"रावी, रामप्रसाद विद्यार्थी": अवतरणों में अंतर

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==उल्लेखनीय ग्रन्थ==
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रावी, रामप्रसाद विद्यार्थी के उल्लेखनीय ग्रन्थ इस प्रकार हैं-
रामप्रसाद विद्यार्थी के उल्लेखनीय ग्रन्थ इस प्रकार हैं-
*'पूजा' (एकांकी नाटक संग्रह, [[1937]])
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*'पूर्व पश्चिम' (एकांकी नाटकों का संग्रह, [[1950]])
*'पूर्व पश्चिम' (एकांकी नाटकों का संग्रह, [[1950]])
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*[http://books.google.co.in/books?id=yFgJ9lNjuuUC&pg=PA72&lpg=PA72&dq=%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A6+%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A5%E0%A5%80+%E2%80%98%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A5%80%E2%80%99&source=bl&ots=6VFrZJ_qLn&sig=3YnppJY2CkJTHDC7_L5gF4Vzg4w&hl=en&ei=eytiTaPVOIPTrQeGyZz8AQ&sa=X&oi=book_result&ct=result&resnum=4&ved=0CDQQ6AEwAw#v=onepage&q=%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A6%20%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A5%E0%A5%80%20%E2%80%98%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A5%80%E2%80%99&f=false रामप्रसाद विद्यार्थी]

12:29, 28 फ़रवरी 2011 का अवतरण

रावी, रामप्रसाद विद्यार्थी
पूरा नाम रामप्रसाद विद्यार्थी
अन्य नाम रावी
जन्म 1911
जन्म भूमि आगरा
कर्म-क्षेत्र साहित्य
मुख्य रचनाएँ 'मेरे कथा गुरु का कहना है...' (1958 ई.), 'नये नगर की कहानी' (1953 ई.), 'क्या मैं अन्दर आ सकता हूँ' (1956 ई.)
विषय नाटक, कहानी संग्रह, लघुकथाओं और निबन्ध
भाषा ओजमयी
नागरिकता भारतीय
शैली भावात्मक शैली
अद्यतन‎
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

रावी जी का जन्म 1911 ई. में हुआ था। इनका पूरा नाम रामप्रसाद विद्यार्थी है। रामप्रसाद विद्यार्थी रावी के नाम से हिन्दी जगत में प्रसिद्ध हैं। ये आगरा के रहने वाले हैं। नाटक, कहानी संग्रह, लघुकथाओं और निबन्धों के अतिरिक्त इन्होंने एक उपन्यास भी लिखा है। रामप्रसाद विद्यार्थी की प्रसिद्धि मौलिक लघु कथाओं के लेखक के रूप में अधिक है।

शैली

रावी मुख्यत: भावुकताप्रदान शैली के लेखक हैं। इनकी घटनाएँ अत्यन्त भावनाप्रधान और समस्याएँ जीवन के नितान्त निकट की है। इनकी भाषा ओजमयी और कथ्य विशुद्ध साहित्यिक है। इनका विडम्बनाओं और विरोधी स्थितियों के भावनात्मक निराकरणों में अधिक विश्वास है।

लघु कथा

लघु कथाओं में रामप्रसाद जी की शैली अधिक निखर कर आयी है। छोटी-छोटी कहानियों में जीवन की विविध अनुभूतियों की मार्मिक अभिव्यक्ति हुई है। 'मेरे कथा गुरु का कहना है...' (1958 ई.) इनकी सफल कृति मानी जाती है। यद्यपि रामप्रसाद जी की सम्पूर्ण कृतियों पर छायावादी भावबोध का अधिक प्रभाव पड़ा है, किन्तु इनकी लघु कथाओं में उस तथ्य का बिल्कुल भिन्न प्रभाव देखने में आता है। रागात्मक अनुभूतियों के जीवन के निकटतम सत्यों का एक सर्वथा नया पुट इनकी कथाओं में मिलता है।

नाटक

रामप्रसाद विद्यार्थी जी के नाटकों में भावात्मक शैली बाधाएँ उत्पन्न कर देती हैं क्योंकि पात्रों की रचना, उनकी स्थिति और उनकी सम्पूर्ण नाटकीय परिस्थिति भावुक अधिक और नाटकीय कम लगती है। 'नये नगर की कहानी' (1953 ई.) नामक उपन्यास में भी इनको सफलता अंशत: ही मिल पायी है। विभिन्न विधाओं का अतिक्रमण भी एक-दूसरे से हुआ है। कुछ लघु कथाएँ नितान्त नाटकीय हैं, कुछ एकांकी कहानी के रूप में प्रस्तुत किये गये हैं। उपन्यास की भी यही दशा हुई है।

निबन्ध

पत्रकार होने के नाते इन्होंने कुछ निबन्ध जैसे 'क्या मैं अन्दर आ सकता हूँ' (1956 ई.) भी लिखे हैं। निबन्धों में भी भावप्रधान शैली होने के नाते कहीं-कहीं गद्य गीत जैसा लगता है, लेकिन यह सब होते हुए भी इनकी रचनाओं में आधुनिक स्वरों की झलक दिखती है।

उल्लेखनीय ग्रन्थ

रामप्रसाद विद्यार्थी के उल्लेखनीय ग्रन्थ इस प्रकार हैं-

  • 'पूजा' (एकांकी नाटक संग्रह, 1937)
  • 'पूर्व पश्चिम' (एकांकी नाटकों का संग्रह, 1950)
  • 'नये नगर की कहानी' (उपन्यास 1953 ई.)
  • 'पहला कहानीकार' (छोटी कहानियों का संग्रह, 1954)
  • 'क्या मैं अन्दर आ सकता हूँ' (निबन्ध)
  • 'वीरभद्र की गोष्ठी' (समाजशास्त्री पुस्तक, 1956 ई.)

 

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