"जैन नामकरण संस्कार": अवतरणों में अंतर
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*धर्मपत्नी पति की दाहिनी ओर बैठे। | *धर्मपत्नी पति की दाहिनी ओर बैठे। | ||
*मंगलकलश भी कुण्डों के पूर्व दिशा में दम्पती के सन्मुख रखे। | *मंगलकलश भी कुण्डों के पूर्व दिशा में दम्पती के सन्मुख रखे। | ||
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07:29, 22 अप्रैल 2010 का अवतरण
जैन नामकरण संस्कार / Jain Naamkaran Sanskar
- पुत्रोत्पत्ति के बारहवें, सोलहवें, बीसवें या बत्तीसवें दिन नामकरण करना चाहिए।
- किसी कारण बत्तीसवें दिन तक भी नामकरण न हो सके तो जन्मदिन से वर्ष पर्यन्त इच्छानुकूल या राशि आदि के आधार पर शुभ नामकरण कर सकते हैं।
- पूर्व के संस्कारों के समान मण्डप, वेदी, कुण्ड आदि सामग्री तैयार करना चाहिए।
- पुत्र सहित दम्पती को वस्त्राभूषणों से सुसज्जित कर वेदी के सामने बैठाना चाहिए।
- पुत्र माँ की गोद में रहे।
- धर्मपत्नी पति की दाहिनी ओर बैठे।
- मंगलकलश भी कुण्डों के पूर्व दिशा में दम्पती के सन्मुख रखे।