"अनमोल वचन 4": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
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* मैं अक्सर खुद को उदृत करता हुँ। इससे मेरे भाषण मसालेदार हो जाते हैं। | * मैं अक्सर खुद को उदृत करता हुँ। इससे मेरे भाषण मसालेदार हो जाते हैं। | ||
* सुभाषितों की पुस्तक कभी पूरी नहीं हो सकती। — राबर्ट हेमिल्टन | * सुभाषितों की पुस्तक कभी पूरी नहीं हो सकती। — राबर्ट हेमिल्टन | ||
'''गणित''' | '''गणित''' | ||
* यथा शिखा मयूराणां , नागानां मणयो यथा । | * यथा शिखा मयूराणां , नागानां मणयो यथा । तद् वेदांगशास्त्राणां , गणितं मूर्ध्नि वर्तते ॥ ( जैसे मोरों में शिखा और नागों में मणि का स्थान सबसे उपर है, वैसे ही सभी वेदांग और शास्त्रों में गणित का स्थान सबसे उपर है। ) — वेदांग ज्योतिष | ||
तद् वेदांगशास्त्राणां , गणितं मूर्ध्नि वर्तते ॥ | * बहुभिर्प्रलापैः किम् , त्रयलोके सचरारे । यद् किंचिद् वस्तु तत्सर्वम् , गणितेन् बिना न हि ॥ ( बहुत प्रलाप करने से क्या लभ है ? इस चराचर जगत में जो कोई भी वस्तु है वह गणित के बिना नहीं है / उसको गणित के बिना नहीं समझा जा सकता। ) — महावीराचार्य , जैन गणितज्ञ | ||
( जैसे मोरों में शिखा और नागों में मणि का स्थान सबसे उपर है, वैसे ही सभी वेदांग और शास्त्रों में गणित का स्थान सबसे उपर है। ) — वेदांग ज्योतिष | |||
* बहुभिर्प्रलापैः किम् , त्रयलोके सचरारे । | |||
यद् किंचिद् वस्तु तत्सर्वम् , गणितेन् बिना न हि ॥ | |||
( बहुत प्रलाप करने से क्या लभ है ? इस चराचर जगत में जो कोई भी वस्तु है वह गणित के बिना नहीं है / उसको गणित के बिना नहीं समझा जा | |||
* ज्यामिति की रेखाओं और चित्रों में हम वे अक्षर सीखते हैं जिनसे यह संसार रूपी महान पुस्तक लिखी गयी है। — गैलिलियो | * ज्यामिति की रेखाओं और चित्रों में हम वे अक्षर सीखते हैं जिनसे यह संसार रूपी महान पुस्तक लिखी गयी है। — गैलिलियो | ||
* गणित एक ऐसा उपकरण है जिसकी शक्ति अतुल्य है और जिसका उपयोग सर्वत्र है ; एक ऐसी भाषा जिसको प्रकृति अवश्य सुनेगी और जिसका सदा वह उत्तर देगी। — प्रो. हाल | * गणित एक ऐसा उपकरण है जिसकी शक्ति अतुल्य है और जिसका उपयोग सर्वत्र है ; एक ऐसी भाषा जिसको प्रकृति अवश्य सुनेगी और जिसका सदा वह उत्तर देगी। — प्रो. हाल | ||
पंक्ति 32: | पंक्ति 29: | ||
* लाटरी को मैं गणित न जानने वालों के उपर एक टैक्स की भाँति देखता हूँ। | * लाटरी को मैं गणित न जानने वालों के उपर एक टैक्स की भाँति देखता हूँ। | ||
* यह असंभव है कि गति के गणितीय सिद्धान्त के बिना हम वृहस्पति पर राकेट भेज पाते। | * यह असंभव है कि गति के गणितीय सिद्धान्त के बिना हम वृहस्पति पर राकेट भेज पाते। | ||
'''विज्ञान''' | '''विज्ञान''' | ||
पंक्ति 38: | पंक्ति 36: | ||
* विज्ञान की बहुत सारी परिकल्पनाएँ ग़लत हैं; यह पूरी तरह ठीक है। ये ( ग़लत परिकल्पनाएँ ) ही सत्य-प्राप्ति के झरोखे हैं। | * विज्ञान की बहुत सारी परिकल्पनाएँ ग़लत हैं; यह पूरी तरह ठीक है। ये ( ग़लत परिकल्पनाएँ ) ही सत्य-प्राप्ति के झरोखे हैं। | ||
* हम किसी भी चीज को पूर्णतः ठीक तरीके से परिभाषित नहीं कर सकते। अगर ऐसा करने की कोशिश करें तो हम भी उसी वैचारिक पक्षाघात के शिकार हो जायेगे जिसके शिकार दार्शनिक होते हैं। — रिचर्ड फ़ेनिमैन | * हम किसी भी चीज को पूर्णतः ठीक तरीके से परिभाषित नहीं कर सकते। अगर ऐसा करने की कोशिश करें तो हम भी उसी वैचारिक पक्षाघात के शिकार हो जायेगे जिसके शिकार दार्शनिक होते हैं। — रिचर्ड फ़ेनिमैन | ||
'''तकनीकी / अभियान्त्रिकी / इन्जीनीयरिंग / टेक्नालोजी''' | '''तकनीकी / अभियान्त्रिकी / इन्जीनीयरिंग / टेक्नालोजी''' | ||
पंक्ति 43: | पंक्ति 42: | ||
* सभ्यता की कहानी, सार रूप में, इंजिनीयरिंग की कहानी है - वह लम्बा और विकट संघर्ष जो प्रकृति की शक्तियो को मनुष्य के भले के लिये काम कराने के लिये किया गया। — एस डीकैम्प | * सभ्यता की कहानी, सार रूप में, इंजिनीयरिंग की कहानी है - वह लम्बा और विकट संघर्ष जो प्रकृति की शक्तियो को मनुष्य के भले के लिये काम कराने के लिये किया गया। — एस डीकैम्प | ||
* इंजिनीयर इतिहास का निर्माता रहा है, और आज भी है। — जेम्स के. फिंक | * इंजिनीयर इतिहास का निर्माता रहा है, और आज भी है। — जेम्स के. फिंक | ||
* वैज्ञानिक इस संसार का, जैसे है उसी रूप में, अध्ययन करते | * वैज्ञानिक इस संसार का, जैसे है उसी रूप में, अध्ययन करते हैं। इंजिनीयर वह संसार बनाते हैं जो कभी था ही नहीं। — थियोडोर वान कार्मन | ||
* मशीनीकरण करने के लिये यह जरूरी है कि लोग भी मशीन की तरह सोचें। — सुश्री जैकब | * मशीनीकरण करने के लिये यह जरूरी है कि लोग भी मशीन की तरह सोचें। — सुश्री जैकब | ||
* इंजिनीररिंग संख्याओं में की जाती है। संख्याओं के बिना विश्लेषण मात्र राय है। | * इंजिनीररिंग संख्याओं में की जाती है। संख्याओं के बिना विश्लेषण मात्र राय है। | ||
पंक्ति 49: | पंक्ति 48: | ||
* आवश्यकता डिजाइन का आधार है। किसी चीज को जरूरत से अल्पमात्र भी बेहतर डिजाइन करने का कोई औचित्य नहीं है। | * आवश्यकता डिजाइन का आधार है। किसी चीज को जरूरत से अल्पमात्र भी बेहतर डिजाइन करने का कोई औचित्य नहीं है। | ||
* तकनीक के उपर ही तकनीक का निर्माण होता है। हम तकनीकी रूप से विकास नहीं कर सकते यदि हममें यह समझ नहीं है कि सरल के बिना जटिल का अस्तित्व सम्भव नहीं है। | * तकनीक के उपर ही तकनीक का निर्माण होता है। हम तकनीकी रूप से विकास नहीं कर सकते यदि हममें यह समझ नहीं है कि सरल के बिना जटिल का अस्तित्व सम्भव नहीं है। | ||
'''कम्प्यूटर / इन्टरनेट''' | '''कम्प्यूटर / इन्टरनेट''' | ||
इंटरनेट के उपयोक्ता वांछित डाटा को शीघ्रता से और तेज़ी से प्राप्त करना चाहते हैं। उन्हें आकर्षक डिज़ाइनों तथा सुंदर साइटों से बहुधा कोई मतलब नहीं होता है। – टिम बर्नर्स ली (इंटरनेट के सृजक) | *इंटरनेट के उपयोक्ता वांछित डाटा को शीघ्रता से और तेज़ी से प्राप्त करना चाहते हैं। उन्हें आकर्षक डिज़ाइनों तथा सुंदर साइटों से बहुधा कोई मतलब नहीं होता है। – टिम बर्नर्स ली (इंटरनेट के सृजक) | ||
कम्प्यूटर कभी भी कमेटियों का विकल्प नहीं बन सकते. चूंकि कमेटियाँ ही कम्प्यूटर ख़रीदने का प्रस्ताव स्वीकृत करती हैं। – एडवर्ड शेफर्ड मीडस | *कम्प्यूटर कभी भी कमेटियों का विकल्प नहीं बन सकते. चूंकि कमेटियाँ ही कम्प्यूटर ख़रीदने का प्रस्ताव स्वीकृत करती हैं। – एडवर्ड शेफर्ड मीडस | ||
कोई शाम वर्ल्ड वाइड वेब पर बिताना ऐसा ही है जैसा कि आप दो घंटे से कुरकुरे खा रहे हों और आपकी उँगली मसाले से पीली पड़ गई हो, आपकी भूख खत्म हो गई हो, परंतु आपको पोषण तो मिला ही नहीं। — क्लिफ़ोर्ड स्टॉल | *कोई शाम वर्ल्ड वाइड वेब पर बिताना ऐसा ही है जैसा कि आप दो घंटे से कुरकुरे खा रहे हों और आपकी उँगली मसाले से पीली पड़ गई हो, आपकी भूख खत्म हो गई हो, परंतु आपको पोषण तो मिला ही नहीं। — क्लिफ़ोर्ड स्टॉल | ||
'''कला''' | '''कला''' | ||
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* कविता का बाना पहन कर सत्य और भी चमक उठता है। — अज्ञात | * कविता का बाना पहन कर सत्य और भी चमक उठता है। — अज्ञात | ||
* कवि और चित्रकार में भेद है। कवि अपने स्वर में और चित्रकार अपनी रेखा में जीवन के तत्व और सौंदर्य का रंग भरता है। — डा. रामकुमार वर्मा | * कवि और चित्रकार में भेद है। कवि अपने स्वर में और चित्रकार अपनी रेखा में जीवन के तत्व और सौंदर्य का रंग भरता है। — डा. रामकुमार वर्मा | ||
'''भाषा / स्वभाषा''' | '''भाषा / स्वभाषा''' | ||
* निज भाषा उन्नति अहै, सब भाषा को मूल । | * निज भाषा उन्नति अहै, सब भाषा को मूल । बिनु निज भाषा ज्ञान के, मिटै न हिय को शूल ॥ — भारतेन्दु हरिश्चन्द्र | ||
बिनु निज भाषा ज्ञान के, मिटै न हिय को शूल ॥ — भारतेन्दु हरिश्चन्द्र | |||
* जो एक विदेशी भाषा नहीं जानता, वह अपनी भाषा की बारे में कुछ नहीं जानता। — गोथे | * जो एक विदेशी भाषा नहीं जानता, वह अपनी भाषा की बारे में कुछ नहीं जानता। — गोथे | ||
* भाषा हमारे सोचने के तरीके को स्वरूप प्रदान करती है और निर्धारित करती है कि हम क्या-क्या सोच सकते हैं । — बेन्जामिन होर्फ | * भाषा हमारे सोचने के तरीके को स्वरूप प्रदान करती है और निर्धारित करती है कि हम क्या-क्या सोच सकते हैं । — बेन्जामिन होर्फ | ||
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* शब्द पाकर दिमाग उडने लगता है। | * शब्द पाकर दिमाग उडने लगता है। | ||
* मेरी भाषा की सीमा, मेरी अपनी दुनिया की सीमा भी है। - लुडविग विटगेंस्टाइन | * मेरी भाषा की सीमा, मेरी अपनी दुनिया की सीमा भी है। - लुडविग विटगेंस्टाइन | ||
* आर्थिक युद्ध का एक सूत्र है कि किसी राष्ट्र को नष्ट करने के का सुनिश्चित तरीका है , उसकी मुद्रा को खोटा कर | * आर्थिक युद्ध का एक सूत्र है कि किसी राष्ट्र को नष्ट करने के का सुनिश्चित तरीका है, उसकी मुद्रा को खोटा कर देना। (और) यह भी उतना ही सत्य है कि किसी राष्ट्र की संस्कृति और पहचान को नष्ट करने का सुनिश्चित तरीका है, उसकी भाषा को हीन बना देना। (लेकिन) यदि विचार भाषा को भ्रष्ट करते है तो भाषा भी विचारों को भ्रष्ट कर सकती है। — जार्ज ओर्वेल | ||
* शिकायत करने की अपनी गहरी आवश्यकता को संतुष्ट करने के लिए ही मनुष्य ने भाषा ईजाद की है। - लिली टॉमलिन | * शिकायत करने की अपनी गहरी आवश्यकता को संतुष्ट करने के लिए ही मनुष्य ने भाषा ईजाद की है। - लिली टॉमलिन | ||
* श्रीकृष्ण ऐसी बात बोले जिसके शब्द और अर्थ परस्पर नपे-तुले रहे और इसके बाद चुप हो गए। वस्तुतः बड़े लोगों का यह स्वभाव ही है कि वे मितभाषी हुआ करते हैं। - शिशुपाल वध | * श्रीकृष्ण ऐसी बात बोले जिसके शब्द और अर्थ परस्पर नपे-तुले रहे और इसके बाद चुप हो गए। वस्तुतः बड़े लोगों का यह स्वभाव ही है कि वे मितभाषी हुआ करते हैं। - शिशुपाल वध | ||
'''साहित्य''' | '''साहित्य''' | ||
* साहित्य समाज का दर्पण होता | * साहित्य समाज का दर्पण होता है। | ||
* साहित्यसंगीतकला विहीन: साक्षात् पशुः | * साहित्यसंगीतकला विहीन: साक्षात् पशुः पुच्छविषाणहीनः। ( साहित्य संगीत और कला से हीन पुरूष साक्षात् पशु ही है जिसके पूँछ और् सींग नहीं हैं। ) — भर्तृहरि | ||
( साहित्य संगीत और कला से हीन पुरूष साक्षात् पशु ही है जिसके पूँछ और् सींग नहीं हैं। ) — भर्तृहरि | |||
* सच्चे साहित्य का निर्माण एकांत चिंतन और एकान्त साधना में होता है| – अनंत गोपाल शेवड़े | * सच्चे साहित्य का निर्माण एकांत चिंतन और एकान्त साधना में होता है| – अनंत गोपाल शेवड़े | ||
* साहित्य का कर्तव्य केवल ज्ञान देना नहीं है, परंतु एक नया वातावरण देना भी है। — डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन | * साहित्य का कर्तव्य केवल ज्ञान देना नहीं है, परंतु एक नया वातावरण देना भी है। — डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन | ||
'''संगति / सत्संगति / कुसंगति / मित्रलाभ / एकता / सहकार / सहयोग / नेटवर्किंग / संघ''' | '''संगति / सत्संगति / कुसंगति / मित्रलाभ / एकता / सहकार / सहयोग / नेटवर्किंग / संघ''' | ||
* संघे शक्तिः ( एकता में शक्ति है ) | * संघे शक्तिः ( एकता में शक्ति है ) | ||
* हीयते हि मतिस्तात् , हीनैः सह समागतात् । | * हीयते हि मतिस्तात् , हीनैः सह समागतात् । समैस्च समतामेति , विशिष्टैश्च विशिष्टितम् ॥ ( हीन लोगों की संगति से अपनी भी बुद्धि हीन हो जाती है, समान लोगों के साथ रहने से समान बनी रहती है और विशिष्ट लोगों की संगति से विशिष्ट हो जाती है। ) — महाभारत | ||
समैस्च समतामेति , विशिष्टैश्च विशिष्टितम् ॥ | * यानि कानि च मित्राणि, कृतानि शतानि च । पश्य मूषकमित्रेण , कपोता: मुक्तबन्धना: ॥ ( जो कोई भी हों, सैकडो मित्र बनाने चाहिये। देखो, मित्र चूहे की सहायता से कबूतर (जाल के) बन्धन से मुक्त हो गये थे। ) — पंचतंत्र | ||
हीन लोगों की संगति से अपनी भी बुद्धि हीन हो जाती है, समान लोगों के साथ रहने से समान बनी रहती है और विशिष्ट लोगों की संगति से विशिष्ट हो जाती है। — महाभारत | |||
* यानि कानि च मित्राणि, कृतानि शतानि च । | |||
पश्य मूषकमित्रेण , कपोता: मुक्तबन्धना: ॥ | |||
* को लाभो गुणिसंगमः ( लाभ क्या है ? गुणियों का साथ ) — भर्तृहरि | * को लाभो गुणिसंगमः ( लाभ क्या है ? गुणियों का साथ ) — भर्तृहरि | ||
* सत्संगतिः स्वर्गवास: ( सत्संगति स्वर्ग में रहने के समान है ) | * सत्संगतिः स्वर्गवास: ( सत्संगति स्वर्ग में रहने के समान है ) संहतिः कार्यसाधिका । ( एकता से कार्य सिद्ध होते हैं ) — पंचतंत्र | ||
संहतिः कार्यसाधिका । ( एकता से कार्य सिद्ध होते हैं ) — पंचतंत्र | |||
* दुनिया के अमीर लोग नेटवर्क बनाते हैं और उसकी तलाश करते हैं, बाकी सब काम की तलाश करते हैं । — कियोसाकी | * दुनिया के अमीर लोग नेटवर्क बनाते हैं और उसकी तलाश करते हैं, बाकी सब काम की तलाश करते हैं । — कियोसाकी | ||
* मानसिक शक्ति का सबसे बडा स्रोत है - दूसरों के साथ सकारात्मक तरीके से विचारों का आदान-प्रदान करना। | * मानसिक शक्ति का सबसे बडा स्रोत है - दूसरों के साथ सकारात्मक तरीके से विचारों का आदान-प्रदान करना। | ||
* शठ सुधरहिं सतसंगति पाई । | * शठ सुधरहिं सतसंगति पाई । पारस परस कुधातु सुहाई ॥ — गोस्वामी तुलसीदास | ||
पारस परस कुधातु सुहाई ॥ — गोस्वामी तुलसीदास | |||
* गगन चढहिं रज पवन प्रसंगा । ( हवा का साथ पाकर धूल आकाश पर चढ जाता है ) — गोस्वामी तुलसीदास | * गगन चढहिं रज पवन प्रसंगा । ( हवा का साथ पाकर धूल आकाश पर चढ जाता है ) — गोस्वामी तुलसीदास | ||
* बिना सहकार , नहीं उद्धार । | * बिना सहकार , नहीं उद्धार । उतिष्ठ , जाग्रत् , प्राप्य वरान् अनुबोधयत् । ( उठो, जागो और श्रेष्ठ जनों को प्राप्त कर (स्वयं को) बुद्धिमान बनाओ। ) | ||
उतिष्ठ , जाग्रत् , प्राप्य वरान् अनुबोधयत् । | * नहीं संगठित सज्जन लोग । रहे इसी से संकट भोग ॥ — श्रीराम शर्मा , आचार्य | ||
( उठो , जागो और श्रेष्ठ जनों को प्राप्त कर (स्वयं को) बुद्धिमान | * सहनाववतु, सह नौ भुनक्तु, सहवीर्यं करवाहहै । ( एक साथ आओ, एक साथ खाओ और साथ-साथ काम करो ) | ||
* नहीं संगठित सज्जन लोग । | |||
रहे इसी से संकट भोग ॥ — श्रीराम शर्मा , आचार्य | |||
* सहनाववतु , सह नौ भुनक्तु , सहवीर्यं करवाहहै । ( एक साथ आओ, एक साथ खाओ और साथ-साथ काम करो ) | |||
* अच्छे मित्रों को पाना कठिन, वियोग कष्टकारी और भूलना असम्भव होता है। — रैन्डाल्फ | * अच्छे मित्रों को पाना कठिन, वियोग कष्टकारी और भूलना असम्भव होता है। — रैन्डाल्फ | ||
* काजर की कोठरी में कैसे हू सयानो जाय, | * काजर की कोठरी में कैसे हू सयानो जाय, एक न एक लीक काजर की लागिहै पै लागि है। – अज्ञात | ||
एक न एक लीक काजर की लागिहै पै लागि है। – अज्ञात | * जो रहीम उत्तम प्रकृती, का करी सकत कुसंग । चन्दन विष व्यापत नही, लिपटे रहत भुजंग ।। — रहीम | ||
* जो रहीम उत्तम प्रकृती, का करी सकत कुसंग | |||
चन्दन विष व्यापत नही, लिपटे रहत भुजंग | |||
* जिस तरह रंग सादगी को निखार देते हैं उसी तरह सादगी भी रंगों को निखार देती है। सहयोग सफलता का सर्वश्रेष्ठ उपाय है। – मुक्ता | * जिस तरह रंग सादगी को निखार देते हैं उसी तरह सादगी भी रंगों को निखार देती है। सहयोग सफलता का सर्वश्रेष्ठ उपाय है। – मुक्ता | ||
* एकता का किला सबसे सुरक्षित होता है। न वह टूटता है और न उसमें रहने वाला कभी दुखी होता है। – अज्ञात | * एकता का किला सबसे सुरक्षित होता है। न वह टूटता है और न उसमें रहने वाला कभी दुखी होता है। – अज्ञात | ||
पंक्ति 125: | पंक्ति 116: | ||
'''साहस / निर्भीकता / पराक्रम/ आत्म्विश्वास / प्रयत्न''' | '''साहस / निर्भीकता / पराक्रम/ आत्म्विश्वास / प्रयत्न''' | ||
* कबिरा मन निर्मल भया , जैसे गंगा नीर । | * कबिरा मन निर्मल भया , जैसे गंगा नीर । पीछे-पीछे हरि फिरै , कहत कबीर कबीर ॥ — कबीर | ||
पीछे-पीछे हरि फिरै , कहत कबीर कबीर ॥ — कबीर | |||
* साहसे खलु श्री वसति । ( साहस में ही लक्ष्मी रहती हैं ) | * साहसे खलु श्री वसति । ( साहस में ही लक्ष्मी रहती हैं ) | ||
* इस बात पर संदेह नहीं करना चाहिये कि विचारवान और उत्साही व्यक्तियों का एक छोटा सा समूह इस संसार को बदल सकता है। वास्तव में इस संसार को इसने (छोटे से समूह) ही बदला है। | * इस बात पर संदेह नहीं करना चाहिये कि विचारवान और उत्साही व्यक्तियों का एक छोटा सा समूह इस संसार को बदल सकता है। वास्तव में इस संसार को इसने (छोटे से समूह) ही बदला है। | ||
पंक्ति 139: | पंक्ति 129: | ||
* शोक मनाने के लिये नैतिक साहस चाहिए और आनंद मनाने के लिए धार्मिक साहस। अनिष्ट की आशंका करना भी साहस का काम है, शुभ की आशा करना भी साहस का काम परंतु दोनों में आकाश-पाताल का अंतर है। पहला गर्वीला साहस है, दूसरा विनीत साहस। - किर्केगार्द | * शोक मनाने के लिये नैतिक साहस चाहिए और आनंद मनाने के लिए धार्मिक साहस। अनिष्ट की आशंका करना भी साहस का काम है, शुभ की आशा करना भी साहस का काम परंतु दोनों में आकाश-पाताल का अंतर है। पहला गर्वीला साहस है, दूसरा विनीत साहस। - किर्केगार्द | ||
* किसी दूसरे को अपना स्वप्न बताने के लिए लोहे का ज़िगर चाहिए होता है| - एरमा बॉम्बेक | * किसी दूसरे को अपना स्वप्न बताने के लिए लोहे का ज़िगर चाहिए होता है| - एरमा बॉम्बेक | ||
* हर व्यक्ति में प्रतिभा होती | * हर व्यक्ति में प्रतिभा होती है। दरअसल उस प्रतिभा को निखारने के लिए गहरे अंधेरे रास्ते में जाने का साहस कम लोगों में ही होता है। | ||
कमाले बुजदिली है , पस्त होना अपनी आँखों में । | * कमाले बुजदिली है, पस्त होना अपनी आँखों में । अगर थोडी सी हिम्मत हो तो क्या हो सकता नहीं ॥ — चकबस्त | ||
* अपने को संकट में डाल कर कार्य संपन्न करने वालों की विजय होती है। कायरों की नहीं। – जवाहरलाल नेहरू | * अपने को संकट में डाल कर कार्य संपन्न करने वालों की विजय होती है। कायरों की नहीं। – जवाहरलाल नेहरू | ||
* जिन ढूढा तिन पाइयाँ , गहरे पानी पैठि । | * जिन ढूढा तिन पाइयाँ , गहरे पानी पैठि । मै बपुरा बूडन डरा , रहा किनारे बैठि ॥ — कबीर | ||
मै बपुरा बूडन डरा , रहा किनारे बैठि ॥ — कबीर | |||
* वे ही विजयी हो सकते हैं जिनमें विश्वास है कि वे विजयी होंगे। – अज्ञात | * वे ही विजयी हो सकते हैं जिनमें विश्वास है कि वे विजयी होंगे। – अज्ञात | ||
'''भय, अभय, निर्भय''' | '''भय, अभय, निर्भय''' | ||
* तावत् भयस्य भेतव्यं , यावत् भयं न आगतम् । | * तावत् भयस्य भेतव्यं , यावत् भयं न आगतम् । आगतं हि भयं वीक्ष्य , प्रहर्तव्यं अशंकया ॥ | ||
आगतं हि भयं वीक्ष्य , प्रहर्तव्यं अशंकया ॥ | |||
* भय से तब तक ही दरना चाहिये जब तक भय (पास) न आया हो। आये हुए भय को देखकर बिना शंका के उस पर् प्रहार् करना चाहिये। — पंचतंत्र | * भय से तब तक ही दरना चाहिये जब तक भय (पास) न आया हो। आये हुए भय को देखकर बिना शंका के उस पर् प्रहार् करना चाहिये। — पंचतंत्र | ||
* जो लोग भय का हेतु अथवा हर्ष का कारण उपस्थित होने पर भी विचार विमर्श से काम लेते हैं तथा कार्य की जल्दी से नहीं कर डालते, वे कभी भी संताप को प्राप्त नहीं होते। - पंचतंत्र | * जो लोग भय का हेतु अथवा हर्ष का कारण उपस्थित होने पर भी विचार विमर्श से काम लेते हैं तथा कार्य की जल्दी से नहीं कर डालते, वे कभी भी संताप को प्राप्त नहीं होते। - पंचतंत्र | ||
पंक्ति 179: | पंक्ति 166: | ||
रसरी आवत जात ते सिल पर परहिं निशान।। — रहीम | रसरी आवत जात ते सिल पर परहिं निशान।। — रहीम | ||
* अनभ्यासेन विषं विद्या । ( बिना अभ्यास के विद्या कठिन है / बिना अभ्यास के विद्या विष के समान है (?) ) | * अनभ्यासेन विषं विद्या । ( बिना अभ्यास के विद्या कठिन है / बिना अभ्यास के विद्या विष के समान है (?) ) | ||
* यह रहीम निज संग लै , जनमत जगत न कोय । | * यह रहीम निज संग लै, जनमत जगत न कोय । बैर प्रीति अभ्यास जस, होत होत ही होय ॥ | ||
बैर प्रीति अभ्यास जस , होत होत ही होय ॥ | |||
* अनुभव-प्राप्ति के लिए काफ़ी मूल्य चुकाना पड़ सकता है पर उससे जो शिक्षा मिलती है वह और कहीं नहीं मिलती। — अज्ञात | * अनुभव-प्राप्ति के लिए काफ़ी मूल्य चुकाना पड़ सकता है पर उससे जो शिक्षा मिलती है वह और कहीं नहीं मिलती। — अज्ञात | ||
* अनुभव की पाठशाला में जो पाठ सीखे जाते हैं, वे पुस्तकों और विश्वविद्यालयों में नहीं मिलते। – अज्ञात | * अनुभव की पाठशाला में जो पाठ सीखे जाते हैं, वे पुस्तकों और विश्वविद्यालयों में नहीं मिलते। – अज्ञात | ||
पंक्ति 222: | पंक्ति 208: | ||
* रहिमन बिपदा हुँ भली, जो थोरे दिन होय । हित अनहित वा जगत में, जानि परत सब कोय ॥ — रहीम | * रहिमन बिपदा हुँ भली, जो थोरे दिन होय । हित अनहित वा जगत में, जानि परत सब कोय ॥ — रहीम | ||
* चाहे राजा हो या किसान, वह सबसे ज़्यादा सुखी है जिसको अपने घर में शान्ति प्राप्त होती है । — गेटे | * चाहे राजा हो या किसान, वह सबसे ज़्यादा सुखी है जिसको अपने घर में शान्ति प्राप्त होती है । — गेटे | ||
* अरहर की दाल औ जड़हन का भात, | * अरहर की दाल औ जड़हन का भात, गागल निंबुआ औ घिउ तात, | ||
गागल निंबुआ औ घिउ तात, | सहरसखंड दहिउ जो होय, बाँके नयन परोसैं जोय, | ||
सहरसखंड दहिउ जो होय, | कहै घाघ तब सबही झूठा, उहाँ छाँड़ि इहवैं बैकुंठा | — घाघ | ||
बाँके नयन परोसैं जोय, | |||
कहै घाघ तब सबही झूठा, | |||
उहाँ छाँड़ि इहवैं बैकुंठा | — घाघ | |||
'''प्रशंसा / प्रोत्साहन''' | '''प्रशंसा / प्रोत्साहन''' | ||
* उष्ट्राणां विवाहेषु, गीतं गायन्ति गर्दभाः । | * उष्ट्राणां विवाहेषु, गीतं गायन्ति गर्दभाः । परस्परं प्रशंसन्ति, अहो रूपं अहो ध्वनिः । ( ऊँटों के विवाह में गधे गीत गा रहे हैं। एक-दूसरे की प्रशंसा कर रहे हैं, अहा! क्या रूप है ? अहा! क्या आवाज है ? ) | ||
परस्परं प्रशंसन्ति, अहो रूपं अहो ध्वनिः । | |||
( ऊँटों के विवाह में गधे गीत गा रहे हैं। एक-दूसरे की प्रशंसा कर रहे हैं, अहा! क्या रूप है ? अहा! क्या आवाज है ? ) | |||
* मानव में जो कुछ सर्वोत्तम है उसका विकास प्रसंसा तथा प्रोत्साहन से किया जा सकता है। – चार्ल्स श्वेव | * मानव में जो कुछ सर्वोत्तम है उसका विकास प्रसंसा तथा प्रोत्साहन से किया जा सकता है। – चार्ल्स श्वेव | ||
* आप हर इंसान का चरित्र बता सकते हैं यदि आप देखें कि वह प्रशंसा से कैसे प्रभावित होता है। — सेनेका | * आप हर इंसान का चरित्र बता सकते हैं यदि आप देखें कि वह प्रशंसा से कैसे प्रभावित होता है। — सेनेका | ||
पंक्ति 249: | पंक्ति 230: | ||
* अपमान और दवा की गोलियां निगल जाने के लिए होती हैं, मुंह में रखकर चूसते रहने के लिए नहीं। - वक्रमुख | * अपमान और दवा की गोलियां निगल जाने के लिए होती हैं, मुंह में रखकर चूसते रहने के लिए नहीं। - वक्रमुख | ||
* गाली सह लेने के असली मायने है गाली देनेवाले के वश में न होना, गाली देनेवाले को असफल बना देना। यह नहीं कि जैसा वह कहे, वैसा कहना। - महात्मा गांधी | * गाली सह लेने के असली मायने है गाली देनेवाले के वश में न होना, गाली देनेवाले को असफल बना देना। यह नहीं कि जैसा वह कहे, वैसा कहना। - महात्मा गांधी | ||
* मान सहित विष खाय के , शम्भु भये जगदीश । | * मान सहित विष खाय के, शम्भु भये जगदीश । बिना मान अमृत पिये, राहु कटायो शीश ॥ — कबीर | ||
बिना मान अमृत पिये , राहु कटायो शीश ॥ — कबीर | |||
'''अभिमान / घमण्ड / गर्व''' | '''अभिमान / घमण्ड / गर्व''' | ||
* जब मैं था तब हरि नहीं , अब हरि हैं मै नाहि । | * जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मै नाहि । सब अँधियारा मिट गया दीपक देख्या माँहि ॥ — कबीर | ||
सब अँधियारा मिट गया दीपक देख्या माँहि ॥ — कबीर | |||
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* क्षणशः कण्शश्चैव विद्याधनं अर्जयेत । ( क्षण-ख्षण करके विद्या और कण-कण करके धन का अर्जन करना चाहिये। ) | * क्षणशः कण्शश्चैव विद्याधनं अर्जयेत । ( क्षण-ख्षण करके विद्या और कण-कण करके धन का अर्जन करना चाहिये। ) | ||
* रुपए ने कहा, मेरी फ़िक्र न कर – पैसे की चिन्ता कर। – चेस्टर फ़ील्ड | * रुपए ने कहा, मेरी फ़िक्र न कर – पैसे की चिन्ता कर। – चेस्टर फ़ील्ड | ||
* बढ़त बढ़त सम्पति सलिल मन सरोज बढ़ि जाय। | * बढ़त बढ़त सम्पति सलिल मन सरोज बढ़ि जाय। घटत घटत पुनि ना घटै तब समूल कुम्हिलाय।। | ||
घटत घटत पुनि ना घटै तब समूल कुम्हिलाय।। | |||
* जहां मूर्ख नहीं पूजे जाते, जहां अन्न की सुरक्षा की जाती है और जहां परिवार में कलह नहीं होती, वहां लक्ष्मी निवास करती है। – अथर्ववेद | * जहां मूर्ख नहीं पूजे जाते, जहां अन्न की सुरक्षा की जाती है और जहां परिवार में कलह नहीं होती, वहां लक्ष्मी निवास करती है। – अथर्ववेद | ||
* मुक्त बाज़ार ही संसाधनों के बटवारे का सवाधिक दक्ष और सामाजिक रूप से इष्टतम तरीका है। | * मुक्त बाज़ार ही संसाधनों के बटवारे का सवाधिक दक्ष और सामाजिक रूप से इष्टतम तरीका है। | ||
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'''व्यापार''' | '''व्यापार''' | ||
* व्यापारे वसते लक्ष्मी । ( व्यापार में ही लक्ष्मी वसती हैं ) | * व्यापारे वसते लक्ष्मी । ( व्यापार में ही लक्ष्मी वसती हैं ) महाजनो येन गतः स पन्थाः । ( महापुरुष जिस मार्ग से गये है, वही ( उत्तम ) मार्ग है ) ( व्यापारी वर्ग जिस मार्ग से गया है, वही ठीक रास्ता है ) | ||
महाजनो येन गतः स पन्थाः । | |||
( महापुरुष जिस मार्ग से गये है, वही ( उत्तम ) मार्ग है ) | |||
( व्यापारी वर्ग जिस मार्ग से गया है, वही ठीक रास्ता है ) | |||
* जब गरीब और धनी आपस में व्यापार करते हैं तो धीरे-धीरे उनके जीवन-स्तर में समानता आयेगी। — आदम स्मिथ , “द वेल्थ आफ नेशन्स” में | * जब गरीब और धनी आपस में व्यापार करते हैं तो धीरे-धीरे उनके जीवन-स्तर में समानता आयेगी। — आदम स्मिथ , “द वेल्थ आफ नेशन्स” में | ||
* तकनीक और व्यापार का नियंत्रण ब्रिटिश साम्राज्य का अधारशिला थी। | * तकनीक और व्यापार का नियंत्रण ब्रिटिश साम्राज्य का अधारशिला थी। | ||
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'''राजनीति / शाशन / सरकार''' | '''राजनीति / शाशन / सरकार''' | ||
* सामर्थ्य्मूलं स्वातन्त्र्यं , श्रममूलं च वैभवम् । | * सामर्थ्य्मूलं स्वातन्त्र्यं , श्रममूलं च वैभवम् । न्यायमूलं सुराज्यं स्यात् , संघमूलं महाबलम् ॥ ( शक्ति स्वतन्त्रता की जड है, मेहनत धन-दौलत की जड है, न्याय सुराज्य का मूल होता है और संगठन महाशक्ति की जड है। ) | ||
न्यायमूलं सुराज्यं स्यात् , संघमूलं महाबलम् ॥ | |||
( शक्ति स्वतन्त्रता की जड है, मेहनत धन-दौलत की जड है, न्याय सुराज्य का मूल होता है और संगठन महाशक्ति की जड है। ) | |||
* निश्चित ही राज्य तीन शक्तियों के अधीन है। शक्तियाँ मंत्र, प्रभाव और उत्साह हैं जो एक दूसरे से लाभान्वित होकर कर्तव्यों के क्षेत्र में प्रगति करती हैं। मंत्र ( योजना , परामर्श ) से कार्य का ठीक निर्धारण होता है, प्रभाव ( राजोचित शक्ति, तेज ) से कार्य का आरम्भ होता है और उत्साह ( उद्यम ) से कार्य सिद्ध होता है। — दसकुमारचरित | * निश्चित ही राज्य तीन शक्तियों के अधीन है। शक्तियाँ मंत्र, प्रभाव और उत्साह हैं जो एक दूसरे से लाभान्वित होकर कर्तव्यों के क्षेत्र में प्रगति करती हैं। मंत्र ( योजना , परामर्श ) से कार्य का ठीक निर्धारण होता है, प्रभाव ( राजोचित शक्ति, तेज ) से कार्य का आरम्भ होता है और उत्साह ( उद्यम ) से कार्य सिद्ध होता है। — दसकुमारचरित | ||
* यथार्थ को स्वीकार न करनें में ही व्यावहारिक राजनीति निहित है। — हेनरी एडम | * यथार्थ को स्वीकार न करनें में ही व्यावहारिक राजनीति निहित है। — हेनरी एडम | ||
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'''नियम / क़ानून / विधान / न्याय''' | '''नियम / क़ानून / विधान / न्याय''' | ||
* न हि कश्चिद् आचारः सर्वहितः संप्रवर्तते । | * न हि कश्चिद् आचारः सर्वहितः संप्रवर्तते । ( कोई भी नियम नहीं हो सकता जो सभी के लिए हितकर हो ) — महाभारत | ||
( कोई भी नियम नहीं हो सकता जो सभी के लिए हितकर हो ) — महाभारत | |||
* अपवाद के बिना कोई भी नियम लाभकर नहीं होता। — थामस फुलर | * अपवाद के बिना कोई भी नियम लाभकर नहीं होता। — थामस फुलर | ||
* थोडा-बहुत अन्याय किये बिना कोई भी महान कार्य नहीं किया जा सकता। — लुइस दी उलोआ | * थोडा-बहुत अन्याय किये बिना कोई भी महान कार्य नहीं किया जा सकता। — लुइस दी उलोआ | ||
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* लोकतंत्र - जहाँ धनवान, नियम पर शाशन करते हैं और नियम, निर्धनों पर। | * लोकतंत्र - जहाँ धनवान, नियम पर शाशन करते हैं और नियम, निर्धनों पर। | ||
* सभी वास्तविक राज्य भ्रष्ट होते हैं । अच्छे लोगों को चाहिये कि नियमों का पालन बहुत काडाई से न करें। — इमर्शन | * सभी वास्तविक राज्य भ्रष्ट होते हैं । अच्छे लोगों को चाहिये कि नियमों का पालन बहुत काडाई से न करें। — इमर्शन | ||
* न राज्यं न च राजासीत्, न दण्डो न च दाण्डिकः । | * न राज्यं न च राजासीत्, न दण्डो न च दाण्डिकः । स्वयमेव प्रजाः सर्वा, रक्षन्ति स्म परस्परम् ॥ ( न राज्य था और ना राजा था, न दण्ड था और न दण्ड देने वाला। स्वयं सारी प्रजा ही एक-दूसरे की रक्षा करती थी। ) | ||
स्वयमेव प्रजाः सर्वा, रक्षन्ति स्म परस्परम् ॥ | |||
( न राज्य था और ना राजा था, न दण्ड था और न दण्ड देने वाला। | |||
स्वयं सारी प्रजा ही एक-दूसरे की रक्षा करती थी। ) | |||
* क़ानून चाहे कितना ही आदरणीय क्यों न हो, वह गोलाई को चौकोर नहीं कह सकता। — फिदेल कास्त्रो | * क़ानून चाहे कितना ही आदरणीय क्यों न हो, वह गोलाई को चौकोर नहीं कह सकता। — फिदेल कास्त्रो | ||
'''व्यवस्था''' | '''व्यवस्था''' | ||
* व्यवस्था मस्तिष्क की पवित्रता है, शरीर का स्वास्थ्य है, शहर की शान्ति है, देश की सुरक्षा | * व्यवस्था मस्तिष्क की पवित्रता है, शरीर का स्वास्थ्य है, शहर की शान्ति है, देश की सुरक्षा है। जो सम्बन्ध धरन ( बीम ) का घर से है, या हड्डी का शरीर से है, वही सम्बन्ध व्यवस्था का सब चीजों से है। — राबर्ट साउथ | ||
* अच्छी व्यवस्था ही सभी महान कार्यों की आधारशिला है। – एडमन्ड बुर्क | * अच्छी व्यवस्था ही सभी महान कार्यों की आधारशिला है। – एडमन्ड बुर्क | ||
* सभ्यता सुव्यस्था के जन्मती है, स्वतन्त्रता के साथ बडी होती है और अव्यवस्था के साथ मर जाती है। — विल डुरान्ट | * सभ्यता सुव्यस्था के जन्मती है, स्वतन्त्रता के साथ बडी होती है और अव्यवस्था के साथ मर जाती है। — विल डुरान्ट | ||
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'''समय''' | '''समय''' | ||
* आयुषः क्षणमेकमपि, न लभ्यः स्वर्णकोटिभिः । | * आयुषः क्षणमेकमपि, न लभ्यः स्वर्णकोटिभिः । स वृथा नीयती येन, तस्मै नृपशवे नमः ॥ | ||
स वृथा नीयती येन, तस्मै नृपशवे नमः ॥ | |||
* करोडों स्वर्ण मुद्राओं के द्वारा आयु का एक क्षण भी नहीं पाया जा सकता। | * करोडों स्वर्ण मुद्राओं के द्वारा आयु का एक क्षण भी नहीं पाया जा सकता। | ||
* वह ( क्षण ) जिसके द्वारा व्यर्थ नष्ट किया जाता है, ऐसे नर-पशु को नमस्कार। | * वह ( क्षण ) जिसके द्वारा व्यर्थ नष्ट किया जाता है, ऐसे नर-पशु को नमस्कार। | ||
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* जैसे नदी बह जाती है और लौट कर नहीं आती, उसी तरह रात-दिन मनुष्य की आयु लेकर चले जाते हैं, फिर नहीं आते। - महाभारत | * जैसे नदी बह जाती है और लौट कर नहीं आती, उसी तरह रात-दिन मनुष्य की आयु लेकर चले जाते हैं, फिर नहीं आते। - महाभारत | ||
* किसी भी काम के लिये आपको कभी भी समय नहीं मिलेगा । यदि आप समय पाना चाहते हैं तो आपको इसे बनाना पडेगा। | * किसी भी काम के लिये आपको कभी भी समय नहीं मिलेगा । यदि आप समय पाना चाहते हैं तो आपको इसे बनाना पडेगा। | ||
* क्षणशः कणशश्चैव विद्याधनं अर्जयेत। | * क्षणशः कणशश्चैव विद्याधनं अर्जयेत। ( क्षण-क्षण का उपयोग करके विद्या का और कण-कण का उपयोग करके धन का अर्जन करना चाहिये ) | ||
( क्षण-क्षण का उपयोग करके विद्या का और कण-कण का उपयोग करके धन का अर्जन करना चाहिये ) | * काल्ह करै सो आज कर, आज करि सो अब । पल में परलय होयगा, बहुरि करेगा कब ॥ — कबीरदास | ||
* काल्ह करै सो आज कर, आज करि सो अब । | * समय-लाभ सम लाभ नहिं, समय-चूक सम चूक । चतुरन चित रहिमन लगी, समय-चूक की हूक ॥ | ||
पल में परलय होयगा, बहुरि करेगा कब ॥ — कबीरदास | |||
* समय-लाभ सम लाभ नहिं, समय-चूक सम चूक । | |||
चतुरन चित रहिमन लगी, समय-चूक की हूक ॥ | |||
* अपने काम पर मै सदा समय से 15 मिनट पहले पहुँचा हूँ और मेरी इसी आदत ने मुझे कामयाब व्यक्ति बना दिया है। | * अपने काम पर मै सदा समय से 15 मिनट पहले पहुँचा हूँ और मेरी इसी आदत ने मुझे कामयाब व्यक्ति बना दिया है। | ||
* हमें यह विचार त्याग देना चाहिये कि हमें नियमित रहना चाहिये । यह विचार आपके असाधारण बनने के अवसर को लूट लेता है और आपको मध्यम बनने की ओर ले जाता है। | * हमें यह विचार त्याग देना चाहिये कि हमें नियमित रहना चाहिये । यह विचार आपके असाधारण बनने के अवसर को लूट लेता है और आपको मध्यम बनने की ओर ले जाता है। | ||
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'''अवसर / मौक़ा / सुतार / सुयोग''' | '''अवसर / मौक़ा / सुतार / सुयोग''' | ||
* जो प्रमादी है, वह सुयोग गँवा देगा। — श्रीराम शर्मा , आचार्य | * जो प्रमादी है, वह सुयोग गँवा देगा। — श्रीराम शर्मा , आचार्य | ||
* बाज़ार में आपाधापी - मतलब, अवसर। | * बाज़ार में आपाधापी - मतलब, अवसर। धरती पर कोई निश्चितता नहीं है, बस अवसर हैं। — डगलस मैकआर्थर | ||
धरती पर कोई निश्चितता नहीं है, बस अवसर हैं। — डगलस मैकआर्थर | |||
* संकट के समय ही नायक बनाये जाते हैं। | * संकट के समय ही नायक बनाये जाते हैं। | ||
* आशावादी को हर खतरे में अवसर दीखता है और निराशावादी को हर अवसर में खतरा। — विन्स्टन चर्चिल | * आशावादी को हर खतरे में अवसर दीखता है और निराशावादी को हर अवसर में खतरा। — विन्स्टन चर्चिल | ||
* अवसर के रहने की जगह कठिनाइयों के बीच है। — अलबर्ट आइन्स्टाइन | * अवसर के रहने की जगह कठिनाइयों के बीच है। — अलबर्ट आइन्स्टाइन | ||
* हमारा सामना हरदम बडे-बडे अवसरों से होता रहता है, जो चालाकी पूर्वक असाध्य समस्याओं के वेष में (छिपे) रहते हैं। — ली लोकोक्का | * हमारा सामना हरदम बडे-बडे अवसरों से होता रहता है, जो चालाकी पूर्वक असाध्य समस्याओं के वेष में (छिपे) रहते हैं। — ली लोकोक्का | ||
* रहिमन चुप ह्वै बैठिये, देखि दिनन को फेर । | * रहिमन चुप ह्वै बैठिये, देखि दिनन को फेर । जब नीके दिन आइहैं, बनत न लगिहैं देर ॥ | ||
* न इतराइये, देर लगती है क्या | जमाने को करवट बदलते हुए || | |||
* न इतराइये, देर लगती है क्या | | |||
जमाने को करवट बदलते हुए || | |||
* कभी कोयल की कूक भी नहीं भाती और कभी (वर्षा ऋतु में) मेंढक की टर्र टर्र भी भली प्रतीत होती है| – गोस्वामी तुलसीदास | * कभी कोयल की कूक भी नहीं भाती और कभी (वर्षा ऋतु में) मेंढक की टर्र टर्र भी भली प्रतीत होती है| – गोस्वामी तुलसीदास | ||
* वसंत ऋतु निश्चय ही रमणीय है। ग्रीष्म ऋतु भी रमणीय है। वर्षा, शरद, हेमंत और शिशिर भी रमणीय है, अर्थात सब समय उत्तम है। - सामवेद | * वसंत ऋतु निश्चय ही रमणीय है। ग्रीष्म ऋतु भी रमणीय है। वर्षा, शरद, हेमंत और शिशिर भी रमणीय है, अर्थात सब समय उत्तम है। - सामवेद | ||
* का बरखा जब कृखी सुखाने। समय चूकि पुनि का पछिताने।। — गोस्वामी तुलसीदास | * का बरखा जब कृखी सुखाने। समय चूकि पुनि का पछिताने।। — गोस्वामी तुलसीदास | ||
* अवसर कौडी जो चुके , बहुरि दिये का लाख । | * अवसर कौडी जो चुके , बहुरि दिये का लाख । दुइज न चन्दा देखिये , उदौ कहा भरि पाख ॥ — गोस्वामी तुलसीदास | ||
दुइज न चन्दा देखिये , उदौ कहा भरि पाख ॥ — गोस्वामी तुलसीदास | |||
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'''शक्ति / प्रभुता / सामर्थ्य / बल / वीरता''' | '''शक्ति / प्रभुता / सामर्थ्य / बल / वीरता''' | ||
* वीरभोग्या वसुन्धरा । | * वीरभोग्या वसुन्धरा । ( पृथ्वी वीरों द्वारा भोगी जाती है ) | ||
( पृथ्वी वीरों द्वारा भोगी जाती है ) | * कोऽतिभारः समर्थानामं , किं दूरं व्यवसायिनाम् । को विदेशः सविद्यानां , कः परः प्रियवादिनाम् ॥ — पंचतंत्र | ||
* कोऽतिभारः समर्थानामं , किं दूरं व्यवसायिनाम् । | |||
को विदेशः सविद्यानां , कः परः प्रियवादिनाम् ॥ — पंचतंत्र | |||
* जो समर्थ हैं उनके लिये अति भार क्या है ? व्यवस्सयियों के लिये दूर क्या है? विद्वानों के लिये विदेश क्या है? प्रिय बोलने वालों के लिये कौन पराया है ? | * जो समर्थ हैं उनके लिये अति भार क्या है ? व्यवस्सयियों के लिये दूर क्या है? विद्वानों के लिये विदेश क्या है? प्रिय बोलने वालों के लिये कौन पराया है ? | ||
* खुदी को कर बुलन्द इतना, कि हर तकदीर के पहले । | * खुदी को कर बुलन्द इतना, कि हर तकदीर के पहले । ख़ुदा बंदे से खुद पूछे , बता तेरी रजा क्या है ? — अकबर इलाहाबादी | ||
ख़ुदा बंदे से खुद पूछे , बता तेरी रजा क्या है ? — अकबर इलाहाबादी | * कौन कहता है कि आसमा में छेद हो सकता नहीं | कोई पत्थर तो तबियत से उछालो यारों ।| | ||
* कौन कहता है कि आसमा में छेद हो सकता नहीं | | * यो विषादं प्रसहते, विक्रमे समुपस्थिते । तेजसा तस्य हीनस्य, पुरूषार्थो न सिध्यति ॥ ( पराक्रम दिखाने का अवसर आने पर जो दुख सह लेता है (लेकिन पराक्रम नहीं दिखाता) उस तेज से हीन का पुरुषार्थ सिद्ध नहीं होता ) | ||
कोई पत्थर तो तबियत से उछालो यारों ।| | * नाभिषेको न च संस्कारः, सिंहस्य कृयते मृगैः । विक्रमार्जित सत्वस्य, स्वयमेव मृगेन्द्रता ॥ (जंगल के जानवर सिंह का न अभिषेक करते हैं और न संस्कार । पराक्रम द्वारा अर्जित सत्व को स्वयं ही जानवरों के राजा का पद मिल जाता है ) | ||
* यो विषादं प्रसहते, विक्रमे समुपस्थिते । | |||
तेजसा तस्य हीनस्य, पुरूषार्थो न सिध्यति ॥ | |||
( पराक्रम दिखाने का अवसर आने पर जो दुख सह लेता है (लेकिन पराक्रम नहीं दिखाता) उस तेज से हीन का पुरुषार्थ सिद्ध नहीं होता ) | |||
* नाभिषेको न च संस्कारः, सिंहस्य कृयते मृगैः । | |||
विक्रमार्जित सत्वस्य, स्वयमेव मृगेन्द्रता ॥ | |||
(जंगल के जानवर सिंह का न अभिषेक करते हैं और न संस्कार । पराक्रम द्वारा अर्जित सत्व को स्वयं ही जानवरों के राजा का पद मिल जाता है ) | |||
* जो मनुष्य अपनी शक्ति के अनुसार बोझ लेकर चलता है वह किसी भी स्थान पर गिरता नहीं है और न दुर्गम रास्तों में विनष्ट ही होता है। - मृच्छकटिक | * जो मनुष्य अपनी शक्ति के अनुसार बोझ लेकर चलता है वह किसी भी स्थान पर गिरता नहीं है और न दुर्गम रास्तों में विनष्ट ही होता है। - मृच्छकटिक | ||
* अधिकांश लोग अपनी दुर्बलताओं को नहीं जानते, यह सच है लेकिन यह भी उतना ही सच है कि अधिकतर लोग अपनी शक्ति को भी नहीं जानते। — जोनाथन स्विफ्ट | * अधिकांश लोग अपनी दुर्बलताओं को नहीं जानते, यह सच है लेकिन यह भी उतना ही सच है कि अधिकतर लोग अपनी शक्ति को भी नहीं जानते। — जोनाथन स्विफ्ट | ||
पंक्ति 449: | पंक्ति 402: | ||
'''युद्ध / शान्ति''' | '''युद्ध / शान्ति''' | ||
* सर्वविनाश ही , सह-अस्तित्व का एकमात्र विकल्प है। — पं. जवाहरलाल नेहरू | * सर्वविनाश ही , सह-अस्तित्व का एकमात्र विकल्प है। — पं. जवाहरलाल नेहरू | ||
* सूच्याग्रं नैव दास्यामि बिना युद्धेन केशव । | * सूच्याग्रं नैव दास्यामि बिना युद्धेन केशव । ( हे कृष्ण , बिना युद्ध के सूई के नोक के बराबर भी ( ज़मीन ) नहीं दूँगा । — दुर्योधन , महाभारत में | ||
( हे कृष्ण , बिना युद्ध के सूई के नोक के बराबर भी ( ज़मीन ) नहीं दूँगा । — दुर्योधन , महाभारत में | * प्रागेव विग्रहो न विधिः । पहले ही ( बिना साम, दान, दण्ड का सहारा लिये ही ) युद्ध करना कोई (अच्छा) तरीका नहीं है। — पंचतन्त्र | ||
* प्रागेव विग्रहो न विधिः । | |||
पहले ही ( बिना साम, दान, दण्ड का सहारा लिये ही ) युद्ध करना कोई (अच्छा) तरीका नहीं है। — पंचतन्त्र | |||
* यदि शांति पाना चाहते हो, तो लोकप्रियता से बचो। — अब्राहम लिंकन | * यदि शांति पाना चाहते हो, तो लोकप्रियता से बचो। — अब्राहम लिंकन | ||
* शांति , प्रगति के लिये आवश्यक है। — डा॰ राजेन्द्र प्रसाद | * शांति , प्रगति के लिये आवश्यक है। — डा॰ राजेन्द्र प्रसाद | ||
पंक्ति 483: | पंक्ति 434: | ||
'''सूचना / सूचना की शक्ति / सूचना-प्रबन्धन / सूचना प्रौद्योगिकी / सूचना-साक्षरता / सूचना प्रवीण / सूचना की सतंत्रता / सूचना-अर्थव्यवस्था''' | '''सूचना / सूचना की शक्ति / सूचना-प्रबन्धन / सूचना प्रौद्योगिकी / सूचना-साक्षरता / सूचना प्रवीण / सूचना की सतंत्रता / सूचना-अर्थव्यवस्था''' | ||
* संचार , गणना ( कम्प्यूटिंग ) और सूचना अब नि:शुल्क वस्तुएँ बन गयी हैं। | * संचार , गणना ( कम्प्यूटिंग ) और सूचना अब नि:शुल्क वस्तुएँ बन गयी हैं। | ||
* ज्ञान, कमी के मूल आर्थिक सिद्धान्त को अस्वीकार करता | * ज्ञान, कमी के मूल आर्थिक सिद्धान्त को अस्वीकार करता है। जितना अधिक आप इसका उपभोग करते हैं और दूसरों को बाटते हैं, उतना ही अधिक यह बढता है। इसको आसानी से बहुगुणित किया जा सकता है और बार-बार उपभोग। | ||
* एक ऐसे विद्यालय की कल्पना कीजिए जिसके छात्र तो पढ-लिख सकते हों लेकिन शिक्षक नहीं ; और यह उपमा होगी उस सूचना-युग की, जिसमें हम जी रहे हैं। | * एक ऐसे विद्यालय की कल्पना कीजिए जिसके छात्र तो पढ-लिख सकते हों लेकिन शिक्षक नहीं ; और यह उपमा होगी उस सूचना-युग की, जिसमें हम जी रहे हैं। | ||
* गुप्तचर ही राजा के आँख होते हैं। — हितोपदेश | * गुप्तचर ही राजा के आँख होते हैं। — हितोपदेश |
21:25, 12 अप्रैल 2011 का अवतरण
इन्हें भी देखें: अनमोल वचन, अनमोल वचन 2, अनमोल वचन 3, कहावत लोकोक्ति मुहावरे एवं सूक्ति और कहावत
अनमोल वचन |
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टीका टिप्पणी और संदर्भ