"आदित्यवार": अवतरणों में अंतर
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16:31, 25 फ़रवरी 2011 का अवतरण
- भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
- आदित्यवार जब कुछ तिथियों, नक्षत्रों एवं मासों में युक्त होता है, तो इस वार के बारह नाम होते हैं।
- माघ शुक्ल पक्ष की षष्ठी को यह नन्द कहलाता है, जबकि इस दिन में व्यक्ति केवल रात्रि में ही खाता (नक्त) है।
- सूर्य प्रतिमा पर घी से लेप करना चाहिए, और अगस्ति वृक्ष के फूल, श्वेत चन्दन, गुग्गुलु-धप एवं अपूप (पूआ) का नैवेद्य चढ़ाते हैं।[1]
- भाद्रपद शुक्ल पक्ष में यह रविवार भद्र कहलाता है।
- उस दिन उपवास या केवल रात्रि में ही भोजन किया जाता है।
- दोपहर को मालती-पुष्प, चन्दन एवं विजय धूप चढ़ायी जाती है।[2]
- मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की षष्ठी को इसे कामद कहते हैं।
- दक्षिणायन में रविवार को इसे जय कहते हैं।
- उत्तरायण में रविवार को इसे जयन्त कहते हैं।
- शुक्ल पक्ष की सप्तमी को रौहिणी के साथ रविवार हो तब इसे विजय कहते हैं।
- रौहिणी या हस्त के साथ रविवार हो तब इसे पुत्रद कहते हैं।
- इस दिन उपवास एवं पिण्डों का श्राद्ध किया जाता है।
- माघ कृष्ण पक्ष की सप्तमी को रविवार हो तब इसे आदित्याभिमुख कहते हैं।
- इसमें एकभक्त रहकर प्रातः से सायं तक महाश्वेता मन्त्र का जप करना चाहिए।
- संक्रान्ति के साथ रविवार हो तब इसे हृदय कहते हैं।
- इसमें नक्त रहकर सूर्य देवता के मन्दिर में सूर्याभिमुख होना चाहिए। और आदित्यहृदय मन्त्र का 108 बार जप करना चाहिए।
- पूर्वाफाल्गुनी को रविवार हो तब इसे रोगहा कहते हैं।
- इस दिन अर्क के दोने में एकत्र किए हुए अर्क और फूलों से पूजा करनी चाहिए।
- रविवार एवं सूर्यग्रहण के दिन इसे महाश्वेताप्रिय कहते हैं।
- इस दिन उपवास और महाश्वेता का जप करते हैं।
- महाश्वेता मन्त्र है—"ह्रीं ह्रीं स इति"[3]