"प्रयोग:शिल्पी5": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
छो (Text replace - "खरीद" to "ख़रीद")
छो (Text replace - "बाजार" to "बाज़ार")
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था क्रय शक्ति समानता के आधार पर दुनिया में चौथी सबसे बड़ी अर्थव्‍यवस्‍था है। यह विशाल जनशक्ति आधार, विविध प्राकृतिक संसाधनों और सशक्‍त वृहत अर्थव्‍यवस्‍था के मूलभूत तत्‍वों के कारण व्‍यवसाय और निवेश के अवसरों के सबसे अधिक आकर्षक गंतव्‍यों में से एक है। वर्ष 1991 में आरंभ की गई आर्थिक सुधारों की प्रक्रिया से सम्‍पूर्ण अर्थव्‍यवस्‍था में फैले नीतिगत ढाँचे के उदारीकरण के माध्‍यम से एक निवेशक अनुकूल परिवेश मिलता रहा है। भारत को आज़ाद हुए 59 साल हो चुके हैं और इस दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था की दशा में ज़बरदस्त बदलाव आया है| औद्योगिक विकास ने अर्थव्यवस्था का रूप बदल दिया है। आज भारत की गिनती दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में होती है। विश्व की अर्थव्यवस्था को चलाने में भारत की भूमिका बढ़ती जा रही है। आईटी सेक्टर में पूरी दुनिया भारत का लोहा मानती है।  
भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था क्रय शक्ति समानता के आधार पर दुनिया में चौथी सबसे बड़ी अर्थव्‍यवस्‍था है। यह विशाल जनशक्ति आधार, विविध प्राकृतिक संसाधनों और सशक्‍त वृहत अर्थव्‍यवस्‍था के मूलभूत तत्‍वों के कारण व्‍यवसाय और निवेश के अवसरों के सबसे अधिक आकर्षक गंतव्‍यों में से एक है। वर्ष 1991 में आरंभ की गई आर्थिक सुधारों की प्रक्रिया से सम्‍पूर्ण अर्थव्‍यवस्‍था में फैले नीतिगत ढाँचे के उदारीकरण के माध्‍यम से एक निवेशक अनुकूल परिवेश मिलता रहा है। भारत को आज़ाद हुए 59 साल हो चुके हैं और इस दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था की दशा में ज़बरदस्त बदलाव आया है| औद्योगिक विकास ने अर्थव्यवस्था का रूप बदल दिया है। आज भारत की गिनती दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में होती है। विश्व की अर्थव्यवस्था को चलाने में भारत की भूमिका बढ़ती जा रही है। आईटी सेक्टर में पूरी दुनिया भारत का लोहा मानती है।  
==वृद्धि और निष्‍पादन==
==वृद्धि और निष्‍पादन==
दुनिया के बाजार में भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था की वृद्धि और निष्‍पादन को विभिन्‍न आर्थिक पैरामीटरों के जरिए प्रदान की गई सांख्यिकीय सूचना के संदर्भ में बताया गया है। उदाहरण के लिए सकल राष्‍ट्रीय उत्‍पाद (जीएनपी), सकल घरेलू उत्‍पाद (जीडीपी), निवल राष्‍ट्रीय उत्‍पाद (एनएनपी), प्रतिव्‍यक्ति आय, सकल घरेलू पूंजी निर्माण (जीडीसीएफ) आदि अर्थव्‍यवस्‍था के राष्‍ट्रीय आय क्षेत्र से संबंधित विभिन्‍न सूचक हैं। ये मानवी इच्‍छाओं की संतुष्टि के लिए इसकी उत्‍पादकता सहित अर्थव्‍यवस्‍था का एक व्‍यापक परिदृश्‍य प्रदान करते हैं।
दुनिया के बाज़ार में भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था की वृद्धि और निष्‍पादन को विभिन्‍न आर्थिक पैरामीटरों के जरिए प्रदान की गई सांख्यिकीय सूचना के संदर्भ में बताया गया है। उदाहरण के लिए सकल राष्‍ट्रीय उत्‍पाद (जीएनपी), सकल घरेलू उत्‍पाद (जीडीपी), निवल राष्‍ट्रीय उत्‍पाद (एनएनपी), प्रतिव्‍यक्ति आय, सकल घरेलू पूंजी निर्माण (जीडीसीएफ) आदि अर्थव्‍यवस्‍था के राष्‍ट्रीय आय क्षेत्र से संबंधित विभिन्‍न सूचक हैं। ये मानवी इच्‍छाओं की संतुष्टि के लिए इसकी उत्‍पादकता सहित अर्थव्‍यवस्‍था का एक व्‍यापक परिदृश्‍य प्रदान करते हैं।
====विकास दर====
====विकास दर====
भारतीय रिज़र्व बैंक ने अप्रैल में अपनी वार्षिक नीति पर जारी बयान में भारत में वर्ष में विकास दर 7.5-8.0 फ़ीसदी के बीच रहने की उम्मीद जताई है। 27 अक्तूबर 2006 को ख़त्म हुए सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार करीब 167.092 अरब डॉलर तक पहुँच गया। सोने का भंडार 6.202 अरब डालर तक पहुँच गया है। कभी विदेशी संस्थानों से कर्ज लेने वाले भारत ने वर्ष 2003 में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष को कर्ज़ देने की घोषणा की। वर्ष में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में 33.8 फ़ीसदी की वृद्धि हुई। हाल ही में संयुक्त राष्ट्र ने भी एक रिपोर्ट जारी की है जिसमें कहा गया है कि अगले दो सालों तक भारत में आठ फ़ीसदी की दर से विकास होता रहेगा औद्योगिक क्षेत्र में आठ तो सेवा क्षेत्र में 8.5 प्रतिशत की विकास दर रहेगी। भारत की अर्थव्यवस्था में सबसे ज़्यादा विकास हुआ है उद्योग और सेवा क्षेत्र में। वर्ष में दसवीं पंच वर्षीय योजना शुरू होने के बाद से इन दोनों क्षेत्रों में सालाना सात फ़ीसदी या उससे ज़्यादा की दर से विकास हुआ है। भारतीय अर्थव्यवस्था के मजबुत होने का एक और प्रमाण जानी-मानी अंतरराष्ट्रीय सलाहकार संस्था प्राइसवाटरहाउस कूपर्स या पीडब्ल्यूसी की एक रिपोर्ट कहती है कि 2005 से 2050 के बीच चीन की अर्थव्यवस्था का आकार दोगुना हो जाएगा। साथ ही इसमें ये भी कहा गया है कि भारत दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बना रहेगा। पी डब्ल्यू सी की रिपोर्ट कहती है कि तब तक भारत और ब्राज़ील जापान और जर्मनी को पीछे छोड़कर दूसरे और तीसरे नंबर की अर्थव्यवस्था बन जाएँगे। पिछले कुछ सालों में भारतीय अर्थव्यवस्था में काफ़ी तेज़ी आई है। बढ़ती विकास दर के अलावा भारतीय अर्थव्यवस्था से जुड़े कई सकारात्मक पहलू सामने आए हैं। इन सकारात्मक पहलूओं में से एक अहम पहलू है- भारतीय शेयर बाज़ार में जारी मज़बूती का दौर।
भारतीय रिज़र्व बैंक ने अप्रैल में अपनी वार्षिक नीति पर जारी बयान में भारत में वर्ष में विकास दर 7.5-8.0 फ़ीसदी के बीच रहने की उम्मीद जताई है। 27 अक्तूबर 2006 को ख़त्म हुए सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार करीब 167.092 अरब डॉलर तक पहुँच गया। सोने का भंडार 6.202 अरब डालर तक पहुँच गया है। कभी विदेशी संस्थानों से कर्ज लेने वाले भारत ने वर्ष 2003 में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष को कर्ज़ देने की घोषणा की। वर्ष में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में 33.8 फ़ीसदी की वृद्धि हुई। हाल ही में संयुक्त राष्ट्र ने भी एक रिपोर्ट जारी की है जिसमें कहा गया है कि अगले दो सालों तक भारत में आठ फ़ीसदी की दर से विकास होता रहेगा औद्योगिक क्षेत्र में आठ तो सेवा क्षेत्र में 8.5 प्रतिशत की विकास दर रहेगी। भारत की अर्थव्यवस्था में सबसे ज़्यादा विकास हुआ है उद्योग और सेवा क्षेत्र में। वर्ष में दसवीं पंच वर्षीय योजना शुरू होने के बाद से इन दोनों क्षेत्रों में सालाना सात फ़ीसदी या उससे ज़्यादा की दर से विकास हुआ है। भारतीय अर्थव्यवस्था के मजबुत होने का एक और प्रमाण जानी-मानी अंतरराष्ट्रीय सलाहकार संस्था प्राइसवाटरहाउस कूपर्स या पीडब्ल्यूसी की एक रिपोर्ट कहती है कि 2005 से 2050 के बीच चीन की अर्थव्यवस्था का आकार दोगुना हो जाएगा। साथ ही इसमें ये भी कहा गया है कि भारत दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बना रहेगा। पी डब्ल्यू सी की रिपोर्ट कहती है कि तब तक भारत और ब्राज़ील जापान और जर्मनी को पीछे छोड़कर दूसरे और तीसरे नंबर की अर्थव्यवस्था बन जाएँगे। पिछले कुछ सालों में भारतीय अर्थव्यवस्था में काफ़ी तेज़ी आई है। बढ़ती विकास दर के अलावा भारतीय अर्थव्यवस्था से जुड़े कई सकारात्मक पहलू सामने आए हैं। इन सकारात्मक पहलूओं में से एक अहम पहलू है- भारतीय शेयर बाज़ार में जारी मज़बूती का दौर।
पंक्ति 18: पंक्ति 18:


==सूचकांक==
==सूचकांक==
औद्योगिक क्षेत्र में औद्योगिक उत्‍पादन का सूचकांक अर्थव्‍यवस्‍था में औद्योगिक गतिविधि के सामान्‍य स्‍तर को मापने का एक अकेला प्रतिनिधि आंकड़ा है। यह औद्योगिक उत्‍पादन का परम स्‍तर और प्रतिशत वृद्धि मापता है। देश में मूल्‍य की गति को थोक मूल्‍य सूचकांक (डब्‍ल्‍यूपीआई) तथा उपभोक्‍ता मूल्‍य सूचकांक (सीपीआई) द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। थोक मूल्‍य सूचकांक को थोक बाजार में ख़रीदी – बेची गई वस्‍तुओं के औसत मूल्‍य स्तर में बदलाव को मापने में किया जाता है। जबकि उपभोक्‍ता मूल्‍य सूचकांक में उपभोक्‍ताओं के विभिन्‍न वर्गों में खुदरा मूल्‍य गति को विचार में लिया जाता है। अर्थव्‍यवस्‍था में विभिन्‍न सामाजिक-आर्थिक समूहों का शामिल करते हुए चार उपभोक्‍ता मूल्‍य सूचकांक हैं। ये चार मूल्‍य सूचकांक हैं: –  
औद्योगिक क्षेत्र में औद्योगिक उत्‍पादन का सूचकांक अर्थव्‍यवस्‍था में औद्योगिक गतिविधि के सामान्‍य स्‍तर को मापने का एक अकेला प्रतिनिधि आंकड़ा है। यह औद्योगिक उत्‍पादन का परम स्‍तर और प्रतिशत वृद्धि मापता है। देश में मूल्‍य की गति को थोक मूल्‍य सूचकांक (डब्‍ल्‍यूपीआई) तथा उपभोक्‍ता मूल्‍य सूचकांक (सीपीआई) द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। थोक मूल्‍य सूचकांक को थोक बाज़ार में ख़रीदी – बेची गई वस्‍तुओं के औसत मूल्‍य स्तर में बदलाव को मापने में किया जाता है। जबकि उपभोक्‍ता मूल्‍य सूचकांक में उपभोक्‍ताओं के विभिन्‍न वर्गों में खुदरा मूल्‍य गति को विचार में लिया जाता है। अर्थव्‍यवस्‍था में विभिन्‍न सामाजिक-आर्थिक समूहों का शामिल करते हुए चार उपभोक्‍ता मूल्‍य सूचकांक हैं। ये चार मूल्‍य सूचकांक हैं: –  
*औद्योगिक कामगारों के लिए उपभोक्‍ता मूल्‍य सूचकांक (सीपीआई-आईडब्‍ल्‍यू)  
*औद्योगिक कामगारों के लिए उपभोक्‍ता मूल्‍य सूचकांक (सीपीआई-आईडब्‍ल्‍यू)  
*कृषि श्रमिकों के लिए उपभोक्‍ता मूल्‍य सूचकांक (सीपीआई-एएल)
*कृषि श्रमिकों के लिए उपभोक्‍ता मूल्‍य सूचकांक (सीपीआई-एएल)

14:50, 21 अप्रैल 2011 का अवतरण

भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था क्रय शक्ति समानता के आधार पर दुनिया में चौथी सबसे बड़ी अर्थव्‍यवस्‍था है। यह विशाल जनशक्ति आधार, विविध प्राकृतिक संसाधनों और सशक्‍त वृहत अर्थव्‍यवस्‍था के मूलभूत तत्‍वों के कारण व्‍यवसाय और निवेश के अवसरों के सबसे अधिक आकर्षक गंतव्‍यों में से एक है। वर्ष 1991 में आरंभ की गई आर्थिक सुधारों की प्रक्रिया से सम्‍पूर्ण अर्थव्‍यवस्‍था में फैले नीतिगत ढाँचे के उदारीकरण के माध्‍यम से एक निवेशक अनुकूल परिवेश मिलता रहा है। भारत को आज़ाद हुए 59 साल हो चुके हैं और इस दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था की दशा में ज़बरदस्त बदलाव आया है| औद्योगिक विकास ने अर्थव्यवस्था का रूप बदल दिया है। आज भारत की गिनती दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में होती है। विश्व की अर्थव्यवस्था को चलाने में भारत की भूमिका बढ़ती जा रही है। आईटी सेक्टर में पूरी दुनिया भारत का लोहा मानती है।

वृद्धि और निष्‍पादन

दुनिया के बाज़ार में भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था की वृद्धि और निष्‍पादन को विभिन्‍न आर्थिक पैरामीटरों के जरिए प्रदान की गई सांख्यिकीय सूचना के संदर्भ में बताया गया है। उदाहरण के लिए सकल राष्‍ट्रीय उत्‍पाद (जीएनपी), सकल घरेलू उत्‍पाद (जीडीपी), निवल राष्‍ट्रीय उत्‍पाद (एनएनपी), प्रतिव्‍यक्ति आय, सकल घरेलू पूंजी निर्माण (जीडीसीएफ) आदि अर्थव्‍यवस्‍था के राष्‍ट्रीय आय क्षेत्र से संबंधित विभिन्‍न सूचक हैं। ये मानवी इच्‍छाओं की संतुष्टि के लिए इसकी उत्‍पादकता सहित अर्थव्‍यवस्‍था का एक व्‍यापक परिदृश्‍य प्रदान करते हैं।

विकास दर

भारतीय रिज़र्व बैंक ने अप्रैल में अपनी वार्षिक नीति पर जारी बयान में भारत में वर्ष में विकास दर 7.5-8.0 फ़ीसदी के बीच रहने की उम्मीद जताई है। 27 अक्तूबर 2006 को ख़त्म हुए सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार करीब 167.092 अरब डॉलर तक पहुँच गया। सोने का भंडार 6.202 अरब डालर तक पहुँच गया है। कभी विदेशी संस्थानों से कर्ज लेने वाले भारत ने वर्ष 2003 में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष को कर्ज़ देने की घोषणा की। वर्ष में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में 33.8 फ़ीसदी की वृद्धि हुई। हाल ही में संयुक्त राष्ट्र ने भी एक रिपोर्ट जारी की है जिसमें कहा गया है कि अगले दो सालों तक भारत में आठ फ़ीसदी की दर से विकास होता रहेगा औद्योगिक क्षेत्र में आठ तो सेवा क्षेत्र में 8.5 प्रतिशत की विकास दर रहेगी। भारत की अर्थव्यवस्था में सबसे ज़्यादा विकास हुआ है उद्योग और सेवा क्षेत्र में। वर्ष में दसवीं पंच वर्षीय योजना शुरू होने के बाद से इन दोनों क्षेत्रों में सालाना सात फ़ीसदी या उससे ज़्यादा की दर से विकास हुआ है। भारतीय अर्थव्यवस्था के मजबुत होने का एक और प्रमाण जानी-मानी अंतरराष्ट्रीय सलाहकार संस्था प्राइसवाटरहाउस कूपर्स या पीडब्ल्यूसी की एक रिपोर्ट कहती है कि 2005 से 2050 के बीच चीन की अर्थव्यवस्था का आकार दोगुना हो जाएगा। साथ ही इसमें ये भी कहा गया है कि भारत दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बना रहेगा। पी डब्ल्यू सी की रिपोर्ट कहती है कि तब तक भारत और ब्राज़ील जापान और जर्मनी को पीछे छोड़कर दूसरे और तीसरे नंबर की अर्थव्यवस्था बन जाएँगे। पिछले कुछ सालों में भारतीय अर्थव्यवस्था में काफ़ी तेज़ी आई है। बढ़ती विकास दर के अलावा भारतीय अर्थव्यवस्था से जुड़े कई सकारात्मक पहलू सामने आए हैं। इन सकारात्मक पहलूओं में से एक अहम पहलू है- भारतीय शेयर बाज़ार में जारी मज़बूती का दौर।

शेयर सूचकांक

भारत में मार्च में शेयर सूचकांक 6493 रहा जोकि मार्च 2006 में 11,280 पर पहुँच गया और इस पर प्रतिफल मिला 73.7 प्रतिशत। वर्तमान मे यह 13,000 के ऐतिहासिक स्तर को पार गया है। शेयर बाज़ार ने सिर्फ़ 16 कार्य दिवसों में ही 11 हज़ार से 12 हज़ार तक की ऊँचाई प्राप्त कर ली। इस अवधि के दौरान भारतीय शेयर सूचकांक ने दुनियाँ के अन्य शेयर सूचकांकों के मुकाबले अधिक गति प्राप्त की है। आँकड़ों के हिसाब से उभरते हुए शेयर बाज़ारों में भारत का बाज़ार सबसे जोरदार प्रतिफल वाला साबित हो रहा है। भारतीय अर्थव्यवस्था मे एक और महत्त्वपूर्ण क्षेत्र बैंकिंग है। भारत के तेज़ी से विकसित होते मध्यवर्ग के चलते बैंकिंग खासे मुनाफ़े का कारोबार हो गई है। कुल ख़रीदी गई कारों की अस्सी फ़ीसदी कारें क़र्ज़ लेकर ख़रीदी जा रही हैं। दस साल पहले मकान मालिक बनने की औसत आयु 45 साल थी लेकिन अब औसतन 32 साल की उम्र में ही मकान मालिक बन जाते हैं किसी बैंक से लिए गए क़र्ज़ की बदौलत। तमाम नई बैंकिंग सुविधाओं का विकास हो रहा है। कुल मिलाकर बैंकिंग क्षेत्र के मुनाफ़े आने वाले कुछ सालों में तेजी से बढ़ेंगे।

व्यापार और वाणिज्य

भारत में अरबपतियों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है जो यह दिखाता है कि व्यापार और वाणिज्य के क्षेत्र में देश तेज़ी से आगे बढ़ रहा है। प्रतिष्ठित फोर्ब्स पत्रिका में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार अरबपतियो की संख्या मे 15 प्रतिशत की वृद्घि हुई है और अब कुल 793 अरबपति है और एशिया में भारत अग्रणी बनकर उभरा है। विश्व अर्थव्यवस्था में आई उछाल के कारण भारत में अरबपतियो की संख्या में आलेख में बढोतरी हुई है। इस सर्वे के अनुसार भारत में 23 अरबपति हैं जिनके पास भारतीय सकल घरेलू उत्पाद का 16 प्रतिशत हिस्सा है। इसका यह अर्थ निकाला जा सकता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की सेहत बेहतर हो रही है। इकॉनॉमिक टाइम्स के ब्यूरो चीफ़ एमके वेणु का मानना है कि भारत मे पहले से कहीं ज्यादा अवसर उपलब्ध हैं।

कृषि क्षेत्र में विकास दर

पिछले कुछ सालों में कृषि क्षेत्र में विकास दर दो से तीन प्रतिशत के बीच रही है। वर्ष 2002-03 में कृषि क्षेत्र में विकास दर शून्य से भी कम थी। 2003-04 में इसमें ज़बरदस्त उछाल आया और ये 10 फ़ीसदी हो गई लेकिन 2004-05 में विकास दर फिर लुढ़क गई और ऐसी लुढ़की कि 0.7 फ़ीसदी हो गई। आर्थिक प्रगति में इस विसंगति को केंद्र सरकार भी स्वीकार करती है। केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री पवन कुमार बंसल कहते हैं, "कृषि पीछे है इसमें कोई दो राय नहीं. अगर विकास दर को 10 फ़ीसदी करना है तो कृषि में भी चार फ़ीसदी की दर से विकास करना होगा।" भारत में लोगों को रोज़गार अवसर मुहैया करवाने, किसानों की स्थिति बेहतर बनाने और निर्यात बढ़ाने में बागवानी क्षेत्र का बड़ा हाथ है। वर्ष 2003-04 में फलों और सब्ज़िओं की पैदावार में भारत विश्व में दूसरे नंबर पर था। फलों, फूलों और सब्ज़ियों की खेती में निर्यात में भी काफ़ी संभनाएँ हैं।

बजट

वर्ष 2006 के मार्च महीने में ब्रिटेन का आम बजट पेश किया गया। बजट में ब्रितानी वित्त मंत्री के भाषण का एक मुख्य अंश कुछ यूँ था, "भारत और चीन से मिलने वाली कड़ी प्रतिस्पर्धा का मतलब है कि हम हाथ पर हाथ धर कर नहीं बैठे रह सकते" इससे पहले अमरीकी राष्ट्रपति बुश ने भी अपने अहम राष्ट्रीय भाषण में कहा, "हम हाथ पर हाथ धर कर नहीं बैठ सकते। दुनिया की अर्थव्यवस्था में हम भारत और चीन जैसे नए प्रतियोगी देख रहे हैं।" उद्योगो में निर्माण, खनन और बिजली क्षेत्र अग्रणी रहे हैं। जबकि सेवा क्षेत्र की बात करें तो इसमें मोटे तौर पर तीन क्षेत्र आगे हैं- बैंकिंग, बीमा और रीयल ऐस्टेट जिनमें 9.5 फ़ीसदी के दर से विकास हुआ है। लेकिन औद्योगिक विकास के बावजूद इन 59 सालों में एक तथ्य जो नहीं बदला है वो ये कि आज भी भारत के 65 से 70 फ़ीसदी लोग रोज़ी-रोटी के लिए कृषि और कृषि आधारित कामों पर निर्भर हैं।

विदेशी निवेश

एक ओर होंगे सेवा क्षेत्र और विदेशी निवेश जैसे पहलू जहाँ माहौल सकारात्मक है। दूसरी तरफ़ है मध्यम वर्ग की अर्थव्यवस्था जिमसें अपार संभावनाएँ हैं लेकिन कई तरह की परेशानियाँ भी हैं और तीसरे स्तर पर है एक ऐसा वर्ग जिसका ऊपर के दो वर्गों से कोई लेना देना नहीं है, उनकी समस्याएँ शायद वैसी की वैसी रहने वाली हैं। औद्योगिक और सेवा क्षेत्र में विकास की बदौलत भारत में विकास की गाड़ी तेज़ी से दौड़ तो रही है लेकिन अभी भी उसके सामने कई तरह की चुनौतियाँ हैं।  भारत में कई जगहों में अब भी सड़क, बिजली, पानी और स्वास्थय जैसी मूलभूत ज़रूरतों की कमी है और ये तस्वीर सिर्फ़ गाँवों की ही नहीं- दिल्ली,बंगलौर और मुम्बई जैसे शहरों की भी है। इन मूलभूत ज़रूरतों के अभाव में उद्योग और सेवा सेक्टर में जारी विकास इतनी ही गति से बरकरार रह पाएगा ये भी एक बड़ा सवाल है। लिहाज़ा फ़र्राटे से दौड़ रहे विकास के घोड़े को अगर लंबे रेस का घोड़ा बनना है तो आधारभूत ढाँचे, सड़क, बिजली और पानी जैसी मूलभूत ज़रूरतों की सही खुराक सही समय पर इसे देते रहना होगा।[1]

सूचकांक

औद्योगिक क्षेत्र में औद्योगिक उत्‍पादन का सूचकांक अर्थव्‍यवस्‍था में औद्योगिक गतिविधि के सामान्‍य स्‍तर को मापने का एक अकेला प्रतिनिधि आंकड़ा है। यह औद्योगिक उत्‍पादन का परम स्‍तर और प्रतिशत वृद्धि मापता है। देश में मूल्‍य की गति को थोक मूल्‍य सूचकांक (डब्‍ल्‍यूपीआई) तथा उपभोक्‍ता मूल्‍य सूचकांक (सीपीआई) द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। थोक मूल्‍य सूचकांक को थोक बाज़ार में ख़रीदी – बेची गई वस्‍तुओं के औसत मूल्‍य स्तर में बदलाव को मापने में किया जाता है। जबकि उपभोक्‍ता मूल्‍य सूचकांक में उपभोक्‍ताओं के विभिन्‍न वर्गों में खुदरा मूल्‍य गति को विचार में लिया जाता है। अर्थव्‍यवस्‍था में विभिन्‍न सामाजिक-आर्थिक समूहों का शामिल करते हुए चार उपभोक्‍ता मूल्‍य सूचकांक हैं। ये चार मूल्‍य सूचकांक हैं: –

  • औद्योगिक कामगारों के लिए उपभोक्‍ता मूल्‍य सूचकांक (सीपीआई-आईडब्‍ल्‍यू)
  • कृषि श्रमिकों के लिए उपभोक्‍ता मूल्‍य सूचकांक (सीपीआई-एएल)
  • ग्रामीण श्रमिक के लिए उपभोक्‍ता मूल्‍य सूचकांक (सीपीआई-आरएल)
  • शहरी अकुशल कर्मचारियों के लिए उपभोक्‍ता मूल्‍य सूचकांक (सीपीआई-यूएनएमई)।

ऐसे सभी आर्थिक सूचकांक न केवल अर्थव्‍यवस्‍था वर्तमान निष्‍पादन का विश्‍लेषण करते हैं बल्कि भावी वृद्धि संभावनाओं के अनुमान और पूर्वानुमान में भी सहायता देते है।

मौद्रिक योग

मुद्रा आपूर्ति के उपायों में से चार प्रमुख मौद्रिक योग, जो मौद्रिक क्षेत्र की स्थिति दर्शाते हैं, इस प्रकार हैं:-

  1. एम1 (संकीर्ण धन) = जनता के पास मौजूद मुद्रा + जनता की मांग पर जमा
  2. एम2 = जनता के पास मौजूद मुद्रा + जनता की मांग पर जमा + डाकखाने में जमा राशि
  3. एम3 (स्‍थूल धन) = जनता के पास मौजूद मुद्रा + जनता की मांग पर जमा + जनता द्वारा बैंकों में सावधि जमा
  4. एम4 = जनता के पास मौजूद मुद्रा + जनता की मांग पर जमा + जनता द्वारा बैंकों में सावधि जमा + डाकखाने में कुल जमा।[2]
  1. भारतीय अर्थव्यवस्था (हिन्दी) (एच.टी.एम.) हिमआर्टिकल्स। अभिगमन तिथि: 11 अप्रॅल, 2011
  2. भारतीय अर्थव्यवस्था (हिन्दी) व्यापार ज्ञान संसाधन। अभिगमन तिथि: 11 अप्रॅल, 2011