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*'''अपराजित''' (878-897 ई.) ने [[नृपत्तुंग वर्मन]] को अपदस्थ करके [[पल्लव वंश]] का राज्याधिकार प्राप्त किया।
*'''अपराजित''' (878-897 ई.) ने [[नृपत्तुंग वर्मन]] को अपदस्थ करके [[पल्लव वंश]] का राज्याधिकार प्राप्त किया।
*उसने पल्लव वंश के अन्तिम शासक के रूप में शासन किया।
*उसने पल्लव वंश के अन्तिम शासक के रूप में शासन किया।  
*उसके समय में [[चोल वंश|चोल]] शासक [[आदित्य प्रथम]] ने 'तोंडमंडलम्' पर अधिकार कर लिया।
*अपराजित [[काँची]] का अन्तिम [[पल्लव]] राजा था।
*उसके समय में [[चोल वंश|चोल]] शासक [[आदित्य (चोल वंश)|आदित्य प्रथम]] ने 'तोंडमंडलम्' पर अधिकार कर लिया।
*इस प्रकार दक्षिण [[भारत]] में एक नवीन शक्ति के रूप में चोलों का उदय हुआ।
*इस प्रकार दक्षिण [[भारत]] में एक नवीन शक्ति के रूप में चोलों का उदय हुआ।
*अपराजित ने विरुक्तनि में 'वीरट्टानेश्वर मंदिर' को निर्मित करवाया।
*अपराजित ने विरुक्तनि में 'वीरट्टानेश्वर मंदिर' को निर्मित करवाया।
*अपराजित के बाद [[नन्दि वर्मन तृतीय]], [[नन्दि वर्मन चतुर्थ]], [[कम्प वर्मन]] आदि ने कुछ समय तक पल्लव शक्ति को बचाने का प्रयास किया, पर असफल रहे।
*अपराजित के बाद [[नन्दि वर्मन तृतीय]], [[नन्दि वर्मन चतुर्थ]], [[कम्प वर्मन]] आदि ने कुछ समय तक पल्लव शक्ति को बचाने का प्रयास किया, पर असफल रहे।
*उसने नवीं शताब्दी ई. के उत्तरार्ध में राज्य किया।
*862-63 ई. में अपराजित ने पांड्य राजा वरगुण वर्मा को श्री पुरम्बिया के युद्ध में पराजित किया था, लेकिन बाद में नवीं शताब्दी के अन्तिम वर्षों में वह स्वयं चोल राजा आदित्य प्रथम (880-907 ई.) से पराजित हुआ और मारा गया।
*अपराजित की मृत्यु के बाद पल्लव राजवंश का अन्त हो गया।


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05:11, 4 मार्च 2011 का अवतरण

  • अपराजित (878-897 ई.) ने नृपत्तुंग वर्मन को अपदस्थ करके पल्लव वंश का राज्याधिकार प्राप्त किया।
  • उसने पल्लव वंश के अन्तिम शासक के रूप में शासन किया।
  • अपराजित काँची का अन्तिम पल्लव राजा था।
  • उसके समय में चोल शासक आदित्य प्रथम ने 'तोंडमंडलम्' पर अधिकार कर लिया।
  • इस प्रकार दक्षिण भारत में एक नवीन शक्ति के रूप में चोलों का उदय हुआ।
  • अपराजित ने विरुक्तनि में 'वीरट्टानेश्वर मंदिर' को निर्मित करवाया।
  • अपराजित के बाद नन्दि वर्मन तृतीय, नन्दि वर्मन चतुर्थ, कम्प वर्मन आदि ने कुछ समय तक पल्लव शक्ति को बचाने का प्रयास किया, पर असफल रहे।
  • उसने नवीं शताब्दी ई. के उत्तरार्ध में राज्य किया।
  • 862-63 ई. में अपराजित ने पांड्य राजा वरगुण वर्मा को श्री पुरम्बिया के युद्ध में पराजित किया था, लेकिन बाद में नवीं शताब्दी के अन्तिम वर्षों में वह स्वयं चोल राजा आदित्य प्रथम (880-907 ई.) से पराजित हुआ और मारा गया।
  • अपराजित की मृत्यु के बाद पल्लव राजवंश का अन्त हो गया।


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