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*मनुष्य का अहंकार ऐसा है कि प्रासादों का भिखारी भी कुटी का अतिथि बनना स्वीकार नहीं करेगा।  -'''[[महादेवी वर्मा]]''' (दीपशिखा, चिंतन के कुछ क्षण)
*सभी लोग हिंसा का त्याग कर दें तो फिर क्षात्रधर्म रहता ही कहाँ है ? और यदि क्षात्रधर्म नष्ट हो जाता है तो जनता का कोई त्राता नहीं रहेगा । -[[बाल गंगाधर तिलक|लोकमान्य तिलक]] (गीतारहस्य, पृ॰32)
*प्रलय होने पर समुद्र भी अपनी मर्यादा को छोड़ देते हैं लेकिन सज्जन लोग महाविपत्ति में भी मर्यादा को नहीं छोड़ते। -'''[[चाणक्य]]'''
*जीवन स्वयं में न तो अच्छा होता है, न बुरा। जैसा तुम इसे बना दो, यह तो वैसा ही अच्छा या बुरा बन जाता है।  -मांतेन (निबंध) [[सूक्ति और कहावत|.... और पढ़ें]]
*सभी लोग हिंसा का त्याग कर दें तो फिर क्षात्रधर्म रहता ही कहाँ है ? और यदि क्षात्रधर्म नष्ट हो जाता है तो जनता का कोई त्राता नहीं रहेगा । -'''[[बाल गंगाधर तिलक|लोकमान्य तिलक]]''' (गीतारहस्य, पृ॰32)
*जीवन स्वयं में न तो अच्छा होता है, न बुरा। जैसा तुम इसे बना दो, यह तो वैसा ही अच्छा या बुरा बन जाता है।  -'''मांतेन''' (निबंध) '''[[सूक्ति और कहावत|.... और पढ़ें]]'''

06:18, 11 मई 2011 का अवतरण

  • सभी लोग हिंसा का त्याग कर दें तो फिर क्षात्रधर्म रहता ही कहाँ है ? और यदि क्षात्रधर्म नष्ट हो जाता है तो जनता का कोई त्राता नहीं रहेगा । -लोकमान्य तिलक (गीतारहस्य, पृ॰32)
  • जीवन स्वयं में न तो अच्छा होता है, न बुरा। जैसा तुम इसे बना दो, यह तो वैसा ही अच्छा या बुरा बन जाता है। -मांतेन (निबंध) .... और पढ़ें