"गढ़गाँव": अवतरणों में अंतर
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गढ़गाँव [[अहोम]] राजाओं (1228-1824 ई.) के शासनकाल में [[ | गढ़गाँव [[अहोम]] राजाओं (1228-1824 ई.) के शासनकाल में [[असम]] की राजधानी थी। यह आधुनिक शिवसागर ज़िले में दीखू नदी के तट पर स्थित है। 1662-63 ई. में [[मुग़ल]] सम्राट [[औरंगज़ेब]] के सेनानायक मीर जुमला ने गढ़गाँव पर आक्रमण कर अधिकार कर लिया। शहाबुद्दीन ने गढ़गाँव पर मीर जुमला के विजय अभियान का विस्तार से वर्णन किया है। गढ़गाँव की शक्ति और वैभव से प्रभावित होकर वह लिखता है कि इस शहर के चार द्वार थे, जो पत्थर और गारे से बनाये गये थे। चारों द्वारों से मार्ग राज प्रासाद की ओर जाता था, जो कि तीन कोस (दो मील) की दूरी पर था। नगर के चारों ओर प्राचीर के स्थान पर दो कोस या उससे कुछ अधिक चौड़ाई में उगाया गया बाँसों का घना और अभेद्य झुरमुट था। | ||
====<u>राजप्रासाद</u>==== | ====<u>राजप्रासाद</u>==== | ||
राजप्रासाद के चतुर्दिक कई पुरुसा गहरे पानी से भरी हुई खाई थीं। राजप्रासाद 66 स्तम्भों पर खड़ा था। प्रत्येक स्तम्भ की गोलाई 6 फ़ुट थी। सभी स्तम्भ अत्यधिक चिकने और चमकदार थे। शहाबुद्दीन के विचार के अनुसार राज प्रासाद की काष्ठकला इतनी भव्य और रमणीक थी कि दुनिया में उसके जोड़ की नक़्क़ाशी मिलना मुश्किल है। | राजप्रासाद के चतुर्दिक कई पुरुसा गहरे पानी से भरी हुई खाई थीं। राजप्रासाद 66 स्तम्भों पर खड़ा था। प्रत्येक स्तम्भ की गोलाई 6 फ़ुट थी। सभी स्तम्भ अत्यधिक चिकने और चमकदार थे। शहाबुद्दीन के विचार के अनुसार राज प्रासाद की काष्ठकला इतनी भव्य और रमणीक थी कि दुनिया में उसके जोड़ की नक़्क़ाशी मिलना मुश्किल है। |
12:23, 18 अप्रैल 2011 का अवतरण
गढ़गाँव अहोम राजाओं (1228-1824 ई.) के शासनकाल में असम की राजधानी थी। यह आधुनिक शिवसागर ज़िले में दीखू नदी के तट पर स्थित है। 1662-63 ई. में मुग़ल सम्राट औरंगज़ेब के सेनानायक मीर जुमला ने गढ़गाँव पर आक्रमण कर अधिकार कर लिया। शहाबुद्दीन ने गढ़गाँव पर मीर जुमला के विजय अभियान का विस्तार से वर्णन किया है। गढ़गाँव की शक्ति और वैभव से प्रभावित होकर वह लिखता है कि इस शहर के चार द्वार थे, जो पत्थर और गारे से बनाये गये थे। चारों द्वारों से मार्ग राज प्रासाद की ओर जाता था, जो कि तीन कोस (दो मील) की दूरी पर था। नगर के चारों ओर प्राचीर के स्थान पर दो कोस या उससे कुछ अधिक चौड़ाई में उगाया गया बाँसों का घना और अभेद्य झुरमुट था।
राजप्रासाद
राजप्रासाद के चतुर्दिक कई पुरुसा गहरे पानी से भरी हुई खाई थीं। राजप्रासाद 66 स्तम्भों पर खड़ा था। प्रत्येक स्तम्भ की गोलाई 6 फ़ुट थी। सभी स्तम्भ अत्यधिक चिकने और चमकदार थे। शहाबुद्दीन के विचार के अनुसार राज प्रासाद की काष्ठकला इतनी भव्य और रमणीक थी कि दुनिया में उसके जोड़ की नक़्क़ाशी मिलना मुश्किल है।
राजधानी
आसाम ने 1667 ई. में मुग़ल शासन का जुआ उतार फेंका और गढ़गाँव 1824 ई. में अंग्रेज़ों की विजय तक अहोम राजाओं की राजधानी बना रहा।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
पुस्तक 'भारतीय इतिहास कोश' पृष्ठ संख्या-117