"जफ़र ख़ाँ": अवतरणों में अंतर
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*जफ़र | *जफ़र ख़ाँ दक्षिण में बहमनी राज्य का संस्थापक था। उसका वास्तविक नाम हसन था। सुल्तान मुहम्मद तुग़लक की सराहनीय सेवा करने के कारण उसे जफ़र ख़ाँ की उपाधि से सम्मानित किया गया। | ||
*1347 ई. में दौलताबाद में जफ़र | *1347 ई. में दौलताबाद में जफ़र ख़ाँ को एक बड़ी सेना का नायकत्व सौंपा गया और इस स्थिति से लाभ उठाकर उसने स्वयं को दक्षिण में एक स्वतंत्र शासक के रूप में प्रतिष्ठित किया तथा [[गुलबर्गा]] अथवा कुलवर्ग को अपनी राजधानी बनाया। | ||
*सुल्तान बनने पर जफ़र | *सुल्तान बनने पर जफ़र ख़ाँ ने अबुल मुजफ़्फ़र अलाउद्दीन बहमन शाह की उपाधि धारण की। फ़रिश्ता का कहना है कि हुसेन मूलत: एक ब्राह्मण, ज्योतिष गंगू का सेवक दास था, जिसने उसे जीवन में ऊँचा उठने में भारी मदद की। परन्तु फ़रिश्ता के इस कथन की स्वतंत्र सूत्रों से पुष्टि नहीं होती। | ||
*हसन का दावा था की जफ़र | *हसन का दावा था की जफ़र ख़ाँ फ़ारस वीर इस्कान्दियार के पुत्र बहमन का वंशज था और इसी आधार पर उसने जिस राजवंश की स्थापना की और वह बहमनी कहलाया। | ||
*जफ़र | *जफ़र ख़ाँ ने अपने राज्य का प्रबन्ध कुशलता से किया और उसे चार प्रदेशों वें विभक्त किया, जिनके नाम गुलबर्ग, [[दौलताबाद]], बराड़ और [[बीदर]] थे। प्रत्येक प्रदेश का कार्यभार एक हाक़िम के अधीन था, जो कि सेना का गठन तथा आवश्यक नागरिक तथा सैनिक अधिकारियों की नियुक्ति करता था। | ||
*जफ़र | *जफ़र ख़ाँ की इतिहासकारों द्वारा तथा एक अच्छे न्यायकारी सुल्तान के रूप में प्रशंसा की गई है। जफ़र ख़ाँ एक प्रजापालक व्यक्ति भी था। | ||
*जफ़र | *जफ़र ख़ाँ ने अपने पड़ोसी राज्यों से अनेक युद्ध किये, विशेषरूप से [[हिन्दू]] राज्य [[विजयनगर]] से, जो कि उसी के समय में स्थापित हुआ था। | ||
*जफ़र | *जफ़र ख़ाँ इस युद्ध में विजयी योद्धा सिद्ध हुआ तथा 1358 ई. में उसकी मृत्यु के समय उसकी सल्तनत उत्तर में बेनगंगा से दक्षिण में [[कृष्णा नदी]] तक तथा पश्चिम में दौलताबाद से पूर्व में मोनगिर तक फैली हुई थी। | ||
*जफ़र | *जफ़र ख़ाँ जब मृत्यु शैया पर था, तभी उसने अपने सबसे बड़े पुत्र [[मुहम्मदशाह]] को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया था।<ref>(पुस्तक 'भारतीय इतिहास काश') पृष्ठ संख्या-160</ref> | ||
05:43, 17 अप्रैल 2011 का अवतरण
- जफ़र ख़ाँ दक्षिण में बहमनी राज्य का संस्थापक था। उसका वास्तविक नाम हसन था। सुल्तान मुहम्मद तुग़लक की सराहनीय सेवा करने के कारण उसे जफ़र ख़ाँ की उपाधि से सम्मानित किया गया।
- 1347 ई. में दौलताबाद में जफ़र ख़ाँ को एक बड़ी सेना का नायकत्व सौंपा गया और इस स्थिति से लाभ उठाकर उसने स्वयं को दक्षिण में एक स्वतंत्र शासक के रूप में प्रतिष्ठित किया तथा गुलबर्गा अथवा कुलवर्ग को अपनी राजधानी बनाया।
- सुल्तान बनने पर जफ़र ख़ाँ ने अबुल मुजफ़्फ़र अलाउद्दीन बहमन शाह की उपाधि धारण की। फ़रिश्ता का कहना है कि हुसेन मूलत: एक ब्राह्मण, ज्योतिष गंगू का सेवक दास था, जिसने उसे जीवन में ऊँचा उठने में भारी मदद की। परन्तु फ़रिश्ता के इस कथन की स्वतंत्र सूत्रों से पुष्टि नहीं होती।
- हसन का दावा था की जफ़र ख़ाँ फ़ारस वीर इस्कान्दियार के पुत्र बहमन का वंशज था और इसी आधार पर उसने जिस राजवंश की स्थापना की और वह बहमनी कहलाया।
- जफ़र ख़ाँ ने अपने राज्य का प्रबन्ध कुशलता से किया और उसे चार प्रदेशों वें विभक्त किया, जिनके नाम गुलबर्ग, दौलताबाद, बराड़ और बीदर थे। प्रत्येक प्रदेश का कार्यभार एक हाक़िम के अधीन था, जो कि सेना का गठन तथा आवश्यक नागरिक तथा सैनिक अधिकारियों की नियुक्ति करता था।
- जफ़र ख़ाँ की इतिहासकारों द्वारा तथा एक अच्छे न्यायकारी सुल्तान के रूप में प्रशंसा की गई है। जफ़र ख़ाँ एक प्रजापालक व्यक्ति भी था।
- जफ़र ख़ाँ ने अपने पड़ोसी राज्यों से अनेक युद्ध किये, विशेषरूप से हिन्दू राज्य विजयनगर से, जो कि उसी के समय में स्थापित हुआ था।
- जफ़र ख़ाँ इस युद्ध में विजयी योद्धा सिद्ध हुआ तथा 1358 ई. में उसकी मृत्यु के समय उसकी सल्तनत उत्तर में बेनगंगा से दक्षिण में कृष्णा नदी तक तथा पश्चिम में दौलताबाद से पूर्व में मोनगिर तक फैली हुई थी।
- जफ़र ख़ाँ जब मृत्यु शैया पर था, तभी उसने अपने सबसे बड़े पुत्र मुहम्मदशाह को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया था।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ (पुस्तक 'भारतीय इतिहास काश') पृष्ठ संख्या-160