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13:18, 27 फ़रवरी 2011 का अवतरण
टेरा गुजरात राज्य के कच्छ शहर के पास स्थित है। यह स्थान अपनी अद्वितीय पारिस्थितिकी और संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है। इस प्राचीन क्षेत्र में रामायण की अपनी परम्परा है। यह रामरंध के नाम से जानी जाती है। टेरा के क़िले में कच्छी रामायण (रामरंध) के विभिन्न प्रकरणों को दर्शाते भित्तिचित्र चित्रित हैं।
इतिहास
एक महान लेकिन मृत परम्परा के यह अवशेष अब कच्छ में टेरा के शासक के 500 साल पुराने क़िले की दीवारों पर भित्तिचित्रों के रूप में मिलते हैं। इन भित्तिचित्रों को उन्नीसवीं सदी के मशहूर कच्छी कामगीरी कलम के कलाकारों द्वारा सब्ज़ियों और दूसरे प्राकृतिक रंगों का प्रयोग करके बनाया गया था। सन 2001 में आये भूकम्प के बाद रामरंध के ये भित्तिचित्र तेज़ी से फीके पड़ रहें और नष्ट हो रहे हैं। भूकम्प से भित्तिचित्रों से सजे कमरे समेत क़िले को काफ़ी क्षति पहुँची थी।
टेरा के क़िले
टेरा के क़िले में चित्रकार ने कमरे की चारों दीवारों पर रामायण के सात मुख्य प्रकरणों को चित्रित किया है, जो सम्भवतः टेरा के शासक का शयन कक्ष था। प्रत्येक प्रकरण दो या तीन हिस्से में बँटा हुआ है, जो राम के जन्म से लेकर लंका में रावण के मारे जाने और सीता की अग्निपरीक्षा तक रामायण के मुख्य प्रसंगों को दर्शाते हैं।
रावण के रहस्य
भूकम्प के कारण क़िले की दीवार पर आई दरारों की वजह से कुछ प्रसंग जैसे हनुमान उड़कर सागर पार लंका जाते हुए,अशोक वाटिका में सीता को राम का संदेश सुनाते हुए तथा अपनी जलती पूँछ से सारी लंका में आग लगाते हुए आदि फीके पड़ चुके हैं। एक अन्य चित्रित प्रसंग में मोटी दरारें पड़ गई हैं, जिसमें विभीषण रावण के रहस्य राम को बताने के लिए उनसे भेंट करता है।
रहस्यमयी दृश्य
इस प्रसंग में वानर अपने सिर पर पत्थर ढोकर समुद्र पर पुल बनाते दिखाए गए हैं। रावण को अपनी पत्नी मंदोदरी के साथ क़िले के ऊपर बैठे दर्शाया गया है। इस प्रसंग की यह विशेषता है कि अपने सिर पर पत्थर ला रहे वानरों को उड़ते हुए दिखाया गया है। ऐसा दृश्य रामायण की अन्यत्र बनी पैंटिंग में कहीं नहीं देखा है। इस प्रसंग से यह प्रश्न उठता है कि अगर वानर उड़ सकते थे तो उन्हें पुल बनाने कि क्या जरुरत थी। इसके तर्क में, रामायण के अनुसार हनुमान को छोड़कर बाकी सारे वानरों के उड़ने की क्षमता सीमित थी। भूकम्प से अन्य कई चित्र प्रभावित हुए हैं जिसमें राम और रावण की सेना एक-दूसरे से लड़ रही है और घायल लक्ष्मण के लिए जीवनदायिनी संजीवनी की तलाश में पूरे पहाड़ को उठा लाते हैं।
रावण वध
टेरा में रावण के वध पश्चात राम विभीषण को लंका के राजा के रुप में मुकुट पहनाते हुए, सीता को पालकी में लाते हुए, सीता को अपने सतीत्व की अग्निपरीक्षा देने तथा लक्ष्मण का रावण की बहन सूपर्णखा की नाक काटने वाले प्रसंग अच्छी अवस्था में हैं। ये भित्तिचित्र वास्तव में बहुमूलय हैं, क्योंकि ये कच्छ की अद्वितीय लोक शैली को दर्शाते हैं। स्थापत्य के लिहाज से ये भित्तिचित्र स्थानीय निर्माण के आकार-प्रकार की परिकल्पना करते हैं।
वेशभूषा
यहाँ स्थित महल, गलियारे, आश्रम, झोंपड़ियाँ और मंदिर टेरा के स्थानीय समकालीन भवन लगते हैं। उनकी शैलियाँ अलग-अलग हैं। उनकी आकृतियाँ, वेशभूषा, महिलाओं के नाक-नक्श और यहाँ तक कि अप्सराएँ भी कच्छी आकार-प्रकार की हैं।
हास्यमयी दृश्य
टेरा में इन भित्तिचित्रों में कुछ हद तक स्थानीय हास्य भी दिखाई देता है। एक जगह रावण के मुकुट पर गधा बना है। इससे यह पता चलता है कि रावण में गधे के समान बुद्धि थी जिससे उसने सीता का हरण करके राम के हाथों अपने विनाश को न्यौता दिया। एक अन्य जगह लड़ाई के दृश्य में रावण के हाथ खून से नहीं बल्कि मिट्टी से सने हुए हैं। शायद इन्हें बनाने वाले चित्रकार का यही उद्देश्य रहा होगा कि पैंटिंग का रुप वीभत्स नहीं लगे।
कच्छी रिकॉर्ड के मुताबिक टेरा के कलाप्रेमी ठाकोर सुमराजी और उनकी पत्नी बाईसाहेब ने 1845 ई. में क़िले के जीर्णोद्धार के समय इन भित्तिचित्रों के निर्माण की मंजूरी दी थी। चूँकि यह दम्पती निःसंतान था इसलिए कच्छ के तत्कालीन शासक महाराव देशलजी ने अपने चहेते बेटे गगुभा को टेरा की गद्दी पर बैठा दिया।
जलचित्रों का समावेश
राम के भक्त गगुभा इसी कमरे में सोते थे जिसमें ये भित्तिचित्र बनाए गये हैं। दिलचस्प बात यह है कि इन जलचित्रों को बनाने वाले कलाकारों के बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। यह भी उल्लेखनीय है कि कच्छ के इतिहास में टेरा का खास मुक़ाम है जहाँ आज भी कई ऐतिहासिक स्थल बिखरे पड़े हैं।
खण्डहर
टेरा के पास कच्छ के संस्थापक राव खेगरजी के पिता राव हमीरजी जाडेजा की हत्या कर दी गई थी। गाँव के पास बनाई गई उनकी समाधि अब खण्डहर अवस्था में विद्यमान है।
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