"अनमोल वचन 2": अवतरणों में अंतर
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|'''सुभाषित''' | |'''सुभाषित''' | ||
# यह संसार कर्म की कसौटी है। यहाँ मनुष्य की पहचान उसके कर्मों से होती है।<br> | |||
# दुष्ट चिंतन आग में खेलने की तरह है।<br> | |||
# जो अपनी राह बनाता है वह सफलता के शिखर पर चढ़ता है; पर जो औरों की राह ताकता है सफलता उसकी मुँह ताकती रहती है।<br> | |||
# जीवनोद्देश्य की खोज ही सबसे बड़ा सौभाग्य है। उसे और कहीं ढूँढ़ने की अपेक्षा अपने हृदय में ढूँढ़ना चाहिए।<br> | |||
# वह मनुष्य विवेकवान् है, जो भविष्य से न तो आशा रखता है और न भयभीत ही होता है।<br> | |||
# बुद्धिमान बनने का तरीका यह है कि आज हम जितना जानते हैं, भविष्य में उससे अधिक जानने के लिए प्रयत्नशील रहें।<br> | |||
# जीवन उसी का धन्य है जो अनेकों को प्रकाश दे। प्रभाव उसी का धन्य है जिसके द्वारा अनेकों में आशा जाग्रत हो।<br> | |||
# तुम्हारा प्रत्येक छल सत्य के उस स्वच्छ प्रकाश में एक बाधा है जिसे तुम्हारे द्वारा उसी प्रकार प्रकाशित होना चाहिए जैसे साफ शीशे के द्वारा सूर्य का प्रकाश प्रकाशित होता है।<br> | |||
# मनुष्य जीवन का पूरा विकास ग़लत स्थानों, ग़लत विचारों और ग़लत दृष्टिकोणों से मन और शरीर को बचाकर उचित मार्ग पर आरूढ़ कराने से होता है।<br> | |||
# जीवन एक परख और कसौटी है जिसमें अपनी सामथ्र्य का परिचय देने पर ही कुछ पा सकना संभव होता है।<br> | |||
# सेवा का मार्ग ज्ञान, तप, योग आदि के मार्ग से भी ऊँचा है।<br> | |||
# अधिक इच्छाएँ प्रसन्नता की सबसे बड़ी शत्रु हैं।<br> | |||
# मस्तिष्क में जिस प्रकार के विचार भरे रहते हैं वस्तुत: उसका संग्रह ही सच्ची परिस्थिति है। उसी के प्रभाव से जीवन की दिशाएँ बनती और मुड़ती रहती हैं।<br> | |||
# संघर्ष ही जीवन है। संघर्ष से बचे रह सकना किसी के लिए भी संभव नहीं।<br> | |||
# अपने हित की अपेक्षा जब परहित को अधिक महत्त्व मिलेगा तभी सच्चा सतयुग प्रकट होगा।<br> | |||
# सत्य, प्रेम और न्याय को आचरण में प्रमुख स्थान देने वाला नर ही नारायण को अति प्रिय है।<br> | |||
# ज्ञान और आचरण में बोध और विवेक में जो सामञ्जस्य पैदा कर सके उसे ही विद्या कहते हैं।<br> | |||
# संसार में हर वस्तु में अच्छे और बुरे दो पहलू हैं, जो अच्छा पहलू देखते हैं वे अच्छाई और जिन्हें केवल बुरा पहलू देखना आता है वह बुराई संग्रह करते हैं।<br> | |||
# सलाह सबकी सुनो पर करो वह जिसके लिए तुम्हारा साहस और विवेक समर्थन करे।<br> | |||
# फल के लिए प्रयत्न करो, परन्तु दुविधा में खड़े न रह जाओ। कोई भी कार्य ऐसा नहीं जिसे खोज और प्रयत्न से पूर्ण न कर सको।<br> | |||
# अपने दोषों की ओर से अनभिज्ञ रहने से बड़ा प्रमाद इस संसार में और कोई नहीं हो सकता।<br> | |||
# वही उन्नति कर सकता है, जो स्वयं को उपदेश देता है।<br> | |||
# स्वार्थ, अहंकार और लापरवाही की मात्रा बढ़ जाना ही किसी व्यक्ति के पतन का कारण होता है।<br> | |||
# अवसर की प्रतीक्षा में मत बैठो। आज का अवसर ही सर्वोत्तम है।<br> | |||
# '''पाप''' अपने साथ रोग, शोक, पतन और संकट भी लेकर आता है।<br> | |||
# '''ईमानदार''' होने का अर्थ है - हजार मनकों में अलग चमकने वाला हीरा।<br> | |||
# वही जीवित है, जिसका मस्तिष्क ठंडा, रक्त गरम, हृदय कोमल और पुरुषार्थ प्रखर है।<br> | |||
# सद्गुणों के विकास में किया हुआ कोई भी त्याग कभी व्यर्थ नहीं जाता।<br> | |||
# जो आलस्य और कुकर्म से जितना बचता है, वह ईश्वर का उतना ही बड़ा भक्त है।<br> | |||
# शुभ कार्यों को कल के लिए मत टालिए, क्योंकि कल कभी आता नहीं।<br> | |||
# सत्कर्म की प्रेरणा देने से बढ़कर और कोई पुण्य हो ही नहीं सकता।<br> | |||
# नरक कोई स्थान नहीं, संकीर्ण स्वार्थपरता की और निकृष्ट दृष्टिकोण की प्रतिक्रिया मात्र है।<br> | |||
# सद्भावनाओं और सत्प्रवृत्तियों से जिनका जीवन जितना ओतप्रोत है, वह ईश्वर के उतना ही निकट है।<br> | |||
# असत् से सत् की ओर, अंधकार से आलोक की ओर तथा विनाश से विकास की ओर बढ़ने का नाम ही साधना है।<br> | |||
# सच्चाई, ईमानदारी, सज्जनता और सौजन्य जैसे गुणों के बिना कोई मनुष्य कहलाने का अधिकारी नहीं हो सकता।<br> | |||
# किसी आदर्श के लिए हँसते-हँसते जीवन का उत्सर्ग कर देना सबसे बड़ी बहादुरी है।<br> | |||
# उदारता, सेवा, सहानुभूति और मधुरता का व्यवहार ही परमार्थ का सार है।<br> | |||
# गायत्री उपासना का अधिकर हर किसी को है। मनुष्य मात्र बिना किसी भेदभाव के उसे कर सकता है।<br> | |||
# भगवान को घट-घट वासी और न्यायकारी मानकर पापों से हर घड़ी बचते रहना ही सच्ची भक्ति है।<br> | |||
# अस्त-व्यस्त रीति से समय गँवाना अपने ही पैरों कुल्हाड़ी मारना है।<br> | |||
# अपने गुण, कर्म, स्वभाव का शोधन और जीवन विकास के उच्च गुणों का अभ्यास करना ही साधना है।<br> | |||
# जो टूटे को बनाना, रूठे को मनाना जानता है, वही बुद्धिमान है।<br> | |||
# समाज का मार्गदर्शन करना एक गुरुतर दायित्व है, जिसका निर्वाह कर कोई नहीं कर सकता।<br> | |||
# नेतृत्व पहले विशुद्ध रूप से सेवा का मार्ग था। एक कष्ट साध्य कार्य जिसे थोड़े से सक्षम व्यक्ति ही कर पाते थे।<br> | |||
# सारी शक्तियाँ लोभ, मोह और अहंता के लिए वासना, तृष्णा और प्रदर्शन के लिए नहीं खपनी चाहिए।<br> | |||
# निश्चित रूप से ध्वंस सरल होता है और निर्माण कठिन है।<br> | |||
# अपने देश का यह दुर्भाग्य है कि आज़ादी के बाद देश और समाज के लिए नि:स्वार्थ भाव से खपने वाले सृजेताओं की कमी रही है।<br> | |||
# उच्चस्तरीय महत्त्वाकांक्षा एक ही है कि अपने को इस स्तर तक सुविस्तृत बनाया जाय कि दूसरों का मार्गदर्शन कर सकना संभव हो सके।<br> | |||
# शक्ति उनमें होती है, जिनकी कथनी और करनी एक हो, जो प्रतिपादन करें, उनके पीछे मन, वचन और कर्म का त्रिविध समावेश हो।<br> | |||
# व्यक्ति का चिंतन और चरित्र इतना ढीला हो गया है कि स्वार्थ के लिए अनर्थ करने में व्यक्ति चूकता नहीं।<br> | |||
# संसार का सबसे बड़ानेता है - सूर्य। वह आजीवन व्रतशील तपस्वी की तरह निरंतर नियमित रूप से अपने सेवा कार्य में संलग्न रहता है।<br> | |||
# नेतृत्व ईश्वर का सबसे बड़ा वरदान है, क्योंकि वह प्रामाणिकता, उदारता और साहसिकता के बदले ख़रीदा जाता है।<br> | |||
# किसी का अमंगल चाहने पर स्वयं पहले अपना अमंगल होता है।<br> | |||
# महात्मा वह है, जिसके सामान्य शरीर में असामान्य आत्मा निवास करती है।<br> | |||
# जिसका [[हृदय]] पवित्र है, उसे अपवित्रता छू तक नहीं सकता।<br> | |||
# स्वर्ग और मुक्ति का द्वार मनुष्य का हृदय ही है।<br> | |||
# यथार्थ को समझना ही सत्य है। इसी को विवेक कहते हैं।<br> | |||
# अहंकार के स्थान पर आत्मबल बढ़ाने में लगें, तो समझना चाहिए कि ज्ञान की उपलब्धि हो गयी।<br> | |||
# समय को नियमितता के बंधनों में बाँधा जाना चाहिए।<br> | |||
# अपनापन ही प्यारा लगता है। यह आत्मीयता जिस पदार्थ अथवा प्राणी के साथ जुड़ जाती है, वह आत्मीय, परम प्रिय लगने लगती है।<br> | |||
# चेतना के भावपक्ष को उच्चस्तरीय उत्कृष्टता के साथ एकात्म कर देने को 'योग' कहते हैं।<br> | |||
# कुकर्मी से बढ़कर अभागा कोई नहीं, क्योंकि विपत्ति में उसका कोई साथी नहीं रहता।<br> | |||
# जिसने जीवन में स्नेह, सौजन्य का समुचित समावेश कर लिया, सचमुच वही सबसे बड़ा कलाकार है।<br> | |||
# अपने को मनुष्य बनाने का प्रयत्न करो, यदि उसमें सफल हो गये, तो हर काम में सफलता मिलेगी।<br> | |||
# जीवन का अर्थ है समय। जो जीवन से प्यार करते हों, वे आलस्य में समय न गँवाएँ।<br> | |||
# जो बच्चों को सिखाते हैं, उन पर बड़े खुद अमल करें, तो यह संसार स्वर्ग बन जाय।<br> | |||
# बुराई मनुष्य के बुरे कर्मों की नहीं, वरन् बुरे विचारों की देन होती है।<br> | |||
# सब कुछ होने पर भी यदि मनुष्य के पास स्वास्थ्य नहीं, तो समझो उसके पास कुछ है ही नहीं।<br> | |||
# अपनी विकृत आकांक्षाओं से बढ़कर अकल्याणकारी साथी दुनिया में और कोई दूसरा नहीं।<br> | |||
# '''सत्य''' एक ऐसी आध्यात्मिक शक्ति है, जो देश, काल, पात्र अथवा परिस्थितियों से प्रभावित नहीं होती।<br> | |||
# '''सत्य''' ही वह सार्वकालिक और सार्वदेशिक तथ्य है, जो सूर्य के समान हर स्थान पर समान रूप से चमकता रहता है।<br> | |||
# जो प्रेरणा पाप बनकर अपने लिए भयानक हो उठे, उसका परित्याग कर देना ही उचित है।<br> | |||
# कोई भी साधना कितनी ही ऊँची क्यों न हो, सत्य के बिना सफल नहीं हो सकती।<br> | |||
# उतावला आदमी सफलता के अवसरों को बहुधा हाथ से गँवा ही देता है।<br> | |||
# ज्ञान अक्षय है। उसकी प्राप्ति मनुष्य शय्या तक बन पड़े तो भी उस अवसर को हाथ से न जाने देना चाहिए।<br> | |||
# अवांछनीय कमाई से बनाई हुई खुशहाली की अपेक्षा ईमानदारी के आधार पर गरीबों जैसा जीवन बनाये रहना कहीं अच्छा है।<br> | |||
# आवेश जीवन विकास के मार्ग का भयानक रोड़ा है, जिसको मनुष्य स्वयं ही अपने हाथ अटकाया करता है।<br> | |||
# मनुष्यता सबसे अधिक मूल्यवान है। उसकी रक्षा करना प्रत्येक जागरूक व्यक्ति का परम कर्तव्य है।<br> | |||
# ज्ञान ही धन और ज्ञान ही जीवन है। उसके लिए किया गया कोई भी बलिदान व्यर्थ नहीं जाता।<br> | |||
# असफलता केवल यह सिद्ध करती है कि सफलता का प्रयास पूरे मन से नहीं हुआ।<br> | |||
# गृहस्थ एक तपोवन है, जिसमें संयम, सेवा और सहिष्णुता की साधना करनी पड़ती है।<br> | |||
# असत्य से धन कमाया जा सकता है, पर जीवन का आनन्द, पवित्रता और लक्ष्य नहीं प्राप्त किया जा सकता।<br> | |||
# शालीनता बिना मूल्य मिलती है, पर उससे सब कुछ ख़रीदा जा सकता है।<br> | |||
# '''मनुष्य''' परिस्थितियों का दास नहीं, वह उनका निर्माता, नियंत्रणकर्ता और स्वामी है।<br> | |||
# जिन्हें लम्बी जिन्दगी जीना हो, वे बिना कड़ी भूख लगे कुछ भी न खाने की आदत डालें।<br> | |||
# कायर मृत्यु से पूर्व अनेकों बार मर चुकता है, जबकि बहादुर को मरने के दिन ही मरना पड़ता है।<br> | |||
# आय से अधिक खर्च करने वाले तिरस्कार सहते और कष्ट भोगते हैं।<br> | |||
# दु:ख का मूल है पाप। पाप का परिणाम है-पतन, दु:ख, कष्ट, कलह और विषाद। यह सब अनीति के अवश्यंभावी परिणाम हैं।<br> | |||
# अस्वस्थ मन से उत्पन्न कार्य भी अस्वस्थ होंगे।<br> | |||
# आसक्ति संकुचित वृत्ति है।<br> | |||
# समान भाव से आत्मीयता पूर्वक कर्तव्य -कर्मों का पालन किया जाना मनुष्य का धर्म है।<br> | |||
# पाप की एक शाखा है - असावधानी।<br> | |||
# जब तक मनुष्य का लक्ष्य भोग रहेगा, तब तक पाप की जड़ें भी विकसित होती रहेंगी।<br> | |||
# मनुष्य को आध्यात्मिक ज्ञान और आत्म-विज्ञान की जानकारी हुए बिना यह संभव नहीं है कि मनुष्य दुष्कर्मों का परित्याग करे।<br> | |||
# ईश्वर अर्थात् मानवी गरिमा के अनुरूप अपने को ढालने के लिए विवश करने की व्यवस्था।<br> | |||
# मनुष्य बुद्धिमानी का गर्व करता है, पर किस काम की वह बुद्धिमानी-जिससे जीवन की साधारण कला हँस-खेल कर जीने की प्रक्रिया भी हाथ न आए।<br> | |||
# जब अंतराल हुलसता है, तो तर्कवादी के कुतर्की विचार भी ठण्डे पड़ जाते हैं।<br> | |||
# मनुष्य के भावों में प्रबल रचना शक्ति है, वे अपनी दुनिया आप बसा लेते हैं।<br> | |||
# पग-पग पर शिक्षक मौजूद हैं, पर आज सीखना कौन चाहता है?<br> | |||
# इस संसार में अनेक विचार, अनेक आदर्श, अनेक प्रलोभन और अनेक भ्रम भरे पड़े हैं।<br> | |||
# पादरी, मौलवी और महंत भी जब तक एक तरह की बात नहीं कहते, तो दो व्यक्तियों में एकमत की आशा की ही कैसे जाए?<br> | |||
# जीवन की सफलता के लिए यह नितांत आवश्यक है कि हम विवेकशील और दूरदर्शी बनें।<br> | |||
# विवेकशील व्यक्ति उचित अनुचित पर विचार करता है और अनुचित को किसी भी मूल्य पर स्वीकार नहीं करता।<br> | |||
# धर्मवान् बनने का विशुद्ध अर्थ बुद्धिमान, दूरदर्शी, विवेकशील एवं सुरुचि सम्पन्न बनना ही है।<br> | |||
# मानव जीवन की सफलता का श्रेय जिस महानता पर निर्भर है, उसे एक शब्द में धार्मिकता कह सकते हैं।<br> | |||
# मांसाहार मानवता को त्यागकर ही किया जा सकता है।<br> | |||
# परमार्थ मानव जीवन का सच्चा स्वार्थ है।<br> | |||
# समय उस मनुष्य का विनाश कर देता है, जो उसे नष्ट करता रहता है।<br> | |||
# अश्लील, अभद्र अथवा भोगप्रधान मनोरंजन पतनकारी होते हैं।<br> | |||
# परोपकार से बढ़कर और निरापत दूसरा कोई धर्म नहीं।<br> | |||
# परावलम्बी जीवित तो रहते हैं, पर मृत तुल्य ही।<br> | |||
# अंध श्रद्धा का अर्थ है, बिना सोचे-समझे, आँख मूँदकर किसी पर भी विश्वास।<br> | |||
# एकांगी अथवा पक्षपाती मस्तिष्क कभी भी अच्छा मित्र नहीं रहता।<br> | |||
# सबसे बड़ा दीन दुर्बल वह है, जिसका अपने ऊपर नियंत्रण नहीं।<br> | |||
# जो जैसा सोचता है और करता है, वह वैसा ही बन जाता है।<br> | |||
# '''भगवान''' की दण्ड संहिता में असामाजिक प्रवृत्ति भी अपराध है।<br> | |||
# करना तो बड़ा काम, नहीं तो बैठे रहना, यह दुराग्रह मूर्खतापूर्ण है।<br> | |||
# डरपोक और शक्तिहीन मनुष्य भाग्य के पीछे चलता है।<br> | |||
# '''मानवता''' की सेवा से बढ़कर और कोई बड़ा काम नहीं हो सकता।<br> | |||
# प्रकृतित: हर मनुष्य अपने आप में सुयोग्य एवं समर्थ है।<br> | |||
# व्यक्तित्व की अपनी वाणी है, जो जीभ या कलम का इस्तेमाल किये बिना भी लोगों के अंतराल को छूती है।<br> | |||
# प्रस्तुत उलझनें और दुष्प्रवृत्तियाँ कहीं आसमान से नहीं टपकीं। वे मनुष्य की अपनी बोयी, उगाई और बढ़ाई हुई हैं।<br> | |||
# दीनता वस्तुत: मानसिक हीनता का ही प्रतिफल है।<br> | |||
# जीवनी शक्ति पेड़ों की जड़ों की तरह भीतर से ही उपजती है।<br> | |||
# सत्कर्मों का आत्मसात होना ही उपासना, साधना और आराधना का सारभूत तत्व है।<br> | |||
# जनसंख्या की अभिवृद्धि हजार समस्याओं की जन्मदात्री है।<br> | |||
# अंतरंग बदलते ही बहिरंग के उलटने में देर नहीं लगती है।<br> | |||
# सद्विचार तब तक मधुर कल्पना भर बने रहते हैं, जब तक उन्हें कार्य रूप में परिणत नहीं किया जाय।<br> | |||
# नेतृत्व का अर्थ है वह वर्चस्व जिसके सहारे परिचितों और अपरिचितों को अंकुश में रखा जा सके, अनुशासन में चलाया जा सके।<br> | |||
# आत्मानुभूति यह भी होनी चाहिए कि सबसे बड़ी पदवी इस संसार में मार्गदर्शक की है।<br> | |||
# नेता शिक्षित और सुयोग्य ही नहीं, प्रखर संकल्प वाला भी होना चाहिए, जो अपनी कथनी और करनी को एकरूप में रख सके।<br> | |||
# सफल नेता की शिवत्व भावना-सबका भला 'बहुजन हिताय-बहुजन सुखाय' से प्रेरित होती है।<br> | |||
# जो व्यक्ति कभी कुछ कभी कुछ करते हैं, वे अन्तत: कहीं भी नहीं पहुँच पाते।<br> | |||
# विपरीत प्रतिकूलताएँ नेता के आत्म विश्वास को चमका देती हैं।<br> | |||
# सच्चे नेता आध्यात्मिक सिद्धियों द्वारा आत्म विश्वास फैलाते हैं। वही फैलकर अपना प्रभाव मुहल्ला, ग्राम, शहर, प्रांत और देश भर में व्याप्त हो जाता है।<br> | |||
# सफल नेतृत्व के लिए मिलनसारी, सहानुभूति और कृतज्ञता जैसे दिव्य गुणों की अतीव आवश्यकता है।<br> | |||
# हर व्यक्ति जाने या अनजाने में अपनी परिस्थितियों का निर्माण आप करता है।<br> | |||
# अनीति अपनाने से बढ़कर जीवन का तिरस्कार और कुछ हो ही नहीं सकता।<br> | |||
# काम छोटा हो या बड़ा, उसकी उत्कृष्टता ही करने वाले का गौरव है।<br> | |||
# निरंकुश स्वतंत्रता जहाँ बच्चों के विकास में बाधा बनती है, वहीं कठोर अनुशासन भी उनकी प्रतिभा को कुंठित करता है।<br> | |||
# दिल खोलकर हँसना और मुस्कराते रहना चित्त को प्रफुल्लित रखने की एक अचूक औषधि है।<br> | |||
# नास्तिकता ईश्वर की अस्वीकृति को नहीं, आदर्शों की अवहेलना को कहते हैं।<br> | |||
# श्रेष्ठ मार्ग पर कदम बढ़ाने के लिए ईश्वर विश्वास एक सुयोग्य साथी की तरह सहायक सिद्ध होता है।<br> | |||
# मरते वे हैं, जो शरीर के सुख और इन्द्रीय वासनाओं की तृप्ति के लिए रात-दिन खपते रहते हैं।<br> | |||
# बड़प्पन बड़े आदमियों के संपर्क से नहीं, अपने गुण, कर्म और स्वभाव की निर्मलता से मिला करता है।<br> | |||
# राष्ट्र निर्माण जागरूक बुद्धिजीवियों से ही संभव है।<br> | |||
# राष्ट्रोत्कर्ष हेतु संत समाज का योगदान अपेक्षित है।<br> | |||
# राष्ट्र का विकास, बिना आत्म बलिदान के नहीं हो सकता।<br> | |||
# राष्ट्र को समृद्ध और शक्तिशाली बनाने के लिए आदर्शवाद, नैतिकता, मानवता, परमार्थ, देश भक्ति एवं समाज निष्ठा की भावना की जागृति नितान्त आवश्यक है।<br> | |||
# सामाजिक, राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्रों में जो विकृतियाँ, विपन्नताएँ दृष्टिगोचर हो रही हैं, वे कहीं आकाश से नहीं टपकी हैं, वरन् हमारे अग्रणी, बुद्धिजीवी एवं प्रतिभा सम्पन्न लोगों की भावनात्मक विकृतियों ने उन्हें उत्पन्न किया है।<br> | |||
# राष्ट्रीय स्तर की व्यापक समस्याएँ नैतिक दृष्टि धूमिल होने और निकृष्टता की मात्रा बढ़ जाने के कारण ही उत्पन्न होती है।<br> | |||
# राष्ट्र के नव निर्माण में अनेकों घटकों का योगदान होता है। प्रगति एवं उत्कर्ष के लिए विभिन्न प्रकार के प्रयास चलते और उसके अनुरूप सफलता-असफलताएँ भी मिलती हैं।<br> | |||
# राष्ट्रों, राज्यों और जातियों के जीवन में आदिकाल से उल्लेखनीय धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक क्रान्तियाँ हुई हैं। उन परिस्थितियों में श्रेय भले ही एक व्यक्ति या वर्ग को मार्गदर्शन को मिला हो, सच्ची बात यह रही है कि बुद्धिजीवियों, विचारवान् व्यक्तियों ने उन क्रान्तियों को पैदा किया, जन-जन तक फैलाया और सफल बनाया।<br> | |||
# धर्म का मार्ग फूलों की सेज नहीं है। इसमें बड़े-बड़े कष्ट सहन करने पड़ते हैं।<br> | |||
# अवसर उनकी सहायता कभी नहीं करता, जो अपनी सहायता नहीं करते।<br> | |||
# ज्ञान के नेत्र हमें अपनी दुर्बलता से परिचित कराने आते हैं। जब तक इंद्रियों में सुख दीखता है, तब तक आँखों पर पर्दा हुआ मानना चाहिए।<br> | |||
# जो सच्चाई के मार्ग पर चलता है, वह भटकता नहीं।<br> | |||
# किसी का मनोबल बढ़ाने से बढ़कर और अनुदान इस संसार में नहीं है।<br> | |||
# बड़प्पन सुविधा संवर्धन का नहीं, सद्गुण संवर्धन का नाम है।<br> | |||
# संसार का सबसे बड़ा दीवालिया वह है, जिसने उत्साह खो दिया।<br> | |||
# मनुष्य की संकल्प शक्ति संसार का सबसे बड़ा चमत्कार है।<br> | |||
# अपने दोषों से सावधान रहो; क्योंकि यही ऐसे दुश्मन है, जो छिपकर वार करते हैं।<br> | |||
# '''आत्मविश्वासी''' कभी हारता नहीं, कभी थकता नहीं, कभी गिरता नहीं और कभी मरता नहीं।<br> | |||
# उनकी प्रशंसा करो जो धर्म पर दृढ़ हैं। उनके गुणगान न करो, जिनने अनीति से सफलता प्राप्त की।<br> | |||
# जिनके अंदर ऐय्याशी, फिजूलखर्ची और विलासिता की कुर्बानी देने की हिम्मत नहीं, वे अध्यात्म से कोसों दूर हैं।<br> | |||
# ऊँचे सिद्धान्तों को अपने जीवन में धारण करने की हिम्मत का नाम है - अध्यात्म।<br> | |||
# स्वाधीन मन मनुष्य का सच्चा सहायक होता है।<br> | |||
# प्रतिभावान् व्यक्तित्व अर्जित कर लेना, धनाध्यक्ष बनने की तुलना में कहीं अधिक श्रेष्ठ और श्रेयस्कर है।<br> | |||
# दरिद्रता कोई दैवी प्रकोप नहीं, उसे आलस्य, प्रमाद, अपव्यय एवं दुर्गुणों के एकत्रीकरण का प्रतिफल ही करना चाहिए।<br> | |||
# शत्रु की घात विफल हो सकती है, किन्तु आस्तीन के साँप बने मित्र की घात विफल नहीं होती।<br> | |||
# अंध परम्पराएँ मनुष्य को अविवेकी बनाती हैं।<br> | |||
# जब हम किसी पशु-पक्षी की आत्मा को दु:ख पहुँचाते हैं, तो स्वयं अपनी आत्मा को दु:ख पहुँचाते हैं।<br> | |||
# हम आमोद-प्रमोद मनाते चलें और आस-पास का समाज आँसुओं से भीगता रहे, ऐसी हमारी हँसी-खुशी को धिक्कार है।<br> | |||
# दूसरों की सबसे बड़ी सहायता यही की जा सकती है कि उनके सोचने में जो त्रुटि है, उसे सुधार दिया जाए।<br> | |||
# ठगना बुरी बात है, पर ठगाना उससे कम बुरा नहीं है।<br> | |||
# प्रतिभा किसी पर आसमान से नहीं बरसती, वह अंदर से जागती है और उसे जगाने के लिए केवल मनुष्य होना पर्याप्त है।<br> | |||
# संकल्प जीवन की उत्कृष्टता का मंत्र है, उसका प्रयोग मनुष्य जीवन के गुण विकास के लिए होना चाहिए।<br> | |||
# पुण्य की जय-पाप की भी जय ऐसा समदर्शन तो व्यक्ति को दार्शनिक भूल-भुलैयों में उलझा कर संसार का सर्वनाश ही कर देगा।<br> | |||
# अपने दोषों की ओर से अनभिज्ञ रहने से बड़ा प्रमाद इस संसार में और कोई दूसरा नहीं हो सकता।<br> | |||
# अव्यवस्थित जीवन, जीवन का ऐसा दुरुपयोग है, जो दरिद्रता की वृद्धि कर देता है। काम को कल के लिए टालते रहना और आज का दिन आलस्य में बिताना एक बहुत बड़ी भूल है। आरामतलबी और निष्क्रियता से बढ़कर अनैतिक बात और दूसरी कोई नहीं हो सकती।<br> | |||
# किसी समाज, देश या व्यक्ति का गौरव अन्याय के विरुद्ध लड़ने में ही परखा जा सकता है।<br> | |||
# दुष्कर्म स्वत: ही एक अभिशाप है, जो कर्ता को भस्म किये बिना नहीं रहता।<br> | |||
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19:45, 12 अप्रैल 2011 का अवतरण
इन्हें भी देखें: अनमोल वचन, अनमोल वचन 3, कहावत लोकोक्ति मुहावरे एवं सूक्ति और कहावत
अनमोल वचन |
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