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*'शिवसिंह' के अनुसार इनका कविता काल संवत 1730 के लगभग माना जा सकता है।  
*'शिवसिंह' के अनुसार इनका कविता काल संवत 1730 के लगभग माना जा सकता है।  
*इनका एक प्रसिद्ध पद है -  
*इनका एक प्रसिद्ध पद है -  
<poem>उमड़ि घुमड़ि घन छोड़त अखंड धार,
<blockquote><poem>उमड़ि घुमड़ि घन छोड़त अखंड धार,
चंचला उठति तामें तरजि तरजि कै।
चंचला उठति तामें तरजि तरजि कै।
बरही पपीहा भेक पिक खग टेरत हैं,
बरही पपीहा भेक पिक खग टेरत हैं,
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पीतम को रही मैं तो बरजि बरजि कै।
पीतम को रही मैं तो बरजि बरजि कै।
लागे तन तावन बिना री मनभावन कै
लागे तन तावन बिना री मनभावन कै
सावन दुवन आयो गरजि गरजि कै</poem>
सावन दुवन आयो गरजि गरजि कै</poem></blockquote>


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==सम्बंधित लेख==
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14:20, 10 मई 2011 का अवतरण

  • राम का 'शिवसिंह सरोज' में जन्म संवत् 1703 लिखा है और कहा गया है कि इनके कवित्त कालिदास के 'हजारा' में हैं।
  • इनका नायिका भेद का एक ग्रंथ 'श्रृंगार सौरभ' है जिसकी कविता बहुत ही मनोरम है।
  • इनका एक 'हनुमान नाटक' भी पाया गया है।
  • 'शिवसिंह' के अनुसार इनका कविता काल संवत 1730 के लगभग माना जा सकता है।
  • इनका एक प्रसिद्ध पद है -

उमड़ि घुमड़ि घन छोड़त अखंड धार,
चंचला उठति तामें तरजि तरजि कै।
बरही पपीहा भेक पिक खग टेरत हैं,
धुनि सुनि प्रान उठे लरजि लरजि कै
कहै कवि राम लखि चमक खदोतन की,
पीतम को रही मैं तो बरजि बरजि कै।
लागे तन तावन बिना री मनभावन कै
सावन दुवन आयो गरजि गरजि कै


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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