसने 'मानसोल्लास' नामक ग्रंथ की रचना की, जो एक शिल्पशास्त्र ग्रन्थ है। | |||
*अपनी विद्धता के कारण सोमेश्वर तृतीय 'सर्वज्ञभूप' के रूप में प्रसिद्ध था। | |||
*किन्तु उसकी बहुमुखी प्रतिभा एवं विद्वत्ता उसकी सैन्य संगठन शक्ति में सहायक न हो सकी। | |||
*उसके शासन काल में अधीनस्थ सामंतों ने [[चालुक्य साम्राज्य]] की प्रभुत्ता त्यागकर स्वतंत्र शासन करना आरम्भ कर दिया, फलस्वरूप चालुक्य शक्ति का ह्रास होने लगा। | |||
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06:28, 16 फ़रवरी 2011 का अवतरण
- सोमेश्वर तृतीय (1126 से 1138 ई.) कल्याणी के विक्रमादित्य षष्ठ का पुत्र तथा उत्तराधिकरी था।
- वह एक शान्तिप्रिय शासक था। उसका राज्यारोहण 1126 ई. में हुआ था।
- इसके उपलक्ष्य में उसने 'भूलोकमल्ल वर्ष' नामक एकनवीन वर्ष का प्रचलन किया तथा 'भूलोकमल्ल' विरुद धारण किया।
- सोमेश्वर तृतीय ने अपने कुल की शक्ति को बढ़ाकर नेपाल तक भी आक्रमण किए।
- उसने उत्तरी भारत में विजय यात्राएँ कर मगध और नेपाल को अपना वशवर्त्ती बनाया। अंग, बंग, कलिंग पहले ही चालुक्य साम्राज्य की अधीनता को स्वीकार कर चुके थे। मगध भी पूर्ववर्त्ती चालुक्य विजेताओं के द्वारा आक्रान्त हो चुका था।
- सोमेश्वर प्रथम के समय से ही उत्तरी भारत पर और विशेषतया अंग, बंग तथा कलिंग पर दक्षिणापथ की सेनाओं के जो निरन्तर आक्रमण होते रहे, उन्हीं के कारण बहुत से सैनिक व उनके सरदार उन प्रदेशों में स्थिर रूप से बस गए, और उन्हीं से बंगाल में सेन वंश एवं मिथिला में नान्यदेव वंश के राज्य स्थापित हुए। इसीलिए इन्हें 'कर्णाट' कहा गया है।
- यह एक उच्चकोटि का विद्धान एवं शिल्पशास्त्र ग्रन्थ था।
- वह राजशास्त्र, न्याय व्यवस्था, वैद्यक, ज्योतिष, रसायन तथा पिंगल सदृश विषयों पर अनेक ग्रंथों का रचयिता बताया जाता है।
- उसने 'मानसोल्लास' नामक ग्रंथ की रचना की, जो एक शिल्पशास्त्र ग्रन्थ है।
- अपनी विद्धता के कारण सोमेश्वर तृतीय 'सर्वज्ञभूप' के रूप में प्रसिद्ध था।
- किन्तु उसकी बहुमुखी प्रतिभा एवं विद्वत्ता उसकी सैन्य संगठन शक्ति में सहायक न हो सकी।
- उसके शासन काल में अधीनस्थ सामंतों ने चालुक्य साम्राज्य की प्रभुत्ता त्यागकर स्वतंत्र शासन करना आरम्भ कर दिया, फलस्वरूप चालुक्य शक्ति का ह्रास होने लगा।
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